New Delhi, 21 January 2013: This year the Nobel Peace Prize laureate, His Holiness the 14th Dalai Lama, will honour the DSC Jaipur Literature Festival 2013 with his presence. “Literature has played a major role in my life,” the spiritual leader said. “Since childhood, reading has been of great importance to me and I am often reminded of the immense kindness of the scholars of the past who translated a vast array of Buddhist literature into Tibetan. I look forward to attending the Jaipur Literature Festival and meeting people writing and reading today.” The Festival is scheduled to take place from 24th to 28th January 2013 at Diggi Palace, Jaipur. The Dalai Lama’s visit would be a prelude to discussions and readings on the theme ‘The Buddha in Literature’. Festival Co-Director Namita Gokhale said, “Gautama the Buddha’s impact on humanity lies beyond religion and theology. The entire fabric of Asian society – from Central Asia and Afghanistan to China and Japan – has been deeply influenced by the philosophy of Buddhism. Today Buddhism is a way of life for many people around the world. The internal journey of awakening and personal evolution is mirrored in the literature, art and cultural practice of Buddhism. Our sessions on ‘The Buddha in Literature’ are a tribute to the way of seeing and knowing taught by the Buddha.”
जी – जिंदल मामले की द हिंदू ने ली खबर
ज़ी -जिंदल ब्लैकमेलिंग प्रकरण पर अब जब बातचीत कम हो रही है. स्क्रीन के पर्दे से खबर गायब है. ज़ी न्यूज़ दूसरी ख़बरों के माध्यम से पत्रकारिता के स्याह पन्ने को ढंकने की फिराक में है. पंचलाइन तक बदला जा चुका है कि सोंच बदलो , देश बदलो. वैसे में द हिंदू ने आज संपादकीय पन्ने जी – जिंदल से जुड़ी खबर पर लेख छापकर ये बता दिया कि मामला अभी जिंदा है और यूँ रफा – दफा नहीं होने वाला है. पेश है द हिंदू का लेख.
The death of the reporter
Sandeep Bhushan
The Zee “extortion” case in which the news network is alleged to have demanded Rs.100 crore in return for rolling back its campaign against steel tycoon Navin Jindal’s “misdemeanours” in coal block allocations (for the family owned Jindal Steel & Power Limited or JSPL), is a deeply layered story that deserves a closer look than has been provided by mainstream media.
एनडीटीवी के प्रणय रॉय की मुहिम या मुहिम के नाम पर ठगी ?
एनडीटीवी वैसे तो बाकी न्यूज चैनलों से अलग होने का दावा करता हैं और कुछ हद तक इसे कायम रखने की कोशिश भी जारी हैं । पिछले कुछ सालों से चैनल कई समाजिक अभियान चला रहा हैं जिनमें ग्रिन-अर्थ, कोका कोला माई स्कूल और अब एनडीटीवी-टोयोटा यूसीसी का अभियान शुरु हुआ हैं जिसमें देश के नए क्रिकेटरों की तलाश यूनिवर्सिटी के छात्रों में से किये जाने का दावा किया जा रहा हैं । इस सारे अभियानों को सामाजिक बदलाव के नाम पर चलाया जा रहा है जिनमें पहली नजर मे कुछ गलत भी नहीं दिखता.
लेकिन अभी तक के सारे तथाकथित अभियानों के प्रायोजक, उनके ब्रांड एम्बेस्डर और कार्यक्रम में शामिल अतिथियों पर नजर डाले तो दिखता है. प्रणय रॉय भी अपने-आप को बाजार के अंधी गलियों मे भटका चुके हैं. साथ ही देश को भी अपनी पुराने साख के जरिए गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं ।
पिछले हफ्ते माई-स्कूल कैंपेन मे फिल्म अभिनेत्री चित्रागंदा सिंह किसी सरकारी स्कूल के बच्चों को पढाने आई थी. आपको बता दे कि चित्रागंदा अपनी हालिया रिलीज फिल्म इनकार के प्रोमोशन करने वहां गई थी. आप सोंचेंगे की इसमें गलत क्या है.
