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मुलायम फोन केस: विधि विज्ञान प्रयोगशाला में आवाज़ मिलान के आदेश

सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव द्वारा आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर को मोबाइल फोन से दी गयी कथित धमकी के सम्बन्ध में दर्ज एफआईआर में हजरतगंज पुलिस द्वारा लगाये गए अंतिम रिपोर्ट अदालत द्वारा ख़ारिज कर दी गयी है.

सीजेएम लखनऊ संध्या श्रीवास्तव ने अपने आदेश में कहा कि केस डायरी से स्पष्ट है कि विवेचक ने कॉम्पैक्ट डिस्क में अंकित वार्तालाप की आवाज़ का नमूना परीक्षण नहीं कराया है और मात्र मौखिक बयान कार अंतिम रिपोर्ट प्रेषित कर दिया है. उन्होंने क्षेत्राधिकारी हजरतगंज को इस मामले में अग्रिम विवेचना करते हुए अमिताभ और मुलायम सिंह के आवाज़ का नमूना प्राप्त कर उसका कॉम्पैक्ट डिस्क की आवाज़ से विधि विज्ञानं प्रयोगशाला में परीक्षण करा कर 30 सितम्बर 2016 तक रिपोर्ट देने के आदेश दिए हैं.

इस मामले में विवेचक द्वारा धमकी की बात गलत होने और अमिताभ द्वारा सहज लोकप्रियता के लिए गलत तथ्यों के आधार पर झूठी सूचना दिए जाने की बात कहते हुए अंतिम रिपोर्ट भेजी गयी थी.

अमिताभ ने कोर्ट में इस अंतिम रिपोर्ट के खिलाफ विरोध याचिका दायर किया था.

सीआरपीएफ जवानों के लिए जरूरी है मीडिया प्रशिक्षण

मीडिया

भोपाल, 23 अगस्त। मीडिया प्रशिक्षण के बाद सीआरपीएफ के जवान अधिक प्रभावी ढंग से समाज की सहायता कर सकेंगे। सीआरपीएफ ने अनेक विपरीत परिस्थितियों में समाज हित के काम किए हैं। सीआरपीएफ ऐसे दुर्गम स्थानों पर भी काम कर रही है, जहाँ मीडिया की पहुँच नहीं है। इसलिए जवानों को दिया गया मीडिया का प्रशिक्षण अधिक उपयोगी साबित होगा। सीआरपीएफ के कमाण्डेंट श्याम सुंदर ने सात दिवसीय इलेक्ट्रोनिक मीडिया उपकरण प्रशिक्षण कार्यशाला के समापन समारोह में यह विचार व्यक्त किए। कार्यशाला का आयोजन माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के इलेक्ट्रोनिक मीडिया विभाग की ओर से किया गया था। इस कार्यशाला में सीआरपीएफ के जवानों को सात दिन तक इलेक्ट्रोनिक मीडिया के प्रशिक्षण में ऑडियो, वीडियो और फोटोग्राफी का प्रशिक्षण दिया गया।

कार्यशाला के समापन समारोह के मुख्य अतिथि एवं सीआरपीएफ कमाण्डेंट श्याम सुंदर ने कहा कि सेना के प्रशिक्षण और विश्वविद्यालय के प्रशिक्षण में अंतर होता है। लेकिन, मीडिया का यह प्रशिक्षण जवानों के काम को और प्रभावी बनाएगा। उन्होंने कहा कि सीआरपीएफ ने विभिन्न युद्धों में अपनी भूमिका निभाई है। जम्मू-कश्मीर में होने वाली हिंसक गतिविधियों को भी सीआरपीएफ ने कुशलता से नियंत्रित किया है। इसके अलावा बाढ़ और भूकम्प जैसी आपदाओं में भी सीआरपीएफ के जवानों ने समाज की सहायता की है। समापन समारोह की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलाधिसचिव लाजपत आहूजा ने कहा कि गत दिवस मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में हुई महापरिषद की बैठक में भी इस प्रशिक्षण कार्यशाला की प्रशंसा की गयी और प्रशिक्षण को विस्तार देने की आवश्यकता पर भी जोर दिया गया। उन्होंने कहा कि सीआरपीएफ के जवान अपनी जान पर खेलकर देशवासियों की सुरक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। श्री आहूजा ने कहा कि इस प्रशिक्षण से सीआरपीएफ के जवान अपनी उपलब्धियों को छोटी-छोटी फिल्में बनाकर सबके सामने ला सकते हैं। इस प्रशिक्षण की महत्ता तभी सार्थक होगी, जब इसका समय-समय पर अभ्यास किया जाए। आभार प्रदर्शन करते हुए इलेक्ट्रोनिक मीडिया विभाग के अध्यक्ष डॉ. श्रीकांत सिंह ने कहा कि वर्तमान दौर इलेक्ट्रोनिक मीडिया का है और तकनीक में आए परिवर्तन ने इसे प्रभावित भी किया है। सबको इसे समझना चाहिए। उन्होंने बताया कि इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत 10 जवानों को प्रशिक्षित किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. सौरभ मालवीय ने किया।सीआरपीएफ जवानों के लिए जरूरी है मीडिया प्रशिक्षण

