बिहार केसरी श्रीकृष्ण सिंह का जयंती समारोह के बैनर में ‘विकलांग’ हो गए मांझी
वीरेंद्र यादव
बिहार केसरी श्रीकृष्ण सिंह का जयंती समारोह के बैनर में ‘विकलांग’ हो गए मांझी
बिहार के मंत्री महाचंद्र प्रसाद सिंह और पूर्व मंत्री अखिलेश सिंह के नेतृत्व में 21 अक्टूबर को बिहार केसरी श्रीकृष्ण सिंह का जयंती समारोह आयोजित किया गया । इसके लिए राजधानी की प्रमुख जगहों पर बड़े-बड़े बैनर लगाए थे। उन बैनरों में मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की तस्वीर में सिर्फ एक पैर नजर आ रहा है। उनके साथ मीरा कुमार, नीतीश कुमार, रामचंद्र प्रसाद सिंह, शकील अहमद, सीपी जोशी की भी तस्वीर है।
उस बैनर में सीएम मांझी की तस्वीर में सिर्फ एक पैर दिख रहा है। फोटो देखने से स्पष्ट नजर आ रहा है कि यह तस्वीर स्वाभाविक नहीं है और इसे एडिट कर फोटो में सीएम का एक पैर गायब कर दिया गया है। यह विडंबना है कि इस कार्यक्रम के आयोजक महाचंद्र प्रसाद सिंह जीतनराम मांझी सरकार में मंत्री भी हैं।
अब सवाल यह उठता है कि सीएम के साथ ऐसी बदतमीजी किसने की। क्या मंत्री ने सीएम को अपमानित करने के लिए ऐसी तस्वीर लगवायी है। इस तस्वीर में ‘कलाकारी’ जिसने भी की हो, मंत्री भी इसकी जिम्मेवारी से बच नहीं सकते।
श्रीबाबू के जयंती समारोह के बैनर में ‘विकलांग’ हो गए मांझी
भाजपा – शिवसेना और सलाम नमस्तेबीजेपी ने मास्टर स्ट्रोक खेलकर शिवसेना को उसकी औकात तो बता दी है, लेकिन शिवसेना को अगर ज़रा भी सियासत आती है, तो उसे भी अपनी नई औकात को ध्यान में रखकर विपक्ष में बैठ जाना चाहिए। फिलहाल यही उसका मास्टर स्ट्रोक होगा, वरना उसके सामने “आगे कुआं, पीछे खाई” जैसी स्थिति तो है ही। अगर वह मोदी-मार्का बीजेपी से चिपकती है, तो वह उसे निगल जाएगी।
“थूककर चाटना” मुहावरा कहने और सुनने में डीसेंट तो नहीं लगता, लेकिन चुनाव से पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी और 288 में से 155 सीटें मांग रही शिवसेना नतीजों के बाद अगर बीजेपी की जूनियर पार्टनर के तौर पर सरकार में शामिल होती है, तो कई लोग ऐसा ही कहेंगे। शिवसेना की बार्गेनिंग पावर समाप्त हो चुकी है और इस सरकार में उसकी कोई ख़ास हैसियत होगी नहीं। उसे पिछलग्गू बनकर रहना होगा। स्वाभिमान से समझौता करना होगा।
मोदी मार्का यह नई बीजेपी उसके नखरे नहीं सहेगी। वैसे भी (बकौल मोदी) जन्म से ही “कुदरती भ्रष्ट पार्टी” उर्फ़ “नैचुरली करप्ट पार्टी” एनसीपी इस “न खाने, न खाने देने वाली पार्टी” को बिना शर्त समर्थन देने के लिए तैयार है। “नैचुरली करप्ट पार्टी” का यह खुला ऑफर शिवसेना को बीजेपी के सामने सिर उठाने नहीं देगा और बीजेपी उसे हमेशा ब्लैकमेल करती रहेगी। इसके बाद भी यह गारंटी नहीं कि अगले चुनाव में बीजेपी उसे फिर से नहीं पटक देगी।
इसलिए शिवसेना को सत्ता का मोह छोड़कर अब यह देखना चाहिए कि ख़राब प्रदर्शन के बावजूद वह महाराष्ट्र में नंबर दो की पार्टी बनकर उभरी है और अगर वह सरकार में शामिल नहीं हुई, तो मुख्य विपक्षी पार्टी तो बनेगी। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तो उसी का बनेगा। इस तरह वह मज़बूत विपक्ष की भूमिका निभा सकती है और न सिर्फ़ इन पांच सालों में, बल्कि अगले चुनाव में भी बीजेपी की नाक में दम कर सकती है और इस बुनियाद पर आगे कुछ बेहतर की उम्मीद पाल सकती है।
