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एनडीटीवी पर जनाक्रोश का सर्जिकल स्ट्राइक

बरखा दत्त

एनडीटीवी पर अचानक पी चिदंबरम का इंटरव्यू जारी नहीं करने , देशहित में ज्ञापन जारी करने साथ ही राष्ट्रवाद की ओर कदम बढ़ाने का अभिप्राय ये बिलकुल नहीं है कि एनडीटीवी ने सरकार के सामने घुटने टेक दिया। ये सरासर कोरी बकवास है। एनडीटीवी और उसके कुछ पत्रकारों पर देश विरोधी होने के आरोप लगना कोई नयी बात नहीं है 2014 के बाद इसमें काफी तेजी आयी है ये सत्य है।

एनडीटीवी पर जनाक्रोश का सर्जिकल स्ट्राइक
एनडीटीवी पर जनाक्रोश का सर्जिकल स्ट्राइक

लेकिन कई मुद्दों जैसे अख़लाक़ की हत्या, असहिष्णुता का मुद्दा, पुरस्कार वापसी, रोहित वेमुला,जेएनयू प्रकरण, उना प्रकरण, बिहार चुनाव, जीएसटी पर नकारात्मक डिबेट जैसे अनेकों प्रकरण है जिसमे एनडीटीवी ने सरकार का खुलकर विरोध किया क्या उस समय सरकार इनका कुछ बिगाड़ पायी जो अब बिगाड़ लेगी । रवीश कुमार के ब्लॉग,और सरकार के किसी नेता के नाम ख़त उनके सरकार विरोध की मानसिकता को दर्शाते है ।

एनडीटीवी को कांग्रेसी चैनल का तमगा पहले से हासिल है ये जगजाहिर है। लेकिन कांग्रेस की बदतर हालत ने वैकल्पिक तौर पर उसे आम आदमी पार्टी के नजदीक जाने का मौका दिया।अक्सर देखा गया है की आप के नेता अपनी काली करतूतों के कारण चैनलों की डिबेट से भागते फिर रहे है लेकिन एनडीटीवी पर वे काफी सहज सहज और सर्वसुलभ रहते है ।सरकार से उनके मतभेद इस कदर है की सरकार के हर काम की आलोचना करना अपना परम धर्म समझते है एनडीटीवी भी इससे अछूता नहीं है।

ndtv-rajnitiक्या इतने विरोधभास के बाद भी एनडीटीवी को घुटनों पर लाना सरकार के लिए संभव होगा ? जम्मू कश्मीर में उरी की आतंकी घटना के बाद भारतीय जनमानस का आक्रोश इतना तीव्र था की सरकार के पसीने छूट गए ।सरकार समर्थक और विरोधी एक सुर में कारवाई की मांग करने लगे लेकिन जब केरल में मोदी ने भाषण दिया तो इसकी सराहना रवीश कुमार,बरखा दत्त,बुद्धिजीवियो,वामपन्थियो ने सबसे पहले की।लेकिन जनमानस ,सरकार को मनमोहन की फोटोकॉपी कहने में बिलकुल नहीं चूका ।

लेकिन जब सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक कर दी जिसकी देशभर में अभूतपूर्व सराहना हुई तो विपक्ष को साँप सूंघ गया तो उन्होंने सबूत मांग लिया लेकिन तत्काल वे जनाक्रोश के आगे नतमस्तक हो गए।

ऐसे जनाक्रोश में सर्जिकल स्ट्राइक को कमतर दिखाने की कोशिश मे एनडीटीवी को चिदंबरम का इंटरव्यू जारी करना महंगा पड़ता । एनडीटीवी को आज अपनी देश विरोधी छवि से दूर निकलने की छटपटाहट है न की सरकार के दबाव में आने की ।

अभय सिंह
राजनैतिक विश्लेषक

जयललिता की बीमारी पर सोशल मीडिया पर इतना बवाल !

