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DNA वाले सर का हिंदी प्रेम !

sudhir-hindiकुछ सालों से हिंदी दिवस आते ही हिंदी प्रेम का फैशन चल पड़ा है. इस हिंदी प्रेम में अंग्रेजी नाम वाले हिंदी चैनल और उनके संपादक और मालिक भी जोर -शोर से हिस्सा लेते है. इस बार तो ज़ी न्यूज़ के मालिक सुभाष चंद्रा को साहित्य अकादमी ने हिदी का विद्वान बनाकर ही हिंदी दिवस पर हुए पैनल में मुख्य वक्ता के रूप में उतार दिया जिसका अकादमिक और हिंदी की दुनिया में विरोध भी हुआ. हां ये जरूर हैं कि ये विरोध एक खास वर्ग द्वारा किया गया.


sudhir-eng-tweet-hindiबहरहाल बॉस जब हिंदी को लेकर इतने सजग हैं तो संपादक कैसे पीछे रह सकते थे सो जी न्यूज़ के संपादक सुधीर चौधरी ने हिंदी को लेकर अपना कर्तव्य निभाया और दनानद ट्वीट कर दिए. लेकिन ये क्या हिंदी के उत्थान के लिए अंग्रेज़ी में ट्वीट किया, ट्वीट में हिंदी में बातचीत पर जोर दिया और DNA वाले सर के इस हिंदी प्रेम को देख हिंदी की दुनिया चमत्कृत हो गयी. वैसे बताते चले कि हिंदी प्रेमी चैनल Zee News का खुद का नाम अंग्रेजी में है. खुद सुधीर चौधरी के लोकप्रिय कार्यक्रम ‘DNA” एक अंग्रेजी नाम है जिसका पूरा नाम है डेली न्यूज़ एनालीसिस.

तो सुधीर जी हम जानते हैं कि उपदेश देने में आपका कोई जोड़ नहीं.100 करोड़ की उगाही मामले और उमा खुराना फर्जी स्टिंग के बावजूद आप पत्रकारिता की नैतिकता पर भाषण देने का साहस जुटा लेते हैं. लेकिन कभी – कभी तो उपदेश देने से पहले खुद भी उसपर अमल कर लिया कीजिये. सही कह रहे हैं DNA वाले Sir.


अपनी असफलता को सवालों से छुपाते हमारे नेता

केजरीवाल के वीडियो संदेश पर लानत-मलानत करते सुधीर चौधरी
केजरीवाल के वीडियो संदेश पर लानत-मलानत करते सुधीर चौधरी

डॉ नीलम महेंद्र
डॉ नीलम महेंद्र
“हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहाँ दम था.. हमारी कश्ती तो वहाँ डूबी, जहाँ पानी कम था.”
भारत का एक गौरवशाली इतिहास रहा है जहाँ हम अपने देश को माँ का दर्जा देते हैं। इस देश की मिट्टी को माथे पर लगाते हैं ।एक ऐसा देश जो ज्ञान की खान है और जिसमें बड़ी से बड़ी बात छोटी छोटी कहानियों के माध्यम से ऐसे समझा दी जाती हैं कि एक बच्चा भी समझ जाए। इसी बात पर महाभारत का एक प्रसंग याद आ रहा है जब एक बार दुर्योधन को कुछ आदिवासी बंधी बना लेते हैं तो उस समय उसी वन में पाण्डव बनवास काट रहे थे। पाण्डवों को जब इस बात का पता चलता है तो युद्धिष्ठिर अपने भाइयों के साथ जाकर दुर्योधन को छुड़ा लाते हैं।भीम द्वारा विरोध करने पर वह कहते हैं कि भले ही वे सौ और हम पाँच हैं लेकिन दुनिया के सामने हमें एक सौ पाँच ही हैं।


वर्षों पुरानी यह कहानी आज हमारे देश के नेताओं को याद दिलानी आवश्यक हो गई है। उन्हें यह याद दिलाना आवश्यक है कि देश पहले आता है स्वार्थ बाद में , राष्ट्रहित पहले आता है निज हित बाद में , राष्ट्र के प्रति निष्ठा पहले होती है पार्टी के प्रति निष्ठा बाद में ।

क्यों आज हमारे देश में राजनीति और राजनेता दोनों का ही स्तर इस हद तक गिर चुका है कि कर्तव्यों के ऊपर अधिकार और फर्ज के ऊपर स्वार्थ हावी है ? कर्म करें न करें श्रेय लेने की होड़ लगी हुई है। हर बात का राजनीतिकरण हो जाता है फिर चाहे वह देश की सुरक्षा से जुड़ी हुई ही क्यों न हो और अपने राजनैतिक फायदे के लिए सेना के मनोबल को गिराने से भी नहीं चूकते।

