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श्वेता सिंह की बेहतरीन तस्वीरें – Anchor Sweta Singh best Images

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श्वेता सिंह ( Sweta Singh) देश की टॉप एंकर में से एक हैं. अपनी ख़ास शैली के लिए वे जानी जाती है. उन्होंने विविध विषयों पर कई यादगार ख़बरें की हैं लेकिन खेल से संबंधित ख़बरों में उन्हें महारत हासिल है. देखिये उनकी कुछ ख़ास तस्वीरें –

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स्मार्ट रिपोर्टर : टीवी रिपोर्टिंग पर किताब

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टीवी रिपोर्टिंग पर किताब स्मार्ट रिपोर्टर

टीवी रिपोर्टिंग पर किताब: Book on tv reporting in Hindi

स्मार्ट रिपोर्टर (smart reporter) पत्रकार शैलेश और डॉ.ब्रजमोहन द्वारा लिखित किताब है जिसमें टीवी रिपोर्टिंग के बारे में विस्तार से बताया गया है. किताब का प्रकाशन दिल्ली के ‘वाणी प्रकाशन’ ने किया है.किताब में रिपोर्टिंग की बारीकियों पर विस्तार से चर्चा की गई है किताब में कुल 17 चेप्टर हैं. अपनी किताब के बारे में जानकारी देते हुए डॉ.ब्रजमोहन कहते हैं –

टेलीविजन ग्लैमर की दुनिया है। इस दुनिया में पैसा है, शोहरत है और इन सबसे बढ़कर खुद को साबित करने का बेहतरीन मौका भी है। लेकिन ये सब उनके लिए है, जो कामयाब हैं। कोई भी इंसान पैदाइशी कामयाब नहीं होता। लक्ष्य का निर्धारण, कड़ी मेहनत और सही मार्गदर्शन, ये तीन मंत्र हैं, जो किसी को अंधेरे के गर्त से उठा कर रोशनी के अर्श तक पहुंचा सकता है। जिन्होंने टीवी पत्रकारिता को करियर चुना है, जिनके लिए पत्रकारिता प्रोफेशन नहीं, मिशन है और जिन्हें टीवी रिपोर्टिंग पर फ़क्र है, उनके लिए ये किताब तीसरा मंत्र है। टीवी रिपोर्टिंग आर्ट और क्राफ्ट दोनों है और ये किताब इस तानेबाने को सुलझाने में निश्चिततौर पर पत्रकारिता के छात्रों और रिपोर्टिंग की बारिकियों को गहराई से जानने की इच्छा रखने वाले रिपोर्टरों के लिए मददगार साबित होगी।

किताब के बारे में जरुरी जानकारियां

किताब का नाम – स्मार्ट रिपोर्टर (Smart Reporter)
स्मार्ट रिपोर्टर किताब के लेखक – वरिष्ठ टीवी पत्रकार शैलेश और ब्रजमोहन (Shailesh & Dr. Brajmohan)
स्मार्ट रिपोर्टर किताब की भाषा – हिंदी
स्मार्ट रिपोर्टर किताब के प्रकाशन का वर्ष – 2011
स्मार्ट रिपोर्टर किताब का प्रकाशक – वाणी प्रकाशन (Vani Prakashan)
स्मार्ट रिपोर्टर किताब की कीमत – 295 रुपये
स्मार्ट रिपोर्टर किताब के पन्नों की संख्या – 176

स्मार्ट रिपोर्टर पुस्तक की विषय सूची

न्यूज़ और उसके आवश्यक तत्व
न्यूज़ क्या है?
न्यूज़ की परिभाषा
न्यूज़ के आवश्यक तत्त्व
टीवी रिपोर्टिंग
टीवी रिपोर्टर
रिपोर्टिंग के प्रकार
समाचार संग्रह
स्टोरी प्लानिंग
फील्ड में रिपोर्टर
इंटरव्यू(साक्षात्कार)
पीटीसी(पीटूसी)
पीस टू कैमरा
स्टोरी स्ट्रक्चर
स्क्रिप्ट राइटिंग
ग्राफिक्स
वॉईस ओवर(वीओ)
स्टोरी एडिटिंग,
रिपोर्टर और कैमरा,
रिपोर्टर की लक्ष्मण रेखा,
टेलीविजन के तकनीकी शब्द

