भोपाल। देशभर में चर्चित संस्कृत बैंड ‘ध्रुवा’ की अनूठी संगीत प्रस्तुति 15 अक्टूबर को रवीन्द्र भवन, भोपाल में है। इस बैंड ने ऋग्वेद, पौराणिक ग्रंथों के मंत्रों को भारतीय और पाश्चात्य संगीत के साथ तैयार किया है। इस बैंड की खासियत यह है कि यह केवल संस्कृत में प्रस्तुति देता है।
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के पूर्व विद्यार्थी सम्मेलन में शनिवार को शाम 6 बजे रवीन्द्र भवन के मुक्ताकाश मंच से ध्रुवा बैंड अपनी बेहतरीन प्रस्तुति से सबका ध्यान आकर्षित करने के लिए तैयार है। इस बैंड के संयोजक एवं निर्माता डॉ. संजय द्विवेदी ने बताया कि देश में अब तक कई कार्यक्रम कर चुके हैं। यह न केवल भारत का, बल्कि दुनिया का पहला संस्कृत बैंड है।
उन्होंने बताया कि इस बैंड के जरिए उनका उद्देश्य संस्कृत को आम भाषा बनाना है। संस्कृत को आम लोगों तक पहुंचाने का प्रयास ही ध्रुवा है। उन्होंने बताया कि बैंड के सभी सदस्य प्रतिदिन चार घंटे अभ्यास करते हैं।
विश्वविद्यालय के कार्यक्रम के लिए ध्रुवा बैंड के समूह ने विशेष तैयारियाँ की हैं। पत्रकारिता एवं संचार के विद्यार्थियों के बीच संस्कृत में संगीत की प्रस्तुति देकर वह दुनिया के कोने-कोने तक इस भाषा को पहुँचाना चाहता है। इस कार्यक्रम में नगरवासी आमंत्रित हैं।
बैंड की प्रस्तुति में यह रहता है खास : पश्चिमी संगीत के साथ मंत्रों और श्लोकों को कुछ इस तरह ढालते हैं कि यह सीधा सुनने वाले के दिल पर असर करता है। यह बैंड ऋग्वेद के मंत्रों, आदि शंकराचार्य के रचे ‘भज गोविंदम’ भजन, शिव तांडव के ऊर्जा से सरोबार मंत्र, जयदेव के लिखे गीत गोविंदम, अभिज्ञान शाकुंतलम के प्रेम पत्रों वगैरह से मंत्र और श्लोक लेता है और इन्हें संगीत की धुन में पिरोता है। इनके अलावा बैंड अपनी खुद की लिखी कविताएं और गद्य का भी इस्तेमाल करता है। ध्रुवा द्वारा गाए गए कई गीत सोशल मीडिया पर वायरल हो चुके हैं।
पत्रकारों के छोटे छोटे मसले हो..चाहे वेतन से जुड़े हों या नौकरी से, अगर अटल बिहारी वाजपेयी दिल्ली में होते तो प्रेस क्लब के गेट पर ज़रूर पहुँचते. धरना हो या रैली,वो कुछ देर बैठते , कुछ दूर साथ चलते. कम लोग जानते हैं कि वाजपेयी, दिल्ली से छपने वाले अखबार वीर अर्जुन के कई साल संपादक रहे. तब उनके पास दिल्ली में घर नही था तो अक्सर अख़बार के दफ्तर में ही चादर बिछा रात में सो जाते थे.
1957 में जब वो संसद पहुंचे तो फिर घर भी उन्हें मिल गया. ये महज़ इत्तेफाक है कि अटलजी, शास्त्री भवन के सामने स्थित प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया के आसपास ही रहे. 60 के दशक में वो थोड़ी दूर स्थित राजेंद्र प्रसाद रोड पर रहते थे और 80 के दशक आते आते तो वो 6 रायसीना रोड के बंगले में ही आ गए. 6 रायसीना रोड , प्रेस क्लब से बस चंद कदम ही दूर है.
