ओम थानवी,वरिष्ठ पत्रकार
रवीश कुमार ने टीवी पत्रकारिता में कल और झंडा गाड़ा। बनारस पर कार्यक्रम किया। बनारस से सराबोर किया। ख़ुद परदे के पीछे रहे। फिर भी बोर नहीं किया। वही बनारस जहाँ प्रधानमंत्री को गंगा मैया ने बुलाया था, लोगों ने जिताया था, गंगा को स्वच्छ और काशी को क्योतो बनाने का सपना बेचा था। लोगों को बनाया था। अब गोद भी चले गए। पर हालत इतनी पतली है कि केंद्र का आधा मंत्रिमंडल अपना काम छोड़ बनारस में डेरा डाले है। गोद वाले घर में अपने घर का, यानी छठी का, दूध याद आ गया है।
आपको स्मरण होगा, रवीश ने एक दफ़ा स्क्रीन काली कर इतिहास रच दिया था। दिलजलों के मुँह काले हो गए थे। अब जब वे बदला लेने की फ़िराक़ में उन पर हमलावर हुए, रवीश उलटे और मँज कर, और रचनात्मक अन्दाज़ में सामने आए हैं। रवीश को एक रोज़ जुझारु और सार्थक पत्रकारिता के लिए मैगसायसाय एवार्ड मिलेगा, यह मेरी भविष्यवाणी है। (इससे किसी को जलन हो तो जले, मगर गंदी ज़ुबान अपनी वॉल के लिए बचा रखे!)
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