2014 के लोकसभा चुनाव में अच्छे दिन का नारा लगा. सरकार आ गयी. लेकिन अभी अच्छे दिन आना बाकी है. ख़ैर अच्छे दिन जब आयेंगे तब आयेंगे फिलहाल तो पूरा देश धर्मं की आग में जल रहा है. रोज नए-नए बखेड़े हो रहे हैं और धर्मांतरण जैसा मुद्दा संसद से लेकर न्यूज़ चैनलों के स्टूडियो तक में छाया हुआ है.
रोज स्टूडियो में बहस हो रही है और अलग-अलग धर्म के लोगों को तितर-बटेर की तरह लड़ाया जा रहा है. तू-तू, मै-मै हो रही है और धर्म की एक से बढ़कर एक व्याख्या की जा रही है. ऐसे में इस हफ्ते रिलीज हुई आमिर खान की ‘पीके’ एक बेहद जरूरी फिल्म है जो धर्म की अलग तरह से ही व्याख्या करता है.
फिल्म ‘पीके’ का मुख्य पात्र ‘पीके’ की भगवान और धर्म को लेकर एकदम अलग तरह की सोंच है और उसकी ये सोंच उसके अनुभव के आधार पर है. यह नाम भी उसके सवालों के कारण ही उसे मिलता है. लोग समझते हैं कि उसने ज्यादा पी ली है तभी ऐसे उटपटांग सवाल कर रहा है. उसे उस भगवान,खुदा और गॉड की तलाश है जो उसकी मनोकामना पूरी कर दे. उसका वह लॉकेट वापस दिला दे जो उससे खो गया और जिसकी वजह से उसकी अपने ग्रह पर वापसी संभव नहीं.
दरअसल ‘पीके’ यानी आमिर खान वास्तव में एलियन है जो भूले-भटके धरती पर आ जाता है. यहाँ आकर उसका वह लॉकेट खो जाता है और उस लॉकेट की तलाश में वह दिल्ली तक पहुँचता है और एक धर्मगुरु से टकरा जाता है जिसके पास उसका लॉकेट जिसे वह भगवान शिव का बताकर ठगैती करता है.
इसी बीच उसकी मुलाकात जगतजननी उर्फ जग्गू यानी अनुष्का शर्मा से होती है जो एक टेलीविजन रिपोर्टर है और हल्की-फुल्की ख़बरों से आजीज आ चुकी है. उसे पीके में स्टोरी दिखती है और वह उसे उसकी लॉकेट दिलाने में मदद के आश्वासन के साथ अपने एडिटर से मिलवाती है. एडिटर भी पीके के सवालों से हैरान हो जाता है और उसके साथ मिलकर उस धर्मगुरु के खिलाफ स्टोरी करने की इजाजत दे देता है.अपने सवालों से पीके धर्मगुरु को सांसत में डाल देता है. न्यूज़ चैनल पर यह स्टोरी हिट हो जाती है और साथ में पीके का डायलॉग ‘ये रौंग नंबर है’ भी सबकी जुबान पर चढ़ जाता है.
हालाँकि फिल्म में अनुष्का शर्मा टेलीविजन रिपोर्टर बनी हैं. लेकिन PK का इंटरव्यू ऑडियो रिकॉर्डर से लेती है.वैसे वे किसी भी एंगल से न्यूज़ चैनल की रिपोर्टर नहीं लगती. चैनल का नाम टाइम्स नाउ से मारा हुआ है- इंडिया नाउ और इस चैनल का ‘लोगो’ बंद हो चुके चैनल आज़ाद न्यूज़ की हुबहू कॉपी है. इस मामले में डिजाइन करने वाले ने पूरी काहिली दिखाई है. एक शॉट में असल ‘जिंदगी’ की एंकर ऋचा अनिरुद्ध भी दिखाई देती हैं.लेकिन रोल इतना छोटा है कि बस एक झटके में निकल जाता है.
ख़ैर जग्गू की मदद से पीके अपना लॉकेट पाने में सफल हो जाता है और वापस अपने ग्रह पर वापस लौट जाता है.लेकिन जाते-जाते दोनों एक-दूसरे को लेकर भावुक हो जाते हैं.पीके धरती से ढेर सारी बैटरियां ले जाता है ताकी वह टेपरिकॉर्डर पर जग्गू के टेप की हुई आवाज़ को सुन सके. मजेदार बात है कि पूरी फिल्म में ‘पीके’ का किरदार भोजपुरी बोलता है क्योंकि उसने छह घंटे में जिस महिला से भाषा कॉपी की उसे भोजपुरी ही आती थी.
पीके के किरदार में आमिर ने जान डाल दी है और अपने कैरेक्टर में कुछ ऐसे ढल गए हैं कि वे आपको सचमुच के एलियन लगने लगेंगे जो आपको अपने विचित्र सवालों से कई बार हंसायेगा. फिल्म में रेडियो लिए नंगा-पूंगा आमिर माने पीके दिखते हैं और वे ऐसे क्यों हैं इसे भी खूबसूरती से निर्देशक ने जस्टीफाई किया है. दरअसल ‘पीके’ जिस ग्रह से आया है वहां कोई कपडा ही नहीं पहनता. लेकिन धरती पर आने के बाद पीके भी यहाँ के तौर तरीके सीख जाता है.
दरअसल धर्म की ठेकेदारी करने वालों ठेकेदारों और मैनजरों पर ‘पीके’ तीखा व्यंग्य है जिसे बड़े सुलझे तरीके से राजकुमार हिरानी ने पेश किया है. हालाँकि फिल्म में कुछ ढील है. खासकर न्यूज़ चैनल के स्टूडियो में हो रही बहस असल न्यूज़रूम का एहसास नहीं कराती. उसमें बनावटीपन और जरूरत से ज्यादा मेलोड्रामा है. वैसे छोटे रोल में सही मगर संजय दत्त और सुशांत सिंह राजपूत भी फिट बैठे हैं. धर्मगुरु के रोल में सौरभ शुक्ला जम रहे हैं. मिला-जुलाकर ये फिल्म एक बार जरूर देखी जानी चाहिए. लेकिन राजकुमार हिरानी की ‘थ्री इडियट्स’ से तुलना करके फिल्म देखने जायेंगे तो निराशा हाथ लगेगी. दोनों फिल्मों की तुलना ही बेमानी है. पीके एक अलग किस्म की मूवी है और पीके को पीके के नजरिये से देखने की जरूरत है.
# Must Watch #PK
(दर्शक की नज़र से)