‘अकीरा’ वाले अभिमन्यु सरकार का एक्स फैक्टर!

अभिमन्यु सरकार
अभिमन्यु सरकार
अभिमन्यु सरकार
अभिमन्यु सरकार

रामगोपाल वर्मा की फिल्म‘26/11‘ में, कबीर खान की फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’ में, मधुर भंडारकर की फिल्म‘कैलेंडर गर्ल्स’ में और बिजॉय नाम्बियार की फिल्म‘वजीर’ में अपने बूते पर किरदार हासिल किया और अब यूपी का ये जिद्दी एक्टर प्रसिद्ध अभिनेत्री ‘सोनाक्षी सिन्हा’ यानि ‘अकीरा’के साथ स्क्रीन शेयर कर रहा है…। फिल्म अभिनेता-अभिमन्यु सरकार से एक बातचीत –

साक्षात्कार:

‘जिद करो दुनिया बदलो’, ‘दिल ये जिद्दी है…’ये सुपरहिट डायलॉग तो आपने सुना ही होगा। ‘जब आप किसी चीज को शिद्दत से चाहते हैं, तो पूरी कायनात आपको उससे मिलाने में जुट जाती है’, लेकिन कोई है जिसकी जिद,कायनात की फिराक बदलने का माद्दा रखती है।वो जिद्दी अभिनेता हैं अभिमन्यु सरकार। वह एक सेल्फ मेड एक्टर है…जिसका फिल्म इंडस्ट्री में कोई गॉडफादर नहीं था… अपनी मेहनत के बल पर बड़ी फिल्मों और टीवी शो में अपनी एक खास जगह बनाई है।

रामगोपाल वर्मा की फिल्म‘26/11‘ में, कबीर खान की फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’ में, मधुर भंडारकर की फिल्म‘कैलेंडर गर्ल्स’ में और बिजॉय नाम्बियार की फिल्म‘वजीर’ में अपने बूते पर किरदार हासिल किया और अब यूपी का ये जिद्दी एक्टर प्रसिद्ध अभिनेत्री ‘सोनाक्षी सिन्हा’ यानि ‘अकीरा’के साथ स्क्रीन शेयर कर रहा है…।गोरखपुर में जन्मे और गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) में पले-बढ़े अभिमन्यु में गजब का उत्साह है। इस जोशीले युवा से फिल्म इंडस्ट्री को बहुत उम्मीदें हैं। अपनी बहुचर्चित फिल्म ‘अकीरा’को लेकर वे चर्चा में हैं। पिछले दिनों गाजियाबाद आए अभिमन्यु सरकार की रुचि शुक्ला से लंबी बातचीत हुई। अभिमन्यु ने बड़ी ही बेबाकी से इसके जबाब दिए। उन्होंने कैसे बॉलीवुड की सकरी गलियों में कैसे की फास्ट हॉर्स राइडिंग ?जानने के लिए पढ़ें उसी बातचीत के कुछ अंश,जिसको हम आपसे शेयर कर रहे हैं….

सवाल- जैसा कि हमें पता है‘अकीरा’ एक वूमन सेंट्रिक फिल्म है, जिसमें आपने नेगेटिव किरदार निभाया है, तो क्या कोई एक्स फैक्टर भी है आपके किरदार में…जिसके बारे में आप अपने प्रशंसको को कुछ बताना चाहेंगे ?

