मनीष ठाकुर-
90 के दशक में जब उदारीकरण का दौर था, देश में जगह-जगह राज्य सरकार की मदद से बहुराष्ट्रीय कंपनी रोजगार का अवसर पसार रही थी। वही दौर बिहार में जंगलराज के शुरुआत का था। वही दौर जब बिहारी नवयुवक बहुत तेजी में बिहार से भाग रहे थे। 10 साल के अंदर लगभग एक चौथाई युवक उच्च शिक्षा के लिए व रोजगार के लिये बिहार में बदहाल हालात के भय से दिल्ली और बंगलुरु भाग गए। हम सब भगौड़े अपना-अपना श्रम और पूंजी बिहार को आज भी चाह कर नहीं दे पा रहे।
वह दौर लगातार जारी है. हाँ पहले की तुलना में कुछ कम जरुर हुआ है. उस दौर के जंगलराज का ही भय था कि बिहार के मजदूर भी बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों में रोजी-रोटी और सुरक्षित जीवन की तलाश में पलायन कर गए. उसी का प्रतिफल है कि दिल्ली जैसे राज्य में बिहारी तय कर रहे है कि यहाँ किसकी सरकार होगी।
दरअसल बिहारी अब वोट बैंक बन कर रह गए हैं। ठीक वैसे ही जैसे हाल तक बिहार,यूपी,बंगाल समेत देश के बड़े हिस्से में मुसलमान वोट बैंक थे। हालाँकि लोकसभा चुनाव और हालिया उत्तरप्रदेश चुनाव के बाद इस वोट बैंक का महत्व अपेक्षाकृत कम हुआ है. बहरहाल मूलतः बिहारी इस बात पर संतोष जरुर कर ले कि उसके सहयोग के बिना सरकार नहीं बन सकती. लेकिन वास्तव में ये शर्म की बात है कि अपने राज्य को छोड़कर आप दूसरे राज्य में वोटर बनकर बैठे हैं. क्योंकि वोट बैंक हमेशा इस्तेमाल किये जाते है सर। हम इस्तेमाल होना नहीं चाहते नीतीश जी ।
नीतीश जी, आश्चर्य तो ये है कि जंगलराज की खिलाफत करते-करते आप उसीसे महागठबंधन कर बैठे। मुजफ्फरपुर जैसे शहर जो एक तरह से बिहार की आर्थिक राजधानी है। ऐसी जगहों पर यदि व्यापारी या आम शहरी खौफ में रहें तो कोई बिहारी जो दिल्ली समेत अन्य राज्य में अपने व्यापार का फैलाव बिहार में करना चाहता है वह हिम्मत कैसे जुटा पायेगा सर? आपकी इच्छाशक्ति बहुत मजबूत है। मोदी और योगी की तरह आप कई मामले में बेदाग और कुछ कर गुजरने का साहस रखते है। देश के पारंपरिक नेता की तरह अपने बेटे-बेटी को सत्ता सौपने का लालच भी तो नहीं आप में। फिर क्यों अपने आँखों के सामने तबाह कर रहे है अपने बिहार को?
आप चाहते हैं कि बिहार तरक्की की राह पर चले तो पहले सरकारी गुंडों पर लगाम लगाइए. उनका सीना आजकल 56 इंच का हो गया है.शराबबंदी करके आपने जो साहस का परिचय दिया है, वैसा ही साहस बिहार के सर्वांगीन विकास के लिए भी दिखाइये.उसके लिए सबसे जरुरी है कि जंगलराज के दुकानदारों में खौफ पैदा हो ताकि वे आपराधिक दुह्साह्स करने से पहले सौ बार सोंचे. तभी बिहार प्रगति के पथ पर अग्रसर होगा और प्रतिभाएं बिहार वापस लौटने के बारे में सोंचेगी.