JAYALALITHA
जयललिता
निरंजन परिहार
निरंजन परिहार

जयललिता बीमार हैं। वे अब 68 साल की हैं और यह नहीं पता कि आप जब यह पढ़ रहे होंगे, तब वे बीमारी से निजात पाकर अस्पताल से अपने घर आ चुकी होंगी या वहीं इलाज करा रही होंगी। लेकिन उनकी बीमारी को लेकर तमिलनाड़ु में ही नहीं, देश भर में जो कोहराम मचा हुआ है वह इससे पहले भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास में कभी किसी ने नहीं देखा। एक सीएम के बीमार होने को किसी राष्ट्रीय संकट के सात्विक स्वरूप में देश के सामने खड़ा कर दिए जाने की संभवतया यह पहली घटना है। बाहर क्या घट रहा है, इससे बिल्कुल नावाकिफ जयललिता अस्पताल में जिस अवस्था में हैं, उसके बारे में डाक्टर ही बेहतर बता सकते हैं। लेकिन एक लौहमहिला के शुभचिंतक और अशुभचिंतक दोनों ही इस बार कुछ ज्यादा ही चिंतित है।

तमिलनाड़ु की मुख्यमंत्री जयललिता को बीते 22 सितंबर को बुखार और डिहाइड्रेशन की शिकायत हुई, तो वे चेन्नई के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराई गईं। लेकिन उनकी इस बीमारी की खबर फैलते ही राजनीतिक चक्र पता नहीं कैसे इतनी तेजी से घूमा कि वे जैसे ही अस्पताल में गईं, उनकी सेहत को लेकर, समाज से लेकर सांसदों में और विपक्ष से लेकर विरासत संभालनेवालों तक में हर स्तर पर हर तरह के कयास लगाए जाने लगे। तमिलनाड़ु का विपक्ष उनकी पार्टी ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पर मुख्यमंत्री की सेहत की जानकारी छिपाने का आरोप लगाते हुए सरकार से इस पर बयान जारी करने की भी मांग कर रहा है। तो बीमारी को लेकर मद्रास हाईकोर्ट में पीआईएल भी लगाई गई। जयललिता के स्वस्थ होने तक अंतरिम मुख्यमंत्री नियुक्त करने की मांग तक की गई। वह भी उस प्रदेश में, जिसने करुणानिधि जैसे बेहद बीमार वृद्ध को बरसों तक सीएम के रूप में देखा है। माहौल ऐसा बनाया गया है जैसे आज तक किसी प्रदेश के सीएम बीमार ही नहीं हुए हों। देश में संभवतया यह पहली बार हुआ है कि किसी सीएम की बीमारी को इस कदर राजनीतिक रंग देने की कोशिश की गई हो और निहायत द्वेषपूर्ण तरीके से सोशल मीडिया पर जयललिता को दिन में कई कई बार मरा हुआ भी घोषित कर दिया गया हो। तमिलनाडु पुलिस ने अपनी मुख्यमंत्री की सेहत के बारे में गलत और जानकारी फैलाने के आरोप में कुल 44 मामले दर्ज किए हैं। और दो लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है। लेकिन लोग हैं कि अफवाहें फैलाने से बाज ही नहीं आ रहे। शुक्र है जयललिता जिंदा है और जिंदगी को जिस भी हाल में जी रही है, वहां से वे ठीक होकर लोटें, यह कामना करनेवालों की भी कमी नहीं है। दरअसल, जयललिता ठीक हैं भी और ठीक नहीं भी हैं। ठीक वह इस मायने में हैं कि उम्र के जिस दौर में वे हैं, उसमें शरीर वैसे भी कोई बहुत ज्यादा समर्थ अवस्था में साथ नहीं देता। उम्र के लिहाज से वे सत्तर साल के करीब हैं और इस उम्र में असकर सारे लोग अस्पताल आते जाते रहे हैं। लेकिन अगर जयललिता को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पड़ी, तो ठीक है। पर, बार बार उनको लेकर किसी भी तरह की अफवाहें उड़ाने की किसी को छूट क्यों दी जानी चाहिए।

