राष्ट्रीय सहारा ने अपने देहरादून संस्करण का कंटेट सुधारने के लिए हस्तक्षेप के संपादक दिलीप चौबे को तो भेजा ही है। अखबार की दूसरे अखबारों के साथ तुलनात्मक समीक्षा की जिम्मेदारी भी राजेश भारती से छीनकर हिमाचल टाइम्स के संपादक रहे अब प्रभात के संपादक व भाषा एजेंसी के स्ट्रिंगर जय सिंह रावत को सौंप दी है।
हालांकि समीक्षक का नाम गोपनीय होना चाहिए था लेकिन सहारा में ये अब ओपन सीक्रेट है। पिछले कुछ दिनों से हो रही इस समीक्षा के चलते सहारा के लोग परेशान हैं। समीक्षक महोदय केवल देहरादून सिटी संस्करण की समीक्षा कर रहे हैं । इस तरह से तो कुमाऊं, गढ़वाल और हरिद्वार संस्करण के कंटेट को लेकर बात ही नहीं हो रही है.
समीक्षक महोदय तर्कपूर्ण या कुतर्कपूर्ण ढंग से समाचारों पर ऐसी तीखी—तीखी टिप्पणियां कर रहे हैं कि जैसे लोग समाचार नहीं लिख रहे हों शोध पुस्तक लिख रहे हों। दिलचस्प बात यह है कि उनकी टिप्पणियां कुछ खास रिपोर्टरों की खबरों पर ही केंद्रित हैं। जबकि उनसे पुराने ताल्लुकात वाले रिपोर्टरों की खबरें उनकी पैनी निगाह से छूट जा रही हैं।
जयसिंह रावत को ठाकुर वामपंथी माना जाता है। वह सतपाल महाराज के सबसे खास और करीबी पत्रकारों में से एक हैं। बताया जा रहा है कि जब सहारा के कुछ रिपोर्टरों और डेस्क के लोगों को पता चला कि जयसिंह रावत सहारा की समीक्षा कर रहे हैं तो कई लोगों ने उनसे संपर्क भी किया। उनके बीच क्या बात हुई यह तो नहीं पता मगर इन मुलाकातों के पश्चात दैनिक समीक्षा में पहले निशाने में रहने वाले रिपोर्टर अब निशाने पर नहीं रहे।
सहारा के सूत्रों की मानें तो राजनीति का अखाड़ा माने जाने वाले राष्ट्रीय सहारा में एलएन शीतल के जमाने से अखबार की समीक्षा को लोगों को उठाने या गिराने में इस्तेमाल किया जाता रहा है। राजेश भारती पर भी समीक्षा में कुछ खास लोगों पर हमले करने के आरोप लगते रहे है। बताया जाता है कि नए समीक्षक का नाम भी राजेश भारती ने ही सुझाया था। उन्होंने सुभाष गुप्ता को भी समीक्षक बनवाने की कोशिश की थी। अब नए समीक्षक का इस्तेमाल भी पहले की तरह हो रहा है।
सूत्रों की मानें तो इस वक्त नए स्थानीय संपादक दिलीप चौबे को सहारा के तमाम गुट अपने—अपने प्रभाव में लेने में जुटे हैं। यहां तक कि वर्षों से स्टेट ब्यूरो में जगह पाने का सपना पाले लोगों मसलन राजेश भारती, बृजपाल चौधरी, गुणानंद जखमोला, अर्जुन बिष्ट, प्रवीन बहुगुणा आदि ने इसके लिए तिकड़म भिड़ानी शुरू कर दी है। सभी दिल्ली में बैठे अपने आकाओं से अपने लिए सिफारिश करवा रहे हैं। माना जा रहा है कि इन सभी ने समीक्षा की तलवार की धार ब्यूरो की ओर मोडऩे की कोशिश शुरू कर दी है। जिस कारण समीक्षा शुरू होने के बाद सहारा के ब्यूरो प्रभारी अमरनाथ और सिटी प्रभारी भूपेंद्र कंडारी सबसे ज्यादा परेशान नजर आ रहे हैं।
समीक्षा में वर्तनी की अशुद्धियों का मामला गायब है जिससे खबरें न पढ$ने वाले उप संपादकों की पौ-बारह हो गई है। खबरों का कंटेंट तो जब सुधरेगा तब लेकिन अशुद्धियों की भरमार खत्म होने का नाम नहीं ले रही।