आई एच सी भारतीय भाषा महोत्सव 2013 इस माह के अंत में 24 से 27 अक्टूबर होगा. इस साल महोत्सव की थीम है: ‘जोड़ती ज़ुबानें, जुड़ती ज़ुबानें: लैंग्वेज कनेक्शन्स’. चार दिन तक चलने वाले इस महोत्सव में इस बार शामिल विभूतियों में 7 पद्मश्री, 1 पद्म भूषण, 12 साहित्य अकादेमी पुरस्कृत, 5 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता और एक आस्कर सम्मानित हैं. महोत्सव में इस साल भारत की बीस भाषाओँ और बोलियों से 90 से अधिक वक्ता आ रहे हैं.
‘समन्वय’ बहुलतावादी भारतीय संस्कृति में पल्लवित विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों की अभिव्यक्ति को एक मंच पर लाने का एक प्रयास है. प्रख्यात लेखकों कलाकारों बौद्धिकों के बीच ये संवाद इस देश की बहुभाषिक संस्कृति और उसकी अन्तः प्रेरणाओं का प्रतिनिधित्व करेंगे.
समन्वय 2013 में चर्चा होगी उन रिश्तों की जो भाषाएँ बनाती हैं और रिश्तों की जो भाषाओँ के बीच बनते हैं: ‘जोड़ती ज़ुबानें, जुड़ती ज़ुबानें: लैंग्वेज कनेक्शन्स’ यह थीम पहले दो संस्करणों की थीम के सिलसिले को आगे बढाती है. समन्वय के पहले संस्करण में इस देश की विभिन्न भाषाओँ में रचे गए साहित्य में भारतीयता की अवधारणा को समझने की कोशिश की गयी थी और दूसरे संस्करण में भारतीय साहित्य की जड़ों को समझने और भाषाओँ और बोलियों के आपसी रिश्ते कोकई दृष्टिकोणों सेपरखने की कोशिश की गई- ‘बोली बानी भाषा: गाँव क़स्बा शहर’ थीम के अंतर्गत. इस बार कीकोशिश है उन नैतिक प्रेरणाओं और परिवेशों से रू-ब-रू होने की जो भाषाओँ को दर्शकों, पाठकों, लेखकों से परे भी निर्मित करते हैं.
तो तैयार रहिये साहित्य, मीडिया, अनुवाद पर सत्रों के साथ साथ कविता पाठ, लोक कला. स्टैंड अप कामेडी, रंगमंच और शाम की सांगीतिक प्रस्तुतियों के लिए. भाषा-विशेष पर केंद्रित सत्रों के अलावा इस बार का महोत्सव उन मुद्दों को भी संबोधित है जिन्होंने इधर हमारी सामाजिक और बौद्धिक जिंदगी को गहरे प्रभावित, परिभाषित किया है: सिविल सोसायटी आन्दोलन, दलित और स्त्री लेखन, सिनेमा, रेडियो, साहित्य, प्रकाशन की दुनिया में नयी वैकल्पिक आवाजें, लैंगिक हिंसा, हाशिए के समुदायों के स्वप्न और उनकी अभिव्यक्ति और सबसे ऊपर उस नए तरह की देशभक्ति के संकेत जो खुद अपने को धर्म से कम नहीं समझती.
इस बार के प्रतिभागी लेखकों, गीतकारों, फिल्मकारों, मीडियाकर्मियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और कलाकारों में अनुपम मिश्र, गुलज़ार, जेरी पिंटो, केतन मेहता, महेश भट्ट, मुकुल केशवन, मीनाक्षी माधवन रेड्डी, पीयूष मिश्र, रवीश कुमार, शारदा सिन्हा, शशि देशपांडे, शुद्धब्रत सेन गुप्ता और वरुण ग्रोवर शामिल हैं. हमेशा की तरह समन्वय में जाने माने स्थापित व्यक्तित्वों के साथ नयी साहसी आवाजों का एक संतुलन है. साहित्य की दुनिया से जो और सम्मानित नाम हैं, वे हैं: अरविन्द कृष्ण मेहरोत्रा, अश्विनी कुमार पंकज, अर्जुन देव चारण, ए. जयप्रभा, अरूणेश नीरन, बी. एम. हनीफ, भगवान सिंह, सी.पी. देवल, हिमांशी शेलत, केदारनाथ सिंह, कांचा इलैया, के. शिवारेड्डी, मनोरंजन व्यापारी, नरेन्द्र कोहली, निवेदिता मेनन, नन्द किशोर आचार्य, निरुपमा दत्त, एन.डी. राजकुमार, प्रवीण पंड्या, रूपरेखा वर्मा, सिल्वेनस लामारे, सुरजीत पातर, सीतांशु यशस्स्चंद्र, सुषमा असुर, तेंजिन सुन्दुई, उदय नारायण सिंह, विवेक राय के साथ विभिन्न क्षेत्रों के कई सशक्त प्रतिनिधि हैं.