स्मार्ट रिपोर्टर किताब की मुख्य बाते

टीवी रिपोर्टिंग के हर पहलू से आपको रू-ब-रू कराती है।
किताब में रिपोर्टिंग की बारीकियों पर विस्तार से चर्चा की गई है
टीवी रिपोर्टिंग को करियर बनाने के लिए इच्छुक छात्रों के लिए उपयोगी किताब
ताब में न्यूजरूम में इस्तेमाल किए जाने वाली भाषा का इस्तेमाल
किताब में कुल 17 चेप्टर हैं

स्मार्ट रिपोर्टर किताब की समीक्षा

रामकृपाल सिंह, वरिष्ठ पत्रकार

“किताब की एक बड़ी खूबी यह है कि इसकी भाषा आसान है, यानी वही भाषा है जिसकी पत्रकारिता को जरूरत है. चीजों को समझाने का तरीका सहज है, उसमें कहीं कोई उलझाव नहीं है और तमाम विषय सिलसिलेवार दिए गए हैं. मुझे लगता है, कोई छात्र इस किताब को समझकर पढ़ता है, तो उसे तुरंत काम करने के लिए किसी और ट्रेनिंग की जरूरत नहीं है. यहां तक कि इस किताब को पढ़ने के बाद छात्रों को किसी भी न्यूज़ चैनल का दफ्तर पराया नहीं लगेगा, बल्कि अपना जाना-पहचाना सा लगेगा.

महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय विश्‍वविद्यालय की पुस्तिका ‘पुस्‍तक वार्ता’ में वरिष्ठ टेलीविजन पत्रकार राकेश शुक्‍ला की प्रकाशित स्मार्ट रिपोर्टर किताब की समीक्षा (साभार)

smart reporter book in hindi
टीवी रिपोर्टिंग पर किताब स्मार्ट रिपोर्टर

कभी-कभार ऐसा लगता है कि हमें किसी खास लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक सधे हुए माध्यम का इंतज़ार रहता है। वाणी प्रकाशन से आई शैलेश और ब्रजमोहन की किताब स्मार्ट रिपोर्टर ऐसे ही किसी बहु प्रतीक्षित लक्ष्य को पाने जैसा सुकून है। 176 पृष्ठों वाली हार्ड बाउंड में कसी 17 अध्यायों की यह किताब लेखकद्वय द्वारा बहुत ही लगन और परिश्रम से तैयार की गई एक शानदार कृति है। हिन्दी में आमतौर पर ऐसी किताबों का घनघोर अभाव है। तकरीबन 50 करोड़ हिन्दी भाषी प्रदेश में न्यूज़ और मनोरंजन समेत कई विविध आयामों को समेटे लगभग 300 सैटेलाइट टेलीविज़न चैनल सक्रिय हैं, जिनमें सिर्फ हिन्दी न्यूज़ चैनलों की संख्या 100 से ज्यादा हैं। इनमें वो तमाम क्षेत्रीय चैनल भी शामिल हैं जो प्रदेश विशेष को अपना फुट प्रिंट (देखा जाने वाला क्षेत्र) मानते हुए दर्शकों तक अपनी पहुँच बनाते हैं।

इससे इतर, सिर्फ न्यूज़ चैनलों में काम करने वाले रिपोर्टरों-पत्रकारों, प्रोड्यूसर और न्यूज़ मैनेजमेंट से जुड़े लोगों की फेहरिस्त पर निगाह डालें तो ये संख्या सिर्फ दिल्ली में 5,000 से ऊपर होगी और समूचे उत्तर भारतीय हिन्दी प्रदेश में, अहमदाबाद, जयपुर और भोपाल से लेकर पटना, लखनऊ और रांची तक ये आंकड़ा 10,000 के पार चला जाएगा। लेकिन जिस उच्श्रृंखल तौर-तरीके से हिन्दी न्यूज़ बाज़ार का कारोबार चल रहा है उसमें इस किताब की अहमियत कंटेंट को संभालने, सजाने और संवारने के लिहाज़ से बहुत ज्यादा है।

