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इंडिया टीवी का पक्ष लिया तो अजीत अंजुम की हुई किरकिरी

ajit-anjum-hashtagसोशल मीडिया दोधारी तलवार है. यहाँ तारीफ़ मिलती है, हज़ारों लाइक्स मिलती है तो आलोचना और गालियों के लिए भी तैयार रहिये. ऐसा ही कुछ अजीत अंजुम के साथ हुआ है. दरअसल उन्होंने सोशल मीडिया में इंडिया टीवी के खिलाफ चल रहे मुहिम #IndiaTVExposed पर चैनल का पक्ष रखा था. (पढ़ें- अजीत अंजुम का केजरीवाल पर सर्जिकल स्ट्राइक बस फिर क्या था, लोगों ने उनके वॉल पर जाकर ही उन्हें खरी-खरी सुनाना शुरू कर दिया. देखिये कुछ टिप्पणियाँ –

Shoeb Siddiqui हाहाहाहाहा ।।।।।
आप के इस पोस्ट पर मुझे हंसी आरही है। सब जानते हैं ज़ी न्यूज़ और इंडिया टीवी बीजेपी की दलाल है।
आपको शहाबुद्दीन पर रोना आरहा था और असीमानंद पर मौन हैं।
आप और आपका चैनल दोनों दोगले हैं।

Saroj Kumar इंडिया टी वी की सफाई देकर क्यों अपने चरित्र पर बट्टा लगा रहे हो ?

Gajendra Mewara इमरान को छोड़िये साहब। रजत शर्मा खुद ही चैनल को चार चांद लगा रहे हैं।
पत्रकार से पक्षकार बनने को दर्शक बखूबी समझते है।

Saleem Akhter Siddiqui अजीत अंजुम साहब। आपकी इज्जत करते हैं सब। ये कमेंट से पता चलता है, लेकिन इंडिया टीवी की लोगों में क्या इज्जत है, यह आपको आज पता चल गया होगा। ये किसी टीवी चैनल का ओपिनियन पोल नहीं है, जिसका यह पता न चले कि उन्होंने किस तरह काम किया। ये सार्वजनिक चौपाल है। एकदम सच्ची खरी बातें कहीं हैं लोगों ने। अगर इंडिया टीवी पर सवाल उठाने वाले मुसलमान होते तो बचाव में कहा जा सकता था कि वे तो हैं ही मोदी विरोधी। लेकिन यहां 90 प्रतिशत हिंदुओं ने सवाल उठाए हैं। हां, एक रास्ता है बचाव का। इन सभी हिंदुओं को आप वामपमंथी कहकर बच सकते हैं।

पुष्कर पुष्प आपलोग अजीत जी को बेवजह घेर रहे हैं।ये उनकी प्रोफेशनल प्रतिबद्धता का हिस्सा है।लेकिन जो बातें इस रिपोर्टर के बारे में उन्होंने कही है,वो सच के करीब है। बाकी किस चैनल की किससे नजदीकी है ये सबको पता है और कोई छुपाना भी नहीं चाहता।वैसे निष्पक्ष तो हम और आप भी नहीं हैं।

Vijay Kumar इंडिया टीवी के निष्पक्षता पर तो खुद रजत शर्मा को यकीन नही होगा,,,,फिर भी आपकी बात से इतना ही कहा जा सकता है कि 2019 की सत्ता बदल की संभावना के मद्देनजर पाला बदल की आधारशिला रखी जा रही है परंतु अब इतना आगे बढ़ चुके हैं कि वापसी नामुमकिन है

Sunil Nigam अजीत जी हम समझ सकते हैं इंडिया टीवी की तरफदारी करने की अापकी मजबूरी….लेकिन पब्‍िलक को इतना भी गया गुजरा मत समझिए वो कुछ जानती ही नहीं. इंडिया टीवी की मोदी के प्रति अंध्‍ाभक्‍ित के बारे सभ्‍ाी जानते हैं….हालाकि आपकी मैं बेहद रेस्‍पेक्‍ट करता हूं as a निर्भीक, निडर, अथक कुशल, संजीदा अौर अनुभवी पत्रकार के रूप में….मेरा ऐसा मानना है कि आपकी अौर इंडिया टीवी की पैसनैलिटी मैच नहीं करती….न्‍यूज 24 में आप पत्रकारिता करते थे लेकिन इंडिया टीवी में सिर्फ नौकरी कर रहे हैं…..अगर फिर पत्रकारिता करना चाहते हैं तो इंडिया टीवी से विदा ले लीजिए…वराना ऐसे ही सच जानने के बावजूद झूठ की तरफदारी करनी पडेगी आपको….बुरा मत मानिएगा…आपका ही श्‍ाुभचिंतक हुूं…..

