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भारत-पाकिस्तान युद्ध के परिणामों पर पुण्य प्रसून का लेख

पुण्य प्रसून बाजपेयी

आतंकवाद और पाकिस्तान को लेकर संयुक्त राष्ट्र में सुषमा स्वराज ने कुछ झूठ नही कहा और इसे दुनिया भी मानती है कि हर आतंक का कोई ना कोई सिरा पाकिस्तान तक पहुंच ही जाता है। लेकिन जो खतरा पाकिस्तान को लेकर है, वह आतंक से कही आगे आंतक के रास्ते एशिया को युद्द में झोंकने वाला भी है। क्योंकि पाकिस्तान के दो सवाल दुनिया को हमेशा डराते हैं। पहला पाकिस्तान के परमाणु हथियार कहीं कट्टरपंथियों-आतंकवादियों के हाथ ना पहुंच जाए। दूसरा पाकिस्तान का पॉवर बैलेंस जरा भी डगमगाया तो दुनिया का कोई दबाब युद्द को रोक नहीं पायेगा। क्योंकि पाकिस्तान के भीतर के हालातो को समझे तो संयुक्त राष्ट्र का डिसआर्मामेंट अफेयर के सामने भी पाकिस्तान का चैक बैलेंस उसके कहे अनुसार नहीं चलता। पाकिस्तान में चुनी हुई सत्ता पर सेना भारी पड़ती है। और आईएसआई का झुकाव जिस दिशा में होता है वह उस दौर में ताकतवर हो जाता है। यानी सत्ता पलट तभी हुआ जब सेना के साथ आईएसआई खडी हो गई ।

और फिलहाल कश्मीर के मुद्दे ने पाकिस्तान की सत्ता के हर ध्रुव को एक साथ ला खड़ा किया है। ऐसे में हर की भूमिका एक सरीखी है । और आईएसआई जिस जेहादी काउंसिल के जरीये कश्मीर मुद्दे पर अपनी ताकत हमेशा बढ़ाकर रखती है । उस जेहाद काउंसिल के 13 आतंकी संगठनों में तीन प्रमुख प्लेयर लश्कर, जैश और हिजबुल का कद भी इस दौर में बढ़ा है क्योंकि एक तरफ तीनों का दखल कश्मीर में बढा है तो दूसरी तरफ लश्कर के संबंध अलकायदा से तो जैश के संबंध तालिबान से और हिजबुल के संबंध आईएस के साथ है। यानी अंतराष्ट्रीय आतंकवाद का जो चेहरा अफगानिस्तान, सीरिया, इराक से होते हुये दुनिया को डरा रहा है, उसका सिरा भी कही ना कही पाकिस्तान की जमीन से जुडा है । और असल सवाल यही हैकि अगर पाकिस्तान की दिखायी देने वाली सत्ता जो फिलहाल राहिल शरीफ और नवाज शरीफ में सिमटी है अगर वह संयम बरत भी लें और हालात सुधारने की दिशा में कदम बढा भी लें तो क्या कश्मीर कौ लेकर मौजूदा वक्त में तमाम आतंकवादी संगठन क्या करेंगे। क्योंकि भारत पाकिस्तान के संबंध जिस उबाल पर है । उसमें पहली बार आंतकवादी संगठन कानूनी सत्ता के विशेषाधिकार को पाकिस्तान में भोग रहे है । क्योकि पाकिस्तान की चुनी हुई सत्ता हो या सेना दोनो के लिये आतंकी संगठन फिलहाल हथियार भी है और ढाल भी । और संयुक्त राष्ट्र में उठे सवालों ने आतंक और पाकिस्तान के बीच की लकीर भी मिटा दी है ।

