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टेलीग्राफ अखबार नहीं, हत्यारों का मुखपत्र है !

Telegraph newspaper mouthpiece of the killers

टेलीग्राफ अखबार नहीं, हत्यारों का मुखपत्र है। एक समुदाय विशेष द्वारा किये गये हत्याकांड को देखिए कम्युनिस्टों का यह अखबार न्यायसंगत ठहरा रहा है।

बता रहा है कि तृणमूल नेता की हत्या की प्रतिक्रिया में आठ लोगों को जला दिया। इसके बाद ये भी समझा रहा है कि जलानेवाले गुस्से में थे।

इस अखबार को पढनेवाला मन में यही सोचेगा, चलो जो किया सही किया। आखिर अगर आप किसी मुस्लिम की हत्या करेंगे तो बदले में आपका सामूहिक नरसंहार हो जाए तो गलत क्या है?

अगर कम्युनिस्ट प्रतिक्रिया में हुई हत्याओं को जस्टिस मानते हैं तो इसी लॉजिक को आज तक गुजरात पर क्यों लागू नहीं कर पाये? क्या वो किसी समुदाय विशेष द्वारा की गयी हिंसा को हिंसा नहीं मानते? क्या उनके लिए मोमिनी हिंसा हिंसा नहीं होती, नेचुरल जस्टिस होती है?

(वरिष्ठ पत्रकार संजय तिवारी मणिभद्र के सोशल मीडिया वॉल से साभार)

भारत विरोधी फर्जी खबरें फैलाने वाले 35 यूट्यूब चैनल और 2 वेबसाइट ब्लॉक

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने 35 यूट्यूब आधारित समाचार चैनल और 2 वेबसाइट को ब्ल़ॉक करने का आदेश जारी किया है, जो डिजिटल मीडिया पर समन्वित रूप से भारत विरोधी फर्जी खबरें फैलाने में लिप्त थे। मंत्रालय द्वारा ब्लॉक किए गए यूट्यूब खातों के कुल सब्सक्राइबरों की संख्या 1 करोड़ 20 लाख से ज्यादा थी और उनके वीडियोज के व्यूज 130 करोड़ थे। इसके अलावा, सरकार ने इंटरनेट पर भारत विरोधी दुष्प्रचार करने में शामिल होने पर दो इंस्टाग्राम अकाउंट और एक फेसबुक अकाउंट को ब्लॉक कर दिया है।

सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के नियम 16 के अंतर्गत पांच अलग-अलग आदेश जारी करके, मंत्रालय ने इन सोशल मीडिया खातों और वेबसाइट्स को ब्लॉक करने का आदेश दिया है। भारत की खुफिया एजेंसियां इन सोशल मीडिया खातों और वेबसाइटों की लगातार निगरानी कर रही थीं और उन्होंने उन पर तत्काल कार्रवाई के लिए मंत्रालय को सूचना दी।

मंत्रालय द्वारा ब्लॉक किए गए 35 खाते पाकिस्तान से परिचालित हो रहे थे और इनकी चार समन्वित दुष्प्रचार नेटवर्क के रूप में पहचान की गई थी। इनमें 14 यूट्यूब चैनल चलाने वाला अपनी दुनिया नेटवर्क और 13 यूट्यूब चैनल चलाने वाला ताल्हा फिल्म्स नेटवर्क शामिल थे। चार चैनलों का एक सेट और दो अन्य चैनलों का सेट भी एक दूसरे के मिलकर काम कर रहे थे।

इन सभी नेटवर्क का एक मात्र लक्ष्य भारतीय दर्शकों के बीच फर्जी खबरों का प्रसार था। एक नेटवर्क के हिस्से के रूप में काम करने वाले चैनल समान हैशटैग और एक जैसी सम्पादन शैली का इस्तेमाल करते थे। साथ ही ये समान लोगों द्वारा संचालित थे और एक दूसरे को प्रोत्साहन देते थे। कुछ यूट्यूब चैनलों का संचालन पाकिस्तानी टीवी न्यूज चैनलों के एंकरों द्वारा किया जा रहा था।

कमाल खान पत्रकारिता के कबीर थे – राजेश बादल

kamal khan ndtv journalist

कमाल ख़ान के नहीं होने का अर्थ

मैं पूछता हूँ तुझसे , बोल माँ वसुंधरे ,
तू अनमोल रत्न लीलती है किसलिए ?

