दुर्गेश उपाध्याय
हाल ही में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी दो महीने का अज्ञातवास खत्म करके दिल्ली लौटे तो लोगों में बड़ा कौतूहल था कि अब वो क्या करने वाले हैं. लेकिन उसके ठीक बाद उन्होंने किसान रैली को जिस अंदाज में संबोधित किया उससे उन्होंने उन सारे लोगों का मुंह बंद कर दिया जो लोग उनकी गुमशुदगी को लेकर तरह तरह की बयानबाजियां कर रहे थे. राहुल गाँधी ने दिल्ली में किसान रैली में बोलते हुए कहा कि आज देश के लोगों को लग रहा है कि ये सरकार ग़रीबों की नहीं बल्कि पूंजीपतियों की है.
इतना ही नहीं राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि “मोदी जी ने उद्योंगपतियों से हज़ारों करोड़ का कर्ज लेकर चुनाव जीता है. अब ये कर्ज़ चुकाया जाएगा भारत की नींव को कमज़ोर करके. इसीलिए यूपीए के भूमि अधिग्रहण क़ानून को कमज़ोर किया गया और अन्य भी कई क़दम उठाए जाएँगे.
राहुल ने तीखे तेवर दिखाते हुए कहा प्रधानमंत्री पर हमला बोलते हुए कहा कि, “मोदी जी भारत के प्रधानमंत्री है लेकिन उन्हें भारत की शक्ति नज़र नहीं आती. उन्होंने कहा कि पिछले 60 साल की गंदगी साफ़ करने में लगे हैं. उन्हें पिछले 60 साल की आपकी मेहनत नज़र नहीं आती. विदेशी भूमि पर कहे गए ये शब्द मोदी जी को शोभा नहीं देते.” राहुल का मोदी सरकार पर इस तरह से हमला बोलना कहीं न कहीं मृतप्राय हो चुकी कांग्रेस पार्टी के लिए एक संजीवनी की तरह था. मीडिया ने भी राहुल के भाषण को प्रमुखता दी. उसके बाद राहुल गांधी लोकसभा में नए तेवर में नजर आए. जिस कांफिडेंस के साथ और आक्रामक तरीके से उन्होंने भाषण दिया, वह सबको चौंकाने वाला था. संसद में अपने भाषण के दौरान राहुल में एक ग़जब का आत्मविश्वास दिखलाई पड़ा और इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कटाक्ष किए और सत्ता पक्ष के शोरगुल से बिना विचलित हुए तुरंत सामने आए सवालों तथा तथ्यों पर त्वरित प्रतिक्रिया दी.
उनके भाषणों ने कांग्रेस के साथ साथ सत्ता पक्ष को भी हतप्रभ किया. ऐसा लगा मानो राहुल एक नए अवतार में लांच हुए हैं. भूमि अधिग्रहण पर सरकार और खासकर मोदी को उन्होंने जोरदार तरीके से घेरा. जाहिर सी बात है कि उनका ये तेवर ये दिखाता है कि वो अब अगली जिम्मेदारी के लिए अपने आपको पूरी तरह से तैयार करने में जुट गए हैं. ये बात सच है कि वर्तमान सत्ता पक्ष काफी मजबूत है और उसे हिलाना तो दूर टस से मस करना भी एक टेढ़ी खीर है. लेकिन यहां दिलचस्प बात ये है कि विदेश से लौटने के बाद राहुल गांधी ने जिस सक्रियता से संसद से सड़क तक सरकार को घेरने की कवायद शुरु की है उससे कांग्रेसियों में ऩई जान फूंकने में बड़ी मदद मिलेगी.
यहां आपको बता दूं कि इन दिनों कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर भी घमासान मचा हुआ है. नेतृत्व के मुद्दे पर पार्टी दो खेमे में बंटी हुई है. वर्तमान दौर कांग्रेस पार्टी के लिए संक्रमण का दौर है. एक तरफ पुराने लॉयलिस्ट सोनिया की छत्रछाया में अपने को सुरक्षित महसूस करते हैं और चाहते हैं कि वो ही पार्टी को आगे लेकर चलें जबकि ऐसे नेताओं की संख्या भी कम नहीं है जो राहुल को अध्यक्ष बनाए जाने के पक्ष में लगातार बयान दे रहे हैं. यहां ये समझना दिलचस्प है कि गांधी परिवार के उत्तराधिकारी से जिस नेतृत्व की उम्मीद कांग्रेस लंबे समय से लगाए हुए थी, अपनी लंबी छुट्टी से लौट कर वह अंदाज राहुल गांधी ने दिखाया है. इससे पार्टी में उत्साह का संचार हुआ है. आपको याद होगा कि किस तरह भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के विरुद्ध पार्टी की रैली में किसानों की भारी भीड़ उमड़ी और पिछले एक साल से अलग थलग पड़ी कांग्रेस को आखिरकार वो मुद्दा मिला है, जिससे वह अपने आपको मुख्यधारा में लाने की की उम्मीद जोड़ सकती है. इसका असर सोमवार को संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण की शुरुआत के साथ दिखा. दिन भर उसने सरकार को रक्षात्मक मुद्रा में धकेलने की कोशिश की. फिर हाल ही में किसानों पर मौसम के कहर के प्रश्न पर विशेष चर्चा के दौरान राहुल गांधी ने विरोध किया.
ध्यान देने वाली बात ये है कि अपनी छुट्टी से लौटने के बाद राहुल लगातार चर्चा के केंद्र में बने हुए हैं. सत्ता पक्ष जो कि भले ही मजबूत स्थिति में है लेकिन हैरान है कि आखिर राहुल में इतनी उर्जा कहां से आ गई. राहुल ने मौजूदा सरकार को सूट बूट की सरकार करार दिया जिसकी खूब चर्चा हुई और सरकार के रणनीतिकारों को बाकायदा मोदी जी का डिफेंस करना पड़ा. राजनीति की बिसात में फिलहाल जो पैंतरे राहुल आजमा रहे हैं वो उनके अपने राजनैतिक भविष्य के लिए आवश्यक तो है ही पार्टी में नई जान फूंकने में बहुत सहायक साबित हो सकता है.
एक और महत्वपूर्ण बात जो राहुल ने की है वो है केदाननाथ की यात्रा. उनकी इस यात्रा को कहीं न कहीं हिंदुओं को खुश करने की कवायद के रुप में देखा जा रहा है. उनकी योजना अब कामाख्या मंदिर भी जाने की है जिससे ये अनुमान तो लगाया ही जा सकता है कि वो भाजपा के हिंदुत्व वाले मुददे में सेंध लगाने की तैयारी में हैं. इधर विदर्भ के किसानों के पक्ष में पदयात्रा पर भी निकल पड़े हैं और उन्हें अच्छा समर्थन मिल रहा है. हांलाकि सरकार इसे खारिज कर रही है.
अब बड़ा सवाल ये है कि क्या राहुल गांधी की ये तमाम कोशिशें पटरी से उतर चुकी और निराश कांग्रेस पार्टी में एक नई जान फूंक पाएगी. क्या राहुल आगामी बिहार चुनावों में कांग्रेस को लड़ाई में ले आ पाने में कामयाब होंगे. और हाल ही में कुछ दलों की जो खिचड़ी पकी है उसमें वो कांग्रेस को कैसे फिट कर पाएंगे. फिलहाल तो इतना ही कहा जा सकता है कि जिस तरह की शुरुआत उन्होंने की है अगर इसी रफ्तार को बनाए रखने में वो कामयाब होते हैं तो शायद कुछ उम्मीद बन सकेगी.
( पूर्व BBC पत्रकार एवं स्तंभकार)