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राजनीति के ये ब्वायज क्लब

राजनीति के ये ब्वायज क्लब
राजनीति के ये ब्वायज क्लब

कहीं जन्म – कहीं मृत्यु की तर्ज पर देश के दक्षिण में जब एक बूढ़े अभिनेता की राजनैतिक महात्वाकांक्षा हिलोरे मार रही थी, उसी दौरान देश की राजधानी के एक राजनैतिक दल में राज्यसभा की सदस्यता को लेकर महाभारत ही छिड़ा हुआ था। विभिन्न तरह के आंदोलनों में ओजस्वी भाषण देने वाले तमाम एक्टिविस्ट राज्यसभा के लिए टिकट न मिलने से आहत थे। माननीय बनने से वंचित होने का दर्द वे ट्वीट पर ट्वीट करते हुए बयां कर रहे थे।

श्रीमान को राज्यसभा में भेजा जाए, इस मांग को लेकर उनके समर्थक पहले से सक्रिय रहते हुए सड़क पर थे। जैसे ही टिकटों का पिटारा खुला मानो भुचाल आ गया। कश्मीर में लगातार हो रही जवानों की शहादत के बीच उन्होंने खुद को भी शहीद बता दिया। आंदोलनकारियों के एक खेमे से आवाज उठी… मारेंगे , लेकिन शहीद होने नहीं देंगे… दूसरे खेमे ने भावुक अपील की… शहीद तो कर दिया, लेकिन प्लीज.. अब शव के साथ छेड़छाड़ मत करना। हंगामा बेवजह भी नहीं था। कमबख्त पार्टी हाईकमान ने उनके बदले धनकुबेरों को टिकट थमा दिया था। समाचार चैनलों पर इसी मुद्दे पर गंभीर बहस चल रही थी।

विशेषज्ञ बता रहे थे कि अब तक किन – किन दलों ने धनकुबेरों को राज्यसभा में भेजा है। विषय के विशेषज्ञ अलग – अलग तरह से दलीलें पेश कर रहे थे। जिन्हें देख – सुन कर यही लग रहा था कि किसी सदन के लिए कुछ लोगोॆं का निर्वाचित न हो पाना भी देश व समाज की गंभीर समस्याओं मे एक है। इस मुद्दे पर मचे महाभारत को देख कर ख्याल आया कि हाल में एक और सूबे के नवनियुक्त मंत्री भी तो मनमाफिक विभाग न मिलने से नाराज थे। पार्टी के राष्ट्रीय अध्य़क्ष के हस्तक्षेप से उन्हें उनका मनचाहा विभाग मिला तो उन्होंने पद व गोपनीयता की शपथ ली। इन मुद्दों पर सोचते हुए याद आया कि कुछ महीने पहले देश के सबसे बड़े सूबे के राजनैतिक घराने में भी तो ऐसा ही विवाद देखने को मिला था। चाचा नाराज थे क्योंकि भतीजे ने उन्हें उनका मन माफिक पीडब्लयूडी या रजिस्ट्री जैसा कोई विभाग नहीं दिया था। आखिरकार पार्टी के पितृपुरुष के दखल के बाद चाचा को मुंहमांगा विभाग मिल पाया और भतीजे ने भी सुख – चैन से राजपाट चलाना शुरू कर दिया।

ऐसे दृश्य देख मन में ख्याल आया कि ये राजनैतिक दल हैं या मोहल्लों के लड़कों के स्टार ब्वायज क्लब। जहां बात – बात पर मनमुटाव और लड़ाई – झगड़े होते रहते है। किसी का मुंह फूला है क्योंकि रसीद बुक पर उसका नाम नहीं है तो कोई इस बात पर खार खाए बैठा है कि समारोह में मुख्य अतिथि को फूलों का गुलदस्ता भेंट करने के लिए उसे क्यों नहीं बुलाया गया। वैसे इतिहास पर नजर डालें तो यह कोई नई बात नहीं है, जिस पर छाती पीटी जाए। ऐसे अनेक आंदोलन इतिहास के पन्नों में दबे पड़े हैं, जिनमें लाठी – डंडे चाहे जो खाए खाए लेकिन सदन की सदस्यता की बारी आने पर हाईकमान को फिल्म अभिनेता या अभिनेत्री ही भाते हैं। नारागजी होती है , पार्टी टूटती है फिर बनती है, लेकिन मलाई पर हक को ले विवाद चलता ही रहता है। यानी दुनिया चाहे जितनी बदल जाए , अटल सत्य है कि देश की राजनीति में स्टार ब्यावज क्लब टाइप लड़ाई – झगड़े कभी खत्म नहीं होंगे। न तो राजनीति से राग – द्वेष का सिलसिला कभी टूटेगा। राजनीति के प्रति वितृष्णा जाहिर करते हुए कोई अभिनेता कहेगा … मैं गलत था… यह मेरा क्षेत्र नहीं है… इसमें बड़ी गंदगी है… मैं पहले जहां था, वहीं ठीक था… तभी दूसरे कोने से आवाज आएगी… जिंदगी में मुझे सब कुछ मिल चुका है… अब बस मैं देश व जनता की सेवा करना चाहता हूं…।