कमाल ख़ान अब नहीं है। भरोसा नहीं होता। दुनिया से जाने का भी एक तरीक़ा होता है। यह तो बिल्कुल भी नहीं। जब से ख़बर मिली है ,तब से उसका शालीन ,मुस्कुराता और पारदर्शी चेहरा आँखों के सामने से नहीं हट रहा। कैसे स्वीकार करूँ कि पैंतीस बरस पुराना रिश्ता टूट चुका है। रूचि ने इस हादसे को कैसे बर्दाश्त किया होगा ,जब हम लोग ही सदमे से उबर नहीं पा रहे हैं।यह सोच कर ही दिल बैठा जा रहा है।मुझसे तीन बरस छोटे थे ,लेकिन सरोकारों के नज़रिए से बहुत ऊँचे ।

पहली मुलाक़ात कमाल के नाम से हुई थी,जब रूचि ने जयपुर नवभारत टाइम्स में मेरे मातहत बतौर प्रशिक्षु पत्रकार ज्वाइन किया था। शायद १९८८ का साल था । मैं वहाँ मुख्य उप संपादक था। अँगरेज़ी की कोई भी ख़बर दो,रूचि की कलम से फटाफट अनुवाद की हुई साफ़ सुथरी कॉपी मिलती थी। मगर,कभी कभी वह बेहद परेशान दिखती थी। टीम का कोई सदस्य तनाव में हो तो यह टीम लीडर की नज़र से छुप नहीं सकता। कुछ दिन तक वह बेहद व्यथित दिखाई देती रही । एक दिन मुझसे नहीं रहा गया। मैने पूछा,उसने टाल दिया। मैं पूछता रहा, वह टालती रही।एक दिन लंच के दरम्यान मैंने उससे तनिक क्षुब्ध होकर कहा ,” रूचि ! मेरी टीम का कोई सदस्य लगातार किसी उलझन में रहे ,यह ठीक नहीं।उससे काम पर उल्टा असर पड़ता है।उस दिन उसने पहली बार कमाल का नाम लिया।कमाल नवभारत टाइम्स लखनऊ में थे।दोनों विवाह करना चाहते थे। कुछ बाधाएँ थीं । उनके चलते भविष्य की आशंकाएँ रूचि को मथती रही होंगीं । एक और उलझन थी । मैनें अपनी ओर से उस समस्या के हल में थोड़ी सहायता भी की । वक़्त गुज़रता रहा। रूचि भी कमाल की थी।कभी अचानक बेहद खुश तो कभी गुमसुम। मेरे लिए वह छोटी बहन जैसी थी।पहली बार उसी ने कमाल से मिलवाया।मैं उसकी पसंद की तारीफ़ किए बिना नहीं रह सका।मैने कहा, तुम दोनों के साथ हूँ।अकेला मत समझना।फिर मेरा जयपुर छूट गया। कुछ समय बाद दोनों ने ब्याह रचा लिया।अक्सर रूचि और कमाल से फ़ोन पर बात हो जाती थी। दोनों बहुत ख़ुश थे।

