राहुल कुमार
यह पत्रकारीय इतिहास में एक अपवाद ही है कि संस्थान के सभी कर्मचारी उस व्यक्ति के खिलाफ लामबंद होकर खड़े हैं जो उस संस्था का संस्थापक संपादक था. कहां तो सुधीर चौधरी के कांडों पर पुण्य प्रसून वाजपेयी तक लीपापोती में लग जाते थे!! मैं तहलका नामक इस् संस्थान के माहौल का क़ायल हूं।
सुयश सुप्रभ
तहलका के #हिंदी संस्करण का तरुण तेजपाल से उतना ही संबंध है जितना मनमोहन सिंह का ज़मीनी राजनीति से। अभी आप #पत्रकारिता का संकट देख रहे हैं और मैं पत्रकारों का। आपके बैंक अकाउंट में लाखों रुपये हों तो आप मज़े में सबको त्यागपत्र देने की सलाह दे सकते हैं। यही नहीं, मामला केवल पैसे का नहीं है। क्या आप हिंदी में ऐसी किसी #पत्रिका का नाम बता सकते हैं जहाँ तहलका के हिंदी संस्करण के पत्रकारों को खोजी पत्रकारिता में अपनी प्रतिभा साबित करने का मौका मिल सके? कॉरपोरेट पत्रकारिता के दौर में विशुद्ध #प्रगतिशीलता की उम्मीद रखने वाले लोगों को छोड़ देने पर भी ऐसा तबका अभी तहलका के बंद होने की इच्छा रखता है जो देश-दुनिया की समस्याओं के प्रति संवेदनशील है। क्या अभी हिंदी समाज पत्रकारिता के वैकल्पिक मॉडल के लिए सामने आएगा? क्या प्रोफ़ेसर, लेखक, बुद्धिजीवी आदि आलोचक की भूमिका के साथ-साथ कार्यकर्ता की भूमिका में आएँगे?
Rahul Kumar
यही बात संक्षिप्त में मैंने कल कही थी!! मैं ये भी नहीं कहता कि ऐसी पत्रकारिता की योग्यता सिर्फ तहलका हिन्दी के चुनिंदा पत्रकारों में ही है, अगर मौक़ा मिले तो शायद ऐसे बहुत से पत्रकार उभरकर सामने आ सकते हैं!! पर उनकी योग्यता को प्लेटफॉर्म देने लायक कोई भी पत्रिका है क्या तहलका के सिवा? फिलहाल? हिन्दी में? इसलिए बंधुओं आप ये फिज़ूल का शोर मत कीजिए? जब तक तरुण तेजपाल यहाँ से निकले हुए हैं कम से कम तब तक इस विरोध का कोई आधार नहीं दिखता!!
Durgaprasad Agrawal
मूल बात तो यह है कि तरुण तेजपाल के कथित दुष्कृत्य और तहलका की पत्रकारिता को अलग-अलग करके देखा जाना चाहिए.
Atul Anand
हम तो तहलका के बंद होने की कामना नहीं कर रहे है. हमारी समस्या बस इतनी है कि तहलका के पत्रकारों के बचाव के चक्कर में तहलका का गुणगान ना किया जाए. लोग ऐसे बात कर रहे हैं जैसे तहलका भारतीय मीडिया के गुणवत्ता का मापदंड हो. कुछ अच्छे पत्रकारों के आधार पर आप तहलका का उचित मूल्यांकन नहीं कर सकते. तहलका और बाकि कॉर्पोरेट मीडिया में कोई बहुत ज्यादा फ़र्क तो है नहीं.
तरुण तेजपाल भले ही हिंदी तहलका से सीधे तौर पर ना जुड़े हो, लेकिन इसपर नियंत्रण किस तरह के लोगों का रहता है? क्या यह बताने की जरुरत है कि वह ज़माना गया जब पत्रकार अखबार-पत्रिका का एजेंडा तय करते थे? अब मैनेजरों और सम्पादक-सह-मैनेजरों का युग है!
एक पल को लग सकता है कि तहलका के पत्रकार इस संस्था में निर्णायक स्थिति में है, लेकिन यह छलावे से ज्यादा कुछ नहीं है!
Maya Mrig
एक व्यक्ति के कारण एक प्रतिष्ठित संस्था ही खत्म हो जाए, यह उचित नहीं…। गलती व्यक्ति या व्यक्तियों की है तो उन्हें दंडित करें, संस्थान को उसकी प्रतिष्ठा के साथ कार्य करने दें….