इसके बाद अभिनेता या अभिनेत्री तो चुप हो जाएगी, लेकिन कयासबाजी का दौर शुरू हो जाएगा कि अमुक फलां पार्टी में जाएगा या अपनी खुद की पार्टी बनाएगा। कालचक्र में भी यह सिलसिला बदस्तूर जारी रहेगा। जन्म -मृत्यु की तर्ज कहीं पुराना राजनीति को कोसेगा लेकिन तभी राजनैतिक क्षितिज पर कोई नया नवागत सितारा इसकी ओर आकृष्ट होगा। यह जानते हुए भी जनता के बीच रहना या उनकी समस्याएं सुनने का धैर्य उनमें नहीं लेकिन भैयाजी माननीय होने को बेचैन हैं। सदन में भले ही एक दिन भी उपस्थित रहना संभव न हो, लेकिन राज्यसभा में जाने का मोह भी नहीं छूटता। भले ही जनता की झोली हमेशा की तरह खाली रहे। मन का संताप जस का तस कायम रहे। शायद यही भारतीय राजनीति की विशेषता है।

तारकेश कुमार ओझा
(लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

राजद के लिए आसान नहीं ‘राज’ की राह

लालू यादव अब कैदी हैं। करोड़ों रूपये के चारा घोटाला में वे मुजरिम हैं। सजायाफ्ता हैं। उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) अब कठिन परीक्षा के दौर में है। तेजस्वी यादव अपने राजनीतिक सफर के शुरूआती दौर में मुश्किल में हैं। सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की अनुपस्थिति में पार्टी बिखरने का भी डर है। राजद परेशानियों से घिरी है। बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने अब तक के राजनीतिक सफर में काफी प्रभावित किया है। बावजूद इसके लालू की अनुपस्थिति में नेतृत्व की कमी को दूर करना राजद के लिए चुनौती तो है ही। लालू यादव, उनके पूरे परिवार और राजद की राजनीतिक मैदान पर अब राह आसान नहीं दिखती।

राजद के लिए बिहार की सियासत में वापसी अब एक कठिन चुनौती है। राजद की रणनीति और प्रबंधन तेजस्वी यादव के हाथों में है। तेजस्वी के नेतृत्व में युवा शक्ति को बिहार में गोलबंद करने का लक्ष्य राजद ने बनाया है। लेकिन युवाओं को गोलबंद कर नीतीश सरकार की विफलताओं और घोटालों के खिलाफ जमीनी स्तर पर आन्दोलन को सफल करना राजद और तेजस्वी के लिए आसान नहीं है। राजनीति के पंडितो का मानना है कि लालू के जेल में रहने से नीतीश की राह आसान हो जायेगी। लेकिन बिहार की सियासत कभी इतनी आसान नहीं रही है। यह बात जरूर है कि लालू के जेल जाने का लाभ नीतीश कुमार को मिलेगा। तेजस्वी राजनीति में अभी नये हैं। संगठन की राजनीति का अनुभव उनके पास बहुत कम है। तेजस्वी के लिए सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को एकजुट रख पाना है। हालांकि एक बात जो राजद को राहत देती है कि लालू यादव के जेल जाने से राजद के वोटो में बिखराव कभी नहीं हुआ। लालू यादव की छवि एक जन नेता की है।