क्या वे भारत की जनता को इतना मूर्ख समझते हैं कि वह उनके द्वारा कही गई किसी भी बात में राजनैतिक कुटिलता को देख नहीं पाएंगे , उसमें से उठने वाली साजिश की गंध को सूंघ नहीं पाएंगे और चुनावी अंकगणित के बदलते समीकरणों के साथ ही बदलते उनके बयानों के निहितार्थों को पहचान नहीं पाएंगे ?

हमारे लोकप्रिय पूर्व प्रधानमंत्री स्व लाल बहादुर शास्त्री जी ने नारा दिया था “जय जवान जय किसान ” , कितने शर्म की बात है कि आज उसी जवान की शहादत पर प्रश्न चिह्न लगाया जा रहा है ! जिस जवान के रात भर जाग कर हमारी सीमाओं की निगरानी करने के कारण आप चैन की नींद सो रहे हैं उसी को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं ?

सर्जिकल स्ट्राइक का अधिकारिक बयान डीजीएमओ की ओर से आया था सरकार की ओर से नहीं और इस बयान में उन्होंने यह भी कहा था कि उन्होंने पाक डिजिएमओ को भी इस स्ट्राइक की सूचना दे दी है। तो हमारी सेना के सम्पूर्ण विश्व के सामने दिए गए इस बयान पर हमारे ही नेताओं द्वारा प्रश्नचिन्श्र लगाने का मतलब ?


विडम्बना तो देखिए,हमारी सेना की कार्यवाही के बाद पाकिस्तान की स्थिति उसके नेताओं के बयान बयाँ कर रहे हैं।
नवाज शरीफ , “हम भी कर सकते हैं सर्जिकल स्ट्राइक।”
बौखलाया हाफिज सैइद ,” सर्जिकल स्ट्राइक क्या होती है यह भारत को हम बताएंगे ” ।
घबराए राहेल शरीफ ” पाक के सामने भारत के साथ युद्ध की चुनौती है और हमने परमाणु हथियार केवल दिखाने के लिए नहीं बनाए हैं।”
मुशरफ ,”पाक अन्तराष्ट्रीय स्तर पर अलग थलग पड़ रहा है “।

अब जरा भारत के नेताओं को देखें।
अरविंद केजरीवाल ने बहुत ही नफ़ासत के साथ अपने खूंखार पंजे को मखमल की चादर में लपेटते हुए पाकिस्तान और अन्तराष्ट्रीय मीडिया की आड़ में भारत सरकार से सर्जिकल स्ट्राइक के सुबूत मांगें हैं।

कांग्रेस नेता संजय निरुपम ,”सरकार जिन सर्जिकल स्ट्राइक्स का दावा कर रही है वह तब तक सवालों में घिरी रहेगी जब तक कि सरकार सुबूत नहीं पेश कर देती।”
अब जरा इतिहास में झांक कर देखें ,अक्तूबर 2001 में कश्मीर विधानसभा पर आतंकवादी हमला हुआ था जिसमें 35 से अधिक जानें गईं थीं लेकिन हम चुप थे।फिर दिसम्बर 2001 में हमारे लोकतंत्र के मन्दिर, हमारी संसद पर हमला हुआ 6 जवान शहीद हुए , हम चुप रहे। 26/11 को हम भूले नहीं हैं , हम तब भी चुप थे। शायद हमारे इन नेताओं को इस खामोशी की इतनी आदत हो गई है कि न तो उनको पाकिस्तान की ओर से आने वाले शोर में छिपी उनकी टीस बर्दाश्त हो रही है और न ही भारत की जनता की खुशी के शोर के पीछे छिपे गर्व का एहसास । इस खामोशी के टूटते ही उन्हें अपने सपने टूटते हुए जरूर दिख रहे होंगे और उनके द्वारा मचाया जाने वाला शोर शायद उसी से उपजे दर्द का नतीजा हो।

क्या इस देश की जनता नहीं देख पा रही कि मोदी के इस कदम ने राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो उनका कद बढ़ा दिया है वह विपक्ष को बेचैन कर रहा है ? काँग्रेस और आप दोनों को सम्पूर्ण विश्व में जो आज भारत का मान बढ़ा है ,उससे देश में अपना घटता हुआ कद दिखने लगा है। आने वाले विधानसभा चुनाव परिणाम पर भारत सरकार के इस ठोस कदम का असर और उनकी राजनैतिक महत्वाकांक्षाएं उनकी राष्ट्र भक्ति पर हावी हो रही हैं।

