मयंक सक्सेना
सदाशिव अमरापुरकर नहीं रहे…मैंने बचपन में कई फिल्में देखी, जिन में उनका होना अपरिहार्य ही होता था…लेकिन उन में से ज़्यादातर बचपन से निकलने के बाद देखने लायक ही नहीं थी…लेकिन Sadak एक ऐसी फिल्म थी, जिसे सालहा साल देखा…जब भी टीवी पर आती दिखी, सिर्फ और सिर्फ सदाशिव अमरापुरकर की ही वजह से वो फिल्म देखी…
सड़क हाल ही में एक टीवी चैनल पर देखी और उसके बाद उनकी हिंदी की (अर्द्धसत्य छोड़ कर) बाकी फिल्मों के बारे में सोच कर सिर्फ एक ही ख़्याल आता रहा कि क्या वाकई हम शानदार अभिनेताओं और समझदार कलाकारों को कचरे के ढेर में इस तरह रख देते हैं कि देखने में वो कचरा ही लगे…दूर से कचरा ही नज़र आए…और धीरे-धीरे संक्रमित हो कर कचरा ही बन जाए?
Ardh Satya और सड़क वाले सदाशिव अमरापुरकर को याद करते हुए, उन साथियों को ज़रूर इन दो फिल्मों को देखने की सलाह देना चाहूंगा, जिन्होंने ये नहीं देखी हैं…वरना टीवी पर इन दोनों फिल्मों का नाम भी न जानने वाले बहुत पत्रकार आज दिन भर ज्ञान बहाते दिखाई देंगे…कलाकार को जानने के लिए विकीपीडिया नहीं, उसकी फिल्म देखनी पड़ती है साहेब…
@एफबी