घोटालो में दोषी होने के बाद भी लालू के प्रशंसक उन्हें भगवान मानते हैं। संकट के समय राजद मजबूत बनकर उभरी है। कार्यकर्ताओं ने साथ दिया है। बिहार के मुसलमान जदयू की अपेक्षा राजद के साथ ज्यादा रहे हैं। यही कारण थे कि 2015 में राजद बिहार में सबसे ज्यादा सीट प्राप्त करने वाली राजनीतिक पार्टी बनी। राजनीतिक विश्लेषक फिलहाल अपनी अपनी राय दे रहे हैं। लोगों की राय है कि राजद के लिए हालात अब ठीक नहीं है। बिहार की राजनीति की बुनियाद जातीय समीकरण है। नीतीष कुमार कुर्मी हैं। नीतीश कुमार की पकड़ कोयरी और कुर्मी पर मजबूत है। राजद की लड़ाई भाजपा और जदयू से है। जदयू अब भाजपा के साथ गठबंधन में है।

इस परिदृष्य के कारण राजद से कोयरी, कुर्मी अलग दिखता है। तेजस्वी ने अपने राजनीतिक कौशल का परिचय गठबंधन टुटने के बाद सदन में अपने भाषण से दिया था। तेजस्वी को लेकर राजद आशान्वित है। राजद के लिए सबसे बड़ी समस्या यह है कि उनके नेता जेल के भीतर हैं। छोटे दल इसका लाभ उठा सकते हैं। राजद के जातीय समीकरण में छोटे दल सेंध लगाने की कोशिश करेगें। हालांकि तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद ने भी अपनी तैयारी कर रखी है। सियासत में सेंधमारी इतनी आसान भी नहीं है। राजद में अब उत्तराधिकारी की समस्या नहीं है। लेकिन तेजस्वी और मीसा पर भी भ्रष्टाचार के आरोप हैं। ऐसे में हर तरफ राजद के लिए मुश्किलें ही दिखती है। तमाम आरोपों घोटालों के बावजूद लालू यादव की एक खासियत रही है कि वे जल्दी घबराते नहीं है। विपक्षी भी इस बात कर लोहा मानते हैं। लालू ने ठेठ अंदाज को अपनी ताकत बनाकर अपने समर्थकों के बीच अपने पकड़ को मजबूत बनाया। लालू पर कार्रवाइयों के कारण लालू के समर्थकों में सहानूभूति पनपी है। यह कहा जा सकता है कि लालू के जेल जाने से उनके वोट बैंक में बिखराव मुश्किल है। लालू के उपर कार्रवाई से राजद इसे भाजपा की साजिश बता रहा है साथ ही नीतीश कुमार को इस साजिश में साथ देनेवाले के तौर पर राजद पेश कर रही है। यह उसी रणनीति का हिस्सा है जिससे कि भाजपा विरोध की राजनीति प्रबल हो।

सहानूभूति जन्म ले। लालू यादव अब कभी चुनाव नहीं लड़ सकते। तेजस्वी और तेजप्रताप जनता के बीच जाएंगे। लालू के उपर कार्रवाई को वे भाजपा की खीझ के तौर पर जनता के समक्ष रखेंगे। राजद तमाम परिस्थितियों के लिए नीतीश कुमार और भाजपा पर आरोप लगाकर इसका राजनीतिक फायदा उठाने की हरसंभव कोशिश करेगी। राजद के लिए राहत की बात यह कि दोनों बेटे राजनीति में उभर रहे हैं। तेजस्वी और तेजप्रताप की जोड़ी अपने अपने अंदाज में दिखाई पडती है। तेजस्वी सुलझे हुए प्रतीत होते हैं। तेजप्रताप लालू की तरह आक्रमक दिखते हैं। तेजस्वी यादव ने नेतृत्व देने का प्रयास किया है। लालू के जेल जाने के बाद वे आक्रमक दिखे हैं।