महोत्सव की घोषणा करते हुए महोत्सव के निदेशक राज लिब्रहान ने कहा कि “ इण्डिया हैबिटेट सेंटर के लिए समन्वय एक साहित्य महोत्सव भर नहीं है बल्कि एक सामाजिक कर्म है, एक उद्देश्य. इस देश में हम सब वे विधियां खोजते रहते हैं जिनसे अपने विचारों को शब्दों में अनूदित कर सकें. समन्वय हमें प्रभावित करने वाले मुद्दों पर बहस, संवाद और नए की खोज का एक बहुभाषी मंच है.”
समन्वय 2013 के बारे में और बताते हुए महोत्सव के क्रिएटिव डाइरेक्टर सत्यानन्द निरुपम ने कहा कि, “इस बार की थीम भाषाओँ के बीच साहित्यिक और सांस्कृतिक रिश्तों से आगे जाते हुए उन रिश्तों की बात करती है जो अभियक्ति के विभिन्न माध्यमों के बीच हैं: साहित्य, सिनेमा, संगीत, विभिन्न विचारधाराएं और निस्संदेह विभिन्न भाषाओँ और बोलियों के आपसी रिश्तों की बात तो है ही. समन्वय इस उपमहाद्वीप के साझे इतिहास को संजोने का एक प्रयास है, यह हमारीएक ईमानदार कोशिश हैभारतीय भाषाओँ के साहित्य को समर्पित एक मुकम्मल लिटरेचर फेस्टिवल में भारतीय साहित्य की शानदार प्रस्तुति की..”
महोत्सव के क्रिएटिव डायरेक्टर गिरिराज किराडू ने इस साल के उत्सव की विशेषताओं के बारे में बताते हुए कहा कि, “पिछले दोनों संस्करणों के मुकाबले समन्वय 2013 कई मायनों में एक बड़ी इवेंट है, न सिर्फ इस मायने में कि इस बार पहले दोनों बार से अधिक वक्ता हैं और अधिक सत्र हैं बल्कि इस मायने में भी इन सत्रों में विषयों और मुद्दों की विविधता पहले से कहीं ज्यादा है इस साल. हम उन जादुई रिश्तों की बात करना चाहते हैं जो भाषाएँ बनाती हैं लेकिन उन सत्ता संबंधों की भी जो इस प्रक्रिया में बनते हैं. हमेशा की तरह इस बार भी समन्वय में हम भाषाओँ, बोलियों, विचारधाराओं, माध्यमों और रणनीतियों के कठिन लेकिन समृद्ध करने वाले संवादों के नए इलाके में हैं.”
महोत्सव में नेशनल बुक ट्रस्ट, दिल्ली प्रेस, प्रतिलिपि बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, फुल सर्कल, राजकमल प्रकाशन, वाणी प्रकाशन और अन्य प्रकाशनों द्वारा विशेष दरों पर पुस्तकें उपलब्ध होंगी. सभी कार्यक्रम इण्डिया हैबिटेट सेंटर, लोदी रोड, नयी दिल्ली में होंगे.
समन्वय भारतीय भाषा महोत्सव : एक परिचय
समन्वय की परिकल्पना भारतीय भाषाओँ के साहित्य के एक सालाना जलसे के रूप में की गई है. महोत्सव का उद्देश्य भारतीय भाषाओँ के बीच विभिन्न स्तरों पर हो रहे संवाद का एक जीवंत प्रतिनिधि होने की है. समन्वय को भारतीय भाषाओँ को समर्पित एकमात्र साहित्य महोत्सव की तरह देखा और सराहा गया है.
समन्वय के पहले संस्करण (2011) में कोशिश थी विभिन्न देशज साहित्यों को ‘भारतीय’ के विराट बैनर से परिभाषित करने की प्रेरणाओं और राजनीति को समझने की. दूसरे संस्करण (2012) में हमने ‘बोली, बानी, भाषा: गाँव, क़स्बा, शहर’ की मुख्य थीम के मार्फ़त भारतीय साहित्य की विरासत को जानने का प्रयास किया.
पहले दो संस्करणों में कुंवर नारायण, सीताकांत महापात्र, चंद्रशेखर कम्बार, रतन थियम, के. सच्चिदानंदन, अशोक वाजपेयी, आलोक राय, शीन काफ निजाम, गिरीश कासरवाली, प्रतिभा राय, नवनीता देवसेन, गोपालकृष्ण पाई, काशीनाथ सिंह, लक्ष्मण गायकवाड, नवारूण भट्टाचार्य, राजेंद्र यादव, मंगलेश डबराल, युम्लेम्बम इबोमचा, राधावल्लभ त्रिपाठी, अरुण कमाल, और ममंग दई समेत 20 से अधिक भाषाओँ और बोलियों के 130 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सेदारी की. राज लिब्रहान समन्वय के महोत्सव निदेशक और सत्यानन्द निरुपम तथा गिरिराज किराडू क्रिएटिव डाईरेक्टर हैं.