कमर वहीद नकवी,वरिष्ठ पत्रकार
नवम्बर 1980 में यानी आज से क़रीब 33 साल पहले मैंने टाइम्स समूह, मुम्बई में बतौर हिन्दी प्रशिक्षु पत्रकार के रूप में प्रवेश किया. तीन-चार महीने की क्लासरूम की पढ़ाई के बाद नवभारत टाइम्स में इंटर्नशिप शुरू हुई.
एक दिन मुझे एक प्रेस कान्फ़्रेंस कवर करने को कहा गया. कोलाबा के रेडियो क्लब में हुई वह प्रेस कान्फ़्रेंस किसी स्थानीय संस्था की थी. मेरे पत्रकारीय जीवन की पहली प्रेस कान्फ़्रेंस!
एक बड़े से कान्फ़्रेंस रूम में बड़ी-सी मेज़ लगी थी. बीच में आयोजकगण बैठे थे. मेज़ के दोनों ओर लाइन से पत्रकार बैठे थे. सबको प्रेस विज्ञप्ति दे दी गयी, कुछ सवाल-जवाब हुए और फिर चाय आ गयी.
तभी आयोजकों में से एक उठा और हर पत्रकार को एक लिफ़ाफ़ा देने लगा. चार-पाँच लोगों ने ले भी लिया. फिर मेरा नम्बर आ गया. मैं नया-नया बच्चा, मुझे समझ नहीं आया कि विज्ञप्ति पहले दे चुके हैं तो अब क्या छूट गया जो लिफ़ाफ़ा दे रहे हैं?
मैंने पूछ ही लिया कि लिफ़ाफ़े में क्या है?
जवाब मिला,’कुछ नहीं, यह कन्वेयन्स(आने-जाने का ख़र्च) है.
मैंने लिया नहीं और उसके बाद किसी और पत्रकार ने भी वह लिफ़ाफ़ा नहीं लिया.
बस, उसके बाद से मैं कोई भी प्रेस कान्फ़्रेंस ख़त्म होते ही फट उठ कर चल देता, ताकि मेरे कारण कम से कम दूसरों का नुक़सान तो न हो.
(वरिष्ठ पत्रकार कमर वहीद नकवी के एफबी वॉल से)