Shamim Akhtar अजीत सही समय है जब आप जिस चैनल मे काम कर रहे हैं उसकी विश्ववसनीयता का सर्वे करवा लें

Rohit Sharma I am surprised that you are defending India Tv on Modi Bhakti. it’s really amazed me sir doing job in company is one thing but supporting on wrong thing is another thing. it’s very open secret that your boss Rajat Sharma is Modi dalla without any doubt. Now i lost respect from you

Amit Singh न्यूक २४ पर अापके अच्छे काम को देखकर मै अापको फांलो करता हू । अापको अपके अच्छे काम के लिए अापको बधाई।इंडिया टीवी और जी टीवी के लिए मेरी धारणा स्पष्ट है कि ये भाजपा का सहयोगी चैनल है।जब इंडिया टिवी पत्रकारिता के सिद्धान्तो के विपरीत जा कर किसी एक दल का पक्ष मजबूती से रखेंगें तो इस तरह के प्रोपोगेन्डे का सामना तो करना ही पड़ेगा।

Atul Anand जिस रजत शर्मा की आप नौकरी कर रहे हैं और उसके चैनल को बचाने की कोशिश, उसी रजत शर्मा ने एक तनु शर्मा नाम की पत्रकार को कॉर्पोरेट घराने में धंधे पे भेजने की कोशिश करी थी। मना करने पे जीना हराम कर दिया और उसने आत्महत्या की कोशिश की। उसके बाद भी उसे नहीं छोड़ा और उसको औरउसके परिवर को प्रताड़ित करते रहे। पर आप इनकी भक्ति करते रहिये। पापी पेट का सवाल जो ठहरा।

Abhishek Jaiswal har tv channel aisi hi safai pesh karta hai expose hone k baad… media channel k andar kya chalta hai sabko pata hai… india ko no ullu banawaing….

Ravi Verma Sir personally I respect u but u know very well that how much ur channel is biasive…just ask ur inner soul…hate rajat

Bijay Kumar कोन नहीं जानता INDIA TV और BJP के रिस्तो को ,बेकार की सफाई हैं आपकी

Gurjeet Gurjeet Good. Convinced. Btw there was a point I just couldn’t swallow. Why should one write a protest letter to the alleged BENEFICIARY?
Like · Reply · 10 October at 22:39

Gurjeet Gurjeet Just to clarify. I am not satisfied with India TV’s reporting. But my reservations are not a bit because of Imran’s letter.

Abiding Adi कोनसा चैनल अछूता है बिकने से ? अब तो न्यूज़ ऐसे दिखाते है जैसे रामसे बंधू की होर्रर फिल्म हो ? न्यूज़ चैनल देश के असल मुद्दों से हट के बस सारा दिन रात सत्ता धारियो की चापलूसी में लगे है। ऐसे में कोई आरोप भी लगाए तो क्या फर्क पड़ता है।

Satendra Upadhyay सर आपको नही लगता आप बेकार की टेंशन लेते है उसकी सफलता ये नही की उसकी वजह से ये सब हो रहा है बल्कि उसकी सफलता है कि आप उस बारे मे कुछ लिख रहे है ।सर वो कहावत सुनी है न हाथी चले अपनी चाल आगे नही बोलुगॉ ।

Kubool Qureshi वैसे भी इंडिया टीवी को कोई गंभीरता से नहीं लेता,,, संघी जैनल है इसमें कोई दो राय नहीं,,,,ये वही चैनल जहां एक एंकर ने आफिस में जहर खाकर आत्म हत्या की कोशिश की थी,,,, इसीलिए ये बताने की जरूरत नहीं है कि चैनल का रंग रूप कैसा है

Prem Prakash Chaudhary आप का लोग सम्मान करते हैं। हम भी करते हैं। लेकिन रजत शर्मा के नीचे गिरने का कोई अंत नहीं है। अगर पत्रकारिता पर धब्बा ढूढना हो तो रजत शर्मा को याद करना चाहिए। जनता को सब पता है। आपके इस पोस्ट के कोई मायने नहीं। आप कोयले की खदान में हीरा हैं, बस।