स्मार्ट रिपोर्टर का शिल्प और संयोजन शानदार है। जाहिर बात है, शैलेश जैसे दक्ष और अनुभवी पत्रकार के सैद्धांतिक और व्यावहारिक अनुभवों की झलक यहां साफ दिखती है। वे हिन्दी टेलीविजन पत्रकारिता जगत में उन चुनिंदा लोगों में हैं जिन्होंने जयप्रकाश आंदोलन में हिस्सा लिया, उस ज़माने में पत्रकारिता की पढ़ाई की, लंबे समय तक प्रिंट पत्रकारिता के हिस्सा रहे और फिर ‘आजतक’ के शुरूआती दौर (एस.पी.-सुरेन्द्र प्रताप सिंह) में बुलेटिन के एकलौते प्रोड्यूसर होने का श्रेय उन्हें जाता है। इसलिए उन्होंने बहुत ही शिद्दत के साथ अपनी इस किताब के साथ न्याय करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। हम जैसे टेलीविज़न पत्रकारों को टीवी न्यूज़ की परिभाषा से उन्होंने अवगत कराया और एस.पी. के नेतृत्व में नक़वीजी (क़मर वहीद) और शैलेश ने भाषा को जिस तरह तराश कर अमलीजामा पहनाया; आज देश के बड़े और प्रतिष्ठित हिन्दी टेलीविजन न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स उसी को अपना मापदंड मानते हैं। मुझे बखूबी याद है, उन्होंने 1996-97 में कई बार चले टेªनिंग सेशन और डेस्क पर स्क्रिप्ट से जूझते हुए बताया कि आपकी भाषा में वाक्य विन्यास 6 शब्दों से ज्यादा नहीं होना चाहिए और हमारी लंबी-लंबी 3 पन्नों वाली स्क्रिप्ट को अपनी सूझबूझ और काबिलियत के आधार पर 70-75 सेकेंड की स्टोरी में तब्दील करने में उन्हें महारत हासिल थी। हम कई बार नाराज़ भी होते थे कि इन्होंने तो सब काटपीट दिया। लेकिन रात 10 बजे जब अपनी स्टोरी टीवी स्क्रीन पर ऑन एयर देखते थे तो संतोष से लबरेज होते थे कि हमने अपनी लंबी स्क्रिप्ट में जो बातें कहनी चाही थीं, वो सब यहां उनके छोटे एडिटेड स्क्रिप्ट में बखूबी सुरक्षित थीं।

टेलीविज़न और खासकर टेलीविज़न न्यूज़ कम से कम समय में रफ़्तार के साथ-साथ सटीक चाक्षुस माध्यम है। न्यूज़ के इस माध्यम में ज्ञान और बौद्धिकता के लिए बहुत कम जगह है। यह घनघोर मेहनत और मशक्कत का माध्यम है। यह विजुअल और म्यूजिक के माध्यम से आपको खबरों की दुनिया की सैर कराता है, इसलिए यहां ज्ञान और भावुकता से ज्यादा संवेदना और बौद्धिकता से ज्यादा तत्पर/त्वरित विवेक की पहचान है। इस माध्यम से खब़रों के साथ रफ़्तार का होना ज़रूरी है इसलिए यहां विश्वसनीयता के खतरे भी ज्यादा हैं। इस विश्वसनीयता को बनाए रखने का जिम्मा रिपोर्टर के पास ही है इसलिए इस किताब की अहमियत और ज्यादा हो जाती है। यह किताब इस ओर बहुत संजीदगी से इशारा करती है और इसलिए अध्याय 5 से लेकर अध्याय 11 तक की विषयवस्तु में समाचार संग्रह, स्टोरी प्लानिंग और स्ट्रक्चर, साक्षात्कार, स्क्रिप्ट और फील्ड में रिपोर्टर जैसे अध्यायों में अनछुए पहलुओं पर बहुत बारीकी से और संजीदगी के साथ प्रकाश डाला गया है। विश्वास मानिए, अभी से पहले इन उपर्युक्त तथ्यों पर इस नजरिए से कम से कम हिन्दी में तो किसी ने ध्यान नहीं दिया। यहां एक महत्वपूर्ण बात। अध्याय 10 में स्टोरी स्ट्रक्चर शीर्षक के तहत लेखकों ने टेलीविज़न न्यूज़ के उन तमाम आयामों को तफशील से बताया है जो ज्यादातर इस्तेमाल में हैं; लेकिन पता नहीं कैसे यहां वे ‘वॉक-थ्रू स्टोरी’ स्ट्रक्चर की चर्चा भूल गए हैं।

