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मौत पर भी छोटा सा ब्रेक,अर्णब गोस्वामी से क्यों नहीं सीखते – ओम थानवी

1. ‘छोटा-सा ब्रेक’: जब देश शोक में डूबा हो, टीवी चैनल हर दामिनी पर हुए दमन के खिलाफ मोमबत्तियों की रोशनी और बेहतर न्याय पर चर्चाएं हम तक पहुंचा रहे हों — क्या उस गंभीर घड़ी में उन विज्ञापनों का रेला वहां थोड़ी देर के लिए थम नहीं सकता, जिनमें औरत को सामान बेचने के लिए जिंस की तरह इस्तेमाल किया गया हो? ऐसे शोक की घड़ी में समूचा देश, एक समान जज्बे के साथ, रोज तो नहीं डूबा होता!!

2. मैंने जिम्मेवार टीवी अधिकारी से बात कर ही कहा है। अनुबंध में बगैर सूचना तबदीली का भी प्रावधान रहता है। आज अर्णब गोस्वामी दिन में जब जंतर मंतर के प्रदर्शन पर कार्यक्रम कर रहे थे, दो घंटे लगातार कोई विज्ञापन नहीं था। मैंने खुद देखा, सुना नहीं है। यह मेरी दलील के समर्थन में काफी होगा। (ओम थानवी के फेसबुक वॉल से साभार )

मातमी माहौल में भी इंडिया टीवी रास्ता निकाल ही लेता है?

समाचार चैनलों की दुनिया में इंडिया टीवी मनोहर कहानियां है तो इसे प्रमाणित करने का कोई भी मौका वह नहीं चूकता. मातमी माहौल में भी वह कोई – न – कोई रास्ता निकाल ही लेता है.

सामूहिक दुष्कर्म की पीड़ित अनामी लड़की के मामले में भी नहीं चूका. पहले उस अनामी लड़की का काल्पनिक नाम ‘दामिनी’ रख दिया जिसकी कतई जरूरत नहीं थी. वह एक प्रतीक है और प्रतीक को किसी काल्पनिक नाम की जरूरत नहीं होती.

लेकिन नाम रखने से तमाशा करने की गुंजाइश बढ़ जाती है, सो इंडिया टीवी ने नाम रख दिया. बहुत सारे दर्शक अब उसे दामिनी के नाम से ही जानते हैं और उसे असली भी मानते हैं.

बहरहाल सामूहिक दुष्कर्म मामले में भी जब टीआरपी की जंग जीतनी हो तो ऐसे तमाशे तो होंगे ही.

इंडिया टीवी मातम में भी कैसे रास्ता निकाल लेता है इसका नमूना आज फिर से इंडिया टीवी ने पेश किया जब दुष्कर्म पीड़ित अनामी लड़की की मौत के बाद शोक प्रकट करने के लिए चैनल पर 7.58 मिनट पर दो मिनट का मौन रखा.

लेकिन शोक में मौन के ठीक पहले धड़ाधड़ कमर्सियल ब्रेक कुछ इस अंदाज़ में लिया गया जैसे उस दो मिनट की भरपाई की जा रही हो.

समाचार चैनलों के संपादकों से ऐसी ही आशा थी

aaj tak rape chargesजीवन में कई ऐसे पल आते हैं जब समझौते नहीं किये जाते. नैतिकता के साथ – साथ भावुकता का महत्व अधिक होता है. सामूहिक दुष्कर्म की पीड़ित लड़की नहीं रही. देश में मातम का माहौल है. जंतर – मंतर पर प्रदर्शन चल रहा है.

देश के समाचार चैनल स्लो पेश के साथ खबरें दिखा रहे हैं. वैसे चैनलों की तरफ भी नज़रें लगी हुई थी कि किस तरह से मातमी माहौल के बीच वे खबरें दिखाते हैं और खबरों का क्या कलेवर रहता है.

उम्मीद थी कि वे इस मातमी माहौल में टीआरपी के मीटर को बंद कर देंगे और इंसानियत को तरजीह देंगे. ऐसा ही हुआ. न्यूज़ चैनलों ने फैसला किया है कि दिल्ली की उस अनामी लड़की की निजता को भंग न करते हुए , कोई भी चैनल उस लड़की के परिवार, उसके गांव, उसके अंतिम संस्कार की तस्वीरें नहीं दिखायेगा. बीईए के सदस्य और न्यूज़24 के मैनेजिंग एडिटर अजीत अंजुम ने ये सूचना अपने एफबी वॉल पर देते हुए लिखा –

सेक्सुअल असॉल्ट के आरोपी एंकर का रेप कांड पर एंकरिंग, न्यूज़ एंकरों का कोई ‘मानक’ नहीं

मुंबई में एक पत्रकार हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि वे दाउद के खास आदमी है. खास इतने कि पत्रकारिता का मुखौटा लगाये वसूली आदि भी कर लेते हैं और जरूरत पड़ने पर गैंगवार आदि में भी भाग लेते हैं.

ख़ैर इनके बारे में ज्यादा लिखने की जुर्रत नहीं की जा सकती, कहीं सुपारी दे दी तो हमारी बत्ती तो गुल ही समझिए. पुलिस, कानून, सीबीआई और मेनस्ट्रीम के पत्रकार तक कुछ नहीं कर पा रहे तो हमारी और आपकी क्या औकाद?

चलिए दूसरा उदाहरण देते हैं. यह भी मुंबई का ही है. एक प्रसिद्द क्राइम शो के लिए कई साल पहले ऐसे रिपोर्टर की भर्ती हुई जिसके बारे में माना जाता है कि वह अरुण गवली का आदमी है.

शम्स भाई दिल्ली पुलिस के साथ-साथ आपलोगों ने भी तो खबरों का गैंगरेप किया !

shams-gang-rapeदिल्ली में गैंगरेप की घटना से पूरा देश हिल गया. न्यूज़ चैनलों ने संवेदना के चादर में लपेट कर खबरों को कुछ यूँ पेश किया कि लोग इंडिया गेट पर आने से अपने आप को रोक नहीं पाए. बिना बुलावे और बिना किसी नेतृत्व के एक आंदोलन खड़ा हो गया.

आंदोलन की कोई दिशा नहीं, लेकिन लोग उस लड़की के लिए इन्साफ चाहते थे. ऐसा लगा कि भावनाओं का समुन्द्र ही उमड़ पड़ा है और इस समुन्द्र में खेवैया बनकर न्यूज़ चैनलों ने टीआरपी की खूब सेवईयाँ खाई. ग्लैमर का तड़का भी लगा और खूब तमाशे भी हुए.

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