यूपी में सर्जिकल स्ट्राइक और मोदी का जादू चल रहा है तो पंजाब में क्यों नहीं

अंजना ओम कश्यप,एंकर,आजतक
अंजना ओम कश्यप,एंकर,आजतक

anjan-om-kashyap-rajtilakmedia news in hindi : हालाँकि टीवी चैनलों के चुनाव सर्वेक्षणों पर मेरा बहुत भरोसा नहीं है, मगर आज तक ने यूपी और पंजाब के जो नतीजे दिखाए हैं उनसे ये मेरे मन में एक सवाल उठ रहा है। वह सवाल ये है कि अगर यूपी में सर्जिकल स्ट्राइक और मोदी का जादू चल रहा है तो पंजाब में क्यों नहीं। कायदे से तो वहाँ बीेजेपी-अकाली को स्वीप करना चाहिए, मगर वह सुदूर तीसरे नंबर पर दिख रही है।

वैसे यूपी में बीजेपी को नंबर वन बनाना भी मुझे बहुत विश्वसनीय नहीं लग रहा। बीएसपी के बारे में मीडिया का आकलन हमेशा दुराग्रहों से भरा रहा है और पहले उसके अनुमान ग़लत साबित होते रहे हैं। इसके बावजूद सर्वेक्षण के नतीजों में वह मज़बूत दिख रही है। ऐसे में मुझे लगता है कि वह उससे भी ज़्यादा मज़बूत स्थिति में होगी जितनी सर्वेक्षण में दिखाई गई है। (मुकेश कुमार,वरिष्ठ पत्रकार)

गोडसे द्वारा संपादित पत्रिका “अग्रणी” में छपा कार्टून

गोडसे द्वारा संपादित पत्रिका
गोडसे द्वारा संपादित पत्रिका "अग्रणी" में छपा कार्टून

(मुकेश कुमार)- छद्म राष्ट्रवादी बेशक इसे झुठलाते रहें कि उन्होंने बापू की हत्या नहीं की, मगर ये कार्टून बताता है कि ऐसा करने की प्रबल इच्छा उनमें थी।

(अशोक कुमार पांडे)- यह कार्टून आज़ादी के पहले 1945 में नारायण आप्टे द्वारा प्रकाशित और गोडसे द्वारा संपादित पत्रिका “अग्रणी” में छपा था. Gopal Rathi जी की वाल से मिला. इसे गौर से देखिएगा. पटेल भी हैं इसमें और अम्बेडकर भी. आज जब वे उन्हें क्लेम कर रहे हैं तो यह कार्टून उस क्लेम की असलियत बता रहा है.

झूठ के पाँव होते हैं, लेकिन सच की ज़मीन पर रखते ही गल जाते हैं वे. चाहूंगा कि मित्र शेयर करें इसे. सच की ज़मीन विस्तारित करें. @fb

गोडसे द्वारा संपादित पत्रिका "अग्रणी" में छपा कार्टून
गोडसे द्वारा संपादित पत्रिका “अग्रणी” में छपा कार्टून

भारतीय मूल्यों पर आधारित शिक्षा जरूरी

(संजय द्विवेदी)-

सजाय द्विवेदी
सजाय द्विवेदी

किसी देश या समाज की सफलता दरअसल उसकी शिक्षा में छिपी होती है। भारत जैसे देश का दुनिया में लंबे अरसे तक डंका बजता रहा तो इसका कारण यहां की ज्ञान परंपरा ही रही है। आज हमारी शिक्षा व्यवस्था पर चौतरफा दबाव हैं। हम सब अभिभावक, शिक्षक और प्रशासन तीनों भूमिकाओं में खुद को विफल पा रहे हैं। देश के बुद्धिजीवी इन सवालों को उठाते तो हैं पर समाधान नहीं सुझाते। बाजार का रथ लगता है, पूरी शिक्षा को जल्दी अपने अश्वमेघ का हिस्सा बना लेगा। ज्ञान, विज्ञान और चरित्र हमारे जीवन दर्शन में शिक्षा का आधार रहा है। हमारी भारतीय ज्ञान परंपरा, समग्र ज्ञान से बने जीवन दर्शन पर आधारित है। लेकिन हम देख रहे हैं कि हमारी पीढियां फैक्ट्री जैसी शिक्षा पाने के लिए विवश हैं। आज उन्हें ‘कीमत’ तो पता है पर ‘मूल्य’ को वे नहीं जानते।