जवाब- मैं ज्यादा कुछ तो नहीं बता सकता, लेकिन इतना जरूर कहूँगा कि मैं खुद में एक एक्स फैक्टर हूँ… मैंने पूरी ईमानदारी से अपना किरदार निभाया है। कॉलेज बुली के रूप में जितना मसाला अपने किरदार में भरना था, सब भरा है। जैसा कि आप भी जानते हैं कि फिल्म इंडस्ट्री में जगह बनाना आसान नहीं है, वो भी तब जब आपके पास ना ढेर सारा पैसा हो और ना ही कोई गॉडफादर। मैंने अपना हर रोल कड़ी मेहनत से पाया है और उतनी ही मेहनत से उसे निभाया भी है। हाँ… ‘अकीरा’ को लेकर मैं कुछ ज्यादा एक्साइटेड हूँ, क्योंकि ‘सोनाक्षी सिन्हा’ के साथ स्क्रीन शेयर कर रहा हूँ। ये भी किसी एक्स फैक्टर से कम नहीं।

सवाल- इतने सालों से आप फिल्म इंडस्ट्री में हैं, इस बीच जिंदगी में तमाम उतार-चढ़ाव भी आए होंगे, यह सब कैसे मैनेज किया आपने, जबकि कोई बड़ा सपोर्ट भी नहीं था आपके पास ?

जवाब- हाँ…कई बार एक्ट्रीम डिप्रेशन जैसे हालात भी आए मुंबई में रहते हुए। एक तरह से जिद में आया था मुंबई, परिवार के खिलाफ जाकर, परिवार मुझे इंजीनियर बनाने का सपना पाल के बैठा था पर मुझे मुंबई बुला रही थी। एक्टिंग के अलावा किसी भी चीज में मेरा दिल नहीं लगा। इसलिए कई-कई महीने काम ना मिलने के बाद भी फिल्मसिटी का दामन नहीं छोड़ा। नतीजा आपके सामने है। एक बात और कहना चाहूँगा, ‘कि यहाँ (बॉलीवुड) में वक्त लगता है कुछ पाने में …और ये वक्त दिन…महीने …या साल भी हो सकता है…इसलिए हार नहीं माननी चाहिए, जिद करने से ही बदलती हैं जिंदगी’, यह मेरा फंडा है।

सवाल- आपने बहुत सारी फिल्मों और टीवी शो में काम किया है, आपके हिसाब से बेस्ट डायरेक्टर कौन है, जिनके साथ आपने काम किया ?

जवाब-जी, हाँ ! मैंने कई बड़े फिल्म डायरेक्टर के साथ काम किया है…मसलन रामगोपाल वर्मा, कबीर खान, मधुर भंडारकर, विजॉय नाम्बियार…और अब ए.आर. मुरुगाडॉस के साथ काम किया ‘अकीरा’ में। ये सभी फिल्म इंडस्ट्री के बड़े नाम हैं। सबकी अलग खूबी है, सबकी अलग यूएसपी….इसलिए ये कह पाना मेरे लिए मुश्किल है कि बेस्ट कौन है ?लेकिन एक बात जरूर कहूँगा, कि ये सारे लोग टैलेंट की कद्र करने वाले लोग हैं, आज मैं जो कुछ भी हूँ, इसमें इनका बहुत बड़ा योगदान है।

सवाल- कुछ अपने बारे में बताइए, अब तक की जिंदगी में क्या खास रहा और आने वाले कल को लेकर क्या सोचते हैं आप ?

जवाब-मैं अपने बारे में जितना जानता हूँ, उससे ज्यादा लोग मेरे बारे में जानते हैं, खैर…अब आपने पूछ ही लिया तो बता दूँ कि मैं पैदा तो गोरखपुर में हुआ लेकिन एजुकेशन के लिए कई अलग जगहों पर रहा, अच्छा स्टूडेंट था लेकिन दिल हमेशा से बॉलीवुड के लिए ही धड़कता था। पिता जी मुझे इंजीनियर बनाना चाहते थे, मैंने एडमिशन लिया, पढ़ाई भी की, लेकिन वो सिर्फ डिग्री भर थी मेरे लिए। असल में मैं एक एक्टर ही बन सकता था, क्योंकि यही वो काम था जिसमें मेरा दिल लगता था। तो बस भाग आया मुंबई। ना पैसा, ना कोई सपोर्ट, बस जिद और जुनून ने मुझे एक्टर बना दिया। अब तक की जिंदगी में सबसे खास यही रहा कि मैंने जिस चीज को पाना चाहा उसे पाकर ही दम लिया, फिर वक्त चाहे जितना लगा हो… और मेरा सुपरस्टार बनने का सपना भी एक न एक दिन जरूर पूरा होगा।

सवाल-‘अकीरा’ के बाद क्या प्लानिंग है आपकी, सुना है कि आप हॉलीवुड में भी किस्मत आजमा रहे हैं ?