Pramod Joshi
तहलका जैसे दो-तीन प्रकाशन हिन्दी में होने चाहिए। ऐसे सारे संस्करण लोकप्रिय होंगे। सच यह है कि तहलका जब हिन्दी में निकलना शुरू हुआ तभी अंग्रेजी तहलका का महत्व बढ़ा। खोजी पत्रकारिता और सनसनीखेज पत्रकारिता समानार्थी नहीं हैं। होता यह है कि खोजी के नाम पर सनसनीखेज और अक्सर एकतरफा पत्रकारिता खड़ी हो जाती है। हिंदी के पाठकों में संजीदगी बढेगी तो वे बेहतर और घटिया में फर्क करना सीखेंगे। बहरहाल आज के हिंदी मीडिया मैनेजर समझदार नहीं हैं और वे अपने पाठकों को अपने से भी ज्यादा मूर्ख समझते हैं। हिंदी की ताकत को कोई समझना नहीं चाहता। और अंग्रेजी को कोई पढ़ता नहीं।
Pushya Mitra
यह सही है कि पेट का सवाल बड़ा है… मगर आपलोगों की नैतिकता का सवाल कहीं अधिक बड़ा है. आपलोगों ने अच्छी खबरें करके जो इज्जत हिंदी समाज में कमायी है उसका सवाल मेरे हिसाब से सबसे बड़ा है. आपका अस्तित्व तहलका के कारण नहीं है, तहलका हिंदी का अस्तित्व आपके कारण है. आपकी पहचान शोषितों के पक्ष में आवाज बुलंद करने से बनी है, कृपया उसे बचाकर रखें. रोटी दाल की व्यवस्था हो ही जाती है.
Satish Sharma
आज उस पीड़ित पत्रकार को सेल्युड……….. जिसने देश के नामचीन और वरिष्ठ पत्रकार तरुण तेजपाल के खिलाफ लड़ने का फैसला लिया….. उस बहादुर लड़की ने तेजपाल की घिनोनी हरकतों के आगे झुकने या सरेंडर करने के बजाय मजिस्ट्रेड के सामने अपना बयान दर्ज करवाया …. पीड़ित इस कदम से साफ़ लग रहा है कि अब वो तेजपाल के सामने हार नहीं मान कर उनका डट कर मुकाबला करेगी. इससे पूर्व भी कई बार पीडिता और उसके परिवार को मामले को रफा दफा करने के लिए प्रयास किये जा रहे थे… लेकिन पीडिता ने बहादुरी दिखाते हुए एक अच्छा कदम उठाया.
वही हाईकोर्ट ने भी तेजपाल को राहत नहीं दी है, अब किसी वक्त तेजपाल को पुलिस गिरफ्तार कर सकती है …..
Jitendra Narayan
सुषमा स्वराज जी,जब आप आसाराम पर चुप रहीं,नारायण साईं पर कुछ नहीं बोली,’साहेब’ का खुलकर बचाव कर रही हैं,तो फिर तेजपाल पर बोलकर अपना समय क्यों बर्बाद कर रहीं हैं…???
Jagadishwar Chaturvedi
मीडिया मेँ स्त्री का शारीरिक शोषण गलत है, उससे भी ज्यादा मीडिया मेँ श्रम का शोषण होता है,यौन उत्पीडन का जो विरोध कर रहे हैँ वे मीडियाकर्मियों के शोषण पर बहादुरी से बोलते नहीं हैँ.यौन-उत्पीडन तो मीडिया मेँ चल रहे बृहद शोषण का छोटा अंश है.
(फेसबुक पर तरुण तेजपाल यौन उत्पीडन मसले पर लिखा-पढ़ी)
पुण्य-प्रसून हों या दीपक चौरसिया या फिर सुधीर चौधरी ! ये सब सिर्फ पैसा बटोरने में लगे हैं ! इन सबों की पत्रकारिता, बड़े चैनल्स के नाम पर टिकी है ! आप लोगों ने कभी सुना है कि इन नामों ने कभी किसी छोटे से न्यूज़ चैनल को उठा कर सबसे उपरी पायदान पर पहुंचाया ? कभी नहीं ! ये सब खोखले लोग मीडिया मंडी के वो तथा-कथित नाम हैं , जो, ठेकेदारी कर रहे हैं, पत्रकारिता नहीं ! करोड़ों की जायजाद इकट्ठा करने वाले इन जैसे नाम , कभी भी ज़मीनी स्तर की पत्रकारिता नहीं कर पाए ! जुगाड़ से बड़ा नाम, दाम और एवार्ड हासिल कर लिए ! इसके लिए ये ज़िम्मेदार नहीं , बल्कि मीडिया मालिक ज़िम्मेदार हैं , जो पत्रकारिता की जगह “ठेकेदारों” को पकड़ रहे हैं ! टी.वी. टुडे ग्रुप ज़्यादा ज़िम्मेदार है , जो महज़ टी.आर.पी. के चक्कर में पत्रकारिता के ऐसी-तैसी कर रहा है और जमकर उगाही कर रहा है ! इंडिया टी.वी. और इंडिया न्यूज़ जैसे चैनल, ऐसी ठेकेदारी के लिए, दूसरे और तीसरे पायदान के लिए भीड़ सकते हैं !