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इंडिया टीवी के ‘सबूत’ को मीडिया खबर का सलाम !

इंडिया टीवी पर सपूत की जगह सबूत
इंडिया टीवी पर सपूत की जगह सबूत

टीवी न्यूज़ स्क्रीन पर हमेशा कुछ – न – कुछ चलता रहता है. ख़बरें बदलती रहती हैं और पुरानी ख़बरों की जगह नई ख़बरें लेती है. बकौल आजतक के पूर्व न्यूज़ डायरेक्टर कमर वहीद नकवी के मुताबिक़ ख़बरें ख़बरों से लड़ती है और इस लड़ाई में एक खबर की मौत होती है. इसलिए ख़बरों को लेकर आपाधापी होती है. इस आपाधापी और भागमभाग के बीच टिकर और स्क्रॉल पर बैठने वालों को बेहद सजग रहना पड़ता है. ध्यान जरा बंटा, कीबोर्ड पर कोई गलत शब्द दबा नहीं कि सीधे स्क्रीन पर फ्लैश हो जाएगा और गालियाँ पड़नी शुरू.

लेकिन तमाम सावधानियों के बावजूद गलतियाँ होती रहती हैं और सोशल मीडिया पर इसका मजाक भी बनता रहता है. ऐसी ही एक गलती आज इंडिया टीवी से हुई जब उसने ‘सपूत’ की जगह ‘सबूत’ लिख दिया और मीडिया खबर के एक जागरूक पाठक ने तुरंत इसकी तस्वीर खींचकर हमें व्हाट्सअप के जरिए भेज दी.आप भी देखिये और आनंद लीजिए. हालाँकि इसे तुरंत ही ठीक भी कर लिया गया. उस लिहाज से ये अच्छी बात है कि संपादक सजग हैं और होना भी चाहिए क्योंकि दर्शकों की नज़र आप पर है. (दर्शक की नज़र से)

इंडिया टीवी पर सपूत की जगह सबूत
इंडिया टीवी पर सपूत की जगह सबूत

Zee News के सुधीर चौधरी पर ABP News का Viral Strike और फिर माफीनामा

सुधीर चौधरी की खबर प्र एबीपी की पड़ताल
सुधीर चौधरी की खबर प्र एबीपी की पड़ताल

एबीपी न्यूज़ के पुराने वीडियो पर वरिष्ठ पत्रकार एस.एन.विनोद ने आज एक टिप्पणी की है और सुधीर चौधरी के बारे में सख्त बातें कहीं. लेकिन उन्हें शायद ये नहीं पता कि इस पुराने वीडियो फूटेज पर एबीपी न्यूज़ माफीनामा भी चला चुका है. यहाँ पर हम दोनों वीडियो लगा रहे हैं ताकि स्थिति स्पष्ट हो और भ्रम दूर हो.

एस.एन.विनोद,वरिष्ठ पत्रकार

सुधीर चौधरी की खबर प्र एबीपी की पड़ताल
सुधीर चौधरी की खबर प्र एबीपी की पड़ताल

अगर ABP का ये ‘वायरल सच’ और Zee पर सुधीर चौधरी द्वारा दी जा रही खबर की वीडियो सही है, तब सुधीर को तत्काल गिरफ्तार कर लेना चाहिए।सुधीर ने ना केवल प्रधानमंत्री की माँ को लेकर गलत खबर से पूरे देश को गुमराह किया बल्कि, खबर को सच बताने के लिए देश के प्रधानमंत्री से बातचीत का हवाला दिया।कहा कि स्वयं प्रधानमंत्री ने उन्हें ये जानकारी दी।ये न केवल मीडिया की विश्वसनीयता को तार-तार करने वाली घटना है, बल्कि प्रधानमंत्री के नाम के दुरूपयोग का अपराध भी।फिर दुहरा दूँ, अगर ये वीडियो सच है तो सुधीर के खिलाफ तत्काल आपराधिक कार्रवाई हो !