मसलन, एक रिपोर्टर किसी ऐसी जगह पहुँचता है जहां वह है, उसका कैमरा है और कुछ नहीं। फिर दर्शकों तक 2-3 मिनट के न्यूज़ कैप्सूल के तौर पर जो खब़र पहुँचती है, वो वॉक-थ्रू है और आजकल इसका प्रचलन काफी आम है। लेकिन इस फॉर्मेट की चर्चा का न होना यहां खटकता है। लगे हाथ एक और मुद्दे की बात। टेलीविज़न न्यूज़ और खासकर 24 घंटों के निजी सैटेलाइट चैनलों में ब्यूरो नेटवर्क की अहम भूमिका होती है। न जाने क्यों, यह पहलू भी अनछुआ रह गया है कि ब्यूरो नेटवर्क में आने वाले रिपोर्टरों की चुनौतियां क्या हैं और वो न्यूज़ सेंटर में स्थापित रिपोर्टरों से कैसे अलग होते हैं? इसके अलावा एक और तरीका आजकल बहुत लोकप्रिय है। यह नेटवर्क स्टोरी या नेटवर्क रिपोटर्स के रूप में जाना जाता है। यानी किसी एक खास रिपोर्ट में यदि 03 या 04 अलग-अलग रिपोर्टर्स शामिल हुए हैं तो ये नेटवर्क स्टोरी का स्ट्रक्चर है और इसमें हर-रिपोर्टर रिले रेस दौड़ने वाले उस धावक की तरह है जहां हर एक को समान रफ्तार और क्षमता के साथ परफॉर्म करना होता है और अगर एक रिपोर्टर भी लड़खड़ाया तो रिपोर्ट धराशायी। फिर इस तरह की रिपोर्टिंग की चुनौतियां और उनके आयाम क्या हैं? स्टार न्यूज़ पर चलने वाला एक बहुत ही लोकप्रिय बुलेटिन-24 घंटे, 24 रिपोर्टर उसी कड़ी की एक शानदार मिशाल है, जो स्टोरी न होकर पूरा का पूरा बुलेटिन है और दर्शकों का यह खासा पसंदीदा कार्यक्रम है।

टेलीविजन न्यूज़ बाईट क्लचर का माध्यम है। टेलीविज़न की खबरों या स्टोरी में बाईट (व्यक्ति विशेष द्वारा दिया गया वक्तव्य) का खासा महत्व है। इसी बाईट कल्चर का विलक्षण प्रयोग लेखकद्वय ने इस पुस्तक में भी किया है। अध्याय की बारीकियों से रु-ब-रु कराने के लिए व्यावहारिक अनुभवों का सहारा कुछ वरिष्ठ पत्रकारों के हवाले से लिया है। बाईट के फार्म में उन्हें वक्तव्य के रूप में लगभग हर अध्याय में शामिल किया गया है। वैसे तो शैलेश ने अपनी प्रस्तावना में कई वरिष्ठ पत्रकारों के नाम गिनाए हैं, लेकिन जो तीन प्रमुख नाम बाईट के बहाने लगातार चलते हैं वे-परवेज़ अहमद, आशुतोष और प्रबल प्रताप सिंह हैं। यहां एक नाम बहुत झटके से खटकता है और वह नाम प्रबल प्रताप का है। प्रबल की जगह अगर उन्होंने दीपक चौरसिया को लिया होता और उसके वक्तव्य/अनुभव शामिल किए होते तो मेरी समझ से किताब की धार और धारा देखते ही बनती! प्रबल के पास आज भी बेचने के लिए उनका 10-12 साल पुराना अफगानिस्तान ही है; जबकि दीपक की फेहरिस्त लंबी ही नहीं अनगिनत है। जब आप ऐसे किसी किताब को भारतीय टेलीविज़न फलक पर डालते हैं तो सरलीकरण और पूर्वाग्रह से बचने की जरूरत होनी चाहिए, अन्यथा सरोकारों के भरा न्याय नहीं होता। मसलन, तुलनात्मक तौर पर ही देखें तो यह ऐहसास होता है कि दो कमेंटेटर तो धोनी (आशुतोष) और युवराज सिंह (परवेज़ साहब) हैं मगर तीसरा मुझे मुहम्मद कैफ (प्रबल) सा लगता है। यहीं अगर दीपक चौरसिया या रवीश कुमार या पुण्य प्रसून वाजपेयी होते तो आप इसकी शानदार बानगी के कायल होते!