तमिलनाड़ु में 32 साल से चली आ रही हर बार सरकार बदलने की परंपरा का राजनीतिक इतिहास उलटते हुए जयललिता लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए इसी साल 23 मई 2016 को छठी बार मुख्यमंत्री के बनीं थीं। तब से लेकर आज तक करुणामिधि और उनकी पार्टी ने जयललिता के खुंदक निकालने का कोई मौका नहीं छोड़ा। ताजा विवाद के पीछे भी करुणनिधि की पार्टी डीएमके का कमाल ज्यादा माना जा रहा है। कर्नाटक के मंड्या जिले के पांडवपुरा तालुका के मेलुरकोट गांव में 24 फ़रवरी 1948 को एक ‘अय्यर’ परिवार में जन्मी जयललिता देश की राजनीति में ताकतवर महिला के रूप में अपने चमत्क़त कर देनेवाले अंदाज में आज भी हैं और कल भी थीं। डीएमके पार्टी के करुणानिधि से उनकी व्यक्तिगत दुश्मनी की हदें दुनिया देख ही चुकी हैं। लेकिन उनकी ताकत को भी लोग मानते हैं। इसी कारण तमिलनाड़ु के लोग जयललिता को आदर के साथ अम्मा कहते हैं। वे खबरों को अपने तानेबाने में बुनती रही है। शायद, यही वजह है कि उनका अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती होना भी रोज खबरों पर खबरें बरसाए जा रहा है। रोज कोई न कोई बड़ा नेता जयललिता से मिलने अस्पताल पहुंच रहा हैं। कांग्रेस के राजकुमार राहुल गांधी भी चार दिन पहले उनसे अस्पताल जाकर मिल आए हैं। हालांकि कुछ साल पहले पता नहीं किस मंशा में सुश्री जे. जयललिता ने कांग्रेस को भंग करने की बात कही थी। और अपनी बात को साबित करने के लिए बहुत सारे साक्ष्य भी खोज लिए थे। जयललिता का कहना था कि देश की स्वतंत्रता के बाद महात्मा गांधी कांग्रेस पार्टी को भंग करना चाहते थे। अपनी बात साबित करने करने लिए अम्मा आक्रामक रूप से जो बहुत सारे दस्तावेज भी लाई थीं। उनमें से ‘दी कलेक्टेड वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी-वॉल्यूम 90’ के वे कुछ अंश भी उन्होंने विधानसभा में पढ़े, जिनमें महात्मा गांधी ने यह भावना व्यक्त की थी कि देश आजाद हो गया है, अब कांग्रेस की जरूरत नहीं है। जयललिता ने तब यह भी कहा था कि कांग्रेस को अब समाप्त कर देना चाहिए। उस समाप्त कर दी जानेवाली कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी का दिल्ली की रैली में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शहीदों के खून का दलाल बताने के दूसरे ही दिन जयललिता का हाल जानने चेन्नई पहुंचना बहुत लोगों को भले ही समझ में नहीं आया। लेकिन इस यात्रा की राजनीतिक सोच यही थी कि प्रधानमंत्री को शहीदों के खून का दलाली करनेवाला बताने से मचे हंगामे से मामला जयललिता के स्वास्थ्य की तरफ शिफ्ट हो जाएगा। मतलब, साफ है कि राहुल गांधी ने भी जयललिता की बीमारी को भी अपने लिए राजनीतिक ढाल के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश की।

कुल मिलाकर जयललिता बीमार है और ईश्वर करे, उन्हें कोई बहुत गंभीर बीमारी भले ही न हो, लेकिन लोग उसे कुछ ज्यादा ही गंभीरता से ले रहे हैं, यह बहुत ज्यादा गंभीर बात है।। उनकी बीमारी पर पर विवाद भी बहुत हो रहा है। लेकिन असल में देखें, तो विवादों को जन्म देना तो असल में जयललिता का शगल रहा है और उनसे घिरे रहना उनकी किस्मत का हिस्सा। विवाद शायद इसीलिए जयललिता का पीछा नहीं छोड़ते। वैसे जयललिता रणनीति की भी उस्ताद रही हैं। वे एक सोची समझी रणनीति के तहत अपनी हीरोइन मां का दामन थामकर किसी लाजवंती नायिका की तरह तमिल सिनेमा में आईं और एमजीआर के नाम से बहुत प्रसिद्ध तब के वहां के सुपर स्टार एमजी रामचंद्रन की परम सखी के रूप में छा जाने की रणनीति में कब सफल हो गईं, किसी को पता भी नहीं चल सका। बाद में रामचंद्रन राजनीति में घुसे। चूंकि वे सुपर स्टार थे, इसलिए उनके नाम से पार्टी चलने लगी। और राजनीतिक कारणों से तो नहीं पर श्रृंगारिक कारणों की वजह से अपनी रणनीतियों के तहत जयललिता स्वयं को एमजीआर का सच्चा उत्तराधिकारी मानती थीं, जिसमें वे सफल भी रहीं। एमजीआर की बाकायदा धर्मपत्नी होने के बावजूद बेचारी जानकी तो कहीं किसी भी परिदृश्य में भी नहीं थी। हर जगह जयललिता ही एमजीआर के साथ दिखतीं। उन रणनीतिबाज जयललिता से कांग्रेस का कलह शुरू से ही रहा। लेकिन फिर भी वे कांग्रेसियों के फाइनेंस की हुई फिल्मों में भी जयललिता भरपूर नखरे किया करती थी। छठी बार सीएम बनना कोई हंसी खेल नहीं है। यह राजनीति का शिखर है। उसी शिखर पर बैठी अम्मा अकसर लोगों को मुंहतोड़ जवाब देती रही हैं। राजनैतिक जीवन के दौरान जयललिता पर सरकारी पूंजी के गबन, गैर कानूनी ढंग से भूमि अधिग्रहण और आय से अधिक संपत्ति के आरोप लगे। उन्हें आय से अधिक संपत्ति के एक मामले में सजा भी हुई और मुख्यमंत्री पद भी छोड़ना पड़ा पर वे कभी जिंदगी से नहीं हारी नहीं। भीषण किस्म के भ्रष्टाचार के मामलों और कोर्ट से सजा होने के बावजूद वे अपनी पार्टी को संसद से लेकर विधानसभा में भारी बहुमत के साथ जिताने में सफल रहीं। इसीलिए जो लोग अम्मा को जानते हैं, वे यह भी मानते ही हैं कि अस्पताल की भवबाधाओं से मुक्ति पाने के बाद वहां से बाहर निकलकर जयललिता के शरीर ने साथ दिया तो, वे चुप नहीं रहेंगी, यह तय है। वैसे भी हर बात पर कोहराम मचाना और कुछ भी चुपचाप सहन कर जाना उनकी आदत का हिस्सा नहीं है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)

