राष्ट्रीय सहारा ने अपने रिपोर्टर को ही बना दिया प्रसिद्ध पर्यावरणविद

सहारा ने अपने रिपोर्टर को ही बना दिया प्रसिद्ध पर्यावरणविद
सहारा ने अपने रिपोर्टर को ही बना दिया प्रसिद्ध पर्यावरणविद

अज्ञात कुमार

सहारा ने अपने रिपोर्टर को ही बना दिया प्रसिद्ध पर्यावरणविद
सहारा ने अपने रिपोर्टर को ही बना दिया प्रसिद्ध पर्यावरणविद

देश के अखबारी इतिहास एेसा शायद ही हुआ हो कि कोई अखबार अपने मामली रिपोर्टर को अचानक ही प्रसिद्ध पर्यावरणविद घोषत कर दे। लेकिन राष्ट्रीय सहारा ने यह कमाल किया है । वैसे सहारा में कुछ अजब—गजब न हो, ये तो हो ही नहीं सकता। अब राष्ट्रीय सहारा की शान समझे जाने वाला चार पेज का सप्लीमेंट हस्तक्षेप भी इसकी चपेट में आ गया है।

राष्ट्रीय सहारा ने हस्तक्षेप में अपने एक अदना सा रिपोर्टर को ही प्रसिद्ध पर्यावरणविद बता दिया। सहारा को शर्म भी नहीं आई और हस्तक्षेप के शनिवार 11 अक्तूबर के अंक में अपने इस स्वनामधन्य रिपोर्टर को प्रसिद्ध पर्यावरणविद बताते हुए रिपोर्टर का लेख और फोटो भी छापा।

देहरादून राष्ट्रीय सहारा के इस रिपोर्टर ने अपनी जिंदगी में शायद ही कभी पर्यावरण के विषय में एक रिपोर्ट भी लिखी हो। हस्तक्षेप के तीसरे पृष्ठ में गोमुख से ही मैली गंगा शीर्षक से छपे लेख से ही पता चल जाता है कि जिस रिपोर्टर को फर्जी तरीके से प्रसिद्ध पर्यावरणविद बनाकर पेश किया गया है वह कितने पानी में है। इधर-उधर से हड़बड़ी और आनन—फानन में बिना पुष्टि किए तथ्य जुटा कर लिखे गए इस लेख में गंगोत्री ग्लेशियर के सहायक ग्लेशियरों के नाम ही गलत लिखे गए हैं। जैसे रक्तवर्ण को चरक्तवन और चतुरंगी को चचतुरंगी हैं। इसी तरह हरिद्वार के भीमगौड़ा बैराज को भीमबाड़ा बताया गया है।

इसी तरह स्वयंभू पर्यावरणविद के लेख में कहा गया है कि गंगोत्री ग्लेशयर पिछली दो शताब्दी में 15 मीटर प्रति वर्ष की रफ्तार से पीछे की आेर हट रहा है।जबकि सत्य यह है कि नासा ने यूनाइटेड स्टेट्स जियोलॉजिकल सर्वे (यूसजीसीएस), नेशनल स्नो एंड आइस डाटा सेंटर (एनएसआईडीसी)
ने जो अध्ययन किया है उसके अनुसार तस्वीर कुछ और ही है.

लेख में भाषा संबंधी गलतियों की भी भरमार है। बताया जाता है कि यह महान पर्यावरणविद अमरनाथ समूह संपादक रणविजय सिंह के खासमखास हैं । मुखबिरों की तरह उन्हें देहरादून यूनिट की पल—पल की जानकारी देते हैं।

सूत्र बताते हैं कि अमरनाथ की समूह संपादक की नजदीकी की वजह से डर के मारे उसके लेख को जस—का तस छाप दिया गया और किसी ने उसी ठीक करने या सुधारने की हिम्मत तक नहीं जुटाई।

अब सहारा के लोग या तो हंस रहे हैं या माथा पीटते हुए रो रहे हैं। उन पर दूसरे अलानाविद,फलानाविद की संज्ञा देकर लोग कमेंट कर रहे हैं सो अलग। देखें ऊपर हस्तक्षेप अखबार का फोटो अटैच है.

(एक पत्रकार द्वारा भेजे गए खत पर आधारित)

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