Home Blog Page 1034

यौन शोषण मामले में दिल्ली वि.वि. के प्रो. अजय तिवारी का क्यों न बहिष्कार किया जाए?

संभव है कि आप लोग बिल्कुल ही इस बात से अनजान हों कि दिल्ली. विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर रहे इस व्याक्ति (प्रो. अजय तिवारी) पर यौन शोषण का मामला अदालत में साबित हो चुका है।

विश्वविद्यालय ने इसे इसी आधार पर बर्खास्त भी कर दिया था। यह खबर हिन्दी-अंग्रेजी के सभी बड़े अखबारों में प्रकाशित भी हुई थी।

मैं यह जानना चाहता हँ कि जिस पर यौन शोषण का मामला साबित हो चुका है क्या बुद्धिजीवी वर्ग को उसका सामाजिक बहिष्कार नहीं कर देना चाहिए ?

क्या ऐसे व्यक्ति से फेसबुक मित्रता से परहेज नहीं करना चाहिए ? जो संपादक इस व्यक्ति को अपनी पत्र-पत्रिकाओं में सम्मान प्रकाशित करते हैं क्या उन्हें अपने निर्णय पर पुनर्विचार नहीं करना चाहिए ?

(रंगनाथ सिंह के फेसबुक वॉल से साभार)

बैठे – बैठाए ही पैनल गेस्ट बन गए

बलात्कार की घटना के विरोध में हुए ”आंदोलन” के पक्ष में चीख-चीख कर लिखने-बोलने से अचानक कुछ लोगों का कुकुरजनम छूट गया है और वे बैठे-बैठाए पैनल गेस्ट बन कर हज़ारों काटने में लग गए हैं।

इकतरफ़ा इश्कबाज़ी में अपना घर उजाड़ चुके कुछ लोगों ने महिलावाद के नाम पर प्रमोशन का इंतज़ाम कर लिया है। कुछ लोगों ने शहर रीक्लेम करने के नाम पर कल रात दारूबाज़ी की व्यापक योजनाएं बना ली हैं।

कुछ ऐसे अभागे भी हैं जो गए थे महिलावाद के नाम पर बिछड़ी प्रेमिकाओं को इंडिया गेट पर इम्प्रेस करने, लेकिन उसकी नज़र पड़ने से पहले ही लाठी खाकर लौट आए। देखिए, सच्ची लड़ाइयों में भी कैसे लोग अपने काम की बात खोज लेते हैं।

अब मैं क्या करूं कि मुझे पता चल जाता है। मेरे दोस्त अगर समझ रहे हों, तो खुद को इनमें ना मानें। मान ही लें, तो लगे हाथ माफ कर दें। (युवा पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव के एफबी वॉल से)

एनडीटीवी के रवीश कुमार पर दिग्विजय सिंह का कटाक्ष

ravish kumar
रवीश कुमार

दिग्विजय सिंह को जब भी मौका मिलता है तो न्यूज़ चैनलों पर कटाक्ष करने से नहीं चूकते. न्यूज़ चैनल भी उनकी कह के लेते हैं. यही वजह है कि वे न्यूज़ चैनलों को पसंद नहीं करते और मौका मिलते ही उपदेश देने लगते हैं या फिर चाबुक – हंटर बरसाने लगते हैं. अब एक बार फिर से दिग्विजय सिंह न्यूज़ चैनलों से नाराज हैं और रवीश कुमार जैसे टेलीविजन पत्रकारों को पत्रकारिता सीखा रहे हैं.

yogendra ndtvदिल्ली पुलिस के कॉन्स्टेबल सुभाष तोमर की मौत के बाद तरह – तरह के सवाल उठे. दिल्ली पुलिस ने उसकी मौत का ज़िम्मा आंदोलनकारियों पर फोड़ना चाहा. लेकिन उनके अरमानों पर तब पानी फिर गया जब रवीश कुमार ने एनडीटीवी इंडिया के प्राइम टाइम में चश्मदीद योगेन्द्र को सामने ला खड़ा किया. चश्मदीद ने दिल्ली पुलिस और सरकार की पोल खोल दी और पिक्चर का द एंड हो गया.

इसी बात से दिग्विजय सिंह खफा हैं और चैनलों को ज्ञान देने की मुद्रा में आ गए हैं. उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को यह पता होना चाहिए कि इस तरह चश्मदीद गवाह को लाना और पेश करना उस का काम नहीं है. तो एक तरह से अप्रत्यक्ष ही सही पर दिग्विजय सिंह ने कटाक्ष रवीश कुमार पर ही किया है क्योंकि सबसे पहली दफा रवीश के शो में चश्मदीद सामने आया.

