हिंदी पट्टी के सांप्रदायिक संपादको और पत्रकारों ने पूरी खबर ही गायब कर दी

मो.अनस

संघियों से भरा मीडिया ,कट्टरपंथियों से भरी पत्रकारिता ने पिछले साल भाजपा शासित छत्तीसगढ़ में बेकसूर मुसलमानों की गिरफ्तारी को ब्रेकिंग और लीड खबर बनाई थी. पटना ब्लास्ट के आरोप में रायपुर पुलिस ने इन सबको सिमी का कैडर और आतंकवादी बताया.

अदालत ने 27 मार्च मतलब आज से चार दिन पहले 14 नौजवानों को सबूत और चार्जशीट न पेश कर पाने की वजह से छोड़ दिया. पुलिस की प्रेस रिलीज को हूबहू छाप कर होमगार्ड्स के साथ खैनी और चाय पीने वाले बेहुदे क्राइम रिपोर्टर असल में ख़बर नहीं ,मुसलमानों के साथ दुश्मनी निभाते हैं.

यह लड़ाई अब लड़नी ही होगी ,सवाल नहीं अब आरोप तय किए जाने चाहिए इन पत्रकारों पर जिन्हें बिना जांच के इंजीनियरिंग के छात्र आतंकवादी और नौजवान हुनरमंद मुसलमान सिमी का कैडर लगता है.

संविधान के मूल चरित्र जिसमे सामाजिक सुरक्षा और बराबरी का जिक्र है के साथ सबसे अधिक उद्दंड यदि कोई है तो वह मीडिया है. मुसलमानों के साथ दोहरा रवैया हर मीडिया समूह ने अपनी पालिसी में शामिल किया है. इससे कोई अछूता नहीं है. वरना ये ख़बर भी पहले पन्ने और ब्रेकिंग में तो ज़रूर ही चलती एडिटर साब.

  हिंदी पट्टी के सांप्रदायिक संपादको और पत्रकारों ने पूरी खबर ही गायब कर दी।

हिंदी पट्टी के सांप्रदायिक संपादको और पत्रकारों ने पूरी खबर ही गायब कर दी। मुसलमानों को पकड़ने की खबर दिखाएंगे पर रिहा होने की नहीं।
मन बहुत दुखी है ।
यह तो मीडिया में कार्यरत कट्टरपंथी लोगों द्वारा मुसलमानों के खिलाफ धर्मयुद्ध के शंखनाद उद्घोष सा प्रतीत होता है। इस देश को कट्टरपंथी/हिंदुत्व के सजग प्रहरी संपादकों/पत्रकारों से बचा लीजिए।
भाषा(PTI) से हगने मूतने की रिपोर्ट ले कर पोर्टल ,अखबार और चैनल पर दिखाने वालों ने इसे क्यों नहीं देखा ? लड़ना होगा इनसे . सार्वजनिक कटघरे में खड़ा करके पानी के छींटे नहीं बाल्टी उड़ेलनी होगी इन पर. समय की मांग है.

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