ऐसा नही कि अटलजी सत्तर के दशक में देश की राजनीती में किसी गिनती में नही थे. बल्कि प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया की पुरानी फाइल के मुताबिक, 1970 -71 में देश के जिन शीर्षस्थ नेताओं को प्रेस क्लब ने आमंत्रित किया उसमे जगजीवन राम, मधुलिमये और अटल बिहारी वाजपेयी प्रमुख थे. इस फाइल में ये भी लिखा है कि सिर्फ अटलजी ही बड़े नेताओं में एक थे जो खुद पत्रकारों की चाय पीने के लिए प्रेस क्लब सहजता से पहुँचते थे. उन्हें कई बार पैदल आते हुए देखा गया. और प्रेस क्लब आने का उनका सिलसिला कई वर्षों तक चला.
मित्रों, ये पोस्ट बेहद साधारण सी है लेकिन इस पोस्ट का सिर्फ एक शब्द ज़रूर मन में संजो लीजियेगा. शब्द है सहजता. simplicity. ये नेता ही नही बड़े आदमी की पहचान है.
( ये चित्र भी प्रेस क्लब आफ इंडिया की पुराने फाइल से. इस चित्र को प्रेस क्लब ने अपनी पत्रिका में भी प्रकाशित किया है) @fb
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में दुनिया भर के नाटकों को मिलेगा मंच
19 अक्टूबर से शुरू होगा नाट्य विद्यालयों का 9वां एशिया-पेसिफिक ब्यूरो सम्मेलन
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में दुनिया भर के नाटकों को मिलेगा मंच
नई दिल्ली, 13 अक्टूबर: देश की प्रमुख नाट्य शिक्षण संस्था – राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) में दुनिया के विभिन्न हिस्सों के बेहतरीन थिएटर स्कूलों का भव्य समागम होने जा रहा है। एनएसडी परिसर में होने वाले इस समागम की तैयारियां पूरी हो चुकी है। मंच सज चुके हैं और पर्दा उठने ही वाला है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दुनिया भर के नाट्य विद्यालयों के 9 वें एशिया-पेसिफिक ब्यूरो (एपीबी) सम्मेलन की मेज़बानी करने वाला है। इस सम्मेलन में नई दिल्ली स्थित एनएसडी सहित विभिन्न देशों ; बंगलादेश , चीन, इंडोनेशिया, ईरान, जापान, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर और थाईलैंड सहित दस देशों के 14 नाट्य स्कूल हिस्सा लेंगे। इन विद्यालयों के प्रतिनिधि एवं छात्र एशिया पेसिफिक क्षेत्र के नाट्य विद्यालयों के वार्षिक सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए एनएसडी के परिसर में जुटेंगे। कुल मिलाकर इस आयोजन में 20 देशों का प्रतिनिधित्व होगा। इस सम्मेलन में इन देशों के पर्यवेक्षक, शिक्षक और छात्र भी शामिल होंगे। देश के इस अग्रणी और प्रमुख नाट्य विद्यालय में आयोजित होने वाले विश्व स्तरीय सांस्कृतिक रंगमंच आयोजन की तैयारी को लेकर भरपूर उत्साह है। एनएसडी में 19 से 25 अक्तूबर तक होने वाले इस व्यापक आयोजन को सफल तरीके से सम्पन्न करने के लिए पूरे जोर-षोर से तैयारियां चल रही है। एपीबी सम्मेलन के इस साल के संस्करण का मुख्य विशय है – ‘‘समकालीन मंचीय संस्कृति में एशिया की क्षमता।’’ सम्मेलन के दौरान एशिया में समकालीन मंचीय संस्कृति तथा इसमें सामग्री, स्वरूप एवं शैली के संदर्भ में योगदान देने वाले परम्परावाद, आधुनिकीकरण और अन्य कारकों के विभिन्न तत्वों की समीक्षा होगी।
