खबरिया चैनलों पर खबरें देखते – देखते कई दफे महसूस होता है कि हम न्यूज़ चैनल नहीं ‘एमटीवी चैनल’ या ‘चैनल वी’ देख रहे हैं. ऐसा कई महिला न्यूज़ एंकरों के हाव – भाव और उनके कपड़ों की वजह से लगता है. मनोरंजन और बॉलीवुड की खबरों के अलावा खांटी खबरों में भी ऐसा देखने को मिलता है.
कुछ साल पहले हिंदी समाचार चैनल आईबीएन-7 पर देर रात एक क्राइम शो आया करता था जिसे एक महिला एंकर पेश करती थी. लेकिन उन महिला एंकर का अपराध की खबरों को पेश करने का अंदाजे बयान कुछ अजीब था.
मॉडर्न कपड़ों में अपराध की खबरों को वो कुछ ऐसे बताती थी कि जैसे वे खबरें अपराध की ख़बरें न होकर किसी फैशन शो या मनोरंजन जगत की कोई खबर हो. उनके कपड़े भी कुछ ऐसे ही होते थे जो उनके न्यूज़ एंकर कम और न्यूज़ मॉडल होने का ज्यादा आभास देते थे.
दरअसल बदलते ज़माने के साथ न्यूज़ चैनलों के स्क्रीन पर महिला न्यूज़ एंकरों की तस्वीर भी तेजी से बदली है और उसी हिसाब से उनकी वेश – भूषा में भी बदलाव आया है. एक जमाना था जब सलीकेदार साड़ी पहने पूरी सौम्यता और सभ्यता से महिला एंकर दूरदर्शन पर खबरें पढ़ती थी. सरला माहेश्वरी, मंजरी जोशी समेत कई महिला एंकर ऐसे ही खबरें पढ़ा करती थी और दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय भी थी. वैसी लोकप्रियता आज के समय में शायद ही किसी महिला एंकर की हो.
ख़ैर वह जमाना अलग था. दूरदर्शन का कोई विकल्प नहीं था. बदलते ज़माने के साथ स्क्रीन की पट्टी पर महिला न्यूज़ एंकरों की छवि में भी परिवर्तन आया है. इस बीच प्राइवेट न्यूज़ चैनलों की बाढ़ सी आ गयी. प्रतिद्वंदिता बढ़ गयी तो अब न्यूज़ के कंटेंट के साथ – साथ एंकरों पर भी ख़ास ध्यान दिया जाने लगा.
महिला एंकरों का महत्व और बढा. महिला एंकरों की छवि के साथ – साथ उनके कपड़ों और प्रस्तुतीकरण में भी भारी बदलाव आया. उन्हें ज्यादा मॉडर्न और खूबसूरत दिखाने पर जोर दिया जाने लगा. उनके कपड़ों और मेकअप पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा.
परिणाम यह हुआ कि बाद के नए चैनलों ने महिला न्यूज़ एंकरों को महज एक खूबसूरत गुड़िया की तरह ट्रीट करना शुरू कर दिया. मतलब आप सुन्दर हैं तो आप न्यूज़ एंकर बन सकती हैं. न्यूज़सेंस की जानकारी न भी हो तो चलेगा. महिला न्यूज़ एंकरों का बहुत पढ़ा – लिखा होना जरूरी नहीं समझा गया, खासकर यदि वो ग्लैमर या मनोरंजन की खबरों को कवर करती हो.
इसी मसले पर वरिष्ठ पत्रकार और फिल्म और नाट्य समीक्षक अजीत राय कहते हैं : ” क्या टीवी एंकरों को पढना – लिखना नहीं चाहिए? एनडीटीवी इंडिया पर एक महिला रिपोर्टर आमिर खान से बाईट ले रही थी. वह ऐसे चहक रही थी जैसे उसे खुदा मिल गया है. उसने पूछा भी ‘क्या यह सही नहीं है कि आप फिल्म इंडस्ट्री के भगवन [ GOD है?’ ग्लैमर की पत्रकारिता जरुर होनी चाहिए.लेकिन क्या फिल्म पत्रकार को विज्ञापन मॉडल की तरह काम करना चाहिए? ”
न्यूज़ एंकर को न्यूज़ मॉडल बनाने में स्टार न्यूज़ की बड़ी भूमिका रही. स्टार न्यूज़ जब लॉन्च हुआ तो उस वक़्त स्टार न्यूज़ में ‘रवीना राज कोहली’ सर्वेसर्वा थी. स्टार न्यूज़ का ऑफिस उन दिनों मुंबई में ही हुआ करता था. चैनल का फोकस भी महराष्ट्र और गुजरात था क्योंकि सबसे ज्यादा रेवेन्यू वहीं से आता है. उसी ज़माने में पहली बार न्यूज़ एंकरों के ड्रेस, मेकअप और स्टाइल पर ख़ास ध्यान दिया जाने लगा. न्यूज़ एंकरों के लिए प्रोफेशनल डिजाइनरों के द्वारा बनाये गए कपड़ों को मंगवाया गया. यह रवीना राज कोहली की कॉरपोरेट सोंच का नतीजा था.
