विपक्ष में बैठकर बीजेपी का “सामना” करे शिवसेना

भाजपा - शिवसेना और सलाम नमस्ते
भाजपा - शिवसेना और सलाम नमस्ते

अभिरंजन कुमार

महाराष्ट्र-हरियाणा में कांग्रेस की पराजय के मायने
महाराष्ट्र-हरियाणा में कांग्रेस की पराजय के मायने

भाजपा - शिवसेना और सलाम नमस्ते
भाजपा – शिवसेना और सलाम नमस्ते
बीजेपी ने मास्टर स्ट्रोक खेलकर शिवसेना को उसकी औकात तो बता दी है, लेकिन शिवसेना को अगर ज़रा भी सियासत आती है, तो उसे भी अपनी नई औकात को ध्यान में रखकर विपक्ष में बैठ जाना चाहिए। फिलहाल यही उसका मास्टर स्ट्रोक होगा, वरना उसके सामने “आगे कुआं, पीछे खाई” जैसी स्थिति तो है ही। अगर वह मोदी-मार्का बीजेपी से चिपकती है, तो वह उसे निगल जाएगी।

“थूककर चाटना” मुहावरा कहने और सुनने में डीसेंट तो नहीं लगता, लेकिन चुनाव से पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी और 288 में से 155 सीटें मांग रही शिवसेना नतीजों के बाद अगर बीजेपी की जूनियर पार्टनर के तौर पर सरकार में शामिल होती है, तो कई लोग ऐसा ही कहेंगे। शिवसेना की बार्गेनिंग पावर समाप्त हो चुकी है और इस सरकार में उसकी कोई ख़ास हैसियत होगी नहीं। उसे पिछलग्गू बनकर रहना होगा। स्वाभिमान से समझौता करना होगा।

मोदी मार्का यह नई बीजेपी उसके नखरे नहीं सहेगी। वैसे भी (बकौल मोदी) जन्म से ही “कुदरती भ्रष्ट पार्टी” उर्फ़ “नैचुरली करप्ट पार्टी” एनसीपी इस “न खाने, न खाने देने वाली पार्टी” को बिना शर्त समर्थन देने के लिए तैयार है। “नैचुरली करप्ट पार्टी” का यह खुला ऑफर शिवसेना को बीजेपी के सामने सिर उठाने नहीं देगा और बीजेपी उसे हमेशा ब्लैकमेल करती रहेगी। इसके बाद भी यह गारंटी नहीं कि अगले चुनाव में बीजेपी उसे फिर से नहीं पटक देगी।

इसलिए शिवसेना को सत्ता का मोह छोड़कर अब यह देखना चाहिए कि ख़राब प्रदर्शन के बावजूद वह महाराष्ट्र में नंबर दो की पार्टी बनकर उभरी है और अगर वह सरकार में शामिल नहीं हुई, तो मुख्य विपक्षी पार्टी तो बनेगी। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तो उसी का बनेगा। इस तरह वह मज़बूत विपक्ष की भूमिका निभा सकती है और न सिर्फ़ इन पांच सालों में, बल्कि अगले चुनाव में भी बीजेपी की नाक में दम कर सकती है और इस बुनियाद पर आगे कुछ बेहतर की उम्मीद पाल सकती है।

अगर अभी शिवसेना बीजेपी को सपोर्ट न करे, तो दबाव बीजेपी पर होगा। एक तो उसे सरकार बनाने के लिए उसी पार्टी से सांठ-गांठ करनी होगी, जिसे उसने नैचुरली करप्ट पार्टी कहा। दूसरे उसके ख़िलाफ़ एक मज़बूत विपक्ष खड़ा हो जाएगा, क्योंकि एक बात तो साफ़ है कि 15 साल राज करने, भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों से घिरे होने और काफी कम सीटें लाने की वजह से कांग्रेस और एनसीपी में मज़बूत विपक्ष बनकर बीजेपी को चुनौती देने का माद्दा नहीं बचा है।

तमाम निराशाजनक चीज़ों के बीच शिवसेना और उद्धव के लिए इन नतीजों में एक और सकारात्मक बात है। वह यह कि महाराष्ट्र की जनता ने राज ठाकरे के अस्तित्व को समाप्त कर दिया है। यानी उद्धव को अब अपने चचेरे भाई से कोई चुनौती नहीं है। इसलिए उसे तात्कालिक तौर पर आधी-अधूरी जूठन वाली सत्ता का सुख भोगने का मोह छोड़कर महाराष्ट्र को मज़बूत विपक्ष देना चाहिए, सचमुच की “सेना” की तरह नए हालात का “सामना” करना चाहिए और आगे बड़ी लड़ाई के लिए ख़ुद को तैयार करना चाहिए।

(स्रोत-एफबी)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.