इसी बीच विनोद दुआ का दूरदर्शन के साथ साप्ताहिक न्यूज़ पत्रिका परख प्रारंभ करने का अनुबंध हुआ।यह देश की पहली टीवी समाचार पत्रिका थी। हम लोग टीम बना रहे थे।कुछ समय वरिष्ठ पत्रकार दीपक गिडवानी ने परख के लिए उत्तरप्रदेश से काम किया।अयोध्या में बाबरी प्रसंग के समय दीपक ही वहाँ थे। कुछ एपिसोड प्रसारित हुए थे कि दीपक का कोई दूसरा स्थाई अनुबंध हो गया और हम लोग उत्तर प्रदेश से नए संवाददाता को खोजने लगे। विनोद दुआ ने यह ज़िम्मेदारी मुझे सौंपी । मुझे रूचि की याद आई। मैनें उसे फ़ोन किया।उसने कमाल से बात की और कमाल ने मुझसे।संभवतया तब तक कमाल ने एनडीटीवी के संग रिश्ता बना लिया था।चूँकि परख साप्ताहिक कार्यक्रम था इसलिए रूचि गृहस्थी संभालते हुए भी रिपोर्टिंग कर सकती थी।कमाल ने भी उसे भरपूर सहयोग दिया।यह अदभुत युगल था ।दोनों के बीच केमिस्ट्री भी कमाल की थी।बाद में जब उसने इंडिया टीवी ज्वाइन किया तो कभी कभी फ़ोन पर दोनों से दिलचस्प वार्तालाप हुआ करता था।एक ही ख़बर के लिए दोनों संग संग जा रहे हैं।टीवी पत्रकारिता में शायद यह पहली जोड़ी थी जो साथ साथ रिपोर्टिंग करती थी।जब भी लखनऊ जाना हुआ,कमाल के घर से बिना भोजन किए नहीं लौटा।दोनों ने अपने घर की सजावट बेहद सुरुचिपूर्ण ढंग से की थी। दोनों की रुचियाँ भी कमाल की थीं.एक जैसी पसंद वाली ऐसी कोई दूसरी जोड़ी मैंने नहीं देखी।जब मैं आज तक चैनल का सेन्ट्रल इंडिया का संपादक था,तो अक्सर उत्तर प्रदेश या अन्य प्रदेशों में चुनाव की रिपोर्टिंग के दौरान उनसे मुलाक़ात हो जाती थी।कमाल की तरह विनम्र,शालीन और पढ़ने लिखने वाला पत्रकार आजकल देखने को नहीं मिलता।कमाल की भाषा भी कमाल की थी। वाणी से शब्द फूल की तरह झरते थे।इसका अर्थ यह नहीं था कि वह राजनीतिक रिपोर्टिंग में नरमी बरतता था। उसकी शैली में उसके नाम का असर था। वह मुलायम लफ़्ज़ों की सख़्ती को अपने विशिष्ट अंदाज़ में परोसता था। सुनने देखने वाले के सीधे दिल में उतर जाती थी।आज़ादी से पहले पद्य पत्रकारिता हमारे देशभक्तों ने की थी ।लेकिन,आज़ादी के बाद पद्य पत्रकारिता के इतिहास पर जब भी लिखा जाएगा तो उसमें कमाल भी एक नाम होगा। किसी भी गंभीर मसले का निचोड़ एक शेर या कविता में कह देना उसके बाएं हाथ का काम था । कभी कभी आधी रात को उसका फ़ोन किसी शेर, शायर या कविता के बारे में कुछ जानने के लिए आ जाता ।फिर अदबी चर्चा शुरू हो जाती। यह कमाल की बात थी कि कि रूचि ने मुझे कमाल से मिलवाया ,लेकिन बाद में रूचि से कम,कमाल से अधिक संवाद होने लगा था।

कमाल के व्यक्तित्व में एक ख़ास बात और थी। जब परदे पर प्रकट होता तो सौ फ़ीसदी ईमानदारी और पवित्रता के साथ। हमारे पेशे से सूफ़ी परंपरा का कोई रिश्ता नहीं है ,लेकिन कमाल पत्रकारिता में सूफ़ी संत होने का सुबूत था। वह राम की बात करे या रहीम की ,अयोध्या की बात करे या मक्क़ा की ,कभी किसी को ऐतराज़ नहीं हुआ।वह हमारे सम्प्रदाय का कबीर था।