दोनों ने पार्टी को संभालने का हर संभव प्रयास किया है। राजद में पार्टी के कई वरिष्ठ नेता हैं। वे अपने नेता लालू को मानते हैं। तेजस्वी अभी युवा हैं। वरिष्ठ नेता तेजस्वी को अपना नेता अब भी नहीं मानते। पार्टी में कई नेताओं को तेजस्वी का नेतृत्व असहज करता है। तेजस्वी को अपना नेतृत्व साबित करना होगा तभी राजद बिहार की सियासत में वापसी कर सकती है। यह तय है कि राजद तेजस्वी यादव के नेतृत्व में सहानूभूति का कार्ड खेलेगी। लालू के जेल जाने की घटना को भाजपा की साजिश के तौर पर शुरूआत से प्रचार किया जा रहा है। यह राजद की भावनात्मक राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है। तेजस्वी यादव अपनी आक्रमकता जाहिर कर यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि हम मुश्किलों में डरते नहीं, संघर्ष करते हैं।

तेजस्वी के तेवर किस हद तक राजद के लिए संजीवनी का काम करता है यह भविष्य के गर्भ में है। तमाम पहलुओं पर नजर दौड़ाने के बाद एक ही बात स्पष्ट होती है कि लालू परिवार और राजद की राजनीतिक राज सत्ता हासिल की राह फिलहाल आसान नहीं है।

संजय मेहता

For RJD its not easy way

बिहार की सांस्कृतिक विरासत को सहेज कर रखने की जरुरत – राणा यशवंत

दिल्ली. बिहार की गौरवशाली इतिहास और समृद्ध संस्कृति रही है. हमें बिहारी अस्मिता के साथ-साथ अपनी सांस्कृतिक विरासत को भी सहेज कर रखने की जरूरत है. इंडिया न्यूज़ के प्रबंध संपादक और वरिष्ठ पत्रकार राणा यशवंत ने दिल्ली में आयोजित बिहार प्रतिभा सम्मान में ये बाते कहीं.

बिहारी प्रतिभाओं के सम्मान में आयोजित समारोह में उन्होंनें कहा कि बिहार शिक्षा, राजनीति और अध्यात्म का केंद्र रहा है लेकिन कई कारणों से पिछले कुछ समय से पिछड़ रहा है. यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उसे पुनर्त्थान में अपना योगदान दें.

उन्होंने कहा कि अनेक महत्वपूर्ण पदों और उपलब्धियों को पाने के बाद भी बिहारी होने के कारण अपनी पहचान को छिपाते हैं और उसे बताने में शर्माते हैं. मगर दूसरे राज्यों के लोग ऐसा नहीं करते. इसलिए हमें जरूरत है अपनी पहचान और बिहारी अस्मिता को पुरजोर तरीके से बिहार के बाहर प्रदर्शित करने की.

rana yashwant bihar pratibha award
बिहार प्रतिभा सम्मान में इंडिया न्यूज़ के मैनेजिंग एडिटर राणा यशवंत जूनियर हॉकी टीम को विश्वकप दिलाने वाले हरिंदर सिंह को सम्मानित करते हुए।।

उनके इस वक्तव्य पर सभागार में खूब तालियाँ भी बजी. लेकिन एक प्रश्न भी उठा. मीडिया खबर डॉट कॉम के संपादक पुष्कर पुष्प ने प्रश्न पूछा कि मीडिया में बिहारी संपादकों की बड़ी संख्या होने के बावजूद बिहार के नकरात्मक ख़बरों पर अखबार और खासकर न्यूज़ चैनलों का ज़ोर क्यों रहता है. टॉपर घोटाले की खबर जिस तरीके से दिखाई जाती है वैसे यूपीएससी में उतीर्ण विद्यार्थियों की खबर नहीं दिखाई जाती है.

इसका जवाब देते हुए राणा यशवंत ने कहा कि ऐसा नहीं है हम सकरात्मक खबर भी दिखाते हैं. मसलन सुपर 30 जैसी सकरात्मक ख़बरें भी चैनलों पर चलती है.

इस मौके पर यूपीएससी परीक्षा में उतीर्ण कई अभ्यर्थियों समेत खेल, गायन, कृषि आदि क्षेत्रों में उलेखनीय योगदान देने वाले बिहारी प्रतिभाओं को सम्मानित भी किया गया.