पहली बात चित्रांगदा जहां गई थी मेरे हिसाब से पहली बार वहां लोगों ने किसी महिला को वैसे कपड़ों मे देखा होगा. दूसरी बात जहां के शिक्षक अंग्रेजी बोलना नहीं जानते, वहां के बच्चों के बीच चिंत्रागंदा की अंग्रेजी गिटीर – पिटिर कितनी समझ में आया होगा ये भगवान जाने ।
स्कूल के बच्चों से ज्यादा कैमरे की निगाह चित्रागंदा के चेहरे और उनके ग्लैमर को दिखाने पर रहती थी. लगभग आधा प्रोग्राम देखने के बाद भी पता नहीं चल पाया कि ये कौन सा अभियान हैं ? हां प्रणय रॉय का अभियान जरुर सफल हो रहा है।
अब आते हैं रॉय साहब के नए और बड़े अभियान पर जहां टोयोटा कंपनी के साथ मिलकर वे देश का भविष्य ढूंढ रहे हैं. इस अभियान के ब्रांड एंबेस्डर दुनिया के सबसे बड़े क्रिकेटर शाहरुख खान को बनाया गया है और इसके समर्थक शशि थरुर हैं। शाहरुख को क्रिकेटर मैं नहीं बल्कि एनडीटीवी मानता है तभी तो क्रिकेट का भविष्य ढूँढने का जिम्मा एक बॉलीवूड स्टार को दिया गया हैं और तारीफों के पुल बांधने के लिए शशि थरुर के पास शब्द कम पड़ गए । आपको याद होगा इसी क्रिकेट ने एक बार शशि थरुर की कुर्सी छीन ली थी. आज पता चला कि थरुर के साथ कितना गलत हुआ था । देश का एक मशहूर न्यूज चैनल किसी क्रिकेट अभियान के लिए उनको बतौर गेस्ट बुलाता हैं तो आपको समझने की जरुरत तो हैं । वैसे रॉय साहब के अभियान वाले इस नए फंडे से भले ही धरती का कल्याण ना हो. बाघों की संख्या ना बढे. भले ही बच्चों का भविष्य का ना सुधरे. लेकिन प्रायोजकों की रकम से एनडीटीवी का भविष्य जरुर सुधर रहा है. साथ हीं रॉय साहब का कल्याण भी हो रहा है।
क्या पता टोयोटा, शाहरुख, थरुर, और रॉय साहब मिलकर देश को दूसरा सचिन दे दे । वैसे यह फंडा सही है, आम के आम औऱ गुठलियों के दाम भी मिल रहे हैं. एक तो सामाजिक कार्य के नाम पर आईबी मिनीस्टरी के साथ मिलकर दर्शकों के बेवकूफ बनाया जा रहा है और धन के साथ, पुण्य फ्री मे मिल रहा हैं ।
(लेखक टेलीविजन पत्रकार हैं.)
मीडिया में आह राहुल – वाह राहुल
मीडिया अपनी विश्वसनीयता खो रहा है क्योंकि मीडिया में बिकाउ, दलाल और चमचों का बोलबला हैं। राहुल गांधी और सोनिया गांधी के प्रति जिस तरह से मीडिया ने स्वामीभक्ति दिखायी उससे मीडिया को कौन विश्वसनीय मान सकता है?
मीडिया की पतनशीलता की गर्त इतनी शर्मनाक है कि वह लोकतांत्रिक भारत में राहुल गांधी को युवराज और राजा की पदवी देने से भी परहेज नहीं कर रहा है। मीडिया का फर्ज था कि वह वंशवादी परंपरा और कांग्रेसियों की स्वामिभक्ति पर सवाल उठाता?
राहुल गांधी-सोनिया गांधी को तब क्यों नहीं आंसू आता जब देश की सीमा पर वीर सैनिकों का सिर कलम किया जाता है, जब देश में भूख से तडप-तडप कर देशवासी मरते हैं, जब गरीबों के कल्याण का पैसा भ्रष्टाचार में जाता है, सुरेश कलमाड़ी, ए राजा, वाड्रा आदि देश को लूटते हैं?
यह सवाल मीडिया तब उठाता जब मीडिया में दलाल, चमचे और बिकाउ जैसे लोग नहीं होते?
(अनुभवी पत्रकार विष्णुगुप्त जी के वॉल से साभार)