राडिया और 2G के दलाल NDTV में ही क्यों पलते हैं?

manish thakur, journalist
मनीष ठाकुर,वरिष्ठ टीवी पत्रकार

-मनीष ठाकुर-

मनीष ठाकुर
मनीष ठाकुर

नौ नवंबर में वक्त है, एनडीटीवी को सीधे सर्वोच्च अदालत जा कर फरियाद करनी चाहिए…सरकार की ये हैसियत कैसे हो सकती है….भला हो पक्षकारिता का, भ्रम तो दूर हो हम पत्रकार नहीं बस पक्षकार है …अब अखिरी उम्मीद तो भारत की सबसे बड़ी अदालत से.. अब ..आर या पार हो…..

अरे बाप रे! सवाल पूछने की आजादी छिन गई तुम्हारी। क्या हम सब कि छिन गई या सिर्फ तुम्हारी? माहोल तो तुम कुछ ऐसा ही बना और बनवा रहे हो। भारतीय पत्रकारिता में सवाल पूछने की हैसियत सिर्फ तुम्हारी थी? मतलब तो यह कि देश के तमाम प्रिंट और टीवी मीडिया के संस्थान और उससे जुडे पत्रकार, पत्रकारिता के नाम पर कलंक हैं? नपुंसक हैं?

भाई ये इसलिए क्योंकि और किसी से तो सवाल पूछने का अधिकार छिना नहीं गया? मतलब की उन्हें न तो पत्रकारिता आती है न सवाल करने?एक तुम हो जिसे सवाल करने आता है और पत्रकारिता आती है।
ऐ मुद्दे से भटकाने का नाटक तो नौटंकीबाज करते हैंं. वो तो तुमने साबित कर दिया की पत्रकारिता के अलावा सब कर सकते हो। सवाल सिर्फ पूछोगे? जवाब नहीं दोगे?

माना तुम्हारे कुतर्को पर जब सोशल मीडिया पर आमजन ने सवाल किया ,लगाता किया तो सोशल मीडिया छोडकर भाग गए। सवाल पूछने का ,सवाल करने, पर रत्ति भर शर्म नही आती। बडे बेशर्म हो यार। शालिनता के आवरण मे बेशर्मी।

डरते किससे हो? डराते किसे हो? सरकार ने एक दिन के लिए एक चैनल के मुख पर कालिख पोतने का फैसला किया है। फिर यह माहौल क्यो बना रहे हो कि पूरे मीडिया पर बैन है। बैन तु्म्हारे गैरजिम्मेदारा रिपोर्टिंग पर है ।ऐसी दलील सरकार की है। तो देश की सबसे बड़ी अदालत का दरवाजा खटखटाओ न। वहां से सरकार को लताड़ पडेगी। फिर देश भर में ही नहीं पाकिस्ताना मे भी जिंदावाद होगा तुम्हारा।

लड़ाई थोडा मनोरंजक होगा। वहुत कुछ सामने आएगा। हम सच जान पाऐंगे। आखिर कोई चैनल अलाउद्दीन का चिराग लाता कहां से बिना टीआरपी के इतनी मोटी सेलरी कैसे दी जाती है। राडिया के दलाल टूजी के दलाल यहीं क्यो पलते हैं? कारगिल में गैरजिम्मेदाराना रिपोर्टिंग के कारण भारतीय सेना को भारी क्षति पहुंचाने वाले रामनाथ गोयनका एवार्ड का सम्मान कैसे बढाते हैं.चिंदंबरम साहब यहां अपना काला धन क्यो छुपाते हैं। ये सब आरोप है तुम पर। अवसर है आपके पास फरेब करने के बदले ,अदालत के सामने मौका है बेदाग होकर इन आरोपों से मुक्ति का। ताकि तुम गंगा जल ,……नहीं कुछ और कह लो की तरह पवित्र सबित होकर सरकार को बेनकाब कर दो। साबित कर दो कि ये सरकार धरती पर पत्रकारिता के एकमात्र कर्णधार को तबाह कर देना चाहती है। दुश्वमनो की बोलती बद कर दो। फिर किसी परेब की जरुरत नहीं। सुप्रीम कोर्ट से बढ कर है कौन? अच्छा है मामला अदालत जाए ।ताकि अभिव्यक्ति का गला घोटने वाली सरकार पर लगाम लगे। भारत की सबसे बडी अदालत से इसी बहाने पत्रकारिता का भला हो जाए।

यदि मामला अदालत में जाए तो सवाल तो उठे किस से सवाल पूछने का अधिकार छिन गया। ये पत्रकार कौन है? पत्रकार होने की परिभाषा क्या है? यदि ये पत्रकार हैं तो पक्षकार कौन है?एक बिल्डर सीधे मीडिया हाउस खोलता है औऱ 20 साल के अपने बेटे को एडिटर इन चीफ बना देता है क्या वही पत्रकार। आज तक तुमने या तुम्हार एनबीए ने इसे लेकर कोई पैमाना तय किया? पहले पत्रकार होने का पैमाना तय करो पक्षकारों। पहले साबित तो हो कि पत्रकार कौन है जिसकी सवाल पूछने की हैसियत छिन गई है। (लेखक पत्रकार है )

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