तो सबसे बड़ा खतरा यही है कि एक वक्त के बाद अगर युद्द आंतकवाद के लिये जरुरी हथियार बन जाये तो पाकिस्तान में परमाणु हथियारो को कौन कैसे संभालेगा । क्योकि पाकिस्तान के परमाणु हथियार कराची के पैराडाइड पाउंट और पंजाब प्रौविंस के चश्मा में है। जहा पाकिस्तान के जेहादी और आंतकी संगठनों के हेडक्वाटर भी है । तो नया सवाल ये भी है कि एशिया में सार्क की भूमिका भी अगर खत्म हो गई तो सबसे ज्यादा लाभ आंतकवाद को ही होगा । क्योकि सार्क देसो की पहली बैठक 1985 में जब ढाका में 7-8 दिसबंर को हुई तो सार्क के एजेंडे में आतंकवाद और ड्रग ट्रैफिकिंग ही थी । और करगिल के वक्त जब सार्क पर पहला बडा ब्रेक लगा था तो यही सवाल उठा था कि पाकिस्तान आतंकवाद को प्रश्रय क्यों दे रहा है। तो याद कीजिये 1999 में पाकिस्तान में सत्ता पलट और फिर करगिल से डिरेल सार्क सम्मेलन की बैठक जब 2002 में काठमांडू में शुरु हुई तो जनरल मुर्शरफ अपने भाषण के बाद नियम कायदों को छोडकर सीधे वाजपेयी जी के पास पहुंचे और हाथ मिलाकर गिले शिकवे मिटाने का मूक आग्रह कर दिया। और तब वाजपेयी ने भी कहा अब पडोसी तो बदल नहीं सकते। लेकिन इसके बाद की बैठक में वाजपेयी ने मुशर्ऱफ ही नहीं सार्क देशों को भी यही समझाया कि सार्क अगर अपनी उपयोगिता खो देगा या खत्म हो जायेगा तो उसी आंतकवाद को इसका लाभ होगा जिस आंतकवाद को खत्म करने के लिये सार्क देश जुटे है । लेकिन सार्क के 36 बरस के इतिहास में पहली बार सार्क देसो के सामने जब ये सवाल बड़ा हो रहा है कि वह आतंकवाद और पाकिस्तान के बीच लकीर कैसे खींचे। तो नया सवाल ये भी खड़ा होने लगा है कि क्या पाकिस्तान को पटरी पर लाने के सारे रास्ते बंद हो चुके है। य़ा फिर अलग थलग पड़ने के बाद ही पाकिस्तान पटरी पर आयेगा। जाहिर है दोनो हालात में मैसेज यही जाता है कि पाकिस्तान या तो आतंकी राज्य है या फिर आतंकवाद का दायरा पाकिस्तान से बड़ा हो चला है। तो आगे का रास्ता सार्क देशों को पाकिस्तान से अलग थलग कर आंतकवाद के खिलाफ एकजुट करने का है। या फिर आगे का रास्ता आतंकवाद के खिलाफ युद्द की मुनादी होगी। और ये दोनों हालात, क्षेत्रीय संबंधों में सुधार और व्यापार जैसे मुद्दों के लिए बनते माहौल को बिगाड देगा। और सार्क की 150 करोड की आबादी हमेशा आतंक के मुहाने पर बैठी दिखायी देगी।लेकिन सार्क के फेल होने से नया खतरा एशिया में ताकत संघर्ष की शुरुआत और नये गुटो के बनने का भी है। क्योंकि पाकिस्तान काफी पहेल से सार्क में चीन को शामिल करने की बात कहता रहा है। और सार्क के तमाम देश सार्क को भारत पाकिस्तान के बीच झगडे के मंच के तौर पर मानते रहे है। यानी नये हालात आतंक के सवाल पर सार्क की उपयोगिता पर ही सवालिया निशान तो लगा रहे है लेकिन ये हालात आंतक को मान्यता देते हुये एक ऐसे युद्द की मुनादी भी कर रहे है जिसमें विकास और गरीबी से लड़ने के सवाल बारुद की गंध और परमाणु युद्द की आंशाका तले दफ्न हो जायेंगे।

(लेखक के ब्लॉग से साभार)

लाइव इंडिया से अभिषेक पांडेय का इस्तीफा

पत्रकारों का लाइव इंडिया छोड़कर जाने का सिलसिला जारी है. इसी कड़ी में नया नाम अभिषेक पांडेय का भी है. उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. वे पिछले सात साल से चैनल के साथ जुड़े हुए थे और वर्तमान में लाइव इंडिया मुंबई के प्रिंसिपल कॉरस्पोंडेंट के तौर पर काम कर रहे थे.