फेसबुक पर डाली गयी इस पोस्ट पर सवाल उठाते हुए Arvind Khokhar ने लिखा – “सर इस वीडियो में अगर सुधीर चौधरी झूट बोल रहे होते तो प्रधानमन्त्री कार्यालय इसका खण्डन कर् चुका होता, जंहा तक बात abp न्यूज़ की है तो वो इस सम्बन्ध में मोदी के भाई जिनके साथ मोदी की माँ रहती है से बात कर सब साफ करदेते साथ ही मोदी की माँ की तरह दिखने वाली औरत को भी सामने ला देते उनकी बिमारियों सहित ।”

इसपर एस.एन विनोद का जवाब – “तो फिर सुधीर चौधरी को ABP के खिलाफ मामला दर्ज़ करवाना चाहिए।”

एबीपी न्यूज़ का वायरल सच –

एबीपी न्यूज़ का माफीनामा-

राष्ट्रभक्ति में सुधीर चौधरी का ओवरटाइम

सुधीर चौधरी, एंकर, डीएनए
सुधीर चौधरी, एंकर, डीएनए
सुधीर चौधरी, एंकर, डीएनए
सुधीर चौधरी, एंकर, डीएनए

बदनाम हुए तो क्या, नाम तो हुआ. ज़ी न्यूज़ के संपादक सुधीर चौधरी की जिंदगी का यही फलसफा है और दुनियादारी की नज़र से देखिये तो वे अपने फलसफे में कामयाब भी हैं. यदि जनाब कामयाब ना होते तो उमा खुराना फर्जी स्टिंग प्रकरण और सौ करोड़ उगाही मामले में जेल जाने के बाद भी आज न्यूज़रूम में बैठकर ज्ञान नहीं बांच रहे होते. हर किसी का डीएनए नहीं कर रहे होते.

बहरहाल सुधीर चौधरी टेलेंटेड आदमी तो है ही. मौके पर चौका मारना भी बखूबी जानते हैं. इसलिए जब उन्हें मौका मिला और ख़बरों की दलाली के आरोप में जेल यात्रा कर वापस लौटे तो पहचान और दाग-धब्बों को मिटाने के लिए सजग और सक्रिय हुए और यूँ ज़ी न्यूज़ पर ‘डीएनए’ की उत्त्पति हुई.




‘डीएनए’ की बेहतर पैकेजिंग और सुधीर चौधरी की बेहतरीन प्रस्तुति ने जल्द ही इसे चोटी के कार्यक्रमों की श्रेणी में ला खड़ा किया.लेकिन इसके बाद इसमें सुधीर ने एजेंडा सेटिंग का काम शुरू कर दिया. इसके जरिए विरोधियों पर व्यंग्यवाण छोड़े जाने लगे. विरोधी तो विरोधी पत्रकारों को भी निशाने पर लिया जाने लगा. सुधीर ने डिजायनर पत्रकार, अफजल प्रेमी गैंग के पत्रकार जैसे शब्द गढे और अपने दर्शकों के बीच उसको फैलाया. जेएनयू देशद्रोह मामले में भी यही रवैया रहा. अब सर्जिकल स्ट्राइक मामले में भी सुधीर चौधरी अपने कार्यक्रम डीएनए के माध्यम से यही काम पूरे जोर – शोर से कर रहे हैं.

हाफिज सईद को चुनौती दे रहे हैं. पाकिस्तान के मुद्दे पर केजरीवाल और डिजायनर पत्रकारों को घेर रहे हैं और इस सब के मध्य ख़बरों के बीच कुछ ऐसे घिर गए हैं कि पत्रकारिता का ओवरटाइम भी कर रहे हैं और ये बात हम मजाक में नहीं कह रहे. दरअसल आज (3 सितंबर) सुधीर चौधरी ने वाकई में डीएनए में ये कहते हुए ओवरटाइम किया कि अभी ढ़ेरों ख़बरें हैं इसलिए 10.30 के बाद भी डीएनए जारी रहेगा. तो हो गया न राष्ट्रभक्ति में सुधीर चौधरी का ओवरटाइम.