हमारे देश का आदर्श ग्लोबलाइजेशन नहीं हो सकता। वसुधैव कुटुम्बकम् ही हमारी वास्तविक सोच और वैश्विक सोच को प्रगट करता है। हम अपनी ज्ञान परंपरा में सिर्फ स्वयं का नहीं बल्कि समूचे लोक का विचार करते हैं। शिक्षा से मुनाफा कमाने की होड़ के समय में हमारे सारे मूल्य धराशाही हो चुके हैं। पहले भी शिक्षा का व्यवसायिक चरित्र था किंतु आज शिक्षा का व्यापारीकरण हो रहा है। एक दुकान या फैक्ट्री खोलने की तरह एक स्कूल डाल लेने का चलन बढ़ रहा है, जबकि यह खतरनाक प्रवृत्ति है।

वैसे भी जो समाज व्यापार के बजाए शिक्षा से मुनाफा कमाने लगे उसका तो राम ही मालिक है। हमारे ऋषियों-मुनियों ने जिस तरह की जिजीविषा से शिक्षा को सेवा और स्वाध्याय से जोड़ा था वह तत्व बहुलतः शिक्षा व्यवस्था और तंत्र से गायब होता जा रहा है। इस ऐतिहासिक फेरबदल ने हमारे शिक्षा जगत से चिंतन, शोध और अनुसंधान बंद कर दिया है। पश्चिम के दर्शन और तौर-तरीकों को स्वीकार करते हुए अपनी जड़ें खोद डालीं। आज हम न तो पश्चिम की तरह बन पाए, न पूरब का सत्व और तेज बचा पाए। इसका परिणाम है कि हमारे पास इस शिक्षा से जानकारी और ज्ञान तो आ गई पर उसके अनुरूप आचरण नहीं है। जीवन में आचरण की गिरावट और फिसलन का जो दौर है वह जारी है। यह कहां जाकर रूकेगा कहा नहीं जा सकता। भारतीय जीवन मूल्य और जीवन दर्शन अब किताबी बातें लगती हैं। उन्हें अपनाने और जीवन में उतारने की कोशिशों बेमानी साबित हो रही हैं।

सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले संगठनों के कई प्रवक्ता कहते हैं ‘परमवैभव’ ही हमारा ‘विजन’ है। किंतु इसके लिए हमारी कोशिशें क्या हैं। विश्व में जो श्रेष्ठ है, सर्वश्रेष्ठ है-विश्व मानवता को उसे मिलना ही चाहिए। एक नए भारत का निर्माण ही इसका रास्ता है। वह कैसे संभव है जाहिर तौर पर शिक्षा के द्वारा। इंडिया को भारत बनाने की कठिन यात्रा हमें आज ही शुरू करनी होगी। जनमानस जाग चुका है। जगाने की जरूरत नहीं है। नई पीढ़ी भी अंगड़ाई लेकर उठ चुकी है। वह संकल्पबद्ध है। अधीर है, अपने सामने एक नया भारत गढ़ना और देखना चाहती है। वह एक ऐसे भारत का निर्माण करना चाहती है, जिसमें वह स्वाभिमान के साथ अपना विकास कर सके। सवाल उठता है कि फिर बाधक कौन है। जाहिर तौर हम, हमारी परंपरागत व्यवस्थाएं, गुलामी के अवशेष, पुरानी पीढ़ी की सोच, धारणाएं, विचारधाराएं इस परिवर्तन की बाधक हैं। आजादी के पहले जो कुछ हुआ उसके लिए हम लार्ड मैकाले को कोसते रहते हैं किंतु इन सात दशकों में जो घटा है उसका दोष किस पर देगें? एक स्वाभिमानयुक्त भारत और भारतीयों का निर्माण करने के बजाए हमने आत्मदैन्य से युक्त और परजीवी भारतीयों का निर्माण किया है। इन सात दशकों के पाप की जिम्मेदारी तो हमें ही लेनी होगी। सच्चाई तो यह है कि हमारे आईटीआई और आईआईएम जैसे महान प्रयोग भी विदेशों को मानव संसाधन देने वाले संस्थान ही साबित हुए। बाकी चर्चा तो व्यर्थ है।

