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अर्नब गोस्वामी गिरफ्तार, महाराष्ट्र पुलिस पर मारपीट का आरोप !

arnab goswami arrested

मुंबई| महाराष्ट्र पुलिस की रायगढ़ यूनिट ने बुधवार की सुबह रिपब्लिक टीवी के मालिक और मुख्य संपादक अर्नब गोस्वामी के घर पर छापा मारा और उन्हें आत्महत्या के लिए उकसाने के एक मामले में गिरफ्तार कर लिया। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी सचिन वैज ने कहा कि गोस्वामी को 2018 के आत्महत्या के मामले में गिरफ्तार किया गया है। यह मामला पहले बंद हो गया था, जिसे अब फिर से खोला गया है।

पुलिस टीम ने रिपब्लिक टीवी के प्रमुख को उनके घर में घुसकर गिरफ्तार किया। उनके परिवार ने इसका विरोध किया और उनके साथियों ने इसकी लाइव कवरेज करने की कोशिश की।

चैनल ने इसका जबरदस्त विरोध किया है कि “एक शीर्ष भारतीय न्यूज चैनल के संपादक को 20 से 30 पुलिसकर्मियों ने घर में घुसकर अपराधी की तरह बाल खींचकर उठाया, धमकाया और उन्हें पानी तक नहीं पीने दिया।”

पुलिस वैन से गोस्वामी ने कहा कि उनके साथ मारपीट की गई। उनके बेटे को पीटा गया और उनके ससुराल पक्ष के लोगों के साथ बदसलूकी की गई। उधर उनके सहयोगियों ने इस घटनाक्रम को प्रसारित करते हुए सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों से न्याय की मांग की।

माना जा रहा है कि उन्हें रायगढ़ के अलीबाग ले जाया जाएगा। (एजेंसी)

क्या अंग्रेजी को शुद्ध रखने के लिए अखबारों को हिन्दी का उच्चारण बिगाड़ देना चाहिए?

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आज अख़बार के जिस ख़बर की तसवीर मैं चस्पाँ कर रहा हूँ, उसके ज़रिये हिन्दीवालों का अपनी ही भाषा के प्रति अज्ञान और अँग्रेज़ी को श्रेष्ठ मानने की उनकी मानसिकता, दोनों की ही शिनाख़्त आप कर सकते हैं।

शीर्षक में एक शब्द है—लॉन्ग-कोविड। पूरी ख़बर में कई बार ‘लॉन्ग’ शब्द इस्तेमाल हुआ है। सोचिए कि लिपि की ध्वन्यात्मक विशिष्टता के स्तर पर देवनागरी के हिसाब से यह ‘लॉन्ग’ क्या है। इसी तरह से सॉन्ग, रॉन्ग वग़ैरह भी लोग लिखने लगे हैं।

‘महाजनो येन गतः स पन्थाः’ के अनुसार धीरे-धीरे आम लोग भी ऐसा ही लिखना शुरू कर देंगे। यह मूर्ख मीडिया के अज्ञान की विजय होगी। कई शब्द-प्रयोगों में मीडिया का सिखाया अनाप-शनाप सिर चढ़कर आजकल बोलने भी लगा है।

ख़बरों में अँग्रेज़ी के Long, Song, Wrong जैसे शब्दों के लिए लॉन्ग, सॉन्ग, रॉन्ग लिखने का जिसने भी आदेश जारी किया होगा, ज़ाहिर-सी बात है कि उसे देवनागरी लिपि की बुनियादी बातें पता नहीं रही होंगी और वह अँग्रेज़ी उच्चारण की शुद्धता बनाए रखने का ज़बरदस्त हिमायती भी रहा होगा। मैं भी इस बात का समर्थन करता हूँ कि भाषा अँग्रेज़ी हो या देशी-विदेशी दूसरी कोई और, अगर हम उसका कोई तत्सम शब्द प्रयोग में लाते हैं, तो बेहतर है कि उस शब्द का मूल उच्चारण भी अधिकतम शुद्ध रूप में बचाकर रखें, लेकिन सवाल यह है कि अन्य किसी भाषा का उच्चारण शुद्ध रखने के लिए क्या अपनी ही भाषा का उच्चारण बिगाड़ देना चाहिए?