एपीबी सम्मेलन अंतरराष्ट्रीय स्तर का सर्वाधिक दिलचस्प थिएटर आयोजन है जो एशिया पेसिफिक क्षेत्र के नाट्य विद्यालयों को मंच प्रदान करता है। इसमें हिस्सा लेने वाले स्कूल मंचीय प्रदर्षनों तथा इसके तकनीकी पहलुओं में विभिन्न सांस्कृतिक बारीकियों का पता लगाएंगे तथा इन पर विस्तार से विचार-विमर्ष करेंगे। यह महोत्सव छात्रों एवं संकाय (फैकल्टी) दोनों के लिए एक दुर्लभ अवसर है।
इस आयोजन के इस संस्करण में भाग लेने वाले स्कूलों के लिए एक व्यापक शिक्षा कार्यक्रम की व्यवस्था की गई है। इसमें महोत्सव प्रदर्शन, निर्देशकों की बैठक, संवाद सत्र एवं कार्यषाला शामिल है। हर विद्यालय अन्य सभी विद्यालयों के लिए कार्यषाला आयोजित करेंगे जिसमें उस स्कूल की ओर से प्रतिभागियों के लिए अभ्यास श्रंृखलाओं के माध्यम से अपने यहां के प्रशिक्षण के तौर-तरीकों के बारे में जानकारी दी जाएगी। इसके अलावा एक व्यवहारिक सत्र भी होगा जहां हर स्कूल को मंचन के लिए स्टूडियो स्थल उपलब्ध कराया जाएगा। इस सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले स्कूल 45 मिनट की छात्र प्रस्तुति पेष करेंगे। यह एनएसडी के फ्लेक्सिबल परफारमेंस स्पेस में आयोजित होगा।
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेश क प्रो. वामन केंद्रे ने कहा, ‘‘यह एक और अवसर है जहां एशिया पेसिफिक ब्यूरो के स्कूल एक दूसरे के समक्ष अपनी क्षमता को प्रदर्षित कर सकेंगे तथा एक दूसरे के साथ अपने अनुभवों को साझा कर सकेंगे। यह एनएसडी के लिए भी एक ऐसा मंच है जहां समृद्ध भारतीय रंगमंचीय विरासत को प्रदर्षित किया जाए तथा दुनिया के समक्ष समकालीन तथा परम्परागत रंगमंचीय विविधता को दिखाया जाए।
यह अवधारणा है कि पष्चिमी रंगमंच की तुलना में एशिया पेसिफिक क्षेत्र की अलग सांस्कृतिक विषेशता है और इसलिए रंगमंच के कलाकारों, नाट्य लेखकों तथा दर्षकों के बीच विचारों का आदान-प्रदान किए जाने तथा नई संभावनाओं का पता लगाए जाने की जरूरत है। इसी विचार से नाट्य स्कूलों के एशिया पेसिफिक ब्यूरो की स्थापना हुई। हर साल एपीबी का सम्मेलन आयोजित होता है जिसमें नाटक के छात्रों एवं षिक्षकों को अनेक तरह से एक दूसरे के साथ संवाद करने के अवसर मिलते हैं। एक सप्ताह तक चलने वाले इस आयोजन के दौरान प्रतिभागी कार्यषाला में, संकाय सदस्यों द्वारा दी जाने वाली प्रस्तुतियों, अभ्यास सत्रों तथा अन्य कार्यक्रमों के जरिए अपने विचारों एवं अनुभवों का आदान-प्रदान कर सकते हैं। एपीबी के इस संस्करण की अध्यक्षता कर रही एनएसडी की प्रोफसर सुश्री त्रिपुरारी शर्मा कहती हैं, ‘‘विभिन्न संस्कृतियों के सम्मेलन और कहानियों तथा मंचीय अवधारणाओं के आदान-प्रदान से रंगकर्म की कला समृद्ध होती है।’’