सिटी60 जैसे कार्यक्रम की शुरुआत हुई. इस कार्यक्रम को तीन महिला एंकर अलग – अलग अंदाज में पेश करती थी. इनके कपड़े से लेकर वेशभूषा दूसरे महिला न्यूज़ एंकरों से अलग मॉडर्न और वेस्टर्न लुक लिए हुए थी. बाद में दूसरे कई चैनलों ने इसकी घटिया नक़ल की और महिला न्यूज़ एंकरों के कपड़े और छोटे होते चले गए. हालाँकि आज भी अल्का सक्सेना और निधि कुलपति जैसी कुछ महिला एंकर हैं जो साड़ी में न्यूज़ पढ़ती हैं और किसी भी मॉडर्न और छोटी ड्रेस पहनने वाली वाली एंकर से कहीं ज्यादा लोकप्रिय हैं. क्योंकि उनकी पत्रकारिता और उनकी जानदार एंकरिंग के कारण लोग उन्हें जानते हैं. रूप – रंग यहाँ सेकेंडरी हो जाता है.
हद तो तब हो गयी जब वर्ष 2009 में पी-7 न्यूज़ ने लॉन्चिंग के मौके पर महिला न्यूज़ एंकरों से ही कैटवॉक करवा अपनी इस सोंच का परिचय दे दिया कि महिला न्यूज़ एंकरों के बारे में चैनल की क्या राय है? उस वक़्त इसका बहुत विरोध हुआ था. वरिष्ठ पत्रकार विनोद एस.एन.विनोद ने ‘नग्न न करें चौथे स्तंभ को!’ शीर्षक से लिखे लेख में पी-7 न्यूज़ के इस कदम की भर्त्सना करते हुए लिखा –
“अगर यह चौथे खंभे के बदन से शालीनता के वस्त्र को उतार उसे अर्थात् मीडिया को नग्न करने की कोशिश है तो सफलता की कोई सोचे भी नहीं. प्रतिरोध होगा और इसे भारतीय समाज स्वीकार नहीं करेगा. दिल्ली में चैनलों को, उनके संचालकों को, उनमें काम करने वाले प्रशासकीय अधिकारियों-कर्मचारियों और पत्रकारों को बहुत नजदीक से देख चुका हूं. कुछ को नंगा भी. बावजूद इसके ‘एक उम्मीद’ जैसे सराहनीय घोष वाक्य के साथ नए ‘पी-7 न्यूज’ चैनल की शुरुआत से दु:खी हूं. क्षोभ से दिल भर उठा चैनल के ‘लांचिंग’ कार्यक्रम की जानकारी प्राप्त कर. चैनल के एंकर-पत्रकारों से ‘कैटवॉक’ की सोच ही पतित है, घृणित है पत्रकारों की भागीदारी . एक ओर जब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर भ्रम और अश्लीलता फैलाने के लग रहे आरोपों पर बंदिश लगाए जाने के उपाय स्वयं चैनलों के संचालक-पत्रकार ढूंढ़ रहे हों, ‘पी-7 न्यूज’ ने उन्हें ठेंगा क्यों दिखाया? क्या इस नवउदित चैनल ने ‘नेकेड टीवी’ का अनुसरण करने की सोच रखी है? संचालक किसी भ्रम में न रहें. इस देश का कानून और इसकी संस्कृति इजाजत नहीं देगी. फिर पत्रकारों को ‘रैम्प’ पर मटकने के लिए मजबूर क्यों किया गया? ”
दरअसल विरोध बदलाव का नहीं. मॉडर्न और वेस्टर्न ड्रेस का भी कोई विरोध नहीं. टेलीविजन न्यूज़ विजुअल माध्यम है. इसलिए स्क्रीन प्रेजेंस भी बेहतर होना चाहिए. इसके लिए जरूरी है कि न्यूज़ एंकर खूबसूरत दिखे . लेकिन खूबसूरती के पीछे एक पत्रकार का दिमाग भी जरूर हो. महज छोटे कपड़े पहनाकर कुछ पलों के लिए दर्शकों को अपने यहाँ रोकने की प्रवृति पत्रकारिता, महिला सशक्तिकरण और खुद न्यूज़ इंडस्ट्री के लिए खतरनाक सिद्ध होगा.
न्यूज़ चैनल देखने के लिए दर्शक न्यूज़ चैनल पर आता है. इसलिए दर्शक को यह एहसास होना चाहिए कि वह न्यूज़ चैनल ही देख रहा है. लेकिन कई बार न्यूज़ चैनल देखते हुए महसूस होता है कि हम न्यूज़ चैनल नहीं एमटीवी या चैनल – वी देख रहे हैं. ऐसे में मन में यह सवाल कौंधता हैं कि यह न्यूज़ एंकर हैं या न्यूज़ मॉडल ? (मूलतः ‘इतवार’ में प्रकाशित)