दौलत और शोहरत के पीछे भागती दौड़ती दुनिया में कई तत्थ्य ऐसे भी हैं जो आश्चर्य होने के साथ-साथ बेनाम सा विस्मय बन जाते हैं। उदाहरण हिंदुस्तान की औद्योगिक हस्ती खुद रतन टाटा हैं, जिन्हें दौलत और शोहरत तो मिली, लेकिन मोहब्बत-चाहत का एक तिनका भी नसीब नहीं हुआ। यह बात खुद उन्होंने एक साक्षात्कार में खोली है। इश्क उन्हें चार बार हुआ, लेकिन टाटा का नसीब ही खराब था। कुल मिलाकर अरबों डॉलर, यूरो, पौंड का मालिक मोहब्बत की गरीबी में जी रहा है।
टाटा प्यार, पत्नी, औलाद के सुख से वंचित हैं। आम आदमी की पहुंच में नैनो का पहुंचाकर एक असंभव सपना पूरा करने वाले टाटा का प्यार पाने का सपना आज तक अधूरा है… कार से लेकर नमक तक बेचने वाले टाटा ग्रुप को बरसों-बरस बाद साइरस मिस्त्री के रूप में वारिस मिला। 28 दिसंबर को 71 अरब वाले टाटा समूह की मुख्य कंपनी टाटा सन्स के नये उत्तराधिकारी की घोषणा हुई, जिनका नाम सायरस मिस्त्री है। 43 साल के सायरस के नाम का खुलासा खुद रतन टाटा ने किया।
रतन टाटा दिसम्बर 2012 में रिटायर हो गए, इसके बाद सायरस ने उनका पदा संभाला। अगर आज रतन टाटा विवाहित होते और उनकी अपनी कोई संतान होती तो शायद आज टाटा ग्रुप का चेयरमैन वो ही होता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि अगर ऐसा होता तो इतिहास अपने आप को दोहरा नहीं पाता। आपको जानकर हैरत होगी कि देश के बड़े घरानों में से एक टाटा ग्रुप के फाउंडर चेयरमैन को छोड़कर किसी भी चैयरमैन का कोई वारिस नहीं था।
सन 1887 में टाटा एंड संस की स्थापना करने वाले जमशेदजी नुसेरवांजी के बड़े बेटे सर दोराबजी टाटा सन्स 1904 में अपने पिता के निधन के बाद कंपनी की कमान संभाली, लेकिन 1932 में वो भी परलोक सिधार गये। उस समय कंपनी को संभालने वाला कोई नहीं था, क्योंकि सर दोराबजी टाटा की कोई संतान नहीं थी। इसलिए इस बार कंपनी की कमान उनकी बहन के बड़े बेटे सर नॉवरोजी सकटवाला को दे दी गयी, लेकिन सर नॉवरोजी सकटवाला की 1938 में अकस्मात मृत्यु हो जाने के बाद जेआरडी टाटा को टाटा ग्रुप सौंपा गया। यहां आपको बता दें कि जेआरडी टाटा जमशेदजी टाटा के चचेरे भाई के बेटे थे, जिन्होंने भारत को पहली एयरलाइंस सुविधा मुहैया करायी। मगर, अफसोस! जेआरडी टाटा की भी कोई औलाद नहीं थी। इसलिए 1991 में कंपनी की कमान रतन टाटा को सौंपी गयी।
रतन टाटा नवल टाटा के बेटे थे, जिन्हें जमशेद जी ने गोद लिया था। उसके बाद तस्वीर आपके सामने है, क्योंकि रतन टाटा के बाद टाटा ग्रुप के मौजूदा वारिस सायरस मिस्त्री हैं। स्पष्ट कर दूं कि सायरस मिस्त्री रतन टाटा के सौतेले भाई के सगे साले हैं। इसे संजोग ही कहे कि विश्व के मानचित्र में भारत को औद्योगिक रूप में मजबूत करने वाले टाटा ग्रुप के चेयरमैन रतन टाटा की शादी नहीं हुई। हालांकि उन्हें मुहब्बत तो कई बार हुई, लेकिन वो शादी के बंधन में नहीं बंध पायी।
कुछ समय पहले एक टीवी न्यूज चैनल के कार्यक्रम में रतन टाटा ने खुद इस राज से पर्दा उठाया था। अरबों की मिल्कियत के मालिक टाटा को एक बार नहीं बल्कि चार बार प्यार हुआ था। तीन बार की मोहब्बत तो यूं ही तफरी के लिए थी, लेकिन अपनी चौथी मुहब्बत के बारे में रतन टाटा ने कहा था, कि जब वह अमेरिका में काम कर रहे थे तो उनका प्यार बेहद गहरा हो गया था, लेकिन केवल इसलिए शादी नहीं हो पायी, क्योंकि उन्हें वापस भारत आना था। यह पूछे जाने पर कि जिनसे उन्हें प्यार हुआ था उनमें से कोई क्या अभी भी उनसे मिलता है तो उन्होंने हां में जवाब दिया, लेकिन इस मामले में आगे बताने से इनकार कर दिया था। यह है देश के एक ऊंचे खानदान का रोचक सच, जिसे जानने का हक आप सभी को है। जहां टाटा ग्रुप ने नमक और चाय पत्ती से घर की गृहणियों का दिल जीता, वहीं आम आदमी की पहुंच में नैनो कार पहुंचा कर एक असंभव सपना पूरा कर दिया, खुद रतन टाटा का प्यार पाने का सपना आज तक अधूरा है.
शीर्षक पर ध्यान दें कहा भी गया है कि नुक़्ते के हेरफेर से ख़ुदा जुदा हो जाता है। जब किसी की मौत हो चुकी हो तो उसके लिए मरहूम इस्तेमाल किया जाता है…लेकिन जब कोई किसी बात से वंचित रहे,पा न सके,दूर रहा हो तब इस्तेमाल होता है महरूम।
फिरोज़
फिरोज जी, जानकारी के लिए आभार, सादर नमस्ते। – अतुल