इसी ओवर टाइम पर सोशल मीडिया पर एक डीएनए के प्रशंसक दर्शक लिखते हैं –

राष्ट्रभक्ति में आज ओवरटाइम।10.30 बजे के बाद भी DNA चालू।उम्मीद है कि आज ही निपट जाएगा पाकिस्तान।




चैनल में बैठ जाने भर से देशभक्ति नहीं आ जाती

दिलीप मंडल

india-tv-baramula-attackगला फाड़कर लोगों को देशभक्ति सिखाने वाले बड़बोले चैनलों से कोई पूछे कि जब सेना और बीएसएफ के जवान बारामूला कैंप पर आतंकवादी हमले का जवाब दे रहे थे तो आपने वीडियो कैमरे की लाइटें क़्यों जलाई थी।

कारगिल युद्ध के समय एक महान एंकर की ऐसी ही बेवक़ूफ़ी के कारण जो हुआ था, क्या इसके बारे में वे नहीं जानते।

मुंबई टेरर अटैक ये चैनल लाइव दिखा रहे थे और ताज होटल के अंदर मौजूद आतंकवादी सुरक्षा बलों की मूवमेंट टीवी पर देख पा रहे थे।

चैनल में बैठ जाने भर से देशभक्ति नहीं आ जाती। अकल तो क़तई नहीं आती।

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सोनी टीवी का प्रोमो, प्रेम के बहाने अपराध की तरफ धकेल रहा है

सोनी टीवी का प्रोमो, प्रेम के बहाने अपराध की तरफ धकेल रहा है
सोनी टीवी का प्रोमो, प्रेम के बहाने अपराध की तरफ धकेल रहा है

सोनी टीवी का प्रोमो, प्रेम के बहाने अपराध की तरफ धकेल रहा है
सोनी टीवी का प्रोमो, प्रेम के बहाने अपराध की तरफ धकेल रहा है
हममें से अधिकांश की जिंदगी में एक फेहरिस्त शामिल है जिसमे बारी-बारी से “नो” लिखा है. कुछ नो आपने-हमने कहा है वो और कुछ हममें कहा गया वो. हम इन दोनों तरह की नो को अपने साथ लेकर जीते हैं. कई बार अजीबोगरीब स्थिति हो जाती है. एक ही शहर, एक प्रेस कॉन्फ्रेंस, एक ही बुक लांच, एक ही सेमिनार और चाय-कॉफी के लिए एक ही मेज के आगे. हममें से ज्यादातर लोग हिचकते हैं जब एक ही फ्लेवर की टीबैग पर साथ हाथ चले जाते हैं लेकिन अगले ही पल थैंक्यू, एक्सक्यूज मी, मोस्ट वेलकम से साथ सहज होने की कोशिश करते हैं और वापस अपनी-अपनी दुनिया में घुल जाते हैं. फर्ज कीजिए कि हम एक-दूसरे की ना को लेकर हिंसक होने लग जाएं तो ? क्या हमारी ये हिंसा प्रेम की चौखट लांघकर दूसरी दुनिया पर असर नहीं डालेगी ? और फिर ये कब अपराध और सजा की दीवारों से जाकर लग जाएगी, इसका अंदाजा कहां हो पाता है ?



