गजेन्द्र कुमार
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पिछले कुछ महीनों में कुछ ऐसा कर दिखाया है, जिससे भारत के मायूस और नाउम्मीद लोगों में उम्मीद और ख़ुशी की लहर दौड़ा गई है.. खैर ये तो वक़्त हीं बतायेगा कि केजरीवाल लोगों की उम्मीदों पर कितना खरा उतरते हैं, पर दुःख की बात तो ये है कि देश का चौथा स्तम्भ कहा जाने वाला मीडिया भी आज मायूसी और हताशा के दौर से गुज़र रहा है… मीडिया से जुड़े लोग काफी हताश और हीनभावना से ग्रस्त होते जा रहे हैं …खासकर वो लोग जो पिछले कुछ सालों में मीडिया से जुड़े हैं…
आज के युवा पत्रकार जो भी मीडिया से जुड़ रहा है वो खुश नहीं…. क्यूंकि उनसे काम नहीं लिया जाता बल्कि उनका शोषण किया जाता है… उनसे ये कहा जाता है कि आपके ऑफिस आने का तो टाइम होगा पर जाने का कोई टाइम नहीं होगा यानि आप कितने घंटे काम करोगे ये निश्चित नहीं और ये एक दिन के लिए नहीं बल्कि हर दिन के लिए होता है…इतने घंटे काम करने के बावज़ूद इन्हें कोई मोटिवेशन नहीं मिलता…
बेरोज़गारी से मज़बूर युवा अपने बॉस की हर सही-गलत बात खमोशी के साथ सह लेता है…इसके बाद उन्हें सैलेरी क्या मिलती है ??? किसी को 10 हज़ार तो किसी को 12 हज़ार तो किसी को 15 हज़ार …बेचारे को दिल्ली जैसे शहर में काम करने के बाद भी दिल्ली में रहने के लिए घर से पैसे मांगने पड़ते हैं या फिर जो घर से नहीं मांगते हैं वो कैसे अपना गुज़ारा करते हैं ये देखकर आपके दिल पसीज जायेंगे…वो बेचारे अपने घर वालों को क्या पैसे देंगे …इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी की कोई नौकरी करे इसके बावज़ूद घर से पैसे मांगने पड़े…इतनी पढाई के बाद भी इनकी इतनी बुरी हालत है…इससे ज्यादा तो एक अनपढ़ मज़दूर हर महीने मज़दूरी करके कमा लेता है…इन वजहों से आज का युवा पत्रकार हीनभावना से ग्रस्त हो रहा है…ये बातें तो युवा पत्रकारों की है जो आज की दौर में मीडिया में जा रहे हैं ….
मीडिया के वो लोग भी खुश नहीं हैं जो कई वर्षों से मीडिया के क्षेत्र में काम कर हैं …कई वर्षों से काम कर रहे ज्यादातर पत्रकार इस ताक में रहते हैं की उन्हें टीचिंग के क्षेत्र में जॉब मिल जाये…उनके सामने टीचिंग का विकल्प आते हीं मीडिया का क्षेत्र छोड़ने में जरा भी देर नहीं करते और पढाने का काम शुरू कर देते हैं…यानि कई वर्षों से मीडिया में काम से कर रहे पत्रकार भी मीडिया में काम करने के तौर-तरीके से परेशान हैं…पर सोचने वाली बात ये है कि जो पत्रकार मीडिया का फील्ड छोड़ कर टीचिंग में आ रहे हैं …क्या वो अपने स्टूडेंट का वही हाल होता देखकर खुश हो पाएंगे जो उन्होंने झेला है ??? अगर उनलोगों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता तो ये अलग बात बात है…सबसे ज्यादा दुःख वाली बात ये है कि लोगों को जागरूक करने वाला मीडिया ,लोगों की आवाज़ बनने वाला मीडिया…लोगों की शोषण के खिलाफ खड़ा होने वाला मीडिया…खुद जागरूक नहीं है,,खुद पर हो रहे शोषण के खिलाफ आवाज़ नहीं उठा रहा…परेशान हर पत्रकार है ..पर अगर किसी से आवाज़ उठाने के लिए कहो तो उनका जवाब होगा ..यार यहाँ तो यही चलता है..लाख कोशिश कर लो कुछ नहीं बदलने वाला…और फिर चुप-चाप हर ज्यादतियों को सह जाते हैं….तभी को कह रहा हूँ कोई मीडिया के लिए भी “केजरीवाल” बने , जो इनकी दबी आवाज़ को बुलंद कर सके …
मीडिया की कलम खरीद ली गयी है और मीडियाकर्मियों की आवाज़ गुलाम हो चुकी है …मेरा तो कहना है की ज़िल्लत की नौकरी से कही अच्छी है बेरोज़गारी …कम से कम किसी का गुलाम तो नहीं….मज़े की बात तो ये है की सरकार ने बहुत पहले हीं पत्रकारों के लिए working journalist act 1955 बनाया था लेकिन दुर्भागय है की कोई मीडिया आर्गेनाईजेशन इसे नहीं मानता ..यही वजह है की आज पत्रकारों की इतनी बदतर हालत है …working journalist act 1955 के तहत एक पत्रकार के काम करने के घंटे से लेकर उनकी तन्खाह तक की बात कही गयी है …अगर आज भी इस एक्ट को फॉलो किया जाये तो पत्रकारों की हालत बदल सकती और फिर मीडिया की हालत भी बदल जायेगी…ज़रूरत है बस इक ऐसे शख्स की जो मीडिया वालों की आवाज़ बुलंद कर सके .. मेरा दावा है कि अगर कोई एक व्यक्ति भी आवाज़ उठाएगा तो उसके साथ हज़ारों हाथ खड़े हो जायेंगे…क्योंकि आज मीडिया के काम करने के रवैये और तौर-तरीके से हर कोई परेशान है…अगर किसी को फायदा हो रह है तो बस मीडिया आर्गेनाईजेशन के मालिकों को ….
वैसे देश के आगामी प्रधानमंत्री के बनने का सपना देख रहे पप्पू और फेकू जी से भी कहना चाहूंगा कि मीडिया कर्मियों का दर्द समझते हुए, अपने घोषणा पत्र में मीडिया के हक़ के बारे में चर्चा करें…जो भी मीडिया के हक़ के बारे में बात करेगा , उसकी जीत पक्की समझो , क्यूँकि फिर तो वो मीडिया वालों के चहेते हो जायेंगे …और आप दोनों मीडिया के पावर को अच्छी तरह समझते हैं …मेरी तरफ से ये मशविरा मुफ्त में …तो देर किस बात कि जल्दी आप मीडिया के लिए केजरीवाल बनो …जय हो ..