किताब में कई तस्वीरें भी हैं जो स्टूडिया और न्यूज़ रूम से लेकर साक्षात्कार और फील्ड सिचुएशन या रिपोर्टर की स्थिति को दर्शाती हैं। लेकिन यहां ज्यादातर तस्वीरें जबरन या बेमानी लगती हैं। तस्वीरों के साथ कैप्शन का अभाव भी खटकता है। इसके अलावा इन तस्वीरों का संदर्भ भी स्पष्ट नहीं है। तस्वीरों को पाठकों के विवेक पर छोड़ा गया है कि स्क्रीन टेक्स्ट को देखकर आप अनुमान लगा लें कि ये तस्वीरें क्या कहना या बताना चाहती हैं? इससे भी ज्यादा जो बात खटकती है वह यह है कि, किताब में छापी गई सारी तस्वीरें एक ही हिन्दी न्यूज़ चैनल प्ठछ.7 की हैं। उन्हीं के स्क्रीन, रिपोर्टर, एंकर, स्टूडियो, इंटरव्यू, प्रोड्यूसर और न्यूज़ रूम। कैजुअल एप्रोच (सरलीकरण) की ये पराकाष्ठा है। इसलिए सरसरी निगाह में देखने पर ये किताब प्ठछ.7 का मैन्युअल या स्टाइलबुक का आभास देती है। अब यहां दो बातें। यदि तस्वीरें लेनी ही थीं तो आज तक, एनडीटीवी इंडिया और स्टार न्यूज़, हर जगह से लेकर डालते तो इस एकरसता से बचा जा सकता था और संतुलन भी होता। लेकिन इससे भी बेहतर यह होता कि इन तस्वीरों की जगह टेलीविजन न्यूज़ व्यवहार और व्यापार से जुड़े मानकों, मसलन सैटेलाइट, अपलिंक, डाउनलिंक, ओबी वैन, एमसीआर, पीसीआर के साथ-साथ इस व्यवस्था से जुड़ी और उन्हें चलाने वाली मशीनरी और संसाधनों की तस्वीरें या ग्राफिक्स शामिल किए जाते। विदेशों में इस तरह की व्यवहार कुशल शैक्षणिक व्यावसायिक पुस्तकों का खासा प्रचलन है। हमें इस मसले पर उनसे सीख लेने की जरूरत है। ऐसा लगता है कि किताब के एक लेखक ब्रजमोहन, चूंकि प्ठछ.7 से जुड़े पत्रकार/प्रोड्यूसर हैं सो उन्होंने अपनी जगह का भरपूर इस्तेमाल किया है। चाहे मसला प्रबल के चयन का हो या सामग्री इकट्ठा करने का।

किताब में अध्याय 16 और 17 रिपोर्टर की लक्ष्मण रेखा और टेलीविजन के तकनीकी शब्द इसकी जान हैं। हालांकि इन तमाम खूबियों के बावजूद भारतीय टेलीविजन, खासकर हिन्दी न्यूज़ चैनलों में अवांछित आए कुछ कंटेंट प्रोफाईल और ‘ग्रे-मैटर’ को नज़र अंदाज करने की कोशिश हुई है लेकिन उससे कुछ खास फर्क नहीं पड़ता। हालांकि एक रिपोर्टर की साख और न्यूज़ चैनलों की विश्वसनीयता जैसे ज्वलंत मुद्दे इससे जुडे़ रहे हैं। यहां एक और बात का जिक्र मैं लाज़िमी समझता हूँ। किताब के आखिर में अगर टेलीविज़न न्यूज़ और प्रोग्रामिंग में फर्क पर एक अध्याय जोड़ देते तो उन रिपोर्टरों के लिए वह अध्याय खासा सहायक होता कि अपनी 02 मिनट की रिपोर्ट को 30 मिनट के प्रोग्राम में कैसे बदला जाए? इसके अलावा किताब में 20-25 पृष्ठ और बढ़ाते हुए अगर 02-03 ‘टॉप टॉक्ड’ स्टोरी की स्क्रिप्ट भी समाहित कर दी जाती तो ये ‘टॉप प्रेफर्ड रिपोर्टर्स मैन्युअल’ का दर्ज़ा पा जाती। हालांकि किताब के पृष्ठ 95-97 पर दो स्क्रिप्ट फॉर्मेट शामिल हैं मगर वह सिर्फ खानापूर्ति का अहसास कराती हैं।