दुनिया की किसी और भाषा में ऐसा नहीं हो रहा है, जैसा हिन्दी में हो रहा है। हमारी ही तरह अँग्रेज़ों के गुलाम रहे पाकिस्तानी तक ऐसा नहीं करते। विडम्बना तो यह है कि अगर हमारे जैसे कुछ लोग साफ़-सुथरी हिन्दी सीखने-सिखाने की बात करते हैं तो मानसिक गुलामों की एक पूरी फ़ौज है, जो एक सुर में गाने लगती है कि आप हिन्दी को कठिन बनाना चाहते हैं। मज़ा यह कि हिन्दी को साफ़-सुथरी और व्याकरणसम्मत बनाने के विरोधी ऐसे ही लोग अँग्रेज़ी को ज़रा भी बिगाड़ना पसन्द नहीं करते और बड़ी ज़िम्मेदारी से उसे साफ़-सुथरी, शुद्ध और व्याकरणसम्मत बनाए रखने की वकालत करते हैं।

अब सोचिए कि रोमन में लिखे Long को देवनागरी में क्या ‘लॉन्ग’ लिखा जाना चाहिए? रोमन में 26 अक्षरों से काम चलाया जाता है, तो क्या देवनागरी वर्णमाला में भी वर्णों की सङ्ख्या घटाकर 26 कर दी जाए? सच्चाई यही है कि रोमन बेहद कमज़ोर लिपि है। हमारी मानसिक गुलामी इसे महान् बनाती है। यह तकनीकी वर्चस्व का युग है। अँग्रेज़ीवालों का तकनीकी वर्चस्व हमारे ऊपर ज़्यादा है तो अँग्रेज़ी हमें महान् लगती है, पर किसी दिन हिन्दीवालों का तकनीकी वर्चस्व दुनिया पर बढ़ जाए तो हर कहीं हिन्दी महान् दिखाई देने लगेगी। बहरहाल, भाषा-विज्ञान के संसार के सारे अध्येता स्वीकार करते हैं कि देवनागरी में मानवीय अभिव्यक्ति की दृष्टि से ज़रूरी ध्वनियों के लिए सर्वाधिक समर्थ प्रतीक मौजूद हैं। बात बस इतनी है कि हम हिन्दीवाले क्या अँग्रेज़ियत की मानसिकता से बाहर निकलकर हिन्दी का गौरव महसूस कर पाएँगे या अँग्रेज़ी में जगह न बना पाने की विवशता में ही जैसे-तैसे हिन्दी की पूँछ पकड़कर घिसटते रहेंगे?

वास्तव में Long को ‘लॉन्ग’ के बजाय देवनागरी में लिखा जाना चाहिए ‘लॉङ्ग’। रोमन में ङ्, ञ्, ण् और न् के लिए सिर्फ़ एक प्रतीक N से काम चलाया जाता है, जबकि इन सभी ध्वनियों का देवनागरी में महीन विश्लेषण है और अलग-अलग वर्ण निर्धारित करने के ध्वनि-वैज्ञानिक कारण हैं। ये सभी ध्वनियाँ अल्पप्राण घोष हैं, पर ङ् कोमल तालव्य, ञ् तालव्य स्पर्श-घर्षी, ण् मूर्धन्य प्रतिवेष्ठित स्पर्श, तो न् दन्त्य-वर्त्स्य। रोमन में विकल्प नहीं तो सबका काम N से चलाना पड़ता है। हमारे पास जब सही उच्चारण को व्यक्त करने के लिए समाधान मौजूद है तो हम हर कहीं N = न् क्यों बनाएँ? याद रखने की बात है कि उच्चारण की दृष्टि से हमेशा N का मतलब न् नहीं होता। Long, Song, Wrong जैसे शब्दों में N का उच्चारण स्पष्ट रूप से अल्पप्राण घोष कोमल तालव्य स्पर्श वाला है, जिसको व्यक्त करने के लिए देवनागरी में ‘ङ्’ मौजूद है। यह बात ज़रूर है कि टाइपराइटर के चलन के बाद उसके सीमित कीबोर्ड में टाइप की सुविधा को देखते हुए ङ् के स्थान पर अनुस्वार की बिन्दी का ज़्यादा प्रयोग किया जाने लगा। बावजूद इसके यह एकदम विलुप्त नहीं हुआ और ‘वाङ्मय’ जैसे शब्दों में प्रयोग किया जाता रहा। वर्तमान में कम्प्यूटर की सुविधा ने टाइपिङ्ग को एकदम आसान बना दिया है, इसलिए अब फिर से नासिक्य ध्वनियों को सही रूपों में प्रचारित किए जाने की ज़रूरत है। संसार की सबसे महान् लिपि की वैज्ञानिकता की रक्षा इसी तरीक़े से हो सकती है। यह निहायत ग़लत है कि आप अँग्रेज़ी के अर्धविवृत स्वर ‘ऑ’ के सही उच्चारण को बचाने के लिए हिन्दी के कोमल तालव्य ‘ङ्’ को दन्त्य-वर्त्स्य स्पर्श ‘न्’ बनाकर बिगाड़ दें। यदि ‘ङ्’ आपके कीबोर्ड पर नहीं बनता या आप इसे पूरी तरह से बेदख़ल ही कर देना चाहते हैं, तो भी कम-से-कम एकदम से ग़लत चीज़ का प्रचार तो मत कीजिए। रोमन के Long, Song अथवा Wrong के लिए बेहतर है कि देवनागरी में ‘लांग’, ‘सांग’ अथवा ‘रांग’ लिखिए, लोग अँग्रेज़ी के हिसाब से समझ ही जाएँगे। अगर अँग्रेज़ी के ‘ऑ’ को बचाने के लिए हिन्दी के ‘ङ्’ और ‘न्’ को बिगाड़ने की ज़िद ठान रखी हो, तो बात दूसरी है।