कैमरा-माइक लेकर जाइए और उत्तराखंड में करोड़पति बन जाइए

वेद उनियाल,वरिष्ठ पत्रकार

वेद उनियाल,वरिष्ठ पत्रकार
वेद उनियाल,वरिष्ठ पत्रकार

अगर आप बेरोजगार है तो उत्तराखंड आइए । एक कैमरा और एक माइक लेकर। आपको सवा करोड रुपए का विज्ञापन मिल सकता है।

एक बडे अखबार के पत्रकार को जब उसके संस्थान ने हटाया तो वह अपने गांव नहीं गया। वह उत्राखंड में ही जम गया। क्योंकि उसकी कामधेनु तो यहीं थीं। उसने जुगाड लगाया और छोटे से टीवी चैनल में चला गया । चला क्या गया उसे वहीं से शुरू किया। अब सुनने में आया है कि एक विज्ञापन का कमीशन उसे इतना मिल गया कि तीन पुश्त पाल लेगा।

हाल इसके ऐसे हैं कि देहरादून में एक घंटाघर है इसके अलावा ये पहाड के बारे में कुछ नहीं जानता। पिछला पत्रकारिता का इतिहास कुछ नहीं। केवल देहरादून इनके लिए आमदनी कमाने का ससुराल है।
केदारनाथ की आपदा आई तो इन लुटेरों के हाथ पांव फूल गए थे। पहाडों से आई खबरों पर विश्लेषण नुमा पेंबद लिखते थे। हाल ये है कि न उत्तराखंड की संस्कृति का पता , न राजनीति का पता न खान पान का पता, न संस्कृति का पता, लेकिन बडे बडे पद हथियाए हुए हैं। या लाइजनिंग करके पाए हुए हैं। न जाने पहाड़ के पत्रकार कहां चले गए। कुछ तो चिंता करते अपने पहाड़ की। कुछ ही मैदानी पत्रकार हैं जो गरिमा के साथ अपना काम कर रहे हैं। पत्रकारिता का धर्म निभा रहे हैं। बाकि यहां अधेंर गर्दी मचाने आए हैं।

दस साल पहले इनके पास साइकिल में हवा भरने के लिए पंप खरीदने का पैसा नहीं होता था। आज आलीशीन गाडियों में घूम रहे हैं। सब कमीशन का खेल है।

उत्तराखंड में तबाही मची है लेकिन लूटने वालों के लिए समुंदर हैं। कोई पूछने वाला नहीं। पिछले पांच दस साल में कई पत्रकार यहां डेरा जमाकर बैठ गए हैं। हर आदमी यहां मीडिया संस्थान में नौकरी करने खासकर ब्यूरों मीडिया में जाने के लिए लालायित है। सब गौरखपुर कानपुर इलाहाबाद के बजाय देहरादून में ही धूनी रमाना पसंद कर रहे हैं।