जवाब- अब मैं अभिजीत दा के डायरेक्शन में ‘मृग तृश्ना’ में लीड कैरेक्टर प्ले कर रहा हूँ, जो एक इंटरनेशनल फिल्म है। फिल्म ‘माॅडर्न मंजू’ में भी मेरा अहम रोल है, जिसमें मैं लीड नेगेटिव रोल प्ले कर रहा हूँ…इसके बाद संजय सर (ज्ञंददंकं उवअपम) के डायरेक्शन में ‘कॉलेज डेज’ कर रहा हूँ और जैसा कि आप हॉलीवुड डेब्यू के बारे में जानना चाहते हैं तो मैं दो हॉलीवुड फिल्में भी साइन कर चुका हूँ…पहला ष्म्उचजल.डपततवतष् और दूसरा ष्थ्वत ीमतम वत जव हवष्। ये मेरी आने वाली फिल्में हैं। बाकी बहुत कुछ प्लानिंग चल रही है, जैसे ही कुछ क्लीयर होगा, सबको खुद-ब-खुद पता चल जाएगा।

सवाल- अपने इस करियर के लिए कुछ तो ट्रेनिंग या कोर्स करना पड़ा होगा, बिना फैमिली सपोर्ट के कैसे किया आपने ये सब ?

जबाब- सबसे पहले मैंने बप्पी बोस के अंडर फंडामेंटल एक्टिंग ट्रेनिंग ली। उस वक्त मेरी उम्र करीब 17-18 साल थी। इसके साथ ही मैंने तमाम एक्टिंग वर्कशॉप भी अटेंड किया। करीब 6 महीने एनएसडी (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा ) में थिएटर एक्सपीरिएंस भी लिया। मेरठ में इंजीनियरिंग करने के दौरान ही मैंने मिक्स्ड मार्शल आर्ट और किक बॉक्सिंग की ट्रेनिंग भी ली…जिसके बारे में किसी को मालूम नहीं था। कैरियर की शुरुआत में कई सारी शॉर्ट फिल्म की, अच्छे डायरेक्टर्स के साथ काम किया जैसे प्रियेश श्रीवास्तव, दीपेश सुमित्रा और उत्सव सिंह…
और सबसे अहम बात यह है कि टीवी सीरीज 24 के पहले सीजन में भी मुझे काम मिला। इन छोटी-छोटी कामयाबियों से मुझे बड़ा हौसला मिला…और बहुत सारी सीख भी।

आपके बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा। ईश्वर आपके सपने सच करे, आपकी आने वाली सभी प्रोजेक्ट, फिल्मों के लिए हमारी ढेर सारी शुभकामनाएँ।

प्रस्तुति- रुचि शुक्ला
एसोशिएट प्रोड्यूसर, ‘तेज़, आज तक’,

‘दलित उद्धारक’ पत्रकारों के नाम खुला पत्र

विश्व गौरव

नमस्ते भाई,

हो सकता है कि आपको मेरे संबोधन से भी आपत्ति हो क्योंकि रिश्तों की पवित्रता से अधिक महत्व आप भौतिकता को देते हैं लेकिन मैं साफ कर दूं कि इस पत्र में जो कुछ भी है वह एक राष्ट्रवादी लिख रहा है। एक ऐसा राष्ट्रवादी जो किसी तथाकथित राष्ट्रवादी राजनीतिक पार्टी का अंधभक्त नहीं है लेकिन उसे अपनी संस्कृति और सभ्यता पर बहुत गर्व है। आपसे निवेदन है कि कृपया अगले 10 मिनट के लिए आपने जिस भी ‘वाद’ का चश्मा पहन रखा है, उसे उतार कर रख दें और फिर इस पत्र को पढ़ें।