अगर अभी शिवसेना बीजेपी को सपोर्ट न करे, तो दबाव बीजेपी पर होगा। एक तो उसे सरकार बनाने के लिए उसी पार्टी से सांठ-गांठ करनी होगी, जिसे उसने नैचुरली करप्ट पार्टी कहा। दूसरे उसके ख़िलाफ़ एक मज़बूत विपक्ष खड़ा हो जाएगा, क्योंकि एक बात तो साफ़ है कि 15 साल राज करने, भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों से घिरे होने और काफी कम सीटें लाने की वजह से कांग्रेस और एनसीपी में मज़बूत विपक्ष बनकर बीजेपी को चुनौती देने का माद्दा नहीं बचा है।
तमाम निराशाजनक चीज़ों के बीच शिवसेना और उद्धव के लिए इन नतीजों में एक और सकारात्मक बात है। वह यह कि महाराष्ट्र की जनता ने राज ठाकरे के अस्तित्व को समाप्त कर दिया है। यानी उद्धव को अब अपने चचेरे भाई से कोई चुनौती नहीं है। इसलिए उसे तात्कालिक तौर पर आधी-अधूरी जूठन वाली सत्ता का सुख भोगने का मोह छोड़कर महाराष्ट्र को मज़बूत विपक्ष देना चाहिए, सचमुच की “सेना” की तरह नए हालात का “सामना” करना चाहिए और आगे बड़ी लड़ाई के लिए ख़ुद को तैयार करना चाहिए।
इंदिरा गाँधी भी कभी यही चाहती थीं कि सारे अखबार और पत्रकार उनके चारण और भाट बनें।उसकी परिणति आपातकाल के रूप में सामने आई और उनका ऐतिहासिक पतन हुआ।
तब के लोकतन्त्र के समर्थक अब सत्ता पर हैं और उनके भक्त वर्तमान सरकार के विरोधी पत्रकारों के विरुद्ध संगठित रूप से सोशल मीडिया में अशालीन अभियान चलाए हुए हैं। उनका स्पष्ट संकेत है कि या तो लहर-इफेक्ट से शरणागत हो जाओ नहीं तो परिणाम भुगतने को तैयार रहो।
कई वीर बहादुर पत्रकारों ने कलम की धार कुंद कर ली,कुछ ने आत्मसमर्पण कर दिया है फिर भी कुछ अभी भी पत्रकारिता को शर्मसार करने से बचाए हुए हैं।
रीता बहुगुणा, राशिद अल्वी आज टीवी पर आप जनता को गुमराह कर रहे थे। हकीकत ये हैं।
1- किसान आत्महत्या करते रहे। आप तक यह खबर नहीं पहुंची। पानी के लिए तड़पता रहा महाराष्ट्र।
2- जिन यशवंत राव चव्हाण ने महाराष्ट्र को चमकाया था, वहां पिछले डेढ़ दशक से सब ठप्प हो गया था।
3- जो भी मुख्यमंत्री बना उसके खिलाफ कांग्रेसी ही सबसे ज्यादा लड़े।
4- कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती, राज्य में राकांपा को मिटाना, राकांपा के लिए जरूरी हो गया कि कांग्रेस बेबस दिखे।
5- आदर्श घोटाला , कुछ नहीं कह पाई कांग्रेस ।
6 – राकांपा और कांगेसियों के कैसे कैसे बयान। लगा जैसे महाराष्ट्र इनकी जागीर हो। हाइकमान हमेशा प्रसन्न मुद्रा में। युनराज के लिए हेदराबाद बिरयानी और मुंबई पावभाजी तक सीमित।
7 – कोई नया कदम नहीं उठा राज्य में। जिससे लगे कि कोई हमारा नेता भी है।
8 – लोग बेवस थे। हकीकत ये थी कि कांग्रेस राकापा को पिछला चुनाव ही हारना चाहिए था। पर शिवसेना भाजपा की अधूरी रणनीति, और मनसे की दखल ने खेल बिगाड़ा। राकांपा कांग्रेस को गुमान हो गया कि हमें रोकने वाला कोई नहीं।
9- कलावती अकेली नहीं थीं, कई कलावतियां थी महाराष्ट्र में।
10 – कितना जानते हैं राहुल गांधी महाराष्ट्र को। हाइकमान की वास्तविकता को जनता ने महसूस किया। उसे एकदम नकार दिया। यह जानकर कि ये हमारे लिए नहीं। हमारे जरिए अपनी राजनीति चमकाने और सत्ता का सुख लेने के लिए हैं।