एपीबी सम्मेलन की भावना एक दूसरे के साथ जुड़ने, एक दूसरे के साथ विचार साझा करने, एक दूसरे से संवाद करने तथा एक दूसरे से सीखने की है। यह रंगमंच के शिक्षण एवं अभ्यास के लिए मूल्यवान और आवश्यक है। एपीबी सम्मेलन की मेज़बानी करना एक गौरव है और यह गौरव राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय को दूसरी बार मिल रहा है। पहली बार एनएसडी को यह महत्वपूर्ण दायित्व 2011 में मिला था।
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की स्थापना 1958 में हुई थी और इस अंतराल के दौरान इसके छात्रों की प्रतिभा, कुषल संकाय संदस्यों के प्रयासों तथा सम्मानित निदेश कों के दिषा-निर्देषों की बदौलत यह दुनिया के सर्वश्रेश्ठ नाट्य वि़द्यालयों में षुमार हो गया। इस विद्यालय के पास दो मंचीय प्रभाग हैं – रेपर्टरी कंपनी और थिएटर-इन-एजुकेशन कंपनी।
इन दोनों प्रभागों के अलावा स्कूल के पास सक्रिय विस्तार कार्यक्रम, प्रकाशन अनुभाग और श्रुति नामक एक साहित्यिक मंच है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय ने देश भर में रंगकर्म तथा कला की अन्य विद्याओं के विकास के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है ओर इसके लिए कई महत्वपूर्ण पहल की है। इनमें प्रमुख हैं – भारत रंग महोत्सव, बाल संगम, जश्न-ए-बचपन, रविवार क्लब, पूर्वोत्तर नाट्य समारोह और राष्ट्रीय पूर्वोत्तर रंगमंच महोत्सव। प्रो वामन केंद्रे अपनी नियुक्ति के समय से ही शिक्षाविदों, बुनियादी ढांचे, परिसर के सौंदर्यीकरण आदि में सुधार के लिए काम करते रहे हैं। उन्हें लीमा, पेरू में आयोजित जीएटीएस आम सभा में वर्श 2016-17 के लिए एशिया ई मामलों का उपाध्यक्ष भी चुना गया है जो इस संस्थान के लिए एक और गौरव गाथा है।
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) के बारे में: राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दुनिया में प्रमुख थिएटर प्रशिक्षण संस्थानों में से एक है। यह भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संगठन है। सालों से, संस्थान ने बेहतरीन अभिनेताओं, निर्देशकों, पटकथा लेखकों, तकनीशियनों और शिक्षाविदों को निर्माण किया है जो थिएटर, फिल्म और टेलीविजन में काम करते हुए एक मुकाम दिया है। एनएसडी के पूर्व छात्र पद्म भूषण और पद्म श्री सहित देश में और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई सर्वोच्च सम्मानों से सम्मानित हो चुके हैं। संस्थान भारत रंग महोत्सव (1997 से), जश्न-ए-बचपन, बाल संगम, पूर्वोत्तर नाट्य समारोह और नार्थ ईस्ट थियेटर फेस्टिवल जैसे कई वार्षिक और द्विवार्षिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के थिएटर त्योहारों का आयोजन कराता है। प्रोफेसर वामन केंद्रे 2013 से एनएसडी के निदेशक हैं।