बहरहाल, इन तमाम बिन्दुओं के बावजूद हिन्दी टेलीविजन रिपोर्टरों के लिए यह एक अभूतपूर्व शानदार तेाहफा है। किताब की छपाई, गेटअप, साज-सज्जा और प्रस्तुतीकरण बेहतर है और वाणी प्रकाशन अगर इससे आधी कीमत के साथ पेपर बैक संस्करण भी बाज़ार में उतारे तो दूर-दराज में बैठे कस्बाई पत्रकारों का भी भला होगा। आखिर में, पुस्तक विमोचन समारोह में प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष और न्यायविद् मार्कंडेय काटजू ने इस किताब को टेलीविज़न पाठ्यक्रम में शामिल करने की सलाह दी तो इसे गंभीरता से लेना चाहिए और अगर इसे अमली जामा पहना दिया गया तो हिन्दी टेलीविजन न्यूज़ रिपोर्टिंग का सर्वांगीण विकास ही होगा, ऐसा मेरा विश्वास है।

ऑडिबल पर स्ट्रीम कर रही वसीम अकरम की कहानी ‘डायरी’

Diary by Waseem Akram

अगर आपको किताबें और कहानियां पढ़ने का शौक है लेकिन वक्त की कमी की वजह से नहीं पढ़ पाते हैं तो इसका हल अमेज़न ऑडिबल पर मौजूद है। ऑडिबल लेकर आया है वसीम अकरम की लिखी कहानी ‘डायरी’ का ऑडियो शो, जिसमें कुल 16 एपिसोड हैं और हर एपिसोड रोमांच पैदा करने वाला है। ऑडिबल की यह ऑरिजिनल सीरीज़ हिंद युग्म की पेशकश है।

हिंद युग्म और ऑडिबल ओरिजिनल की साझा पेशकश में सबसे पहली सीरीज के रूप में वसीम अकरम की लिखी सीरीज ‘डायरी’ श्रोताओं के सामने है। इसमें एक ऐसी लड़की की कहानी है जो अपने बचपन में चाइल्ड एब्यूज का शिकार हो जाती है। उस हादसे का उसके ज़ेहन पर इतना गहरा सदमा लगता है कि वो मर्दों से नफ़रत करने लगती है। जब बड़ी होती है तो उसे लगता है कि दुनिया को वो सब कुछ बताना चाहिए जो उसके साथ हुआ। इसलिए वो डायरी लिखनी शुरू करती है और उसमें अपनी सारी तकलीफ उड़ेल देती है। डायरी लिखते-लिखते उसका डिप्रेशन बढ़ता जाता है और एक दिन गुस्से में वो उस डायरी को रद्दी में फेंक देती है। रद्दी के जरिए वो डायरी रद्दी वाले एक लड़के के पास पहुंचती है। लड़का जब डायरी को पढ़ना शुरू करता है तो वो भी परेशान हो जाता है और लड़की को खोज निकालने का जुनून जाग उठता है। कई दिनों बाद डायरी के एक पेज पर उसे एक क्लू मिलता है। महीने भर से ज़्यादा समय तक शहर भर की गलियों की खाक छानने के बाद अंतत: वो लड़का उस लड़की के घर के सामने पहुंच जाता है। उसकी तलाश पूरी हो जाती है।

