बिहार की तर्ज पर यूपी में महागठबंधन न होना बीजेपी की जीत पर मुहर !

अभय सिंह-

यूपी चुनाव में त्रिकोणीय संघर्ष को देखते हुए जनता के रुख पर मीडिया,चुनाव विश्लेषकों का असमंजस बरकरार है ।एक राजनीतिक विश्लेषक होने के नाते मुझसे संतुलित एवं तार्किक दृष्टिकोण की अपेक्षा की जाती है।मैं तथ्यों के आधार पर यूपी चुनाव पर जनता के रुझान पर प्रकाश डालने का प्रयास करूँगा

-पहली बात हमें ये स्वीकार करना होगा की बिहार की तर्ज पर यूपी में कोई महागठबंधन नहीं हुआ है यदि सपा,बसपा ,कांग्रेस साथ लड़ते तो बीजेपी को बिहार की तर्ज पर धूल चटा सकते थे।लेकिन कमजोर कांग्रेस से सपा का गठबंधन सपा के लिए ही मुसीबत बनेगा।उधर मजबूत मायावती का अलग लड़ना ,सपा को सत्ता की लड़ाई से बाहर कर देगा।

-अमित शाह ने बिहार की भूल से सबक लेते हुए बड़ी चालाकी से हर वर्ग से जुड़े प्रदेश के नेताओ को प्रचार अभियान का हिस्सा बनाया।जैसे हर पोस्टर में राजनाथ सिंह,केशव प्रसाद मौर्य,कलराज मिश्र ,उमाभारती को विशेष तरजीह देना जो हर जाति वर्ग का प्रतिनिधित्व करते है।इससे हर वर्ग का बीजेपी के प्रति रुझान बढ़ा है।

-मोदी की अपार लोकप्रियता की झलक उनकी एक के बाद एक मेगा रैलियों में दिख जाती है।अनेक विरोधी नेता,पत्रकार भी ये मानते है की मोदी देश ही नहीं प्रदेश के भी नंबर एक नेता है और लोग उन्हें सुनने को उत्सुक है।

-नोटबंदी पर अपार जन समर्थन एवं विपक्ष का बैकफुट पर जाने से मोदी को अधिक विश्वशनीय, लोकप्रिय नेताओ में गिना जाने लगा।

– शाह ने बीजेपी के फायर ब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ को बैनर,पोस्टर से दूर रखकर ट्रपकार्ड के तौर जरुरत के मुताबिक इस्तेमाल किया ।ताज्जुब होता है की बिना विशेष दायित्व के योगी बीजेपी के अन्य स्टारप्रचारको की तुलना में छठवे चरण तक सबसे अधिक 116 जनसभाएं संबोधित कर चुके है।

-बीजेपी का प्रचार अभियान सपा के मुकाबले अधिक आक्रामक,तेज एवं स्थानीय मुद्दों पर अधिक आधारित है खासतौर पर कानून व्यवस्था, बिजली,पानी,रोजगार,भर्तियो में धांधली,तुष्टिकरण आदि पर।

– शाह का मीडिया मैनेजमेंट,सोशल मीडिया प्रबंधन काबिलेतारीफ है जो सपा,बसपा को कोसों पीछे छोड़ देता है।आज यूपी के हर अखबार,चैनल,नेट पर बीजेपी के मुद्दों पर आधारित विज्ञापन छाए हुए है।

-2012 में महज 47 सीटों वाली बीजेपी को अमित शाह,ओम माथुर,सुनील बंसल की तिकड़ी ने कड़ी मेहनत से बेहद कमजोर संगठन का कायाकल्प किया एवं हर बूथ पर 10-12कार्यकर्ता तैनात किये।

-नोटबंदी के बाद लगातार मिल रही जीत से बीजेपी नेतृत्व,एवं कार्यकर्ताओ का मनोबल चरम पर है जो यूपी चुनाव में बूस्टर का काम कर रहा है।
अब यूपी में विभिन्न चरणों में हुए चुनावों के विश्लेषण करते है-

1-यूपी में पहले और दूसरे चरण के मतदान से साफ़ पता चलता है मुस्लिम मतदाताओं का रुझान साफतौर पर बसपा की ओर रहा।यानि मुस्लिम वोटों पर अधिक सेन्ध सपा की तुलना में बसपा ने लगायी ।दूसरी तरफ जाटों से भाजपा की नाराजगी से जाट वोटों का बटवारा लोकदल में उतना नहीं होगा जितना कहा जा रहा है।सपा बसपा की आपसी लड़ाई में बीजेपी को फायदा मिलना तय है।लेकिन बसपा भी सपा से अधिक लाभ की स्थिति में है।

2-तीसरा चरण समाजवादी कुनबे के आपसी घमासान ,भीतरघात के कारण बसपा,भाजपा को और मजबूती प्रदान कर रहा है।

3-चौथा चरण भाजपा ,सपा,बसपा की त्रिकोणीय लड़ाई को और संघर्षपूर्ण बना रहा है लेकिन सपा कांग्रेस के गढ़ में मुलायम ,शिवपाल गुट के नेताओं से अनबन एवं अमेठी में कांग्रेस और सपा में मनमुटाव के चलते बीजेपी के बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद बढ़ गयी है।

4-पाँचवा,छठवाँ और सातवॉ चरण बीजेपी के बेहतर करने की उम्मीद विरोधी भी कर रहे हैं।मोदी के कब्रिस्तान शमशान के बयान से ध्रुवीकरण का दांव सटीक बैठा रही सही कसार योगी आदित्यनाथ ने पूरी कर दी ।

बरखा दत्त के ट्वीट ,तथा रामगोपाल यादव भी दबे मुँह स्वीकार कर रहे की आगे के चरणों में बीजेपी की स्थिति काफी मजबूत है।यहाँ तक की राहुल गांधी भी मंच से 50 सीटों का नुकसान कहते पाये गए।

भारत के मीडिया,पत्रकारो ,बुद्धिजीवियों,में जनता के रुख पर असमंजस हो सकता है लेकिन जनता के मन में ऐसा बिलकुल नहीं है ये 11 मार्च के नतीजे बता देंगे।अगर नीतीश के अनुसार यूपी में सपा बसपा कांग्रेस का महा गठबंधन होता तो बिहार की तरह बीजेपी की बड़ी हार होती लेकिन असम की तरह यहाँ भी ऐसी संभावना ना बनते देख नीतीश ने खुद को अलग कर लिया।

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