मैं पिछले कई सालों से जानने की कोशिश कर रहा था कि आखिर वामपंथियों की मूल समस्या क्या है? वे पत्रकारिता जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी के साथ धोखा कैसे कर सकते हैं, वे पत्रकार होते हुए भी अपनी कुत्सित मानसिकता पर ‘मानवतावाद’ का चोंगा डालकर पूरे देश पर थोपने का प्रयास कैसे कर सकते हैं? ऐसे कई सवाल मन में आते थे लेकिन इनका उत्तर मिलना नामुमकिन सा लगता था। इसका कारण यह था कि वामपंथी विचारधारा से संबन्ध रखने वाले जिन पत्रकारों या पत्रकारिता के शिक्षकों से मेरा संवाद होता था, वे एक सीमा तक ही वामपंथ को मानते थे। वे एक सीमा में थे शायद इसीलिए मेरा और उनका संवाद हो पाता था। लेकिन पिछले 2 सालों में मेरे सामने वामपंथ का जो रूप आया उसने मुझे पूरी तरह से हिलाकर रख दिया।

आप कहते हैं भारत में सवर्णों ने दलितों पर अत्याचार किए, क्या आपने वह इतिहास नहीं पढ़ा है जिसमें सामान्य वर्ग के जो लोग इस्लाम स्वीकार नहीं करते थे उनसे मुगल शासकों द्वारा मैला उठवाया जाता था। क्या आपने वह इतिहास नहीं पढ़ा है जिसमें वे लोग सहनशीलता की पराकाष्ठा का प्रदर्शन करते हुए अपना शीलभंग तक करवा लेते थे। मैं मानता हूं कि कुछ तथाकथित सनातनी पूजा पद्धति को मानने वालों ने ऐसे लोगों को खुद से दूर कर दिया, उन्हें मंदिरों में नहीं जाने दिया लेकिन साहब आप उस दौर का वह इतिहास क्यों भूल जाते हैं, जब मेरे कुल के बड़े, विनायक दामोदर सावरकर ने तथाकथित सवर्ण होते हुए भी ‘अपनों’ के विरोध में अछूत माने जाने वाले वर्ग को मंदिर में प्रवेश दिलवाया था। और यह सब उन्होंने उसी उद्देश्य के साथ किया था जिस उद्देश्य के साथ आज मैं यह पत्र लिख रहा हूं।

आप अपने नाम के आगे ‘सवर्ण सूचक शब्द’ इसलिए लगाते हैं ताकि जब दलित उद्धार के नाम पर कोई आग भड़के तो उस आग में घी डालते हुए आप जता सकें कि देखो, हम सवर्ण होते हुए भी दलितों के साथ खड़े है… आप ऐसा इसलिए करते हैं ताकि जो वामपंथ पूरी दुनिया से शून्य के स्तर तक पहुंचता जा रहा है उसे दलितों के सहारे समाज में प्रतिस्थापित कर सकें। आप संघ को गालियां देते हैं, मैं संघ को बहुत करीब से जानता हूं और पूरी जिम्मेदारी के साथ कहता हूं कि संघ की मूल विचारधारा में कहीं कोई बुराई नहीं है। और बुराई होगी भी कैसे, जिस संगठन के एक-एक सिद्धान्त पर लोगों ने बिना किसी स्वार्थ के अपना जीवन खपा दिया उसमें बुराई की संभावना तो नगण्य हो जाती है। मैं जिस संगठन से आता हूं वहां ना ही किसी की जाति पूछी जाती है और ना ही जाति के आधार पर किसी को सम्मान दिया जाता है। लेकिन जब आपसे संघ की बात करो तो आप बजरंग दल, साध्वी प्राची और बीजेपी पर आ जाते हैं।

अरे, संघ की मूल विचारधारा पर बात करिए ना। वामपंथ के नाम पर पूरे देश में गिने-चुने लोग बचे हैं फिर भी आपके समर्थक ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ एवं ‘भारत मुर्दाबाद’ के नारे लगाते हैं और उनके मामले पर आप कह देते हैं कि किस-किस को नियंत्रण में रखें? अरे साहब, आप चार लफंगों पर नियंत्रण नहीं रख सकते और उम्मीद करते हैं कि संघ की शाखा में कभी-कभार गए लोगों पर विश्न का सबसे बड़ा गैर राजनीतिक संगठन पूर्ण नियंत्रण रखें। अरे! आपके पूरे देश में आपके जितने कार्यकर्ता हैं उससे कहीं अधिक संघ के स्वयंसेवक अपना अलग संगठन बनाकर दुनिया भर में बिना किसी स्वार्थ के काम कर रहे हैं। प्राथमिक शिक्षा वर्ग के दौरान मेरे प्रांत प्रचारक ने अपने वक्तव्य के दौरान कहा था कि हम संघ के स्वयंसेवक हैं, ऐसा व्यवहार में आना चाहिए… मैंने उसे माना और वापस आने के बाद जब 11वीं की परीक्षा के दौरान रजिस्ट्रेशन फॉर्म भरा तो अपना जातिसूचक शब्द हटा दिया… वर्तमान जातिव्यवस्था को खत्म करने के लिए मैंने स्वयं से शुरुआत की… और यही कारण है कि जब आपसे बात करता हूं तो आप तर्कहीन हो जाते हैं… इसके विपरीत एक बार अपने बारे में सोचिए, आप तो पहला सवाल ही यही करते हैं कि ‘कौन जात हो?’ हद हो गई यार, लेकिन अब यह नहीं चलेगा कि तुम खेलो तो गोल्फ और हम खेलें तो कंचा।