लखनऊ में अखबार के दफ्तर पर हमला, पत्रकारों ने की भर्त्सना

SANJAY SHARMA 4PM
संजय शर्मा, संपादक, 4PM

ख़बरों से दिक्कत होने पर अखबार और चैनल के दफ्तर पर हमला होना कोई नयी बात नहीं है, इसी कड़ी में कल लखनऊ से निकलने वाले अखबार 4PM के दफ्तर दो दर्जन लोगों ने हमला किया और मीडियाकर्मियों से मारपीट की, यह पूरा मामला सीसीटीवी में कैद हो गयी, इस अखबार के के संपादक संजय शर्मा हैं. उन्होंने पूरी घटना का ब्यौरा देते हुए फेसबुक पर लिखा –

“कल मेरे दफ़्तर पर जो हुआ उसका सपने मे भी अंदाज़ा नही था मुझे ..गोमती नगर जैसे पॉश इलाके मे दिन के साढ़े तीन बजे दो गाड़ियों मे भरकर लोग अख़बार के दफ़्तर पर भी हमला कर सकते है इसका अंदाज़ा किसी को नही था . आम तौर पर जिस समय हमला हुआ उस समय दफ़्तर पर ही रहता हूँ पर कल सीएम को बोलना था तो मै विधानसभा मे था .

मगर सूचना मिलते ही जिस तरह पत्रकार साथी मेरे साथ आये उसने मेरे हौसलों को और बढ़ा दिया .. जैसे ही मैंने ग्रुप पर मैसेज डाला पंद्रह मिनट के अंदर दर्जनों पत्रकार साथी थाने पहुँच गये .. शलभमणि भाई दिल्ली थे वही से मुझे फ़ोन किया और अफसरो को भी .. यशवंत भाई रास्ते मे थे तो फ़ोन से ख़बर लिखकर भड़ास पर डाल दी .. ब्रजेश मिश्रा जी ने तुरंत ट्वीट किया और मुझे कई फ़ोन किये .. कमाल खान जी ने तुरंत अपनी टीम भेजी .ज्ञानेन्द्र शुक्ला भाई तो देर रात तक दफतर मे रहे .. इडिया बॉच चैनल से घर्मेन्द जी , मनीष जी की पूरी टीम .अभिषेक भाई , अशोक मिश्रा जी अपनी टीम के साथ रहे .. शरद प्रधान जी , प्रखर सिंह , समाचार प्लस के ब्यूरो चीफ आलोक पॉडे, हमारे अभिभावक समान अजय कुमार जी , नरेन्द्र जी , प्राशु मिश्रा , सुधीर मिश्रा , मनीष जी , ब्रजमोहन जी , विधि सिंह जी , आनंद सिन्हा जी , रामकुमार जी और तमाम साथियों ने मुझे फ़ोन किये और इसकी निंदा की ..कई चैनलों पर ख़बर शुरू हो गयी ..प्रमुख सचिव गृह के ग्रुप पर शायद ही कोई पत्रकार रहा होगा जिसने आलोचना ना लिखी हो ..लखनऊ के अलावा दिल्ली और महाराष्ट्र के पत्रकारों ने भी इसकी आलोचना की . ओम थानवी सर ने तुरंत ट्वीट किया .. इंडिया टीवी के मैनेजिंग एडिटर अजीत अंजुम जी , ब्राड कास्ट एडिटर एसोसियेशन के सचिव एन के सिंह जी , लोकसभा टीवी के अनुराग जी , राज्यसभा टीवी की कृति मिश्रा समेत तमाम लोगों ने इसकी आलोचना की .. महाराष्ट्र मे तो पत्रकारों ने बैठक कर इसकी निंदा की .. सभी पार्टियों से फ़ोन आये .. क़ावीना मंत्री अनुपमा जायसवाल , ब्रजेश पाठक जी ने मुझे फ़ोन करके भरोसा दिया कि जल्दी ही हमलावर गिरफ़्तार होगे ..

साथियों का यह साथ हमको सच से लड़ने की ताक़त देता है . अगर चंद लोग सोचते है हम ऐसे हमलों से डर जायेंगे तो यह उनकी ग़लतफ़हमी है . हम और ताक़त के साथ ऐसे ही लिखेंगे .. साथ देने के लिये सभी का आभार .. किसी साथी का नाम लिखने से रह गया हो तो मॉफी ..”

