हैदराबाद, 22 मई, 2013 (विज्ञप्ति). उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के स्थानीय परिसर में वर्तमान सत्र के संपन्न होने के साथ यहाँ आज 24 नए लघुशोधप्रबंध प्रस्तुत किए गए. संस्थान के अध्यक्ष डॉ.ऋषभ देव शर्मा ने जानकारी दी कि इन शोधकार्यों में नए विमर्शों के आधार पर मौलिक अनुसंधान को प्रमुखता दी गई है.
उन्होंने बताया कि 3 शोधार्थियों ने दलित विमर्श पर शोध कार्य संपन्न किया है. इनमें टी.सुभाषिणी का ‘दलित कहानियों में चित्रित सामाजिक यथार्थ’, वै. मिरियम का ‘माताप्रसाद की आत्मकथा में दलित विमर्श’ और संतोष विजय मुनेश्वर का ‘के.एस.तूफ़ान का दलित विमर्श : ‘टूटते संवाद’ का संदर्भ’ सम्मिलित हैं.
इसी प्रकार 3 शोध छात्रों ने स्त्री विमर्श पर केंद्रित शोधप्रबंध प्रस्तुत किए हैं. माधुरी तिवारी ने जहाँ विष्णु प्रभाकर के महाकाय उपन्यास ‘अर्द्धनारीश्वर’ को तथा देवेंद्र ने कमल कुमार के उपन्यास ‘हैमबरगर’ को आधार बनाकर इन रचानाकारों की स्त्री-दृष्टि की पड़ताल की है वहीं बी.राखी ने मनोज सिंह के सद्यःप्रकाशित उपन्यास ‘कशमकश’ को स्त्रीविमर्श की दृष्टि से खंगाला है.
सुनील कुमार और एच.नरेंदर ने क्रमशः डॉ.हीरालाल बाछोतिया के खंड काव्य ‘विद्रोहिणी शबरी’ तथा संताल संघर्ष पर केंद्रित मधुकर सिंह के उपन्यास ‘बाजत अनहद ढोल’ में आदिवासी विमर्श की खोज की है.
इसी प्रकार चित्रा मुद्गल के प्रसिद्ध उपन्यास ‘गिलिगडु’ के पाठ का गहन विश्लेषण गहनीनाथ ने वृद्धावस्था विमर्श की कसौटी पर किया है.
नागेश दूबे ने कुसुम खेमानी की कथा भाषा का विश्लेषण भाषा मिश्रण और भाषा परिवर्तन की दृष्टि से करते हुए यह दर्शाया है कि विभिन्न भाषाओं और बोलियों की शब्दावली और उक्तियों को आत्मसात करके हिंदी निरंतर विकास के नए आयाम छू रही है.
विभागाध्यक्ष ने यह भी जानकारी दी कि इस वर्ष के शोध कार्यों में अध्येय विधा की दृष्टि से भी पर्याप्त विविधता है. उन्होंने कहा कि वर्षा कुमारी ने जहाँ पुरुषोत्तम अग्रवाल की आलोचना कृति ‘अकथ कहानी प्रेम की’ को शोध का आधार बनाया है वहीं राजकिरण ने भीष्म साहनी के साक्षात्कारों और एल.विजयलक्ष्मी ने ममता कालिया के ताजा संस्मरणों पर अपना-अपना लघुशोधप्रबंध तैयार किया है.
समाजशास्त्र, समकालीनता और यथार्थवाद की दृष्टि से इस वर्ष कविता, कहानी और उपन्यास साहित्य के अध्ययन को समर्पित 11 लघुशोधप्रबंध प्रस्तुत किए गए. दीपशिखा पाठक ने महेंद्र भटनागर के काव्य का यथार्थ की दृष्टि से विश्लेषण किया तो सुमैया बेगम ने राजकुमार गौतम की कहानियों में जीवन मूल्य तलाशे हैं. शीतल कुमारी, रोहिणी जाब्रस, रीमा कुमारी और संजय कुमार ने क्रमशः रमेशचंद्र शाह, विवेकानंद, नीलाक्षी सिंह और रोहिताश्व के कथासंग्रहों को अपने शोध का उपजीव्य बनाया.
समकालीन उपन्यास साहित्य में गुँथी हुई सामाजिकता और उत्तरआधुनिकता का विश्लेषण 5 शोधकार्यों में किया गया जिनमें मुहाफिज़ (विजय) पर नीलोफर, बारहमासी (ज्ञान चतुर्वेदी) पर प्रीति कुमारी, दूसरा घर (रामदरश मिश्र) पर मनोज कुमार मिश्र, नमामि ग्रामम् (विवेकी राय) पर इंद्रजीत सिंह और डर हमारी जेबों में (प्रमोद कुमार तिवारी) पर विनोद चौरसिया के लघुशोधप्रबंध शामिल हैं.
इन शोध कार्यों की प्रस्तुति के अवसर पर आयोजित मौखिकी में विशेषज्ञ के रूप में पधारीं प्रो.शुभदा वांजपे ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि नए रचनाकारों और नए विमर्शों पर एम.फिल. के स्तर पर शोध करना और कराना अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य है. इस चुनौती को स्वीकार करने तथा स्तरीय शोधकार्य संपन्न कराने के लिए उन्होंने इन शोधकार्यों के निर्देशकगण डॉ.गोरखनाथ तिवारी, डॉ.बलविंदर कौर, डॉ.जी.नीरजा, डॉ.मृत्युंजय सिंह, डॉ.साहिराबानू बी. बोरगल तथा विभाग के आचार्य एवं अध्यक्ष डॉ.ऋषभ देव शर्मा को बधाई दी.