मैं अगर जाति व्यवस्था की मूल अवधारणा आपको समझाने की कोशिश करता हूं तो आप कहते हैं कि तुम जातिवाद के समर्थक हो, तुम्हें अपने सवर्ण होने पर गर्व है, तुम्हारे इसी गर्व के कारण दलित पिछड़ गए हैं। अरे भइया, मैं जातिवाद का समर्थक नहीं हूं, मैं मानता हूं कि वर्तमान जाति व्यवस्था हमारे लिए सबसे बड़ी समस्या है। लेकिन उसके मूल रूप को नकार देना मेरे बस में नहीं क्योंकि मैं उसका अध्ययन कर रहा हूं। जिसे आज आप सवर्ण कहते हैं, मैं उसका हिस्सा नहीं हूं। ‘मैं श्रेष्ठ हूं’, ऐसा मानना गलत नहीं है लेकिन सिर्फ मैं ही श्रेष्ठ हूं यह कहना और मानना पूर्णतया गलत है। स्वयं को श्रेष्ठ मानने और श्रेष्ठ होने में कोई बुराई नहीं है… मैं चाहता हूं कि सभी श्रेष्ठ हों और स्वयं को श्रेष्ठ मानें। आखिर जो हैं उसे मानने में क्या बुराई है? बशर्ते पहले सभी श्रेष्ठ हों तो… और इसमें हम सबकी जिम्मेदारी है कि श्रेष्ठ बनें और दूसरों को श्रेष्ठ बनाने का प्रयास करें, हम तो उस परंपरा के लोग हैं जो ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्’ में विश्वास रखते हैं। यानि सिर्फ मैं ही नहीं, सम्पूर्ण विश्व श्रेष्ठ बने। अब अगर आपको श्रेष्ठ बनने में भी बुराई नजर आती है तो यह आपका दृष्टिदोष है और इसके लिए आपको किसी चिकित्सक के पास जाने की जरूरत नहीं है क्योंकि इसका इलाज कोई चिकित्सक कर ही नहीं सकता।

बांटने की राजनीति तो आपकी विचारधारा के कारण आपके व्यवहार में व्याप्त हो गई है। आपको सीधी सी बात समझाने की कोशिश करो कि कर्म के आधार पर जाति व्यवस्था का निर्धारण किया गया था तो आप कहते हो कि ब्राह्मण को मुख से और शूद्र को पैर से क्यों निकला हुआ बताया। अरे पैर कौन सी खराब चीज है, मैं जिस परंपरा से आता हूं उसमें अगर हनुमान अपने बाल्य काल में सूर्य के अहंकार को तोड़ने के लिए अपना मुख बड़ा करके भानु को अपने मुख तो रख लेते हैं तो वहीं राजा बली के भक्ति भाव से परिपूर्ण अहंकार को तोड़ने के लिए वामन रूप में उस ईश्वर स्वरूप को अपने पैरों का उपयोग ही करना पड़ता है।

मैं साफ-सफाई करने को जब एक सामान्य कर्म बताता हूं तो आप कहते हैं कि वह कोई बड़ी बात नहीं। वास्तव में यह कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि मैं जिस संगठन से आता हूं उसके प्रशिक्षण वर्ग में ‘श्रम साधना’ नाम का एक कालांश होता है, उसमें हमें हर दिन मैदान से लेकर टॉइलट्स तक साफ करना होता है। वहां ऐसा नहीं होता कि आपका व्यक्तिगत टॉइलट आपको साफ कराना है। उस वर्ग में प्रत्येक ‘जाति’ के लोग होते हैं और हमें उस काम को करने में कोई शर्म नहीं आती क्योंकि यह तो एक सामान्य कर्म है।