अपनी कहानी के बारे में बताते हुए कहानीकार वसीम अकरम कहते हैं कि – “हमारे आस-पास के घरों में जो बच्चे चाइल्ड एब्यूज का शिकार होते हैं और पूरी जिंदगी एक स्टिग्मा यानी कलंक से जूझते हुए भारी तकलीफ में जीते हैं, उनके लिए ही मैंने ये कहानी लिखी है, ताकि समाज को एक संदेश जाए कि बच्चों को ऐसे हादसों से बचाए जाने की जरूरत है।”

हिंद युग्म के संपादक शैलेश भारतवासी ने बताया कि- “तकनीक ने मनोरंजन और ज्ञानार्जन के नए तौर तरीके बनाए हैं। ऑडियो बुक युवाओं में ट्रेंड करने लगा है। हिंद युग्म ऑडिबल के साथ मिलकर कई सारी ओरिजिनल सीरीज लेकर आने वाला है, जो अलग-अलग विषयों पर आधारित हैं। हम कई तरह के प्रयोग इस माध्यम से सुनने वालों के सामने परोसना चाहते हैं।”

इस कहानी को ऑडिबल एप के जरिए आप अपने फोन, टैबलेट, डेस्कटॉप और लैपटॉप पर बड़ी आसानी से सुन सकते हैं। अमेजॉन के मेंबर इसे फ्री में सुन सकते हैं। गौरतलब है कि ऑडिबल भारतीय क्लासिक्स से लेकर अंतर्राष्ट्रीय बेस्टसेलर तक हर तरह की किताबों के ऑडियो बुक्स को अपने यूजर्स के लिए उपलब्ध करा रहा है।

ICICI Bank FASTag is now available on Google Pay

icici fast tag

Mumbai: ICICI Bank today announced its collaboration with Google Pay for issuance of FASTag through UPI on the payments app. This enables Google Pay users to order, track and even recharge ICICI Bank FASTag conveniently and fully digitally through UPI on the payments app itself. This initiative ensures safety of the applicants as they don’t have to visit merchants or toll locations to buy a FASTag. With this, ICICI Bank becomes the first bank to join hands with Google Pay for issuance of FASTag.

FASTag is a brand name owned by Indian Highways Management Company Ltd. (IHMCL), which carries out electronic tolling and other ancillary projects of National Highway Authorities of India (NHAI). National Payments Corporation of India (NPCI), IHMCL and NHAI are working together to make state and national highway toll payments completely digital.

The collaboration of ICICI Bank with Google Pay further strengthens digital payments for FASTag. ICICI Bank has recently integrated FASTag at Mumbai toll plazas and parking zone at GMR Hyderabad International Airport, in an endeavour to promote the adoption of a safe, contactless, hassle-free transaction experience for commuters, and expand the usage and acceptance of FASTag. The Bank was the first to launch the innovative service of FASTag nationally, on the Mumbai – Vadodara corridor, way back in 2013.

Speaking on the collaboration, Mr. Sudipta Roy, Head- Unsecured Assets, ICICI Bank said, “With the increased adoption of digital payments in all walks of life, we believe that this collaboration will help Google Pay users to apply for a new FASTag through UPI and get it delivered free of cost at their door step. The association comes handy for Google Pay customers, even if they are not customers of ICICI Bank, during the pandemic as it allows them to order and receive FASTag in a seamless and contact-less manner. With this, ICICI Bank has achieved another feat in the FASTag ecosystem by introducing inter-operability between banks on a digital payments platform like Google Pay. We believe that this initiative will go a long way in increasing adoption of FASTag for toll payments.”

Mr. Sajith Sivanandan, Business Head, Google Pay said, “NETC FASTag is an important milestone in bringing the efficiencies of digital payments into transit and making interstate travel frictionless. We are very pleased to be joining hands with ICICI Bank to extend the facility of NETC FASTag purchase to millions of users across India through Google Pay. This is a great example of an entire ecosystem working in concert to bring ease and convenience to the lives of users in a very tangible way.”

Ms. Praveena Rai, COO, NPCI said, “We are pleased to associate with Google Pay and ICICI Bank to increase the adoption of NETC FASTag and facilitate its doorstep delivery to the customers. We believe this initiative will provide vast reach and enable vehicle owners to avail it at the comfort of their homes – eliminating the need for visiting a kiosk or the bank amid pandemic. With this collaboration, consumers will have an added benefit of being able to recharge their FASTag seamlessly and conveniently via UPI on Google Pay. With robust acceptance infrastructure and interoperability we are witnessing a transformation of urban mobility systems as commuters are widely accepting NETC FASTag to undertake seamless, contactless and stress free toll transactions and enjoy a smooth ride.”

