भोपाल, 04 अप्रैल। अपने देश को हमें हीन भावना से प्रस्तुत नहीं करना चाहिए। अपने लेखन में भारतीय वाग्ंमय और भारतीय उदाहरणों को प्रस्तुत करना चाहिए। ताकि प्रत्येक भारतवासी को अपने देश पर गौरव हो और दुनिया भी जाने की भारत एक महान देश है। यह पुरानी कहावत है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। लेकिन, धन और बाजारवाद का प्रभाव बढ़ रहा है, जिससे ये दर्पण कुछ दरक गया है। इस कारण बिम्ब कुछ धुंधले बन रहे हैं। साहित्यकारों को भारत के उजले पक्ष को दिखाना चाहिए। ये विचार प्रख्यात कवि और वरिष्ठ पत्रकार श्री महेश श्रीवास्तव ने व्यक्त किए। वे युवा साहित्यकार लोकेन्द्र सिंह के काव्य संग्रह ‘मैं भारत हूं’ के विमोचन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित थे। समारोह का आयोजन ‘एक भारतीय आत्मा’ पं. माखनलाल चतुर्वेदी की जयंती प्रसंग पर मीडिया विमर्श पत्रिका के तत्वावधान में किया गया। समारोह की अध्यक्षता माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने की। वरिष्ठ पत्रकार श्री अक्षत शर्मा भी बतौर विशिष्ट अतिथि मौजूद रहे।
श्री श्रीवास्तव ने कहा कि जब मैं कहता हूं कि मैं भारत हूं तो हमारे भीतर गंगा की पवित्रता, हिमालय की गर्वोन्नति और हिन्द महासागर की गहराई एवं विशालता दिखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अनुभव की अभिव्यक्ति है साहित्य। पत्रकारिता भी साहित्य है लेकिन इसमें अनुभव का इस्तेमाल कम होता है। ‘मैं भारत हूंÓ काव्य संग्रह की बेटि को समर्पित एक कविता का जिक्र करते हुए कहा कि आज समाज में बेटियों की अस्वीकारता है लेकिन कवि किस तरह से अपनी बेटियों को सम्मान देता है, यह सबको जानना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि जब तक हम अपने देश की हवा, मिट्टी, पानी को आत्मसात नहीं करेंगे तब तक देश का कल्याण नहीं होगा। विमोचित काव्य संग्रह में कवि ने इसी हवा, मिट्टी और पानी को आत्मसात कर लेखन किया है। शोधपत्रों का उदाहरण देकर उन्होंने बताया कि उज्जैन में स्थित महाकाल के शिवलिंग को केन्द्र मानकर खगोल की गणना की जाती थी। ज्यामिति, गणित, चिकित्सा इन सबका विकास कहाँ हुआ? अपनी लेखनी से हमें यह बताना चाहिए।
भाव को मजबूत बनाती है बौद्धिकता : कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने कहा कि लाखों वर्षों की संकल्पनाओं का समावेश ‘भारत’ शब्द में है। उसे व्यक्त करना बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। ‘एक भारतीय आत्मा’ के नाम से ख्यात महान कवि पं. माखनलाल चतुर्वेदी की आज जयंती है। उनको याद करना भारतीय परम्पराओं को याद करना है। हमें यह जानना चाहिए कि उन्होंने इतना सकारात्मक लेखन करने के लिए क्या-क्या अध्ययन किया। विद्वान कहते हैं कि एक हजार शब्द पढऩे के बाद एक शब्द लिखना चाहिए। हमारे शास्त्र मनन की बात करते हैं। हमें अध्ययन के बाद मनन करना चाहिए, तब जो शब्द निकलेगा वह ब्रह्म होगा। वरना शब्द तो भ्रम भी होता है। इसलिए हमें अध्ययन में भी सावधानी बरतनी चाहिए। गलत दिशा में अध्ययन से श्रेष्ठ अभिव्यक्ति नहीं हो सकती। भाव की मजबूती के लिए बौद्धिकता की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि आसान काम नहीं था, जब माखनलाल चतुर्वेदी ने पत्रकारिता और लेखन कार्य किया। उस वक्त अंग्रेजी हुकूमत का दौर था। लेकिन, समाज के लिए समर्पित जीवन से उन्होंने वह कर दिखाया था। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्री अक्षत शर्मा ने कहा कि ‘मैं भारत हूं’ काव्य संग्रह में शामिल सब कविताएं अपनी माटी के लिए समर्पित हैं। उन्होंने कहा कि संग्रह में शामिल कविताएं उज्ज्वल और गौरवशाली भारत की तस्वीर दिखाती हैं। अपने देश पर गर्व करने की प्रेरणा देती हैं। इससे पूर्व पुस्तक का परिचय लेखक एवं कवि लोकेन्द्र सिंह ने दिया। उन्होंने कहा कि उनके लिए देश कोई भूगोल नहीं है बल्कि एक जीता-जागता देवता है। अपने इस देवता की स्तुति में ही उन्होंने कविताएं और गीत रचे हैं। उन्होंने कहा कि देश, समाज और प्रकृति के साथ-साथ संग्रह में शामिल कई कविताएं मानवीय रिश्तों के इर्द-गिर्द भी रची गई हैं। कार्यक्रम का संचालन डॉ. सौरभ मालवीय ने किया। इस मौके पर कुलाधिसचिव श्री लाजपत आहूजा, कुलसचिव श्री चंदर सोनाने, जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी, वरिष्ठ पत्रकार गिरीश उपाध्याय, सुनील शुक्ला, प्रवीण दुबे, शैलेन्द्र तिवारी, मध्यप्रदेश सूचना आयुक्त आत्मदीप, सामाजिक कार्यकर्त्ता सतीश पिम्पलीकर, हेमन्त मुक्तिबोध, डॉ. मयंक चतुर्वेदी और शहर के गणमान्य नागरिकों सहित विद्यार्थी भी मौजूद रहे।