जब भी न्यूज़ चैनल देखती हूं तो एक बात मुझे बहुत परेशान करती है। हमारे देश में ग्रहमंत्री का नया पद कब और कैसे पैदा हो गया? ग्रह मंत्रालय, ग्रहमंत्री सुन-सुन कर हैरानी होती है। ‘प्लैनेट मिनिस्ट्री’ नाम का कोई मंत्रालय तो हमारे देश में बना नहीं है, फिर यह ग्रहमंत्री कहां से आए?
अब इन ग्रहमंत्री का नाम भी सुन लीजिए… वर्तमान ग्रहमंत्री हैं सुशील कुमार शिंदे जी।
अब आप सोचेंगे यह तो ‘होम मिनिस्टर’ हैं, लेकिन बड़े से बड़े जानकार ऐंकर के मुंह से अंग्रेजी के होम मिनिस्टर के लिए हिंदी में ग्रहमंत्री का उच्चारण सुनने को मिलता है।
हिंदी का अक्षर ‘ऋ’ तो गायब ही हो गया है। ग में ऋ के जुड़ने से बनता है ‘गृ’, लेकिन बहुत से लोग इसका उच्चारण ‘ग्र’ करते हैं। भई ‘ऋ’ से ऐसा भी क्या बैर! पहले ऋतु लिखते थे, अब ‘र’ में ‘इ’ की मात्रा लगा कर रितु लिख लेते हैं। ऐसे बहुत से शब्द हैं, जहां से ‘ऋ’ गायब होता जा रहा है।
आजकल भाषा में तरह-तरह के बदलाव देखने को मिलते हैं। बहुत से नए शब्द जुड़े हैं, तो बहुतेरे लुप्त हो गए हैं। लेकिन भाषा को संभाल कर रखना भी तो उसका उपयोग करने वालों का काम है। हिंदी एक फोनेटिक भाषा है, यानी, जैसी बोली जाती है वैसी लिखी जाती है। न कोई अक्षर ‘साइलेंट’ होता है, न दो अक्षरों का एक-सा उच्चारण होता है। अब ग्रहमंत्री बोलते-बोलते आगे चलकर गृहमंत्री की जगह ग्रहमंत्री की वर्तनी चलने लगे तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।
टीवी पर कुपोषण से जुड़ा एक विज्ञापन आजकल चल रहा है, जिसमें आमिर खान कुपोषण के लक्षण गिनाते हैं। लेकिन लक्षणों को वह लक्षण्स (lakshans) कहते हैं। अब यह स्क्रिप्ट लिखने वाले की समझदारी है या आमिर खान का पर्फेक्शन… पता नहीं! लेकिन इतना ज़रूर है कि एक भाषा में दूसरी भाषा का व्याकरण लागू नहीं होता। लक्षण का बहुवचन बनाना है तो हिंदी व्याकरण से बनाइए। भाषा पर कुछ तो ध्यान दीजिए।
मैं शब्द हूं,
मुझे बर्बाद मत करो।
मैं अभिव्यक्ति का साधन हूं,
मुझसे खिलवाड़ मत करो।
मेरे पदबंध में अर्थ निहित है,
मेरे उच्चारण पर कुछ तो ध्यान दो।
मैं शब्द हूं,
मुझे बर्बाद मत करो।
मैं कल भी था, मैं आज भी हूं,
आने वाले कल में भी रहूंगा।
मेरी लिपि शायद बदलती रहे,
लेकिन किसी न किसी रूप में
मैं हर वक़्त विद्यमान हूं।
मैं शब्द हूं,
मुझे बर्बाद मत करो।
याद रखो
यदि मैं नहीं होता,
तो अतीत के लिए तुम्हारी राहें नहीं खुलतीं।
वर्तमान में तुम अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाते
और अपनी अगली पीढ़ी के लिए
किस्से-कहानियां और ज्ञान सुरक्षित नहीं रख पाते।
कविता भी मुझ से है और कहानी भी
इतिहास में भी मैं ही हूं
और मुझ में इतिहास भी
मुझ में विज्ञान भी
मुझ में समाज भी।
मैं बहुत शक्तिशाली हूं,
मुझे संभाल कर इस्तेमाल करो।
मैं शब्द हूं,
मुझे बर्बाद मत करो।
मैं सिर्फ और सिर्फ अभिव्यक्ति का साधन मात्र नहीं हूं
मैं संस्कृति का परिचायक भी हूं।
जैसा मेरा उपयोग होगा
वैसी छाप मैं छोड़ूंगा।
मुझ में कोमलता भी है
और निष्ठुरता भी,
मैं एकार्थी भी हूं
अनेकार्थी भी,
मैं बंधनमुक्त भी हूं
बंधनयुक्त भी,
मैं मीठा भी हूं
और नमकीन भी।
मुझ में अपार शक्ति है
इसलिए मुझ पर थोड़ा ध्यान दो।
मैं शब्द, करबद्ध होकर प्रार्थना करता हूं
मुझे बर्बाद मत करो,
मुझे बर्बाद मत करो।
(मूलतः नवभारत टाइम्स में प्रकाशित . नवभारत टाइम्स से साभार)