रजनीश के झा
आखिरकार मैंने भी पीके देख ही लिया, अमूमन मैं सिनेमा देखने से परहेज करता हूँ या ना के बराबर सिनेमा देखता हूँ मगर चर्चा के दौर ने खाली दिन को पूरा पीके के बहाने किया. एक मनोरंजक हास्यप्रद और सामाजिक संस्करण को दर्शाते सिनेमा में से विरोध का कारण तलाशता रहा जब सिनेमा समाप्त हो चुका था तब तक मिला कुछ भी नहीं. किसी धर्म सम्प्रदाय विशेष के लिए नहीं अपितु सभी धर्म के धार्मिक मैनेजरों से जो धर्म को मैनेज करते हैं से बस सवाल ही तो है इसमें कोई भी धर्म विशेष कहाँ आया मुझे नहीं पता चला.
सामाजिक कुरीतियों पर चोट करता आमिर खान का एक और औसत सिनेमा जो धार्मिक मैनेजरों की कृपा से ही रिकार्डतोड़ व्यवसाय करने में सक्षम रहा, गरचे सिनेमा का दर्जा औसत या औसत से भी कम में ही आंकलन होगा हाँ भुगतान लिए हुए मीडिया अपने स्टार के मार्फ़त आमिर साहेब को फिर से आस्कर के दरवाजे तक पहुंचा दें तो अलग बात….
भारतीय सिनेमा उद्योग जगत में एक साधारण विषय औसत सिनेमा और रिकार्डतोड़ व्यवसाय के बावजूद कुछ बेहतरीन है तो वो है आमिर्र खान का अभिनय, वाकई में आमिर खान आज के सिनेमा जगत के लिए आदर्श कलाकार हैं जो अपने रोल में जीते हैं और उस रोल की जीवन्तता हमेशा के लिए अमिट हो जाता है.
ज्वलंत मुद्दा और आमिर का बेहतरीन अभिनय इस दो कारण के लिए मैं सिनेमा को बधाई जरूर दूंगा….बाकी धार्मिक मैनेजर अर्थात बेपेंदी के लोटे और गधों की बेसुमार फ़ौज अपना काम करता रहेगा !!!
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