केजरीवाल गलत नहीं कहते,मीडिया ने खड़ा किया है मोदी का विकास मॉडल

उर्मिलेश,वरिष्ठ पत्रकार

modi narenमोदी के योजनाकारों का यकीन रहा है कि ऊपर के विकास का फायदा नीचे तक जायेगा, लेकिन हुआ इसका उल्टा. गुजरात में अमीरी बहुत तेजी से बढ़ी है, पर गरीबी कम नहीं हुई. इसलिए प्रति व्यक्ति आय में भी गुजरात अभी कई राज्यों से पीछे है.

नागपुर में धन-संग्रह के लिए आयोजित अपने रात्रिभोज में आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने मीडिया को जिस तरह धमकाया, उसकी सर्वत्र निंदा हुई. लेकिन धमकाने से पहले उन्होंने जिन मुद्दों को लेकर मीडिया के एक हिस्से की आलोचना की, उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए. उनके इस आरोप को पूरी तरह निराधार नहीं कहा जा सकता कि मीडिया (का एक बड़ा हिस्सा) गुजरात की विकास-गाथा के हवाले से मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की जो तसवीर पेश कर रहा है, वह हकीकत से परे है. मीडिया का एक हिस्सा मोदी का भोंपू-सा बन गया लगता है. लगातार ‘लाइव-कवरेज’ यूं ही तो नहीं हो रहा है?

केजरीवाल के इन आरोपों के बहस में आने से काफी पहले मेरे गांव से एक नौजवान ने फोन कर मुझसे पूछा, ‘भैय्या, आप तो देस-दुनिया घूमते रहते हैं, गुजरात भी गये होंगे. यह तो मानना ही होगा कि मोदी ने गुजरात को स्वर्ग बना दिया है. वहां न तो बेरोजगारी है, न गरीबी. बहुत तेज विकास किया है मोदी ने. ऐसा भ्रष्टाचार-मुक्त प्रशासन अपने यहां कहां है? उत्तर प्रदेश-बिहार में ऐसे विकास-पुरुष क्यों नहीं पैदा होते?’ अपने गांव के इस अनुज-तुल्य परिजन के साथ बहस में उतरे बगैर मैंने पूछा, गुजरात में विकास और इसमें मोदी की भूमिका के बारे में तुम्हारी इस जानकारी का आधार क्या है? क्या हाल-फिलहाल गुजरात गये थे? उसने कहा, ‘आज की दुनिया में कहीं जाने की क्या जरूरत, घर बैठे टीवी पर सारी जानकारी मिल जाती है. वह आंखों के सामने दिखाई देती है.’ उस दिन मोदी के ‘विकास-पुरुषत्व’ की ‘बहुप्रचारित गाथा’ के सच का एक महत्वपूर्ण पहलू मेरे सामने आया था.

गांव के मेरे अनुज-तुल्य परिजन ने अपने दिलो-दिमाग में गुजरात के विकास और नरेंद्र मोदी की भूमिका की जो तसवीर बनायी है, वह सिर्फ टीवी-चैनलों की सूचनाओं पर आधारित है. लेकिन उसके पास केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, त्रिपुरा, गोवा या मिजोरम की कोई तसवीर नहीं है, क्योंकि टीवी चैनलों पर इन राज्यों के विकास या इनके मुख्यमंत्रियों के बारे में कुछ खास नहीं दिखाया जाता. गुजरात के दंगों से प्रभावित लोगों की मुफलिसी, मजबूरियां और पीड़ा इन चैनलों पर शायद ही कभी उभरती है. गुजरात के डांग, नर्मदा, पंचमहल, साबरकांटा, तापी या बनसकांटा जैसे बेहद पिछड़े इलाकों-जिलों की असल तसवीर भी चैनलों या अखबारों के जरिये गुजरात के बाहर के लोगों के सामने कहां आ पाती है? डांग में कुछ वर्ष पहले दंगा हुआ था. दंगों की रिपोर्टिग के लिए मैं डांग गया था.

डांग का जिला मुख्यालय देखा तो चकित रह गया. यूपी-बिहार-झारखंड के किसी छोटे-मझोले कस्बे जैसा भी नहीं था वह. एक ही सड़क के दोनों तरफ बसा था जिला मुख्यालय. धूलभरा-खस्ताहाल. पूरे शहर (आप उसे शहर कहना चाहें तो) में रात्रि-विश्रम के लिए एक भी होटल नहीं. सिर्फ एक डाकबंगला था, जो पहले से भरा था. उस दिन मुझे लंबी यात्र करके रात्रि-विश्रम के लिए फिर सूरत लौटना पड़ा. गुजरात के पांच जिले आज भी देश के सर्वाधिक पिछड़े 50 जिलों में शामिल हैं. मोदी के गुजरात का एक सच यह भी है, लेकिन चैनलों पर कहां दिखते हैं ये जिले?

