वह दिन दूर नहीं जब विश्व के आँगन में हिंदी ‘तुलसी चौरा’ की तरह अवश्य स्थापित होगी – मृदुला सिन्हा

वह दिन दूर नहीं जब विश्व के आँगन में हिंदी 'तुलसी चौरा' की तरह अवश्य स्थापित होगी - मृदुला सिन्हा
वह दिन दूर नहीं जब विश्व के आँगन में हिंदी 'तुलसी चौरा' की तरह अवश्य स्थापित होगी - मृदुला सिन्हा

वह दिन दूर नहीं जब विश्व के आँगन में हिंदी  'तुलसी चौरा' की तरह अवश्य स्थापित होगी  - मृदुला सिन्हा
वह दिन दूर नहीं जब विश्व के आँगन में हिंदी ‘तुलसी चौरा’ की तरह अवश्य स्थापित होगी – मृदुला सिन्हा
हैदराबाद. तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी, चेन्नै और युनाइटेड इंडिया इंश्यूरेंस कं. लि., चेन्नै के तत्वावधान में आज विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर तृतीय अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक सम्मेलन तथा सम्मान समारोह का आयोजन नुन्गम्बाक्कम स्थित यूनाइटेड इंडिया लर्निंग सेंटर के परिसर में हुआ.

इस अवसर पर हिंदी भाषा और साहित्य की सेवा के लिए तेवरी आंदोलन के प्रवर्तक प्रो. ऋषभ देव शर्मा (आचार्य एवं अध्यक्ष, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, हैदराबाद) को श्रीमती शकुंतलारानी चोपड़ा साहित्य शिरोमणि सम्मान (जीवनोपलब्धि सम्मान) से सम्मानित किया गया. उन्हें प्रशस्ति पत्र, शाल, स्मृति चिह्न और धनराशि (21,000 रु.) से सम्मानित किया गया. यह सम्मान मुख्य अतिथि के रूप में पधारी गोवा की राज्यपाल महामहिम मृदुला सिन्हा ने प्रदान किया. अकादमी की ओर से देश विदेश के कुल 20 हिंदी सेवियों और साहित्यकारों को विभिन्न सम्मान और पुरस्कार प्रदान किए गए. जीवनोपलब्धि सम्मान प्राप्त करने वाले हिंदी सेवियों में डॉ. ऋषभ देव शर्मा के साथ डॉ. पी. के. बालसुब्रमण्यन और वी. जी. भूमा के नाम सम्मिलित हैं.

इस अवसर पर डॉ. राज हीरामन (मॉरिशस) और आइरिश रू. यू. लून (चीनी प्राध्यापक) को विश्वजनीन सम्मान, प्रो. निर्मला एस. मौर्य, ईश्वर करुण, महेंद्र कुमार और प्रह्लाद श्रीमाली को मौलिक कृति सम्मान, राजवेल (दक्षिण भारत हिंदी प्रचार प्रकाशन) को सहस्रबाहु प्रकाशन सम्मान, डॉ. एम. गोविंदराजन, डॉ. वत्सला किरण, मोहन बजाज और डॉ. आनंद पाटिल को अनूदित कृति सम्मान, के. वी. रामचंद्रन, के. सुलोचना, पी. आर. सुरेश, रविता भाटिया, के. पद्मेश्वरी और डॉ. अब्दुल मलिक को हिंदी सेवी सम्मान से नवाज़ा गया.

मुख्य अतिथि गोवा की राज्यपाल महामहिम मृदुला सिन्हा ने अत्यंत गद्गद होकर अपने संबोधन में कहा कि ‘अंतरमन जब पूरी तरह से भीगता है तो शब्द नहीं फूटते. आज मैं पूरी तरह से भीग गई हूँ. अम्मा मिले तो खूब बतियाओ, गंगा मिले तो डूब के नहाओ और हिंदी मिले तो खूब दिल खोल के बतियाओ. हर भारतीय के हृदय को स्पंदित करने वाली भाषा है हिंदी. हिंदी जोड़ने वाली भाषा है. संवेदनशीलता की भाषा है. संवेदना हृदय का आभूषण है. इससे समाज को सुसज्जित होना चाहिए. संवेदना के अभाव में साहित्य का सृजन असंभव है. थोड़ी दूर से आई हूँ, विश्वास का तोहफा लाई हूँ, हिंदी बोलते रहिए, अभ्यास कीजिए, अपने घर-परिवार में हिंदी को प्रतिस्थापित करें, वह दिन दूर नहीं जब विश्व के आँगन में हिंदी ‘तुलसी चौरा’ की तरह अवश्य स्थापित होगी.’

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.