पिछले दिनों पिंक फिल्म आने के बाद इस नो का बहुत जोर देखकर इस्तेमाल हुआ. “नो मतलब नो” अपने आप में इतनी दमदार लाइन थी इस फिल्म में कि बिना पूरी फिल्म देखे इसके बूते आसानी से समझा जा सकता था कि आखिर फिल्म हमें बताना क्या चाहती है ? अब देख रहा हूं कि जिन चैनलों में अलग-अलग शक्ल में इस एक लाइन की जितनी चर्चा हुई, अब उन्हीं चैनलों पर दूसरी लाइन बैक टू बैक आ रही है- ” प्यार तभी तक करो, जब तक कि तुम कंट्रोल कर सको..जब प्यार तुम्हें कंट्रोल करने लग जाए तो उसे बर्बाद कर दो.”
बेहद( 11 अक्टूबर से सोनी चैनल पर प्रसारित ) इस प्रोमो की तरफ हमारा ध्यान दिलाते हुए मुकेशजी( Mukesh Burnwal) ने ठीक ही लिखा कि – ऐसी पंक्तियां दिल्ली के बुराडी चौक पर हाल ही में हुई घटना को शह देने का काम नहीं करती तो और क्या करती है ? हमें ज्ञात है कि एकतरफा प्यार में पड़कर एक शख्स ने किस बेरहमी से एक स्कूली शिक्षक की चाकू से दर्जनों वार करके हत्या कर दी. मतलब आप प्यार न पा सको, कंट्रोल न कर सको तो उसकी हत्या कर दो, बर्बाद कर दो.

हिन्दी की दुनिया कईयों के लिए उपहास की दुनिया हो सकती है और इसकी अपनी वजहें भी है. बावजूद इसके आचार्य रामचंद्र शुक्ल के लेख ” लोभ और प्रीति” का ध्यान सहसा हो आता है. हम जिससे प्रेम करते हैं, जिससे हमारी प्रीति है, हम चाहते हैं कि वो वस्तु या व्यक्ति जहां भी रहे, जिसके पास भी रहे, सुरक्षित रहे. लोभ की स्थिति में हम चाहते हैं कि वो तो मेरे पास रहे या नष्ट हो जाए.

एक प्रेम की आदर्श स्थिति तो सच में यही है कि वो जहां भी रहे, हम इस कामना और उससे भी कहीं ज्यादा उस लोकतांत्रिक समझ के साथ जीते रहे हैं कि हमें नुकसान नहीं करना है. किसी भी हाल में हिंसक नहीं होना है.



चैनल वी, यूटीवी बिंदास जैसे चैनलों पर जब भी मैं रिलेशनशिप में लॉएल्टी टेस्ट पर जुड़े कार्यक्रम देखता हूं और बदले की भावना से धधकते पूर्वप्रेमियों के बारे में सोचता हूं तो दिमाग में एक ही ख्याल आता है- आखिर ऐसा क्या है कि एक प्रेमी जोड़े को आपस के भरोसे के लिए टीवी जैसी एक तीसरी एजेंसी की जरूरत पड़ जाती है ? ब्रेकअप की घोषणा वो लव गुरु या डॉ. लव के बहाने रेडियो के अलावा कहीं और नहीं कर सकते ? एक पार्टनर अपने पार्टनर के प्रति भरोसेमंद नहीं है, ये भी क्या स्टिंग करने की चीज है या फिर इसकी जरूरत होती है ? उसके हाव-भाव, भाषा, अभिव्यक्ति ये सब खुद व्यक्त नहीं करते और नहीं करते तो बर्बाद कर देने की घोषणा ?
प्रेम व्यक्तिगत होते हुए भी उसकी लोकतांत्रिकता सामाजिक होती है. उसका सीधा असर समाज के बाकी लोगों पर पड़ता है. अभी हमें नहीं पता कि बेहद सीरियल की क्या कहानी है लेकिन इस तरह के प्रोमो सीधे तौर पर ये संदेश देते हैं कि प्रेम में बदला लेना कहीं से गलत नहीं है. फर्क सिर्फ इतना है कि इसे स्त्री चरित्र के माध्यम से कहलवाया गया है तो स्त्री-सशक्तिकरण का भ्रम हो जाए लेकिन क्या इसका असर इसी रूप में सीमित रहेगा ?

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