गुजरात पहले से ही प्रगति-दर में देश के समुन्नत सूबों में शामिल रहा है. प्रगति-दर में उसने सबसे तेज छलांग 1991 से 1998 के बीच लगायी. तब मोदी साहब दिल्ली में पार्टी का काम देखते थे. तुलनात्मक ढंग से देखें तो मोदी के राज में गुजरात की प्रगति-दर में वैसी छलांग नहीं दिखाई देती, जैसी आज तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र या कुछ अन्य राज्यों की है. समावेशी विकास के मामले में तो गुजरात का रिकॉर्ड बेहद खराब है. वहां पांच वर्ष से कम उम्र के कुपोषित बच्चे 42 फीसदी से ज्यादा हैं.

दहाई की प्रगति-दर के बावजूद ‘हंगर-इंडेक्स’ में गुजरात व ओड़िशा बराबरी पर हैं. रोजगार-सृजन में महाराष्ट्र और तमिलनाडु गुजरात से बहुत आगे हैं. सामाजिक विकास सूचकांक में गुजरात देश के 20 बड़े राज्यों में 17 वें स्थान पर है. वहां 31.8 फीसदी लोग अब भी गरीब हैं. भाजपा-शासित मध्य प्रदेश और जद (यू)-शासित बिहार जैसे राज्य भी कृषि विकास-दर के मामले में गुजरात से बहुत आगे हैं. उच्च शिक्षा के मामले में गुजरात का रिकॉर्ड बेहद खराब है. साक्षरता के मामले में वह देश के बारह शीर्ष साक्षर सूबों में अब तक अपनी जगह नहीं बना सका है. फिर कैसा विकास है यह, जो राज्य सरकार के विज्ञापनों और ज्यादातर टीवी चैनलों की खबरों व बहसों में बार-बार शानदार उपलब्धि के रूप में प्रचारित किया जाता है?

गुजरात के विकास के लिए मोदी ने बीते वर्षो के दौरान विश्व बैंक-आइएमएफ के ‘टपकन सिद्धांत’ (ट्रिकल-डाउन थ्योरी) पर ज्यादा भरोसा किया है. योजना आयोग और साउथ-ब्लाक के बड़े योजनाकार भी इस सिद्धांत के पैरोकार रहे हैं.

गुजरात में मोदी ने बड़े अंबानी-अदानी जैसे बड़े कॉरपोरेट-घरानों और उच्चवर्ग के विकास को ज्यादा तरजीह दी. उनके योजनाकारों का यकीन रहा है कि ऊपर के विकास का फायदा नीचे तक जायेगा, लेकिन हुआ इसका उल्टा. गुजरात में अमीरी बहुत तेजी से बढ़ी, पर गरीबी कम नहीं हुई. इसीलिए प्रति व्यक्ति आय में भी गुजरात हरियाणा, महाराष्ट्र, पंजाब, तमिलनाडु सरीखे राज्यों से पीछे है.

पिछले दिनों भाजपा और गुजरात सरकार की तरफ से मुसलिमों को रिझाने के लिए दो बातों का खूब प्रचार किया गया. पहली- 2002 दंगे के बाद सूबे में कोई दंगा नहीं हुआ.

दूसरी-गुजरात में मुसलिमों की आर्थिक तरक्की बहुत तेज हुई है. तथ्यों और आंकड़ों की रोशनी में ये दोनों दावे गलत हैं. अपराध के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक गुजरात में 2002 के बाद भी छिटपुट दंगे होते रहे हैं. जहां तक तरक्की का सवाल है, गुजरात के कुछेक हलकों में मुसलिमों की पहले से बेहतर स्थिति है, पर आम मुसलिम समुदाय की हालत में कोई सुधार नहीं आया है. राज्य में सिर्फ 12 फीसदी मुसलिमों के पास बैंक-एकाउंट हैं. इनमें सिर्फ 2.6 फीसदी लोगों को बैंक-कर्ज मिल पाया है. ये सरकारी आंकड़े हैं. पिछले चुनावों में भाजपा ने एक भी मुसलिम को अपना प्रत्याशी नहीं बनाया.

अगर मीडिया, खास कर टीवी चैनलों के जरिये गुजरात के विकास की सही तसवीर सामने नहीं आ रही है, तो शक तो होगा ही कि कहीं कोई ‘खेल’ तो नहीं चल रहा? इसका जवाब जरूर मिलना चाहिए कि असमान विकास व क्षेत्रीय विषमता से ग्रस्त भारत में गुजरात का मॉडल कैसे प्रासंगिक हो सकता है, जहां समावेशी विकास को नजरअंदाज कर सिर्फ कुछ खास तबकों के विकास को तवज्जो दी जा रही है?

(स्रोत-प्रभात खबर)

2 COMMENTS

  1. Phir bhi aaj pure india me gujrat hi aage he. Patrkar chahe jo bhi kahe log to sab jante he. Mere bahot sare relatives gujrat me he aur wo sab kahete he ki gujrat me maharashtra se jyada vikas he

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