किंतु समाज आज एक नई करवट ले रहा है। उसे लगने लगा है कि कहीं कुछ चूक हुयी है। सर्वश्रेष्ठ हमारे पास है, हम सर्वश्रेष्ठ हैं। किंतु अचानक क्या हुआ? वेद, नाट्यशास्त्र, न्यायशास्त्र, ज्योतिष और खगोल गणनाएं हमारी ज्ञान परंपरा की अन्यतम उपलब्धियां हैं पर फिर भी हम आत्म दैन्य से क्यों भरे हैं? देश में स्वतंत्र बुद्धिजीवियों का अकाल क्यों पड़ गया? एक समय कुलपति कहता था तो राजा उसकी मानता। कुलगुरू की महिमा अनंत थी। आज दरबारों में सिर्फ दरबारियों की जगह है। शिक्षा शास्त्रियों को विचार करना होगा कि उनकी जगह क्यों कम हुयी? साथ ही उन्हें गरिमा की पुर्नस्थापना के सचेतन प्रयास करने होगें। विश्वविद्यालय जो ज्ञान के केंद्र हैं और होने चाहिए। वे आज सिर्फ परीक्षा केंद्र बनकर क्यों रह गए हैं? अपने परिसरों को ज्ञान,शोध और परामर्श का केंद्र हम कब बनाएंगे? विश्वविद्यालय परिसरों की स्वायत्तता का दिन प्रतिदिन होता क्षरण, बढ़ता राजनीतिकरण इसके लिए जिम्मेदार है। स्वायत्तता और सम्म्मान दोनों न हो तो शिक्षा क्षेत्र में होने के मायने भी क्या हैं? कोई भी विश्वविद्यालय या परिसर स्वायत्तता, सम्मान और विश्वास से ही बनता है। क्या ऐसा बनाने की रूचि शिक्षाविदों और ऐसे बनने देने की इच्छाशक्ति हमारे राजनीतिक और प्रशासनिक तंत्र में है।

(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में जनसंचार विभाग के अध्यक्ष हैं)

क्योंकि रावण अपना चरित्र जानता है




(संजय स्वदेश)-

ravan-dahanकथा का तानाबाना तुलसीबाबा ने कुछ ऐसा बुना की रावण रावण बन गया। मानस मध्ययुग की रचना है। हर युग के देशकाल का प्रभाव तत्कालीन समय की रचनाओं में सहज ही परीलक्षित होता है। रावण का पतन का मूल सीता हरण है। पर सीताहरण की मूल वजह क्या है? गंभीरता से विचार करें। कई लेखक, विचारक रावण का पक्ष का उठाते रहे हैं। बुरी पृवत्तियों वाले ढेरों रावण आज भी जिंदा हैं। कागज के रावण फूंकने से इन पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। पर जिस पौराणिक पात्र वाले रावण की बात की जा रही है, उसे ईमानदार नजरिये से देखे। विचार करें। यदि कोई किसी के बहन का नाक काट दे तो भाई क्या करेगा। आज 21वीं सदी में ऐसी घटना किसी भी सच्चे भाई के साथ होगी, तो निश्चय ही प्रतिशोध की आग में धधक उठेगा। फिर मध्य युग में सुर्पनखा के नाम का बदला रामण क्यों नहीं लेता। संभवत्त मध्ययुग के अराजक समाज में तो यह और भी समान्य बात रही होगी।

अपहृत नारी पर अपहरणकर्ता का वश चलता है। रावण ने बलात्कार नहीं किया। सीता की गरीमा का ध्यान रखा। उसे मालूम था कि सीता वनवासी बन पति के साथ सास-श्वसुर के बचनों का पालन कर रही है। इसलिए वैभवशाली लंका में रावण ने सीता को रखने के लिए अशोक बाटिका में रखा। सीता को पटरानी बनाने का प्रस्ताव दिया। लेकिन इसके लिए जबरदस्ती नहीं की। दरअसल का मध्य युग पूरी तरह से सत्ता संघर्ष और नारी के भोगी प्रवृत्ति का युग है। इसी आलोक में तो राजेंद्र यादव हनुमान को पहला आतंकवादी की संज्ञा देते हैं। निश्चय ही कोई किसी के महल में रात में जाये और रात में सबसे खूबसूरत वाटिका को उजाड़े तो उसे क्यों नहीं दंडित किया जाए। रावण ने भी तो यहीं किया। सत्ता संघर्ष का पूरा जंजाल रामायण में दिखता है। ऋषि-मुनि दंडाकारण्य में तपत्या कर रहे थे या जासूसी। रघुकुल के प्रति निष्ठा दिखानेवाले तपस्वी दंडाकारण्य अस्त्र-शस्त्रों का संग्रह क्यों करते थे। उनका कार्य तो तप का है। जैसे ही योद्धा राम यहां आते हैं, उन्हें अस्त्र-शस्त्रों की शक्ति प्रदान करते हैं।

