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दही – चूड़ा खाकर इंडिया न्यूज़ का जतरा बनायेंगे दीपक, पुण्य प्रसून और राणा यशवंत

कल मकर संक्रांति हैं. हिंदू मान्यता के हिसाब से कल से सारे शुभ कार्य शुरू होंगे. आम जन के साथ – साथ पत्रकार भी इस धारणा से अलग नहीं हैं.

टेलीविजन के कई दिग्गज पत्रकार नए काम को शुरू करने के लिए मकर संक्रांति की बाट जोह रहे हैं. उनका इंतजार कल खत्म होगा और वे अपने नए काम को शुरू कर पायेंगे.

इसी संदर्भ में इंडिया न्यूज़ में कल एक बड़ी एंट्री होगी. टेलीविजन न्यूज़ के सितारे दीपक चौरसिया अब इंडिया न्यूज़ के न्यूज़रूम में चमकेंगे.

कल उनकी ज्वाइनिंग एडिटर-इन-चीफ के पद पर होगी. ज्वाइनिंग की ये तिथि पहले से सुनिश्चित थी. उनके साथ कल, परसों या आगामी हफ्ते के किसी भी दिन महुआ न्यूज़ के राणा यशवंत और आपतकाल की घोषणा कर चुके पुण्य प्रसून बाजपेयी भी ज्वाइन करेंगे.

सामना अखबार न हो गया, टाइम्स ऑफ इंडिया हो गया, संपादक की भाषा टपोरियों वाली

दिवगंत बाला साहेब ठाकरे अपनी राजनीति ताउम्र शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ से करते रहे और सफल भी रहे. देश में ऐसा दूसरा उदाहरण शायद ही कोई दूसरा हो, जिसमें अखबार का प्रधान संपादक अपना ही इंटरव्यू छापता हो और मजे की बात कि न्यूज़ चैनल उसकी कवरेज भी करते हैं.

सामना का दायरा महाराष्ट्र की सीमा तक ही सीमित है. लेकिन अखबार के नाम से पूरा देश परिचित है. ठीक वैसे ही जैसे कि क्षेत्रीय पार्टी होने के बावजूद शिवसेना अपनी तिकड़मों से राष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियाँ पाकर अपने वजूद का एहसास कराती रहती है. इसी तर्ज पर सामना अखबार भी है. उसकी ख़बरें राष्ट्रीय चैनलों पर प्रमुखता से कुछ इस अंदाज में चलती है कि मानों ‘सामना’ अखबार न हो गया ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ हो गया.

सीएनएन-आइबीएन पर ‘रेप सर्वाइवर’ जबकि टाइम्स नाउ पर ‘विक्टिम’

अर्णब से सब डरते हैं

एक क्रोध सड़क पर बिखरता रहा। दूसरा क्रोध चैनल पर दिखता रहा। तीसरा क्रोध पहले और दूसरे क्रोध की व्याख्या करता रहा। तिहरे क्रोध का निर्माण तीस चैनलों पर तीस हजार गुना हुआ।

चैनल दृश्य से एक क्षण को दूर नहीं रहना चाहते। जिंदगी और मौत के बीच जूझती बलात्कृता को जिस गाड़ी से सिंगापुर ले जाया जा रहा था उसके पीछे के शीशों से चिपके दो कैमरे अंदर के दृश्य को कवर करने की जिद ठाने थे। दरिंदगी की शिकार लड़की की निजता चैनलों के लिए कोई मानी नहीं रखती। ब्रोडकास्टिंग संपादकों की संस्था की ओर से लड़की की निजता की रक्षा की बात शायद वह जरूरी हस्तक्षेप था जो उसने किया वर्ना कैमरे तो किसी की नहीं मानते।

इसके बाद विरोध प्रदर्शनों के कमतर होने की खबर आने लगी। साथ ही बाड़मेर, मुजफ्फरपुरनगर नगर से रेप की दूसरी खबरें दी जाने लगीं। रेप सबसे बड़ी खबर बनती रही।

चैनलों की भाषा में स्त्रीत्ववादी विमर्श की पदावली ने जगह बनानी शुरू कर दी। सीएनएन-आइबीएन पर लड़की को ‘रेप सर्वाइवर’ कहा जाने लगा जबकि टाइम्स नाउ ‘विक्टिम’ ही कहता रहा।

सहारा में बस का डीएनए टेस्ट, महिला एंकर की समझ का फेर

Sahara Samay

 

सहारा समय जैसा चैनल है, ठीक वैसे ही वहां कुछ एंकर भी हैं. ये एंकर शक्ल – सूरत में तो ठीक है लेकिन बुद्धि और सोंच – समझ के मामले में पूरे पैदल. भाषा और शब्दों की संवेदना से कोसों दूर.

अब ताजा मामला देखिए. दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म मामले में सहारा की एक महिला एंकर ने बस का ही डीएनए टेस्ट करवा दिया. सहारा समय (राष्ट्रीय) पर खबर पढ़ने वाली मोहतरमा एंकर ने सवाल की शक्ल में पूछ लिया कि बस का डीएनए टेस्ट ………!

मोहतरमा का नाम जाने दीजिए. उनका करियर प्रभावित हो जाएगा. हाँ लेकिन जरूर बता सकते हैं कि ये पहले भी ऐसी गलतियाँ करती रही हैं. बहरहाल इस बार मोहतरमा बुरी फंसी और सजा भी मिली.

हेडलाइन्स टुडे में रेप विक्टिम और रेप सर्वाइवर पर महाभारत

शब्दों के लिए ऐसे लिया जाता है स्टैंड

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दिल्ली में हुए सामुहिक दुष्कर्म के खिलाफ सभ्य समाज ने कड़ा प्रतिकार किया. न्यूज़ चैनलों ने लगातार खबरें दिखाकर दुष्कर्म के खिलाफ ऐसी जागरूकता फैलाई कि आंदोलन की लौ जल उठी.

हाँ ये जरूर है कि न्यूज़ चैनलों पर इस संदर्भ में कुछ गलतियाँ भी हुई, कुछ तमाशे हुए और कुछ विवाद भी. दरअसल सामुहिक दुष्कर्म के खिलाफ ऐसी व्यापक कवरेज पहले कभी भी नहीं हुई थी. इसलिए इसकी भाषा से लेकर विजुअल की सीमा के दायरे से भी चैनल अनभिज्ञ थे.

अपनी – अपनी नैतिकता और समझ के हिसाब से चैनलों ने इसकी कवरेज की और वैसी ही भाषा का इस्तेमाल किया. इसी संदर्भ में टीवी टुडे ग्रुप के चैनल हेडलाइन्स टुडे में भाषा और शब्दों को लेकर न्यूज़ रूम के अंदर काफी बहस और मेलबाजी हुई.

सोशल मीडिया पर मीडिया खबर

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