यह भी समझने की बात है कि जब हमारे यहाँ नचिकेता, याज्ञवल्क्य के संवाद चल रहे थे तो पश्चिम में लोग भेड़-बकरियाँ चराया करते थे या लूटमार करके अपना पेट भरते थे। विकास की जो धारा पश्चिम में चली, भारत में उससे अलग थी। उन्होंने प्रकृति के शोषण को अपने जीवन का आधार बनाया, पर हमारे पुरखे प्रकृति के पोषण को जीवन-मूल्य बनाकर आगे बढ़े। उनके यहाँ जीवन खण्ड-खण्ड होकर चलता रहा है, पर हमारे यहाँ जीवन को समग्रता में देखने का पुरुषार्थ किया जाता रहा है। यह विशेषता भारतीय जीवन-दर्शन की अन्यान्य विधाओं में कहीं भी देखी जा सकती है। चिकित्सा, सङ्गीत, योग से लेकर पाक-कला तक में। भाषा के विकास में भी यही चीज़ मौजूद है। अँग्रेज़ों के कोड़े हमारे शरीर पर इतने पड़े हैं कि आँखें जैसे आज भी पथराई हुई हैं और हम अपनी भाषाओं में मौजूद समग्रता का यह तत्त्व आसानी से नहीं देख पा रहे हैं। सवाल बस इतना है कि जो उनकी मजबूरी है, क्या उसे हमें अपनी भी मजबूरी बना लेनी चाहिए?

( संत समीर के सोशल मीडिया वॉल से साभार )

कौन बनेगा करोड़पति के एक सवाल पर अमिताभ बच्चन के खिलाफ एफआईआर

amitabh ke khilaf fir
amitabh ke khilaf fir

सुपरस्टार अमिताभ बच्चन और उनके लोकप्रिय शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के निर्माताओं के खिलाफ हिंदू भावनाओं को आहत करने के आरोप में एक एफआईआर दर्ज की गई है।

बच्चन ने करमवीर ऐपिसोड में मनुस्मृति से संबंधित प्रश्न पूछा था। इस ऐपिसोड में सामाजिक कार्यकर्ता बेजवाड़ा विल्सन और अभिनेता अनूप सोनी मेहमान के तौर पर शामिल हुए थे।

इसमें 6.4 लाख रुपये के लिए प्रश्न पूछा गया था, “25 दिसंबर 1927 को डॉ.बी.आर.अंबेडकर और उनके अनुयायियों ने किस धर्मग्रंथ की प्रतियां जलाईं थीं?

इसके विकल्प – (ए) विष्णु पुराण, (बी) भगवद गीता, (सी) ऋगदेव, और (डी) मनुस्मृति थे।” इस सवाल का जवाब मनुस्मृति था।

जवाब के बारे में विस्तार से बताते हुए अमिताभ बच्चन ने कहा, “1927 में अंबेडकर ने प्राचीन हिंदू ग्रंथ मनुस्मृति की निंदा की और इसके एक पॉइंट को जाति व्यवस्था के खिलाफ बताते हुए इसकी प्रतियां भी जलाईं।”

सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं को यह ठीक नहीं लगा और शो का बायकॉट करने की मांग उठने लगी।

हिंदू कार्यकर्ताओं ने निमार्ताओं पर ‘वामपंथी प्रचार’ करने का आरोप लगाया है, वहीं अन्य लोगों ने इसे ‘हिंदू भावनाओं को ठेस पहुंचाने’ के लिए दोषी ठहराया।

फोनपे का 25 करोड़ यूजर्स होने का दावा

phone pe

डिजिटल भुगतान प्लेटफॉर्म फोनपे ने दावा किया कि भारत में उसके यूजर्स की संख्या 25 करोड़ के पार पहुँच चुकी है।