उन्हीं अस्त्र-शस्त्रों से राम आगे बढ़ते हैं। मध्ययुग में सत्ता का जो संघर्ष था, वह किसी न किसी रूप में आज भी है। सत्ताधारी और संघर्षी बदले हुए हैं। छल और प्रपंच किसी न किसी रूप में आज भी चल रहे हैं। सत्ता की हमेशा जय होती रही है। राम की सत्ता प्रभावी हुई, तो किसी किसी ने उनके खिलाफ मुंह नहीं खोला। लेकिन जनता के मन से राम के प्रति संदेह नहीं गया। तभी एक धोबी के लांछन पर सीता को महल से निकाल देते हैं। वह भी उस सीता को तो गर्भवती थी। यह विवाद पारिवारीक मसला था। आज भी ऐसा हो रहा है। आपसी रिश्ते के संदेह में आज भी कई महिलाओं को घर से बेघर कर दिया जाता है। फिर राम के इस प्रवृत्ति को रावण की तरह क्यों नहीं देखी जाती है। जबकि इस तरह घर से निकालने के लिए आधुनिक युग में घरेलू हिंसा कानून के तहत महिलाआें को सुरक्षा दे दी गई है। बहन की रक्षा, उनकी मर्यादा हनन करने वालों को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा, पराई नारी को हाथ नहीं लगाने का उज्ज्वल चरित्र तो रावण में दिखता है। लोग कहते भी है कि रावण प्रकांड पंडित था। फिर भी उसका गुणगणान नहीं होता। विभिषण सदाचारी थे। रामभक्त थे। पर उसे कोई सम्मान कहां देता है। सत्ता की लालच में रावण की मृत्यु का राज बताने की सजा मिली। सत्ता के प्रभाव से चाहे जैसा भी साहित्या रचा जाए, इतिहास लिखा जाए। हकीकत को जानने वाला जनमानस उसे कभी मान्यता नहीं देता है। तभी तो उज्ज्वल चरित्र वाले विभिषण आज भी समाज में प्रतिष्ठा के लिए तरसते रहे। सत्ता का प्रभाव था, राम महिमा मंडित हो गए। पिता की अज्ञा मानकर वनवास जाने तक राम के चरित्र पर संदेह नहीं। लेकिन इसके पीछे सत्ता विस्तार की नीति जनहीत में नहीं थी। राम राजा थे। मध्य युग में सत्ता का विस्तार राजा के लक्षण थे। पर प्रकांड पंडित रावण ने सत्ता का विस्तार का प्रयास नहीं किया। हालांकि दूसरे रामायण में देवताओं के साथ युद्ध की बात आती है। पर देवताओं के छल-पंपंच के किस्से कम नहीं हैं।

काश, कागज के रावण फूंकने वाले कम से कम उसके उदत्ता चरित्र से सबक लेते। बहन पर होने वाले अत्याचार को रोकने के लिए हिम्मत दिखाते। उसकी रक्षा करते। परायी नारी के साथ जबरदस्ती नहीं करते। ऐसी सीख नहीं पीढ़ी को देते। समाज बदलता। मुझे लगता है कि राम चरित्र की असंतुलित शिक्षा का ही प्रभाव है कि 21वीं सदी में भी अनेक महिलाएं जिस पति को देवता मानती है, वहीं उन पर शक करता है, घर से निकालता है। संभवत: यहीं कारण है कि आज धुं-धुं कर जलता हुए रावण के मुंह से चीख निकलने के बजाय हंसी निकलती है। क्योंकि वह जनता है कि जिस लिए उसे जलाया जा रहा है, वह चरित्र उसका नहीं आज के मानव रूपी राम का है।




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