खबर है कि अभिषेक पाण्डेय आइबीएन 7 में रेजिडेंट एडिटर के तौर पर ज्वाइन कर रहे संदीप सोनवलकर की टीम का हिस्सा बन सकते हैं । मुंबई में आतंकी हमला और पुणें-मुंबई के बम धमाकों को कवर करने के साथ साथ अभिषेक गुजरात विधानसभा, लोकसभा चुनावों पर भी देश के अलग अलग हिस्सों से रिपोर्टिॆग कर चुके हैं। अभिषेक को मुम्बई के तेज तर्रार पत्रकार के रूप में जाना जाता है। नयी पारी और उनके उज्जवल भविष्य के लिए मीडिया खबर की तरफ से ढ़ेरों शुभकामनाएं.

अमित शाह का नाम लेने से चैनल शरमा क्यों रहे हैं?

अमित शाह आजतक पर विज्ञापन की शक्ल में अब तक कौन पैसे उड़ाता आया है- आप या बीजेपी ?
अमित शाह आजतक पर विज्ञापन की शक्ल में अब तक कौन पैसे उड़ाता आया है- आप या बीजेपी ?

बी. के. बंसल आत्महत्या केस में सुसाइड नोट में एक जगह अमित शाह का भी नाम है लेकिन तमाम न्यूज़ चैनल अमित शाह का नाम लेने से परहेज कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर इसी को लेकर न्यूज़ चैनलों की खिंचाई शुरू हो गयी. पेश है चुनिंदा प्रतिक्रिया –

दिलीप मंडल – न्यूज चैनल तो अमित शाह का नाम लेते यू शरमा रहे हैं मानों वो उनके पति हों और संपादक उनकी पतिव्रता परंपरागत अनपढ़ ग्रामीण पत्नी। किसी चैनल ने यह नाम लिया क्या? इस केस से अमित शाह का कुछ नहीं बिगड़ेगा। नाम ले लो चैनलों।

प्रियभ रंजन

(1) DG (Corporate Affairs) रहे बी के बंसल के सुसाइड नोट में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का नाम है।
(2) Indian Corporate Law Service (ICLS) के अधिकारी रहे बंसल के सुसाइड नोट में CBI के DIG संजीव गौतम पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
खास बात ये है कि गौतम 1995 बैच के Indian Revenue Service के अधिकारी हैं और उन्हें अमित शाह का करीबी माना जाता है।
तभी शायद गौतम साहब ने बंसल पर धौंस जमाते हुए कहा कि “मैं अमित शाह का आदमी हूं। मेरा कोई क्या बिगाड़ेगा। तेरी Wife और Daughter का वह हाल करेंगे कि सुनने वाले भी कांप जाएंगे।”
(3) कोई न्यूज़ चैनल ये क्यों नहीं बता रहा कि बंसल के सुसाइड नोट में अमित शाह और संजीव गौतम का नाम है ?

