सुबह होते ही सुबह ऐसे बदरंग हाल में देखना अपने भीतर की सारी चेतनाओं का अंतिम संस्कार करने जैसा लगता है। ऐसे मैसेज भेजने वाले सुबह से भी नियमित है। किसी दिन इस दुनिया से सूरज अपना लोटा लेकर ग़ायब भी हो जाए और कह दे कि मैंने उगना डूबना छोड़ दिया है तो भी ये लोग मैसेज भेजते रहेंगे। गुड मार्निंग मैसेज भेजने वालों का नैसर्गिक संबंध मैसेज से है, सुबह से नहीं। एक जनाब तो मुझे रात के एक बजे भेजते हैं। उन्हें लगता है कि बारह बजते ही सुबह हो गई। साहब AM-PM के स्टार्टिंग प्वाइंट से ही सुबह को काउंट करने लगते हैं।
इन मैसेजों को खोज कर भेजने वालों को एक बीमारी ने धर लिया है। इसका नाम है मार्निंग मैनिया। यहाँ उल्लेख करना समीचीन होगा कि यह नाम मैंने रखा है। क्योंकि किसी लेख में अगर आप ‘मैं’ पर ज़ोर न दें तो पाठक को लगता है कि लेखक कॉपी पेस्ट वाला है। मैंने कई लोगों को लिखते वक्त ख़ुद को सीरीयसली लेते देखा है। काफ़ी तवज्जो देते हैं ख़ुद पर। जैसे कि वे एक मूर्ख समाज में समझोत्पादन करने का कोई भयंकर काम कर रहे हैं। उन्हीं से आज प्रेरित हो गया।
बहरहाल, सुबह से भी ज़्यादा अगर कोई सुबह को लेकर प्रतिबद्ध हो जाए तो उसका क्या किया जाए। भारत में कोई लोगों को लगता है कि जब तक व्हाट्स एप में गुड मार्निंग मैसेज भेजने की आज़ादी है, लोकतंत्र सुरक्षित है। आप गुड मार्निंग मैसेज के रूप में आने वाली तस्वीरों को देखें। इन्हें देखकर यक़ीन हो गया है कि 24 घंटे के पहर में कोई वक्त बदरंग है तो सुबह है। सुबह की अभिव्यक्तियाँ मर चुकी हैं। कुछ बची हैं जो मैसेज में दर्ज हैं। इसका मतलब है कि सुबह की भाषा मिट चुकी है। आप सुबह को प्रतिनिधि तस्वीरों के ज़रिए व्यक्त करने लगे हैं। कप प्लेट, पहाड़ के पीछे से निकलता सूरज, द चार फूल, कुछ संदेश अतिरिक्त।
ठीक इसी तरह आप ऐसे मैसेज और संदेशों के कारण नेहरू से लेकर जेएनयू और मुसलमानों को पहचानने लगे है। सारा ज्ञान और बोध सिमट जाता है। यही व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी है। मैसेज के साथ आने वाली तस्वीरें आपके दिमाग़ में भाषा की जगह बैठती चली जाएँगी। आप भाषाविहीन होते जाएँगे। आप के भीतर जागने सोने हंसने रोने के बोध पर इन तस्वीरों का क़ब्ज़ा हो जाएगा। ऐसे ही लोगों का समूह रोबोट और आईटी सेल से संचालित होने लगता है। इन चीजों को पहचानिए। इनसे छुटकारा पाइये।
मैं आप गुड मार्निंग मैसेज भेजने वालों को चिरकुट नहीं कहना चाहता। चिरकुट होना बिस्कुट होना है। चाय के साथ आ जाता है और न चाहते हुए भी चाय पीने वाला बिस्कुट खाने लगता है। पता ही नहीं चलता कि चाय पी रहा है कि बिस्कुट खा रहा है। ऐसा लगता है जैसे आप मुँह के भीतर चाय से आटा सान रहे हों। वही काम गुड मार्निंग मैसेज करता है।
मैं आपको भोर प्रचारक कहता हूँ। आप न हों तो दुनिया में भोर का प्रचार न हो। आप ‘भोर प्रचारकों’ की बदौलत ही इनबॉक्स में सूरज के निकलने का इंतज़ाम हो सका है। आप लोग रोबोट हो चुके हैं। मैसेज लिया और किसी के इनबॉक्स में ठेल दिया। मैंने यह लेख आपकी निंदा में नहीं लिखा है बल्कि इन मैसेजों से सुबह को बचाने के लिए लिखा है। मुझे सैंकड़ों की संख्या में लोग हर सुबह गुड मार्निंग मैसेज भेजते हैं। मेरा बस यही कहना है कि इस प्रक्रिया में गुड आफ़्टर नून उपेक्षित महसूस कर रहा है। उसका भी आप लोड ले लीजिए। क्योंकि मना करने से भी सुधरने वाले तो हैं नहीं । ओ भोर के सिपाही, थोड़ा दोपहर का ठेका ले लो रे, दोपहर रह गया है अकेले रे।इसे गाते रहिए। (रवीश कुमार के सोशल मीडिया से साभार)