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भाजपा के चुनाव प्रचार के लिए प्रधानमंत्री क्या सरकारी अवकाश लेते हैं?

दिल्ली में मोदी की रैली के बहाने

(सत्यानंद निरुपम )-

satyanand-nirupamपीएमओ के मुताबिक पीएम कभी छुट्टी नहीं लेते। रविवार को भी काम करते हैं। प्रेरणादायी खबर है यह तो देशवासियों के लिए। कितनी अच्छी बात है! गाँधी जी ने कहा था- इस देश में हर व्यक्ति को कम से कम आठ घंटे काम करना ही चाहिए। यह और भी अच्छी बात है कि छुट्टी के रोज भी काम करना चाहिए, ऊपर से कोई छुट्टी भी नहीं लेनी चाहिए।

अब एक जिज्ञासा है। जब हम अपने घर का काम या दफ्तर से बाहर का कोई भी काम करने के लिए दफ्तर से बाहर होते हैं, तब हमारी छुट्टी लग जाती है। प्रधानमंत्री जी जब शनिवार के रोज अपनी माँ से मिलने के लिए सितम्बर में गुजरात गए, तब क्या उस रोज उनके अवकाश का दिन था? वह महीने का तीसरा शनिवार था।

जब भारत के प्रधानमंत्री जी भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनाव प्रचार करने बार-बार विभिन्न राज्यों में जाते रहे हैं, तब क्या वह भी भारत सरकार का काम होता है? क्या पार्टी का काम करना भारत सरकार का काम करना होता है? उसके लिए अवकाश की जरूरत नहीं होती?

क्या मेरे गाँव के मंगरू मिसिर जो कि भाजपा के समर्पित कार्यकर्ता हैं और एक सरकारी दफ्तर में सेकंड क्लास अधिकारी हैं, भाजपा की रैली के लिए कार्यकर्ता जुटाने खातिर एक रोज अपने दफ्तर से गायब रहें तो उनको भी सीएल लेने की जरूरत नहीं?

नियम क्या कहता है? देश के प्रधानमंत्री को पार्टी के प्रचार के लिए अपने कार्यालय से अवकाश की जरूरत क्यों नहीं होनी चाहिए? जानकार मार्गदर्शन करें।

@fb

अर्नब गोस्वामी ने जब स्मृति इरानी को कहा मिस मोदी

बहस के दौरान कई बार न्यूज़ एंकर के मुंह से कुछ ऐसा निकल जाता है जिसकी वजह से हंसी निकल पड़ती है और एंकर की तो सोशल मीडिया में भद पिट जाती है.

उसमें भी जब वो एंकर टाइम्स नाऊ के अर्नब गोस्वामी हो तब तो सोशल मीडिया पर आग लगना तय है. पूर्व में अर्नब गोस्वामी से ऐसी ही एक गलती जुबान फिसलने की वजह से हुई और उन्होंने स्मृति इरानी को मिस मोदी कह कर संबोधित कर दिया. देखिये वीडियो –

वीडियो अनुपलब्धता के लिए खेद है

कादंबनी शर्मा ने एनडीटीवी पर दशहरा के मौके पर अच्छी चर्चा की

(अम्बरीश कुमार,वरिष्ठ पत्रकार)-

एनडीटीवी पर दशहरा के मौके पर अच्छी चर्चा हुई .कादंबनी शर्मा ने बेहद शालीनता और सहजता से यह चर्चा कराई .उस दौर में जब ज्यादातर एंकर बिना उत्तेजित हुए ,,बिना चीखे चिल्लाए दो शब्द न बोल पाते हो ऐसी सहजता सुखद लगी .रावण भी स्टूडियों में रहे .अच्छे सवाल उठे .हम लोगों ने बचपन में रामलीला देखी और बहुत कुछ सीखा भी .आज की पीढ़ी खासकर शहरी समाज अब रामलीला कम देखता है .रामायण तो दूर की बात है .भारतीय समाज पर रामायण का बहुत ज्यादा असर है तो बहुत एशिया के बहुत से देशों पर भी .