सच कमाल ! तुम बहुत याद आओगे। आजकल पत्रकारिता में जिस तरह के कठोर दबाव आ रहे हैं ,उनको तुम्हारा मासूम रुई के फ़ाहे जैसा नरम दिल शायद नहीं सह पाया।पेशे के ये दबाव तीस बरस से हम देखते आ रहे हैं। दिनों दिन यह बड़ी क्रूरता के साथ विकराल होते जा रहे हैं । छप्पन साल की उमर में सदी के संपादक राजेंद्र माथुर चले गए। उनचास की उमर में टीवी पत्रकारिता के महानायक सुरेंद्र प्रताप सिंह याने एस पी चले गए। असमय अप्पन को जाते देखा,अजय चौधरी को जाते देखा ।दोनों उम्र में मुझसे कम थे । साठ पार करते करते कमाल ने भी विदाई ले ली।अब हम लोग भी कतार में हैं।क्या करें ? मनहूस घड़ियों में अपनों का जाना देख रहे हैं । याद रखना दोस्त। जब ऊपर आएँ तो पहचान लेना। कुछ उम्दा शेर लेकर आऊंगा । कुछ सुनूंगा ,कुछ सुनाऊंगा । महफ़िल जमेगी ।
अलविदा कमाल !

हम सबकी ओर से श्रद्धांजलि।
राजेश बादल

न्यूज इंडिया की एंकर निदा अहमद सियासत के मैदान में उतरी

nida ahmad anchor news india

न्यूज इंडिया (News India) की प्रमुख एंकर (Anchor) निदा अहमद (Nida Ahmed) अब सियासत के मैदान में हाथ आजमायेंगी। कॉंग्रेस के टिकट पर वे आगामी उत्तरप्रदेश चुनाव में संभल सीट से चुनाव लड़ेंगी। गौरतलब है कि निदा संभल की ही है और इनका जन्म भी वही हुआ।

निदा अहमद कई वर्षों से टेलीविजन पत्रकारिता में सक्रिय थी। न्यूज इंडिया के पहले वे इंडिया न्यूज, ज़ी यूपी-उत्तराखंड, तेज (गुड न्यूज टुडे), समाचार प्लस, ईटीवी के साथ भी काम कर चुकी हैं।

अपनी सियासी सफर के बारे में जानकारी देते हुए निदा सोशल मीडिया पर लिखती हैं –

न्यूज इंडस्ट्री में निदा अहमद का सफरनामा

न्यूज एंकर निदा अहमद अब नोएडा फिल्म सिटी में हिंदी नेशनल न्यूज़ चैनल ‘न्यूज़ इंडिया’ ( NEWS INDIA ) में सीनियर एंकर प्रोड्यूसर की भूमिका निभा रही थी। यहीं से वो राजनीति की ओर चल पड़ी हैं। न्यूज़ इंडिया से पहले वो ‘ज़ी यूपी-उत्तराखंड’ में एंकर कम प्रड्यूसर की जिम्मेदारी निभा रही थीं। उससे पहले साल 2020 तक वो इंडिया टुडे ग्रुप के ‘तेज़’ न्यूज चैनल की टीम हिस्सा थीं। ‘तेज़’ में वह सीनियर एसोसिएट प्रड्यूसर के साथ-साथ एंकरिंग की भी जिम्मेदारी संभाल रहीं थीं। यूपी-उत्तराखंड के रीजनल न्यूज चैनल ‘न्यूज़ 1 इंडिया’ से निदा यहां पहुंची थीं। इससे पहले निदा अहमद ने ‘समाचार प्लस’ में बतौर एंकर करीब दो साल काम किया.. निदा अहमद ने अपने करियर की शुरुआत क्राइम रिपोर्टर के रूप में की। ‘इंडिया न्यूज’ ‘ज़ी यूपी उत्तराखंड, ‘ज़ी सलाम’ ‘तेज’, ‘समाचार प्लस’, के अतिरिक्त निदा ‘ईटीवी नेटवर्क’ NETWORK18 और ‘न्यूज वर्ल्ड इंडिया’ में भी काम कर चुकी हैं। निदा ने ‘न्यूज वर्ल्ड इंडिया’ से अपने करियर की शुरुआत बतौर असिसटेंट प्रड्यूसर की थी, जहां से ही उन्होंने एंकरिंग की बारीकियों को सीखा और क्राइम रिपोर्टर की भूमिका निभाई।