आपके लिए मनुस्मृति कुत्सित मानसिकता से लिखी गई एक पुस्तक मात्र हो सकती है, लेकिन अगर आप ऐसा कहते हैं तो उसका कोई तर्क तो होगा, कोई आधार तो होगा। मैंने जितना पढ़ा है उतने में कोई बुराई नहीं दिखी अगर आपको दिख रही है तो कृपया हमें भी बताइए। और अगर है भी तो उसे इग्नोर करके सिर्फ अच्छी बातों को मानने में क्या बुराई है? आपकी विचारधारा में एक सीमा तक अच्छाइयां हैं, हम तो उनको स्वीकार करने के लिए तैयार बैठे हैं। लेकिन आप ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि आप दुनिया भर की संस्कृतियों के भारतीय संस्कृति से उत्कृष्ट होने के पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं। आपसे जब संवाद करने की कोशिश की जाती है तो आप हम दोनों की विचारधाराओं को विपरीत छोर का मान लेते हैं। अरे साहब! राजनीति छोड़िए… और राष्ट्रनीति की बात करिए… एक राष्ट्र जहां सब एक हों… सबकी एक विशिष्ट पहचान हो… जहां कोई भेदभाव न हो…खुद को बदलिए… तब बदलेगी व्यवस्था… कुछ न करिए तो कम से कम संवाद क्षमता तो रखिए।

बरखा जी! आप पहले भारतीय हैं या पत्रकार?

बरखा दत्त

बरखा दत्त के नाम खुला पत्र

विश्व गौरव

बरखा जी नमस्ते,
आशा है राष्ट्रवाद और निष्पक्षता की बहस को नए आयाम देने के लिए आपका अध्ययन जारी होगा। मैडम, हाल ही में आपके द्वारा की गई फेसबुक पोस्ट को पढ़ा। उसे पढ़कर मन में एक सवाल उठा कि आप और आपके कुनबे के लोग पहले भारतीय हैं या पत्रकार? आपको शर्म आती है क्योंकि एक पत्रकार स्वयं को पहले भारतीय कहता है। लेकिन आपको पता है, मुझे गर्व होता है कि मैं उस पेशे से जुड़ा हूं जहां ऐसे लोग हैं जो राष्ट्र को सर्वोपरि मानते हैं। मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा गया है और वह लोकतंत्र, भारत का लोकतंत्र है। आखिर क्यों हम ‘भारतीय पत्रकार’ नहीं हो सकते?

मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि हाफिज सईद जैसा कोई आतंकवादी आपको जानता है। आप बड़ी पत्रकार हैं, स्वाभाविक है कि सभी तरह के लोग आपको जानते होंगे। अब आप अपने पीएम साहब को ही ले लीजिए, उनको भी तो हाफिज सईद जानता है। इसमें इतना हो-हल्ला मचाने वाली क्या बात है। मोहतरमा, समस्या यह नहीं है कि आपको हाफिज सईद जानता है। समस्या यह है कि वह कहता है, ‘भारत में एक तबका ऐसा है जो पाकिस्तान के खिलाफ जहर उगलता है, लेकिन वहां बरखा दत्त जैसे अच्छे लोग भी शामिल हैं। कांग्रेस में भी अच्छे लोग हैं जिन्होंने कहा है कि पाकिस्तान पर इल्जाम लगाने की जगह अपने अंदर झांककर देखना चाहिए।’ मुझे पता है आप भी उससे उतनी ही नफरत करती हैं जितनी मैं करता हूं लेकिन अगर आपको वह ‘अच्छा’ समझता है तो जाहिर है उसको आपसे कुछ तो सकारात्मक ऊर्जा मिलती ही होगी। आपके ‘कर्मों’ से वह एक सीमा तक आपको स्वयं के करीब पाता होगा। तो अब अगर एक आतंकवादी, जिसे आप जेल में देखना चाहती हैं, वह अगर आपको अपने नजरिए से अच्छा कहता है तो क्या आपको अपने ‘कर्मों’ पर चिंतन नहीं करना चाहिए?