शहीद भगत सिंह के जन्म दिन पर अरविंद केजरीवाल की बेशर्मी

संजय कुमार,पत्रकार




kejriwal-shahid-bhagtदिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में शहीद भगत सिंह के जन्म दिन के अवसर पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बेशर्मी की सारी हदें पार कर दी। शहीद उत्सव का आयोजन दिल्ली सरकार की ओर से किया गया था, लेकिन केजरीवाल और मंत्रिमंडल के सहयोगियों ने इसे एक राजनीतिक मंच बना दिया। समारोह के लिए पंजाब से शहीद भगत सिंह के परिवार के सदस्य अभय सिंह को भी बुलाया गया था। केजरीवाल के बगल में बैठे अभय सिंह जी ने कोई पगड़ी नहीं बांध रखी थी। जबकि केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, गोपाल राय पीले रंग की पगड़ी धारण कर इतराते नजर आए। शहीद भगत सिंह जी अपनी जिंदगी में हमेशा सफेद रंग की पगड़ी पहनते थे। समारोह में भाग लेने आए आम लोगों के लिए खाने-पीने का इंतजाम साधारण पैकेट वाला था, वो भी अपर्याप्त। जबकि वीआईपी के लिए लाखों रुपए खर्च कर भव्य पंडाल बनाया गया और नाना प्रकार के व्यंजन परोसे गए। भीड़ जुटाने के लिए सरकारी विज्ञापनों में पंजाबी गायक हरभजन मान का विशेष उल्लेख किया गया। गायक हरभजन मान ने केजरीवाल को युगपुरुष बताते हुए मंच से ही उनके पंजाब चुनाव जीतने का ऐलान कर दिया।

(पत्रकार संजय कुमार के फेसबुक वॉल से)




मिलिए ‘आतंकवादी’ राजदीप सरदेसाई से…!

संवाद अखबार में प्रकाशित राजदीप सरदेसाई की तस्वीर
संवाद अखबार में प्रकाशित राजदीप सरदेसाई की तस्वीर

ख़बरों की दुनिया बड़ी दिलचस्प है. एक गलत शीर्षक,शब्दों के हेर-फेर और गलत तस्वीर से खबर के मायने ही बदल जाते है और अच्छा भला आदमी भी शक के घेरे में आ जाता है. लेकिन जब खबरनवीस ही ख़बरों के जाल में उलझ जाए तो थोड़ा आश्चर्य होता है. ताजा उदाहरण प्रख्यात पत्रकार राजदीप सरदेसाई का है जिन्हें उडीसा के एक अखबार ने आतंकवादी घोषित कर दिया.

दरअसल मामला उडीसा के अखबार ‘संवाद’ में छपे एक आतंकवादी के स्केच से संबंधित है. ये स्केच हुबहू वरिष्ठ टीवी पत्रकार ‘राजदीप सरदेसाई’ की है. मजेदार बात है कि आतंकवादी के रूप में अपने स्केच की खोज भी खुद राजदीप सरदेसाई ने की और फिर उसे ट्विटर पर ट्वीट करते हुए लिखा –
@sardesairajdeep
Just saw a Odhiya newspaper Sambad puts up my sketch as a terror suspect based on RW Twitter gang mischief.If not war, these guys will kill!”

इस ट्वीट के बाद दूसरा ट्वीट राजदीप ने संवाद अखबार को भी किया जिसपर अखबार ने तुरंत माफ़ी मांगी –
Rajdeep Sardesai ✔ @sardesairajdeep
@sambad_odisha is this journalism? U should be ashamed to put up photo shopped pics as news

@sambad_odisha
@sardesairajdeep Sir, we sincerely apologise for this grave error on our part.

rajdeep-aajtak-terroristअखबार ने फिर अगले दिन पहले पन्ने पर राजदीप की तस्वीर छापकर माफ़ी मांगी. दरअसल ये स्कैच संवाद अखबार ने ट्विटर के जरिए ली थी जिसमें स्कैच को फोटोशॉप की मदद से बदलकर आतंकवादी की स्कैच की जगह राजदीप सरदेसाई की तस्वीर डाल दी गयी थी और अखबार वालों ने गैरजिम्मेदारी का परिचय देते हुए पत्रकार राजदीप को आतंकवादी राजदीप घोषित कर दिया. है ना दिलचस्प.

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