कुछ पत्रकार घरों में अपने लोगों को फोन करते हैं , बस जरा चुनाव निपट जाएं फिर यहां से आते हैं। जाहिर है नेताओं के जरिए चुनाव में वो धीरू भाई अंबानी बनना चाहते हैं। उत्तराखंड की जितना सर्वनाश मीडिया और छद्म किस्म के पत्रकारों के जरिए हो रहा उतना किसी और के जरिए नहीं। ऐसे पत्रकार जो एक पैरा नहीं लिख पाते हैं , जिन्हें न्यूज विश्लेषण लेख किसी चीज की समझ नहीं। यहां तक कि पेज बनाने का भी शहूर नहीं। लेकिन चापलूसी जुगाडबाजी गुटबाजी से बडे पदों पर बैठे हैं।

एबीपी पर प्रसारित महाराणा प्रताप की कहानी वेद उनियाल की ज़ुबानी

ved uniyal, journalist
वेद उनियाल,वरिष्ठ पत्रकार




वेद उनियाल के जरिए जानिए एबीपी न्यूज़ पर प्रसारित महाराणा प्रताप की गाथा

वेद उनियाल,वरिष्ठ पत्रकार
वेद उनियाल,वरिष्ठ पत्रकार

एबीपी न्यूज़ पर ‘भारतवर्ष’ का प्रसारण पिछले कुछ समय से हो रहा है जिसे हरेक शनिवार और रविवार को रात 10 बजे दिखाया जाता है. इसमें हरेक बार एक व्यक्ति विशेष की गाथा दिलचस्प अंदाज़ में बताई जाती है. इस बार का एपिसोड महाराणा प्रताप पर था. इसी एपिसोड पर वरिष्ठ पत्रकार ‘वेद उनियाल’ की टिप्पणी और पूरे एपिसोड की समीक्षा –

1- एबीपी चैनल के भारतवर्ष सीरियल में इस बार का एपिसोड महाराणा प्रताप पर केंद्रित था। महाराणा प्रताप यानी बचपन के काकी नाम से कहे जाने वाले इस नायक को पृथ्वीराज चौहान से कुछ अलग देखना होगा। पथ्वीराज वीर योद्धा थे, लेकिन उनकी महत्वकांक्षा और पडौसी राजाओं से लड़ाई में उनका अहंकार भी झलकता था। एक तरह का अहंकार जिसने गौरी को पराधीन होने पर भी मुक्त होने का अवसर दिया। जो संयोगिता का खुलेआम हरण कर सकता था। इसके विपरीत महाराणा प्रताप का शौर्य अपने राज्य और लोगों के लिए था। उसमें अहंकार के बजाय जीवटता और त्याग नजर आता है। उनमें देशभक्ति कूट -कूट कर भरी थी। उनमें आपसी राजाओं से ईर्ष्या के प्रसंग नजर नहीं आते।

2- इस सीरियल ने बखूबी समझाया कि जिस तरह नादिरशाह ने दिल्ली को जीतने के बाद भी कत्लेआमी का आदेश दिया और दिल्ली को रौंद दिया बिल्कुल उसी तरह अकबर के सैनिकों ने चित्तौड को जीतने के बाद भी उसे रौंदा, लोगों को तडपा दिया। चित्तोड लाशों से पट गया। फिर यही से सवाल भी उठता है कि कैसे समान घटनाओं में एक राजा महान हो जाता है और दूसरा दुर्दांत। कैसे अकबर के साथ महान शब्द जुडता है। इतिहास को कई संदर्भों में रेखांकित किए जाने की जरूरत है।

4- महाराणा सच्चे मायनों में नायक थे। इतिहास अकबर पर जितना लिखता है उतना महाराणा प्रताप पर नहीं। चैनल का यह ऐपिसोड इस मामले में महत्वपूर्ण था कि कई तथ्यों के साथ सामने आया। यह बताता हुआ कि किस तरह अकबर बादशाह भी अपने इस शत्रु के प्रति मन ही मन सम्मान करता था। उसके निधन की खबर पर वह लगभग बिलख उठा। चैनल में इस प्रसंग को अच्छे ढंग से दिखाया गया। खासकर अंतिम भावुकता के क्षणों को बहुत कुशलता से दिखाया गया।

5- हल्दीघाटी के युद्ध और चेतक की वीरता का इतिहास में वर्णन आता है। अच्छा होता कि अगर चेतक के स्मारक को दिखाया जाता , या फिर नाले की उस जगह को जहां फंलाग मार कर चेतक ने राणाप्रताप को बचाया और फिर वीरगति प्राप्त की।