Below are the quick steps to avail FASTag from Google Pay:

· Open Google Pay and click on ‘ICICI Bank FASTag’ under ‘Businesses’

· Click on ‘Buy new FASTag’

· Enter your PAN, RC copy, vehicle number and address details

· Verify mobile number through OTP

· Proceed for payment. Order gets placed once the payment is done.

ICICI Bank customers can avail FASTag using the Bank’s digital channels of banking including internet banking, iMobile app, InstaBIZ app, Pockets app or by visiting their nearest bank branch. The tag can be reloaded with funds seamlessly online using the Bank’s internet banking, UPI and NEFT platforms. Commuters who are not the customers of ICICI Bank can purchase FASTag using the Pockets app or by simply visiting www.icicibank.com/fastag

हैकर्स से बचाने के लिए फेसबुक देगा यूजर्स को हार्डवेयर सुरक्षा !

facebook

डेटा की गोपनीयता और सुरक्षा का बेहतर ख्याल रखते हुए फेसबुक की तरफ से अगले साल उपयोगकर्ताओंको नए विकल्प दिए जाएंगे ताकि उनके अकांउट की सुरक्षा और अधिक बेहतर ढंग से हो सके। कंपनी के सुरक्षा नीति के प्रमुख नथानिएल ग्लीइकर ने एक बयान में कहा कि नए साल के लिए सोशल मीडिया की योजना यही है कि यूजर्स के लिए हार्डवेयर सुरक्षा कुंजी के विकल्प की शुरूआत की जाए।

आमतौर पर हाई-प्रोफाइल अकांउट्स के लिए सुरक्षा कुंजी के इस्तेमाल की सलाह दी जाती है, लेकिन अगले साल से हर किसी अकांउट के लिए इसे उपलब्ध कराया जाएगा।

रिपोर्ट के मुताबिक, यूजर्स विभिन्न रिटेलर्स से व्यक्तिगत तौर पर इन टोकन्स या कुंजियों को खरीद पाने में सक्षम रहेंगे और इसी के साथ इन्हें ऑनलाइन भी खरीदा जा सकेगा। इसके बाद फेसबुक के साथ इसे रजिस्टर या पंजीकृत किया जा सकेगा।

कंपनी के द्वारा अगले साल से अपने फेसबुक प्रोटेक्ट सिक्योरिटी प्रोग्राम का विस्तार कई अलग-अलग तरह के अकाउंट्स तक किया जाएगा, जिनमें पत्रकार, मानवधिकारों की रक्षा करने वाले कार्यकर्ता, सेलेब्रिटीज सहित वे सभी यूजर्स भी शामिल होंगे, जो भिन्न देशों के कुछ आने वाले प्रमुख चुनावों का हिस्सा होंगे।

ग्लीइकर ने कहा कि हाई-प्रोफाइल वाले अकांउट के यूजर्स फेसबुक प्रोटेक्ट और सुरक्षा कुंजी दोनों का ही इस्तेमाल कर पाएंगे।

अपने बयान में उन्होंने कहा है, हैकर्स के द्वारा महत्वपूर्ण लोगों के सोशल मीडिया हैंडल से जुड़े जानकारियों को लक्षित किया जाता है। आप कहीं के सीईओ या राजनीतिक उम्मीदवार नहीं है, तो इसका मतलब ये नहीं कि आप अपने क्षेत्र के एक महत्वपूर्ण व्यक्ति नहीं है या आपको टार्गेट नहीं किया जा सकता है।

हैकर्स के खतरों से बचने के लिए फेसबुक प्रोटेक्ट में दो-कारक प्रमाणीकरण और रियल-टाइम मॉनिटरिंग शामिल है।

वर्तमान समय में यह प्रोग्राम सिर्फ अमेरिकी राजनीतिज्ञों, पार्टी कार्यकर्ताओं,सरकारी एजेंसियां और मतदान कर्मियों के लिए ही उपलब्ध है। (एजेंसी)

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