संभल में जन्म, अब संभल को संवारने का उठाया बीड़ा

निदा अहमद का जन्म उत्तरप्रदेश के संभल ज़िले में हुआ था। उनके दादा ज़रीफ़ भट्टा चैयरमेन लगातार 25 साल तक संभल के चैयरमैन रहे। उनके पिता टीचर और मां हाउस वाइफ हैं। यहां तक आने का सबसे बड़ा श्रेय अगर वो किसी को देना चाहती हैं, तो वो हैं उनके पति रज़ा अहमद। रजा अहमद उनके लिए हमेशा एक अच्छे दोस्त की तरह खड़े रहे.. क्योंकि निदा आगे पढ़ना चाहती थीं लेकिन बारहवीं के बाद ही शादी हो जाने के कारण पढ़ाई बीच में छूट गई लेकिन निदा अहमद ने हार नहीं मानी.. शादी के बाद वो दिल्ली आ गईं और एक बेटे को जन्म देने के बाद निदा ने अपने पति के सामने आगे पढ़ायी करने और जीवन में कुछ बनने की इच्छा ज़ाहिर की और उस दिन से लेकर आज तक उनके पति का सपोर्ट हमेशा उनके साथ रहता है। शादी के बाद अपनी आगे की पढ़ाई करके और साथ ही अपने घर की भी सारी ज़िम्मेदारियां उठाते हुए निदा आज इस मुक़ाम पर पहुंची हैं। निदा अहमद की गिनती मीडिया की उभरती हुई खूबसूरत और तेज़ तर्रार एंकर में की जाती है। निदा आज अवाम की पसंदीदा आवाज़ बन गयी हैं। सामाजिक सेवा में भी निदा का ​​योगदान हमेशा सराहनीय रहा है। गरीब बच्चों की मदद के लिये निदा को स्वर्ण पदक से भी सम्मानित किया जा चुका है। निदा अहमद को मीडिया इंडस्ट्री में भी काफी पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।

निदा अहमद को मिले अवॉर्ड

  • निदा को Youth ICON Award 2017 से नवाजा जा चुका है
    Women Power Society की तरफ से राष्ट्रीय स्वर्णिम हिन्द अवार्ड 2018 से नवाज़ा गया
    पीस ऑफ इंडिया की तरफ से बेस्ट एंकर का अवार्ड मिला
    राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस पर भी कई बार सम्मानित किया गया है
    शैक्षिक एवं सामाजिक उत्थान जाट सभा भी सम्मानित कर चुकी है
    एनसीआर मीडिया क्लब की और से काफी बार पत्रकारिता के क्षेत्र में बेहतरीन योगदान के लिए भी सम्मानित किया जा चुका है
    हिंदुस्तान की बेटियां सम्मान 2018
    ASIA AWARD 2019
    NATIONAL WOMEN ACHIEVER AWARD 2019
    LIFETIME ACHIEVEMENT AWARD 2019
    WOMAN OF SUBSTANCE AWARD 2020
    AIAC EXCELLENCE AWARD 2021
    2020 में कोरोना काल में 55 Corona Warrior Awards से सम्मानित किया जा चुका है।

कमाल के पत्रकार कमाल खान नहीं रहे, पत्रकारिता जगत में शोक की लहर

kamal khan ndtv journalist
कमाल खान, पत्रकार

मशहूर पत्रकार कमाल खान का आकस्मिक निधन हो गया है। हृदय आघात (हर्ट अटैक) की वजह से शुक्रवार की सुबह उनका निधन हुआ। उन्होंने लखनऊ स्थित अपने आवास में अंतिम सांस ली।

कमाल खान के परिजनों के मुताबिक करीब 4 बजे उन्हें सीने में दर्द की शिकायत हुई जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका।

पत्रकार कमाल खान पत्रकारिता जगत में अपनी खास शैली और भाषा के लिए जाने जाते हैं। उनके निधन पर पत्रकारिता जगत में शोक की लहर फैल गई है। सोशल मीडिया पर आयी कुछ और प्रतिक्रियाएं –

सोशल मीडिया पर मीडिया खबर

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