6- अकबर को सही स्वरूप में दिखाया गया। फिल्म मुगले आजम अकबर ेक भव्य स्वरूप को प्रस्तुत करने के लोभ से नहीं बच सकी। जबकि इतिहास के पन्ने कहते हैं कि अकबर का व्यक्तित्व बहुत साधारण सा था। वह चारों दिशाओं को जीतने वाला सम्राट था लेकिन हमेशा अपने करीबियों से महाराणा प्रताप के शौर्य व्यक्तित्व की प्रशंसा करते था।

7- मानसिंह से जुड़े प्रसंग को ठीक तरह से दिखाया गया। पर मानसिंह और महाराणा प्रताप के पूर्व संबंधों का जिक्र किया जाना चाहिए था।

8 – चैनल हल्दीघाटी के मैदान को भी दिखााता तो और रुचिकर होता

9- चेतक का वर्णन किया जाना चाहिए था। बहुत रुचिकर बातें हैैं उसके बारे में।

10- उस घटना का स्मरण नहीं किया गया जब बिल्ली के जरिए घास की रोटी छीनने पर दुखी होकर महाराणा के करीबियों ने अकबर से संधि का दवाब डाला। कहा जाता है कि एक गलत पत्र भी अकबर तक पहुंचा था। इन बातों का भी उल्लेख हो सकता था

पत्रकारों ने मुहिम चलायी तो यूपी पुलिस हरकत में आयी

लूटपाट के शिकार पत्रकार आलोक
लूटपाट के शिकार पत्रकार आलोक

डीडी न्यूज़ के वरिष्ठ संवाददाता कुमार आलोक के साथ इंदिरापुरम (गाजियाबाद) में लूटपाट हुई और प्रतिरोध करने पर पिटाई भी की. ख़ैर अस्पताल में इलाज करवाने के बाद थाने में एफआईआर दर्ज करवाना चाहा तो मामला दर्ज नहीं हुआ.लेकिन आजतक के पत्रकार सुशांत झा और बाकी पत्रकारों के सोशल मीडिया पर अभियान चलाने के बाद यूपी पुलिस हरकत में आयी और मामले पर कार्रवाई शुरू हुई. सुनिए सुशांत झा की जुबानी यूपी पुलिस की कहानी –

सुशांत झा

लूटपाट के शिकार पत्रकार आलोक
लूटपाट के शिकार पत्रकार आलोक

मुझे पहले भी लगता था कि Akhilesh Yadav उतने बुरे आदमी नहीं है और ट्विटर का असर वाकई धीरे-धीरे हो रहा है. ताजा घटना सुनिए. Kumar Alok वरिष्ठ संवाददाता है DD News में. हमारा पुराना परिचय है, हालांकि वे आभासी रूप से बाएं बाजू वाले हैं. कल उनके साथ लूटपाट हुई, हमला हुआ और वे जख्मी हो गए.

बहन के यहां से इंदिरापुरम्(गाजियाबाद) के ज्ञानखंड से लौट रहे थे. तभी अपराधियों ने हमला किया. जो कुछ साथ में था-मसलन मोबाइल, घड़ी, कुछ रोकड़े-सब छीन लिये और प्रतिरोध करने पर जबर्दस्त पिटाई की.

जैसे-तैसे पास के अस्पताल गए और सिर में टांके लगवाए. किसी का मोबाइल मांगकर परिवार को फोन किया. पुलिस में शिकायत करने पर पहले नाम पूछा गया. नाम बताया- कुमार आलोक, पिता का नाम-सिद्धेश्वर पांडे.

“ओहो पांडेयजी हैं! अरे महाराज, जाइये इलाज-बिलाज करवाइये ठीक से. कहां पड़े हुए हैं थाना के चक्कर में”.
जाहिर है FIR नहीं लिखी गई.

अभी कुछ देर पहले Manjit Thakur ने ट्वीट किया जिसमें यूपी के आलाअधिकारी, CM अखिलेश और बसपा को टैग किया गया. मैंने भी रिट्वीट किया.

खबर है कि संबंधित थाना क्षेत्र के ASI और दो पुलिस कांस्टेबुल सस्पेंड कर दिए गए हैं.

देश अलग अंदाज में बदल रहा है.

जाति के नाम पर न्याय नहीं देनेवाले भी बदस्तूर मौजूद हैं. लेकिन काम करनेवाले भी धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं.

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