(फेसबुक से साभार)

आलोक जोशी के सीएनबीसी आवाज़ में 12साल पूरे

आलोक जोशी,प्रबंध संपादक,सीएनबीसी आवाज़
आलोक जोशी,प्रबंध संपादक,सीएनबीसी आवाज़
आलोक जोशी,प्रबंध संपादक,सीएनबीसी आवाज़
आलोक जोशी,प्रबंध संपादक,सीएनबीसी आवाज़

किसी संस्थान में एक दशक बिता देना अपने आप में बड़ी बात है. बहुत कम लोग ही ऐसा कर पाते हैं क्योंकि इसके अपने साइड इफेक्ट भी है. लेकिन वरिष्ठ पत्रकार और सीएनबीसी-आवाज़ के मैनेजिंग एडिटर आलोक जोशी इनसे जुदा हैं. 6अक्टूबर,2016 को उन्होंने चैनल के साथ 12साल पूरे कर लिए.खास बात ये रही कि इतनी लंबी नौकरी के बावजूद वे किसी भी विवाद से बिल्कुल दूर रहे. कारोबारी चैनल के साथ जुड़े होने के बावजूद उनकी सरलता और स्पष्टता बरबस उनकी ओर ध्यान खींचता है. 12 साल पूरे होने पर सोशल मीडिया पर अपनी बात शेयर करते हुए वे कहते हैं –

आज मुंबई में और CNBC-Awaaz में 12साल पूरे हो गए।
यह मेरे करियर का सबसे लंबा पड़ाव है। बहुत सार्थक, स्मरणीय और एक ऐसा मुक़ाम जहाँ मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला, और आज भी मिल रहा है।
सभी साथियों और शुभचिंतकों को धन्यवाद। और उन मित्रों को भी जिन्होंने इस अनजान शहर में बेगानापन महसूस नहीं होने दिया।

आलोक जोशी ने सीएनबीसी के अलावा बीबीसी,आजतक,आईटीवी,दैनिक जागरण,नवभारत टाइम्स के साथ भी किया है. उन्होंने भारत में टेलीविजन पत्रकारिता के जनक एसपी सिंह के साथ भी काम किया है.

कुछ वक्त पहले ही उन्होंने वरिष्ठ पत्रकार संजय पुगलिया की जगह पर सीएनबीसी – आवाज़ की कमान संभाली. उनका कारवां ऐसे ही आगे बढ़ता रहे, ऐसी मीडिया खबर की शुभकामना है.

दस-दस नौकरी करनेवाले होते हैं न्यूज चैनल में लोग

news channel

न्यूज चैनलों की खबर फैलाने, लिंक साझा करने से पहले क्रॉस मीडिया रीडरशिप की आदत डालिए. परस्पर विरोधी मिजाज के चैनल को एक बार देख आइए. नहीं तो आपका बेकार में 10-12 एमबी डेटा पैक रांगा( बर्बाद) होगा और हमें समझते देर नहीं लगेगी कि आप भी भसड़ जमात में से ही हो.

उनका कुछ नहीं बिगड़ने जा रहा है. जाकर हाजिरी लगा आएंगे या फिर किसी और मामले में आपको-हमको राष्ट्रद्रोही साबित करने में जुट जाएंगे. हमारे-आपके रिश्ते, बीच की तरलता और समझदारी वाली बातचीत की संभावना खत्म होती चली जाएगी. इस देश में लोकतंत्र सबसे पहले हमारे-आपके बीच खत्म होगा. देश की बारी तो बहुत बाद में आती है.

असल में न्यूज चैनल के अधिकांश लोग एक ही साथ दस नौकरी करते हैं. चैनल की, फेसबुक की, व्हॉट्स अप की, ट्विटर की, इस्टाग्राम की, टीटीएम की, पीआर एजेंसी की, , इमोशन्स केटरिंग की, प्रोपेगेंडा की, राजनीतिक दलों के वॉररूम की और किसिम-किसिम की डीलिंग की तो है ही.
ऐसे में वो कौन सी खबर किस नौकरी के तहत दिखा-बता रहे हैं, आपको पता करने में मुश्किल होगी. क्रॉस मीडिया रीडरशिप की आदत डालने से काफी कुछ फर्क कर पाएंगे.

(मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार के फेसबुक वॉल से)

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