भोपाल, 13 अक्टूबर। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय अपने रजत जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में बृहद स्तर पर पूर्व विद्यार्थी सम्मेलन का आयोजन कर रहा है। यह आयोजन 15 अक्टूबर को रविन्द्र भवन में होगा। सम्मेलन के मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार एवं राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष बल्देव भाई शर्मा, विशिष्ट अतिथि विश्वविद्यालय के संस्थापक महानिदेशक एवं वरिष्ठ पत्रकार राधेश्याम शर्मा, मुख्य वक्ता राज्यसभा टीवी के कार्यकारी निदेशक राजेश बादल उपस्थित होंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला करेंगे। इस अवसर पर विद्वानों से संवाद के साथ ही पूर्व विद्यार्थी भी अपनी सफलता की कहानी सबके साथ साझा करेंगे। सम्मेलन का शुभारम्भ सुबह 11 बजे से होगा। इसके पहले पंजीयन सुबह 10:30 बजे प्रारंभ हो जाएगा। शाम को 6 बजे से देश के पहले संस्कृत बैंड ‘ध्रुवा’ की रोचक प्रस्तुति होगी। सांस्कृतिक कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ‘चाणक्य’ के रूप में प्रख्यात एवं जाने-माने फिल्म निर्देशक डॉ. चन्द्रप्रकाश द्विवेदी होंगे।
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की अब तक की यात्रा स्वर्णिम रही है। विश्वविद्यालय ने 25 वर्षों में प्रगति के नए आयाम प्राप्त किए हैं। संचार के इस युग में कुशल संचारकों की आवश्यकता को विश्वविद्यालय पूरा कर रहा है। यहाँ के विद्यार्थी देशभर के प्रमुख मीडिया एवं संचार के संस्थानों में प्रमुख पदों पर कार्यरत हैं। विद्यार्थियों की सफलता की कहानियाँ स्वयं ही विश्वविद्यालय के विकास की परिचायक हैं। रजत जयंती वर्ष जैसे महत्त्वपूर्ण और हर्ष के अवसर पर विश्वविद्यालय ने अपने सभी पूर्व विद्यार्थियों को एकत्र करने का निर्णय लिया है। पूर्व विद्यार्थी सम्मेलन में उद्घाटन समारोह के बाद विद्यार्थियों के लिए खुला सत्र, चर्चा सत्र और समूह सत्रों का आयोजन किया जाएगा। ताकि सभी विद्यार्थी अपनी स्मृतियों को ताजा कर सकें, मिलजुल सकें और एक-दूसरे से परिचित हो सकें। सम्मेलन में शामिल होने के लिए ऑनलाइन पंजीयन के माध्यम से बड़ी संख्या में विद्यार्थियों के आने की सूचना है। विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के 1991 से 2016 तक के विद्यार्थी देशभर से भोपाल पहुँच रहे हैं।
‘रजत पथ’ का विमोचन : विश्वविद्यालय के रजत जयंती वर्ष के अवसर पर पूर्व विद्यार्थियों के अनुभवों और स्मृतियों पर आधारित पुस्तक ‘रजत पथ’ भी तैयार की गई है। इस पुस्तक का विमोचन भी पूर्व विद्यार्थी सम्मेलन में किया जाएगा।
संस्कृत बैंड की आकर्षक प्रस्तुति : रविन्द्र भवन के मुक्ताकाश मंच पर शाम 6 बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। जिसमें आकर्षण का केन्द्र होगा, संस्कृत बैंड ‘ध्रुवा’। यह देश का पहला और एकमात्र संस्कृत बैंड है। ध्रुवा की प्रस्तुतियों की देशभर में चर्चा है। सांस्कृतिक कार्यक्रम में नगर के गणमान्य नागरिक भी उपस्थित रहेंगे।
कर्मवीर कमल,एडिटर, द एशियन क्रॉनिकल्स (The Asian Chronicle)-
सुधीर चौधरी, एंकर, डीएनए