न्यूज़ एजेंसी भाषा में छपी खबर :

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भूमिका से नाखुश हैं दिग्विजय

भोपाल।। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह शुक्रवार को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर यह कह कर जमकर बरसे कि उसने समाज की सारी भूमिकाएं खुद ही ग्रहण कर ली है। कांग्रेस महासचिव ने भाषा से कहा कि नयी दिल्ली में एक लड़की के साथ हुये गैंगरेप के बाद इलेक्ट्रानिक मीडिया ने पुलिस थाना, अभियोजन और न्यायाधीश की भूमिका ग्रहण कर ली है।

सिंह ने कहा कि रेप के बाद चलाये जा रहे आंदोलन के दौरान एक पुलिसकर्मी की मौत के बाद इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने एक ऐसा चश्मदीद गवाह भी दिखाया जो यह कह रहा था कि उसने पुलिसवाले को गिरते हुये देखा था।

उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को यह पता होना चाहिए कि इस तरह चश्मदीद गवाह को लाना और पेश करना उस का काम नहीं है। कांग्रेस महासचिव ने कहा कि अब ऐसा लग रहा है कि हम सब आप्रासंगिक हो गये है और अब देश को चलाने के लिये इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के भरोसे ही छोड़ देना चाहिए.

 

मातमी माहौल में भी महिला पत्रकार के साथ छेड़छाड़ से बाज नहीं आये शैतान

खबर थी कि तुम चली जाओगी. हम मातम में डूबे थे और हमारे ठीक पीछे हैवान खड़ा था. हम मातम में थे और वह नयी हैवानियत की सोंच रहा था.

भीड़ का हिस्सा बन तुम जैसी किसी और को तलाशने आया था. उसके लिए यह एक मजेदार इवेंट था और इस इवेंट का वह पूरा लुत्फ़ उठा लेना चाहता था.

उसके अंदर का जानवर सक्रिय था लेकिन भीड़ देखकर किसी कोने में दुबका पड़ा था. लेकिन उसी कोने से उछल – उछल के तुम जैसे किसी को मसलने के लिए मचल जाता था.

लेकिन भीड़ देखकर रुक जाता था.

दुष्कर्म पीड़ित अनामी लड़की अब ख़ाक भी हो चुकी है. उसकी चिता की राख अभी ठंढी भी नहीं हुई और दरिंदे नयी दरिंदगी के लिए शिकार तलाशने लगे हैं.

जंतर – मंतर पर लोग मातम में पहुंचे थे. संवेदना प्रकट कर रहे थे. शोक संतप्त थे. लेकिन उस भीड़ में कुछ निगाहें स्त्री देह को तलाश रही थी.

टाइम्स नाउ का सरोकार बनाम टाइम्स ऑफ इंडिया का व्यापार

arnab goswami

एक ही मीडिया ग्रुप के दो चैनल या अखबार अलग – अलग तरीके से बात करे तो उलझन बढ़ जाती है. सरोकार और व्यापार के बीच गडमगड की स्थिति हो जाती है कि आखिर ग्रुप का स्टैंड क्या है?

कल टाइम्स नाउ की जनसत्ता के संपादक ने तारीफ़ की थी क्योंकि अनामी लड़की की कवरेज के दौरान लगातार दो घंटे तक अर्णब गोस्वामी के शो में कोई विज्ञापन नहीं चला. लेकिन आज उसी ग्रुप का अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया सरोकार के माहौल में भी व्यापार करने से नहीं चूका और पहला पूरा पन्ना विज्ञापन के नाम कर दिया.

मजबूरन ओम थानवी को बारह घंटे के अंतराल में ही उसी ग्रुप के अखबार की आलोचना में शब्द खर्चने पड़े. आखिर सवाल उठता है कि एक ही ग्रुप के दो प्रोडक्ट का व्यापार के बीच सामाजिक सरोकार की परिभाषा विरोधाभाषी क्यों हो जाती है? कहीं ऐसा तो नहीं कि अर्णब के शो में कल जो विज्ञापन नहीं चले, उसी की भरपाई आज टाइम्स ऑफ इंडिया ने की.

सोशल मीडिया पर मीडिया खबर

665,311FansLike
4,058FollowersFollow
3,000SubscribersSubscribe

नयी ख़बरें