अति दूरदर्शिता का परिचय देते हुए इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि विधानसभा चुनाव तो ठीक हैं लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले ही सर्जिकल स्ट्राइक का विडियो इस प्रकार के दबाव बनाकर निकलवा लिए जाएं जिससे , इसकी राजनैतिक हानि उठानी ही है तो आज ही पूरी उठा लें ताकि आने वाले लोकसभा चुनावों में बीजेपी इसका फायदा न उठाने पाए । फिर कौन जाने कि विडियो रिकॉर्डिंग को डाक्टरट कहा जाए और एक नया मुद्दा बनाया जाए।

यह इस धरती का दुर्भाग्य है कि जैसे सालों पहले ब्रिटिश और मुग़लों को भारत में सोने की चिड़िया दिखाई देती थी और उसे लूटने आते थे वैसे ही आज हमारे कुछ नेताओं को भारत केवल भूमि का एक टुकड़ा दिखाई देता है जिसका दोहन वे अपने स्वार्थ के लिए कर रहे हैं ।

काश कि उन्हें धरती के इस टुकड़े में , इसकी लहलहाते खेतों में ,इसकी नदियों और पहाड़ों में , इसकी बरसातों और बहारों में , सम्पूर्ण प्रकृति में दोनों हाथों से अपने बच्चों पर प्यार लुटाने वाली माँ नज़र आती , हमारी सीमाओं पर आठों पहर निगरानी करने वाले सैनिकों में अपने भाई नज़र आते । एक सैनिक का लहू भी हमारे नेताओं के लहू में उबाल लेकर आता। लेकिन एसी आफिस और एसी कारों के काफिले में घूमने वाले इन नेताओं को न तो 50 डिग्री और न ही -50डिग्री के तापमान में एक मिनट भी खड़े होने का अनुभव है, वे क्या जानें इन मुश्किल हालातों में अपने परिवार से दूर दिन रात का फर्क करे बिना अपना पूरा जीवन राष्ट्र के नाम कर देने का क्या मतलब होता है ।

चूँकि इन्हें न तो अपने देश की जनता द्वारा चुनी हुई सरकार पर भरोसा है ,ना प्रधानमंत्री पर भरोसा है और न ही सेना पर तो बेहतर यही होगा कि अगली बार जब इस प्रकार की कार्यवाही की जाए तो पहली गोली इन्हीं के हाथों से चलवायी जाए।

न्यूज़ चैनल में वैकेंसी – जॉब अलर्ट

कॉरपोरेट की लात - पत्रकारों की दुर्गत

भोपाल से जल्द लॉन्च होने वाले चैनल न्यूज़ भारती सैटेलाईट न्यूज़ चैनल में भारी संख्या में पत्रकारों की जरूरत हैं.इसके लिए चैनल ने आवेदन आमंत्रित किया है. पूरी सूचना और आवेदन प्रक्रिया का विवरण नीचे दिया गया है. 15नवंबर तक आप आवेदन कर सकते हैं.




Upcoming..News Bharti Sattelite News Channel, Bhopal invites application for following post of Jobs.

news-bharti1. Bulletin and Programmes producers
2. Reporters and video Journalists
3.Anchors
4.Copywriters
5. Camera personals
6. Pcr-Mcr producers
7.Video editors
8.Graphics professionals
9.Librarians
10.Technical Professionals
11. Make up Professionals.
12.Receptionists
13.Marketing Manager and Sales executives
14. Back Office Executives.



Mail Your CV at newsbhartihr@gmail.com till Nov,15,2016.
Note: Selection Process will be based on Concerning Departmental Test.
Be Cautious:Do Not be caught up in nears and dears culture of rumors for selection of above mentioned Jobs.

