जज की भूमिका में मीडिया

दुर्गेश उपाध्याय

दुर्गेश उपाध्याय
दुर्गेश उपाध्याय

भारतीय लोकतंत्र के तीन मुख्य स्तम्भ हैं विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका और लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के रूप में सर्वमान्य तरीके से प्रेस या मीडिया को स्वीकार किया गया है. हाल ही में दिल्ली में जिस तरह से आम आदमी की पार्टी की सरकार ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की और उससे पहले पिछले साल मई 2014 में जिस तरह से नरेंद्र मोदी ने केंद्र की सत्ता पर कब्जा जमाया उसमें मीडिया का अहम रोल रहा.

इन दोनों ही चुनावों ने इतिहास रचा और एक एक बहस जिसने सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा वो ये कि क्या इन उपरोक्त दोनों घटनाओं में मीडिया ने सकारात्मक भूमिका निभाई, सोचने पर लगता है शायद नहीं. दरअसल मीडिया का काम है कि वह जनता के सामने सच की तस्वीर लाए और सरकार का जो तंत्र है उसको जनता के सामने प्रस्तुत करे चाहे वह अच्छा हो या बुरा और इसी तरह मीडिया की जिम्मेदारी है कि वह जनमानस के समक्ष सही तस्वीर प्रस्तुत करे लेकिन जिस तरह से मीडिया के कुछ breast mediaहिस्से ने एक खास ढंग से नरेंद्र मोदी को हीरो बनाने का काम किया और बाद में उन्हीं नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आते ही उससे दूरी बनाने में देर नहीं लगाई ये एक विचारणीय प्रश्न है. अगर हम देखें तो ये मोदी की मीडिया मैनेजमेंट ही था जिसने उन्हें सत्ता के शिखर पर पहुंचा दिया. यही हाल अरविंद केजरीवाल के संदर्भ में हुआ. हांलाकि उन्हें नकारात्मक मीडिया कवरेज का भरपूर लाभ मिला जो कि भाजपा द्वारा पल्लवित पुष्पित था और उसमें भी कहीं न कहीं इस्तेमाल तो मीडिया का ही किया गया. वैसे कुछ लोग इस तर्क से सहमत नहीं हैं और उनको लगता है कि मीडिया अपना काम पूरी ईमानदारी से कर रहा है. चर्चित पत्रकार वेद प्रताप वैदिक उन्हीं लोगों में से एक हैं उनका कहना है कि दिल्ली के चुनावों में भारतीय मीडिया की भूमिका निष्पक्ष एवं निर्भीक रही. उसने एक साफ और स्वच्छ दर्पण का काम किया. जो जैसा है वैसा दिखाया इसीलिए सच्चाई देश के सामने आ गई. मुझे विश्वास है कि मीडिया आगे भी इसी तरह की भूमिका निभाएगा. वैदिक की प्रतिक्रिया बेहद सधी हुई है और वो मीडिया की वर्तमान कार्यप्रणाली को पूरी तरह से क्लीन चिट देते हुए दिखाई पड़ते हैं.

aap-media-managementलेकिन वहीं दूसरी ओर राम बहादुर राय इससे इत्तफाक नहीं रखते. उनके विचार से देश के मौजूदा मीडिया को रेगुलेट करने के लिए प्रेस काउंसिल जैसी मृतप्राय हो चुकी संस्थाओं को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है. वो कहते हैं कि आज की युवा पत्रकार बिरादरी तो अपना काम सुंदर ढंग से कर रही है लेकिन प्रिंट हो या इलेक्ट्रॉनिक इन पर 14-15 व्यवसायी घरानों का दबदबा होने की वजह से कहीं न कहीं निष्पक्षता प्रभावित हो रही है और सरकार सब कुछ जानते और समझते हुए भी इसको रेगुलेट करने की हिम्मत नहीं दिखा रही है. इस देश में दो बार प्रेस आयोग का गठन हुआ और उसकी कुछ सिफारिशें सामने भी आईँ बल्कि हाल ही में मौजूदा सरकार में राव इंद्रजीत सिंह की अध्यक्षता में सूचना एवं तकनीक में एक आयोग ने इस पर अध्ययन कर कुछ बातें रखी हैं और वर्तमान सूचना और प्रसारण मंत्री अरुण जेटली का भी कहना है कि वर्तमान प्रेस काउंसिल एक टूथलेस टाइगर की तरह है जो कुछ कर ही नहीं सकता लेकिन मीडिया की कार्यप्रणाली को कैसे बेहतर बनाया जाए इस पर कुछ ठोस करने के सवाल पर सरकार में चुप्पी का माहौल है.

यहां सवाल बड़ा है, क्या वर्तमान मीडिया जिसकी बागडोर देश के कुछ चुनिंदा व्यवसायी घरानों के हाथों में है वो एक खिलौना मात्र बनकर नहीं रह गया है और क्या ये घराने अपने व्यवसायिक हितों को साधने के हिसाब से अपनी मनमाफिक सरकारों के गठन के लिए मीडिया का सहारा नहीं ले रहे हैं. क्या ठेके पर रखे जाने वाले पत्रकारों को इस बात की आजादी है कि वो सच का साथ दें. लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ को मजबूती इस बात से मिलेगी जब सरकार इस पर गंभीरता से विचार करेगी और व्यवसायी घरानों के दबाव से मुक्त होकर पूरे देश का मीडिया निष्पक्षता से अपना काम करेगा. जरुरत है एक ऐसे सिस्टम की जो मौजूदा मीडिया प्रणाली को पारदर्शी और जिम्मेदार बनाने की दिशा में काम करे और उसे सिर्फ बिजनेस घरानों का हथियार बनने से रोके. वहीं दूसरी ओर मीडिया निष्पक्ष व निर्भीक तरीके से कार्य करे न कि निर्णायक तरीके से. वर्तमान परिदृश्य में हो ये रहा है कि मीडिया अपनी निर्णायक भूमिका में नजर आ रहा है. हर किसी भी प्रकरण में मीडिया तथ्यों को इस तरीके से पेश करता है कि जैसे मीडिया, मीडिया न होकर कोई अदालत हो. मीडिया की जिम्मेदारी है कि वह तथ्य प्रस्तुत कर दे न कि उन तथ्यों पर निर्णय करे. वर्तमान में मीडिया की वजह से जनमानस पर एक दबाब बनता है और इस दबाब में सही निर्णय नहीं हो पाते. आज न्यायपालिका, विधायिका सब के सब मीडिया का दबाब महसूस कर रहे हैं.

(लेखक परिचय– दुर्गेश उपाध्याय पूर्व बीबीसी पत्रकार और सहारा समय चैनल एवं वेबसाइट में संपादक रह चुके हैं. वर्तमान में राजनैतिक विश्लेषक और TV Pannelist के तौर पर सक्रिय हैं)

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