आपको समस्या इस बात से है कि एक पत्रकार, सरकार को उपदेश देता है कि मीडिया के कुछ धड़ों को बंद कर देना चाहिए। तो महोदया, क्या बुराई है इसमें? क्या जब कोई नेता कुछ गलत और असंवैधानिक काम करता है तो अन्य नेता उसके विरोध में आ ही जाते हैं। हालांकि तब भी नेताओं का एक छोटा सा वर्ग गलत का समर्थन करता है क्योंकि वह स्वयं गलत होता है और उसे पता होता है कि अगर वह चुप रहा और उसके ‘साथी’ के साथ कुछ हुआ तो उसका निपटना भी तय है। और वैसे ही आपके साथ, आपके समर्थन में, आपकी ‘कैटिगरी’ के लोगों का आना स्वाभाविक है। आप और आपके साथी कश्मीर में जनमत संग्रह की बात करते हैं ना? तो एक बार अपने विचारों पर भी जनमत संग्रह करा लीजिए। मुझे पता है कि आप लोग ऐसा नहीं करा सकते क्योंकि हर रोज अपने ट्वीट्स, फेसबुक पोस्ट्स इत्यादि पर आपको जिस तरह से आम जनता गाली देती है, उससे आपको अंदाजा हो गया है कि देश क्या चाहता है।

अब जब आपको यह पता है कि देश आपको नकार चुका है तो फिर क्यों वैश्विकता और समानता के नाम पर भारत विरोध का झुनझुना लेकर घूमते रहते हैं? और जब आप लोगों से इन सारे विषयों पर बात करो तो आप लोग कहते हो कि मोदी, पाकिस्तान से नजदीकियां क्यों बढ़ा रहे हैं? मुझे भी एनडीए सरकार आने के बाद ये चीजें नहीं भा रही थीं और मेरी पीड़ा भी आपसे ज्यादा बड़ी थी क्योंकि मोदी को प्रधानमंत्री बनाने में मेरी भी ऊर्जा लगी थी। लेकिन जब शांत मन से इस विषय पर सोचा तो सरकार जो कर रही है, उससे ज्यादा बेहतर कोई अन्य रास्ता नहीं दिखा। और अगर इससे बेहतर रास्ता आपके पास है तो दीजिए… मैं, आप और हम सब एक नए विकल्प के तौर पर सरकार के सामने आपके उस ‘रास्ते’ को रखेंगे। लेकिन आप रास्ता देंगे कहां से, आपको तो सिर्फ सरकार पर उंगली उठाना आता है और अगर आप लोग कोई रास्ता देते हैं तो वह ऐसा लगता है जैसे कोई भारतीय नहीं बल्कि एक आतंकवाद समर्थक अलगाववादी बोल रहा हो।

मोहतरमा, अरनब ने तो आपका नाम कभी नहीं लिया, लेकिन उन्होंने जिन ‘ऐंटी नैशनलिस्ट जर्नलिस्ट्स’ की बात की थी, आप और आपके साथी खुद उस कैटिगरी में जाकर खड़े हो गए। बार-बार के झंझट से बचने के लिए मैं, आप और आपके समर्थकों के लिए सिर्फ 4 सवाल छोड़ रहा हूं। अगर आपकी संवाद क्षमता शून्य के स्तर तक न पहुंची हो तो सिर्फ इनका विस्तृत जवाब दे दीजिए और बाकी देश पर छोड़ दीजिए, देश स्वयं आपका और आपकी विचारधारा का स्तर तय कर लेगा।

1. कश्मीर पर देश के प्रधान को क्या करना चाहिए?
2. पाकिस्तान पर देश की सरकार को क्या करना चाहिए?
3. आप निष्पक्ष हैं या तटस्थ?
4.आप पत्रकार पहले हैं या भारतीय?

सरकार की नीतियों पर उंगली उठाना बहुत आसान होता है और आप लोग तो विरोध के डीएनए से ही जन्मे हो लेकिन इन सबके बीच काम करना उतना ही मुश्किल हो जाता है। मैं यह नहीं कह रहा कि मोदी सरकार सब कुछ अच्छा कर रही है लेकिन इतना तो कह सकता हूं कि पूर्व की तुलना में बहुत कुछ अच्छा हो रहा है। और जो नहीं हो रहा है उसे करवाने का काम एक जिम्मेदार व्यक्ति होने के नाते मेरा और आपका है। लेकिन इसके लिए लानी होगी सकारात्मक सोच, जिसका आधार भारतीयता हो। मेरे सिर्फ चार सवाल हैं, और जो व्यक्ति पूरी जिम्मेदारी के साथ कह सकता हो कि वह आपके कुनबे का वैचारिक प्रतिनिधित्व करता है… आए और इन सवालों के जवाब दे…

(विश्व गौरव को ट्विटर पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें। https://twitter.com/vishvagaurav)

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