इंडियन एक्सप्रेस ने बताया, अखबार के सामने बौने हैं न्यूज़ चैनल

india express report on surgical strike
सर्जिकल स्ट्राइक पर इंडियन एक्सप्रेस

ख़बरों की दुनिया में अखबारों के सामने टीवी न्यूज़ की हैसियत नासमझ बच्चे से ज्यादा कुछ नहीं. टीवी न्यूज़ का काम है उछलना,कूदना,शोर मचाना और कहीं मेला लगा हो तो भीड़ में शामिल होकर मेला देख आना. यदि ऐसा ना होता तो आज अखबारों की बजाए टीवी चैनलों पर बड़ी ख़बरें ब्रेक होती और तहलका मचाती.लेकिन न्यूज़ चैनल उस एग्रीगेटर की तरह हो गए हैं जहाँ वेब,टीवी और अखबार से ख़बरें जमा कर उसपर तड़का लगाकर ब्रेकिंग न्यूज़ की शक्ल में पेश कर दिया जाता है.तथ्यपरक और खोजी पत्रकारिता का ज़िम्मा अब भी अखबारों के ही हिस्से में है.चैनलों का काम अखबार की हेडलाइन मारकर बस अपनी हेडलाइन बना लेना भर है.यदि ऐसा न होता तो पिछले कुछ समय में की गयी लगभग सारी बड़ी ख़बरें अखबार के खाते में न गए होते. 

याद ही होगा कि शहाबुद्दीन की बगल में खड़े शूटर कैफ को भी एक अखबार ने ही ढूंढा था,बाद में तमाम चैनलों ने बस रायता फैलाया.सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भी कुछ ऐसा ही माहौल ही था. उसमें इंडियन एक्सप्रेस ने ऐसी स्टोरी की फिर न्यूज़ चैनलों को अखबार की शरण में आना पड़ा.यानी एक बार फिर सिद्ध हो गया कि दो दशक बीतने के बावजूद न्यूज़ चैनलों के दूध के दांत अबतक नहीं टूटे हैं और ख़बरों के मामले में अखबारों के सामने उसकी हैसियत अब भी किसी बच्चे से ज्यादा नहीं.इसी मसले पर सोशल मीडिया पर आयी कुछ टिप्पणियाँ –

पुष्कर पुष्प -सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर न्यूज़ चैनलों पर बेहिसाब ख़बरें चली.लेकिन इंडियन एक्सप्रेस ने एक खबर छापी तो तहलका मच गया.अखबार की यही ताकत है और इसीलिए टीवी और वेब के ज़माने में भी अपने अस्तित्व को बचाए रखने में कामयाब है.अफ़सोस हिंदी के अखबार ऐसा नहीं कर पाते. #MediaKhabar

Ambrish Kumar मीडिया में सबसे ज्यादा संशाधन निजी चैनलों के पास होता है वे किसी भी घटना पर फौरन विदेश पहुंच जाते है .ऐसे में अगर इंडियन एक्सप्रेस का पत्रकार एलओसी पार कर या बिना पार किए कवरेज कर सकता है तो चैनलों को पहले रिपोर्ट देनी चाहिए थी.वे क्यों चूक गए .कौन सा वीजा चाहिए था जो नहीं मिला उन्हें.एनक्रिप्टेड चैट सिस्टम की मदद तो वे भी ले सकते थे .पहचान भी नहीं बतानी थी .

Vishnu Rawal कमाल यहां ये भी है कि हिंदी भाषी इलाकों से अंग्रेजी के अखबार बड़ी खबर या ब्रेकिंग ढूंढ निकालते हैं। या तो हम हिंदी वाले आलसी हो गए हैं , या फिर अनुवादक भर बनकर रह गए हैं

Manish Thakur टीवी मीडिया का चरित्र गंभीरता वाला बन ही नहीं पाया। वजूद में आने के बाद ही टीवी पर हलके लोगो ने कब्ज़ा कर लिया क्योंकि गंभीर लोग कैमरे से डर गए। लफंदरो ने इसका फायदा उठाया यह साबित कर की टीवी में गंभीरता की जरूरत नही। खबर के नाम पर वह परजीवी बना कभी अख़बार का तो कभी सोशल मीडिया का। रही बात हिंदी अखबारों की तो वह कभी कुंठा से बाहर निकल ही नहीं पाया। चलिए कही तो पत्रकारिता हो रही है।

एमजे अकबर और अर्णब गोस्वामी की नहीं बची साख

नदीम एस.अख्तर

मोदीराज में दो बड़े पत्रकारों ने अपनी साख गंवाई है। एमजे अकबर और अर्णब गोस्वामी। अकबर समझदार थे, उनके पास तुरंत-फुरत रंग बदलने का अनुभव था, सो झट चोला बदल राज-नेता बन गए।

अर्णब महीन खिलाड़ी हैं और पहला इम्तिहान पास कर लिया है। पर दिक्कत ये है कि वो चौथे खम्भे में रहके पहले खंभे के लिए बैटिंग करना चाहते हैं। क्लीन बोल्ड होना तय मानिए।

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