महाराष्ट्र-हरियाणा में कांग्रेस की पराजय के मायनेमहाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की पराजय वस्तुत: कांग्रेस की जनविरोधी नीतियों का परिणाम है, यह पराजय इसलिए महत्वपूर्ण नहीं है कि मोदी सरकार ने या फिर नरेन्द्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद कोई बड़ा काम किया है ।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सत्तारुढ़ होने के बाद से एक भी जनहितैषी फ़ैसला नहीं लिया है ,इसके विपरीत कई जनविरोधी फ़ैसले लिए हैं, सब्सीडी में कटौती की है, अपराधियों और माफ़िया गिरोहों के साथ खुली साँठगाँठ की है , नीतिहीन ढंग से हर तरह के तत्वों को वोटबैंक राजनीति के चलते भाजपा में संरक्षण दिया है। राजनीति में इस तरह की नीतिहीनता और अपराधियों के साथ खुली साँठगाँठ पहले कभी नहीं देखी गयी, स्थिति की भयावहता तो यह है कि माफ़िया किंग छोटा राजन के भाई के साथ खुलेआम मोदी ने चुनावी मंच साझा किया। इस घटना का सभी सरगनाओं को संदेश है कि हम तुम्हारे मित्र हैं और तुम हमारे साथ आओ । भारत के इतिहास में प्रधानमंत्री और माफ़िया किंग का यह गठजोड़ बताता है कि मोदी के नेतृत्व में भाजपा सीधे अपराधीकरण को वैधता प्रदान कर रही है। यह एक ऐसा परिवर्तन है जो देश की राजनीति को ‘कोलम्बिया राजनीति ‘ के युग में ले जा रहा है। राजनीतिज्ञों और अपराधी गिरोहों की शिखर के नेता के साथ साँठगाँठ लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है ।
यह सच है मोदी के नेतृत्व में महाराष्ट्र-हरियाणा में भाजपा जीत गयी है लेकिन किस तरह के तत्वों और राजनेताओं को लेकर जीती है वह ग़ौर करने लायक है। लोकतंत्र में आचरण महत्वपूर्ण होता है । मोदी ने सभी क़िस्म की सभ्य राजनीति के मानक तोड़कर एक खास क़िस्म का मनोविज्ञान रचा है और उस मनोविज्ञान को वे आम जनता के मन में वैधता दिलाना चाहते हैं,इस मनोविज्ञान की धुरी है अपराधी व्यवहारवाद और अवसरवाद। लोकतांत्रिक नीति , मूल्य, परंपरा, हिन्दू संस्कार और मान मर्यादा से इन दोनों तत्वों का कोई लेना देना नहीं है। इस प्रक्रिया में भाजपा का भिन्न चाल-चलन और चरित्र का नारा निरर्थक होकर रह गया है ।
महाराष्ट्र-हरियाणा चुनाव परिणाम यह भी बताते हैं कि कांग्रेस का सांगठनिक ढाँचा पूरी तरह चरमरा गया है, निचले स्तर पर काम करने वाले सक्रिय कार्यकर्ताओं के अभाव में कांग्रेस पार्टी तेज़ी से सामाजिक अलगाव झेल रही है । कांग्रेस की समस्या नेता और नीति की नहीं है बल्कि निस्वार्थ सेवा करने वाले सक्रिय कार्यकर्ताओं की है । सक्रिय कार्यकर्ताओं के अभाव को किसी भी महान नेता की सक्रियता या जादू के जरिए दूर नहीं कर सकते। हरियाणा और महाराष्ट्र में विगत पाँच सालों में अनेक बडे भ्रष्टाचार के मामले सामने आए लेकिन कांग्रेस ने इन सभी मामलों में भ्रष्टलोगों को बचाने की कोशिश की और इससे कांग्रेस की साख को गहरा धक्का लगा और इन सबका मोदी को सीधे लाभ मिला , इसके अलावा नीतिहीन ढंग से मराठा- जाट आरक्षण करके लोकतंत्र को कांग्रेस नेक्षतिग्रस्त किया । आम जनता को इन दोनों राज्यों में मोदी के अलावा और कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा था,फलत: मजबूरी में जनता ने भाजपा को वोट दिया । जबकि तथ्य है कि बहुसंख्यक जनता ने मोदी से इतर दलों को वोट दिया । तक़रीबन 70 फ़ीसदी वोट गैर-भाजपाई दलों को मिला है ।