बदहाल किसानों की बजाए कृषि मंत्री की रिपोर्टिंग कर रहे हैं संवाददाता – पी साईनाथ

prabhash joshi seminar 2017
बदहाल किसानों की बजाए कृषि मंत्री की रिपोर्टिंग कर रहे हैं संवाददाता - पी साईनाथ

मीडिया के लिए किसान तभी खबर बनते हैं जब वे आत्महत्या करते हैं या फिर वे चुनावी मुद्दे बनते हैं. उसके अलावा वे कभी सुर्खियाँ नहीं बनते. इसी बात की ओर इशारा करते हुए पी साईनाथ ने कहा कि देश के किसान अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं, जबकि देश का अधिकांश मीडिया हाउस प्रभावशाली 5 प्रतिशत लोगों की रिपोर्टिंग करने में लगा हुआ है।

उन्होंने आगे कहा कि मीडिया संस्थानों में कृषि बीट कवर करने वाले संवाददाता बदहाल किसान को छोड़कर कृषि मंत्री की रिपोर्टिंग करने में जुटे रहते हैं. वरिष्ठ पत्रकार स्व. प्रभाष जोशी की याद में रविवार को गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति राजघाट में किसान और मीडिया विषय पर आयोजित संगोष्ठी में वरिष्ठ पत्रकार पी. साईंनाथ ने यह बात कही।

पी. साईनाथ ने मीडिया में किसानों की उपेक्षा होने का आरोप लगाते हुए कहा कि मीडिया भी सरकार की नीति निर्धारकों की भेड़चाल में मशगूल हो गया है. उन्होंने मीडिया में किसानों की रिपोर्टिंग से जुड़ी तथ्य पेश करते हुए कहा कि अखबार के पहले पेज और टेलीविजनों हेडलाइन की स्टोरी में 1 प्रतिशत से भी कम खबरें किसानों से जुड़ी होती हैं।

मीडिया रेवेन्यू बेस पर चलने वाला एक प्रोडक्ट बन गया है. किसानों में इसे वो रेवेन्यू नजर नहीं आता. आज 1.2 बिलियन लोगों के देश के कथित नेशनल डेलीज में ज्यादातर में एग्रीकल्चर करस्पोंडेंट ही नहीं है. जिन कुछेक मीडिया घरानों में ये पोस्ट है, उनमें भी फील्ड में जाने की जगह केवल सरकारी आंकडों, विज्ञप्तियों और कृषि मंत्रियों को कवर करने पर ध्यान दिया जाता है।

साईंनाथ के मुताबिक जब उन्होंने पत्रकारिता ज्वाइन की थी, तब हर अखबार में लेबर करस्पोंडेंट और एग्रीकल्चर करस्पोंडेंस हुआ करते थे. धीरे-धीरे ये ओहदे खत्म कर दिए गए. ऐसे में इन क्षेत्रों में अच्छी समझ के लोगों की कमी हो गई है। अब लोग आंकड़ों को तक अच्छे से प्रोसेस नहीं कर पाते हैं. इसके चलते किसानों की समस्याओं को ठीक ढंग से सामने नहीं लाया जाता।

दूसरा कारण बताते हुए साईंनाथ ने कहा कि जो थोड़े लोग लिखने की काबिलियत रखते हैं उन्हें इस फील्ड में कम रेवेन्यू मिलने के कारण बहुत ज्यादा मौके नहीं मिल पाते. इस तरह ये स्टोरीज दब जाती हैं।

इसके अलावा दिल्ली की खबरों को अलग कर दें तो देश के अधिकांश राज्यों की खबरें भी नगण्य होती है. इस मौके पर स्व.प्रभाष जोशी पर आधारित किताब ‘लोक का प्रभाष’ का विमोचन भी हुआ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. विश्वनाथ त्रिपाठी ने की. इस मौके पर प्रभाष जोशी की जीवनी ’लोक का प्रभाष ’ पुस्तक का लोकार्पण हुआ। जबकि वरिष्ठ पत्रकार हरिवंश प्रमुख वक्ता के तौर पर उपस्थित थे. कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री मनोज सिंहा, राजकमल समूह के प्रकाशक अशोक माहेश्वरी के अलावा वरिष्ठ पत्रकार और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय समेत बड़ी संख्या में मीडिया और साहित्य जगत से जुड़े लोग शामिल थे। (स्रोत – विविध)

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