एक ही मीडिया ग्रुप के दो चैनल या अखबार अलग – अलग तरीके से बात करे तो उलझन बढ़ जाती है. सरोकार और व्यापार के बीच गडमगड की स्थिति हो जाती है कि आखिर ग्रुप का स्टैंड क्या है?
कल टाइम्स नाउ की जनसत्ता के संपादक ने तारीफ़ की थी क्योंकि अनामी लड़की की कवरेज के दौरान लगातार दो घंटे तक अर्णब गोस्वामी के शो में कोई विज्ञापन नहीं चला. लेकिन आज उसी ग्रुप का अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया सरोकार के माहौल में भी व्यापार करने से नहीं चूका और पहला पूरा पन्ना विज्ञापन के नाम कर दिया.
मजबूरन ओम थानवी को बारह घंटे के अंतराल में ही उसी ग्रुप के अखबार की आलोचना में शब्द खर्चने पड़े. आखिर सवाल उठता है कि एक ही ग्रुप के दो प्रोडक्ट का व्यापार के बीच सामाजिक सरोकार की परिभाषा विरोधाभाषी क्यों हो जाती है? कहीं ऐसा तो नहीं कि अर्णब के शो में कल जो विज्ञापन नहीं चले, उसी की भरपाई आज टाइम्स ऑफ इंडिया ने की.