इलेक्ट्रानिक चैनल के एक संपादक महोदय का सुबह सुबह फोन बजा। फोन एक परिचित, शहर के सक्रिय और छपास रोग से ग्रसित बुद्धिजीवी महाशय का था। इससे पहले कि कोई और बात हो या बुद्धिजीवी महाशय किसी खबर को लगाने की पैरवी करें संपादक महोदय बोल पड़े ‘महिला दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं’! बुद्धिजीवी महाशय सकपकाए, थोड़ा मुस्कुराए और तपाक जबाव में शुभकामनाएं परोस दीं- ‘आपको भी महिला दिवस की शुभकामनाएं !
दोनों महोदय इस महिला दिवस की आपसी शुभकामनाओं पर खिलखिलाए और अट्टहास लगाया। संपादक महोदय थोड़ा झेपे, पर बात संभाली, तुक्का लगाया- अरे भाई आप महिला दिवस पर कार्यक्रम कर रहे हैं, क्या कम है ? बुद्धिजीवी महाशय के दिमाग की भी बत्ती जल गई। जिस खबर की पैरवी करनी थी, उसे भूल गए और कहा हां हां बात तो सही है, ऐसे कार्यक्रम तो होने ही चाहिए, मनोबल बढ़ता है महिलाओं का। संपादक जी ने भी सहमति में हामी भरी और कहा खबर भेज दिजीएगा कार्यक्रम की, लग जाएगी।
अब तक बुद्धिजीवी महाशय अपने पहले वाली खबर को पूरी तरह भूला चुके थे और सोच रहे थे कि महिला दिवस का कार्यक्रम ही सही, आज बहती गंगा में हाथ धो लेना है। इससे ही छपू रोग का समाधान होता है तो आज यही सही, पहले वाली बात फिर कभी। उधर संपादक महोदय भी खुश थे कि चलो उनकी ऊलजुलूल खबरों की बजाए आज महिला दिवस की गंगा में उनके खबरों की नैया भी पार लगा देंगे।
एक बार फिर दोनों महोदयों ने एक दूसरे को महिला दिवस की शुभकामनाएं दी और खुशी खुशी फोन रख दिया !