उत्तरप्रदेश चुनाव की जीत राष्ट्रवाद और मुसलिम घृणा के पैरोकारों में नया जोश पैदा करेगी

वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी की पांच राज्यों के चुनाव परिणामों पर प्रतिक्रिया :

हर्षोन्मत्त भक्त समुदाय सुबह नतीजे आने लगें, उससे पहले ही बेचैन हो उठा कि मेरी अब क्या राय है। इतना बड़ा देश है, पर मुझ पर बहुत मेहरबान हैं।

बहरहाल पाँच प्रदेशों में दो (उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड) में भाजपा को भारी जीत हासिल हुई है। बाक़ी तीन प्रदेशों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है; पंजाब में उसे पूर्ण बहुमत मिला है। वहाँ आप पार्टी के आसार दिखाई देते थे, वह दूसरे नम्बर पर रही। उस पर खालिस्तान समर्थकों से मेलमिलाप का आरोप लगा, जो पंजाब में आतंकवादियों का सफ़ाया करने वाले केपीएस गिल के एक बयान के बाद राज्य में आग की तरह फैल गया।

मगर सबसे बड़ा आश्चर्य उत्तरप्रदेश के नतीजे हैं, जो बाक़ी सब प्रदेशों पर भारी हैं। इसे आप भाजपा की आँधी, सुनामी कुछ भी कह सकते हैं। चुनावी दावे छोड़ दें तो इतनी सीटों का अंदाज़ा शायद ही किसी को रहा होगा। मुझे सपा-कांग्रेस गठबंधन आगे लगता था, मेरा अनुमान ग़लत रहा। एक टीवी चैनल पर अनौपचारिक चर्चा में भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि ये उनके अनुमान से भी बाहर के नतीजे थे।

उत्तरप्रदेश में यह चमत्कार कैसे हुआ? एक तो मानना चाहिए कि मोदी और शाह की मेहनत रंग लाई। शाह की रणनीति कुशल रही। फिर मोदी ने भी सब काम छोड़कर प्रदेश को छान मारा। लेकिन इतने से क्या होता। 2014 की तरह कॉरपोरेट पूँजी ने थैलियाँ खोल दीं। भाजपा के रंग में रंगे हज़ारों नए वाहन प्रदेश भर में छा गए। जातिवाद और वंशवाद का विरोध करते-न-करते इस आधार पर टिकट दिए गए। यादव कुनबे की फूट, मायावती के दूषित टिकट बँटवारे और भीतरघात का लाभ भी लिया।

लेकिन इस सबके ऊपर हिंदू-मुसलिम समुदाय के बीच दरार खींचने का वह बेहद ख़तरनाक खेल फिर खेला गया। पहले तो एक भी मुसलमान को भाजपा का टिकट नहीं दिया गया, जबकि प्रदेश में मुसलिम आबादी 18 फ़ीसद से ज़्यादा है। इसके बाद जेहाद, पाकिस्तान, आइएसआइ, सर्जिकल स्ट्राइक की ‘हार्दिक बधाई’ और एवेंजर्स (बदला लेने वाले) के ‘स्वागत’ वाले पोस्टर, घोषणा-पत्र में एंटी-रोमियो स्क्वॉड (याद करें लव-जेहाद), कसाब, श्मशान-क़ब्रिस्तान, सैफ़ुल्लाह … और सबसे ऊपर वही पुराना राम-मंदिर का राग।

अर्थात् सबका साथ सबका विकास जैसे नारों और जातिवाद व परिवारवाद उन्मूलन के वादों के बीच इन्हीं की काट करने वाले आचरण के साथ यह चुनाव जीता गया है।

हिंदू-मुसलिम का मुद्दा ऐसे माहौल में समाज में सांप्रदायिक भय खड़ा करता है। सांप्रदायिक भले नहीं, पर हिंसा का भय 1984 के चुनाव में राजीव गांधी के रणनीतिकारों ने भी खड़ा किया था, जब चुनाव के विज्ञापनों-पोस्टरों में चाकू-छुरे, हथगोले, मगरमच्छ आदि दर्शाए गए।

राजीव गांधी ने भी तब जीत का कीर्तिमान बनाया था। मोदी-शाह ने भी बनाया है।

लेकिन उत्तरप्रदेश चुनाव की जीत राष्ट्रवाद और मुसलिम घृणा के पैरोकारों में नया जोश ही पैदा करेगी। और देश में इसके नतीजे ख़ुशगवार नहीं होंगे।
(वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी के वॉल से साभार)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.