कंपनी ने अक्टूबर में 10 करोड़ मासिक सक्रिय यूजर्स (एमएयू) और 230 करोड़ ऐप सेशन की सूचना दी।

फोनपे के सीईओ और संस्थापक समीर निगम ने कहा, हमारा अगला लक्ष्य दिसंबर 2022 तक पंजीकृत यूजर्स के 50 करोड़ के आंकड़ें को पार करना है।

फोनपे ने कहा कि उसने अक्टूबर के महीने में रिकॉर्ड 92.5 करोड़ लेनदेन किए, जिसमें वार्षिक टीपीवी (कुल भुगतान मूल्य) 27700 करोड़ डॉलर का था।

कंपनी ने अक्टूबर में 83.5 करोड़ यूपीआई लेन-देन के ट्रांजेक्शन किए, जिसमें बाजार में 40 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी है।

निगम ने आगे कहा, हम हर भारतीय नागरिक के लिए डिजिटल भुगतान को जीवन का एक तरीका बनाने के मिशन पर हैं।

डिजिटल भुगतान मंच ने अगस्त में कहा था कि वह अगले एक साल में पूरे भारत में 2.5 करोड़ से अधिक छोटे व्यापारियों के लिए डिजिटल भुगतान को सक्षम करेगा।

करीब 500 शहरों में 1.3 करोड़ मर्चेंट आउटलेट्स पर फोनपे स्वीकार किए जाते हैं। (एजेंसी)

रवीश कुमार करेंगे एचजेयू के तीन वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम का शुभारम्भ

ravish kumar news anchor

जयपुर। हरिदेव जोशी पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय (एचजेयू) में शुरू होने जा रहे तीन वर्षीय स्नातक (यूजी) पाठ्यक्रम का शुभारम्भ जुझारू पत्रकारिता के लिए रमोन मग्सेसाय अवार्ड से सम्मानित रवीश कुमार करेंगे।

राजस्थान में किसी राज्यपोषित विश्वविद्यालय में पत्रकारिता और जनसंचार में तीन वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम पहली बार शुरू हो रहा है। सत्र दीवाली के बाद शुरू होगा।

एचजेयू के कुलपति ओम थानवी ने बताया कि मीडिया में कोरोना के कारण आई मंदी की ख़बरों के बावजूद विश्वविद्यालय में प्रवेश को लेकर देखा गया उत्साह स्वागत योग्य है। उन्होंने कहा कि मीडिया का भविष्य उज्ज्वल है। मीडिया में नए-नए माध्यम रोज़गार की नई संभावनाएँ लेकर आ रहे हैं। समाचार-पत्रों और रेडियो-टीवी के अलावा देखते-देखते ऑनलाइन मीडिया, मोबाइल पत्रकारिता, पोर्टल, ई-पेपर, फ़ेसबुक-ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब चैनल, पॉडकास्ट (इंटरनैट रेडियो) आदि अनेक नए माध्यम स्थापित हो चुके हैं।

स्नातक के अलावा पीएच-डी व डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के साथ स्नातकोत्तर के भी इस वर्ष पाँच पाठ्यक्रम किए जा रहे हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और विज्ञापन-जनसंपर्क के साथ दो नए पाठ्यक्रम सोशल मीडिया व ऑनलाइन पत्रकारिता तथा विकास-संचार और सामाजिक कार्य के शुरू होंगे। पाठ्यक्रमों में ऑनलाइन प्रवेश चालू हैं।

राज्य सरकार के नियमों के अनुसार छात्राओं, अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग व अति पिछड़े वर्ग के अभ्यर्थियों से शिक्षण शुल्क नहीं लिया जाएगा जिनके अभिभावक आयकरदाता न हों। विकलांगों/दिव्यांगों और अन्य पात्रों के लिए भी शिक्षण व अन्य शुल्क की छूट है। स्ववित्तपोषित (एसएफ़एस) पाठ्यक्रमों पर ये नियम लागू नहीं हैं।

देवस्वरूप समिति के प्रस्ताव के अनुरूप आवेदन की अंतिम तिथि बढ़ाकर 10 नवम्बर और शुल्क की अंतिम तिथि 13 नवम्बर की गई है। यह तिथि बढ़ाई नहीं जा सकेगी। आवेदन और शुल्क जमा की व्यवस्था विद्यार्थियों की सुविधा के लिए विश्वविद्यालय की द्विभाषिक वैबसाइट (www.hju.ac.in) पर ऑनलाइन है।

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