मैं ज़ी न्यूज़ को उस समय से जानता हूँ जबसे वीररप्पन को। दूरदर्शन के दौर मे डीडी-1 पर आने वाले समाचार के बाद कुछ देखा तो “आज तक मे पेश है अभी तक की खबरे” वाला आज तक और आँखो देखी। वैसे तो वीररप्पन और ज़ी न्यूज़ का कोई आपस मे लेना देना है नहीं, परंतु चैनल बदलते बदलते टीवी कब वीररप्पन की जीवन गाथा ज़ी न्यूज़ के एक न्यूज़ शो “इनसाइड स्टोरी” पर जा रुका पता ही नहीं चला। स्टोरी इंट्रेस्टिंग थी सो पूरी देखी और जाना की कौन हैं विरप्पन। तो इस तरह ज़ी न्यूज़ से मेरी पहचान हुई।
अब बात ज़ी न्यूज़ वाले चौधरी साहब आपकी। काफी समय से बल्कि कई सालो से आपका ये डीएनए रेगुलर ही देख रहा था। न्यूज़ के मामले मे डीएनए के अलावा सिर्फ पुण्य प्रसुन जोशी का 10 तक ही पसंद है, रविश की रिपोर्ट भी अच्छी ही लगती है। कभी मुझे ये तीनों ही न्यूज़ प्रोग्राम बेहतरीन लगते थे। चौधरी साहब पिछले काफी समय या शायद कुछ ही सालो से आप पत्रकारिता क्या होती है अपने इस शो के माध्यम से सभी को सीखा रहे है, आपका ये तकिया कलाम था की अब जी न्यूज़ बताएगा की सच्ची पत्रकारिता क्या होती है।
जरा कोई खबर आपने चालाई तो बोलने लगे की अब ज़ी न्यूज़ देखाएगा की सच्ची पत्रकारिता। सुधीर जी, क्या होती है सच्ची पत्रकारिता? बाकी चैनल को भी तो सिखाओ। कैसे होती है सच्ची पत्रकारिता?
आजकल आपने नए शब्द की खोज की है… “डिज़ाइनर पत्रकार।” क्या होता है ये डिज़ाइनर पत्रकार? ज़रा बताओ तो, है क्या इसकी परिभाषा। आज भी जब आपके शो मे ये डिज़ाइनर पत्रकार बार बार सुन रहा था को बड़ा चुभ रहा था। कभी मुझे आपकी निष्पक्ष खबरे अच्छी लगती थी, पर आजकल जबसे बड़े साहब कमल पर बैठ कर राज्य सभा गए है (ये और बात है की इसमे विवाद हो गया है, और मामला जांच मे चल रहा है) आप एक तरफा हो गए हो। बात बात पे पत्रकारिता सिखाने लगते हो, पाकिस्तान भेजने लगते हो।
ऐसा क्या हो गया की आप बात बात पर सच्ची पत्रकारिता का जिक्र करने लगते हो? आपको बार बार ये क्यूँ साबित करना पड़ता है की आप भी सच्ची पत्रकारिता करते हो या कर सकते हो।
आपने भारत के पत्रकारो को पाकिस्तान मे जा कर रेपोर्टिंग करने को बोला है। पत्रकारो की तो भारत मे भी हत्या होती है सर जी। 2015 मे 110 के करीब जर्नलिस्ट की हत्या हुई थी, भारत 3 देशो की सूची मे खतरनाक के पायदान पर था।
आप भी आरएसएस और बीजेपी नेताओ की तरह बात बात पर लोगो को पाकिस्तान भेजने लगे हो। कोई ट्रांसपोर्ट का बिज़नस तो… खैर छोड़िए इस बात को। मेरे पास पासपोर्ट नहीं है, बनवा दो और वीज़ा दिला दो तो देख ले हम भी गांधी जी के उस वक्त के हिंदुस्तान की उस हिस्से को भी, भगत सिंह के लाहोर को भी। भारत के बिछड़े और बिगड़े उसके भाई को भी।
बार बार डिज़ाइनर पत्रकार और सच्ची पत्रकारिता आपको याद आ रही है। कहीं ऐसा तो नहीं आपके दिल से अभी साल 2012 गया नहीं। जब कोल की कालिख के बीच 100 करोड़ी पत्रकारिता का डिज़ाइन चेंज हो गया था।
सुधीर जी, पांचों उंगलिया एक समान नहीं होती, इसीलिए आप बार बार ये डिज़ाइनर पत्रकारिता और सच्ची पत्रकारिता का आलाप करना छोड़ दे, बाकी लोग भी आप ही की तरह मेहनत करते है।