उदय प्रकाश
सुबह उठते ही, जब अरविंद केजरीवाल का चेहरा सूजा हुआ था, बीच-बीच में खांसी आ रही थी, आंखें नींद की खुमारी से भारी थीं, आवाज़ भर्राई हुई थी और टीवी चैनल के कर्मचारी उनसे ‘अराजकता’ वगैरह के बारे में पूछ रहे थे, तब उनका जवाब था – देश की राजनीति बदल रही है. सारा पोलिटिकल डिस्कोर्स बदल रहा है. इस बात को राजनीतिक नेता और मीडिया वाले सीख लें…!’ उन्होंने व्यावसायिक मीडिया को सलाह दी कि वे ज़रा जनता से जुड़ें…
अगर यह सब कुछ ‘नौटंकी’ है, तो एक भ्रष्ट और असंवेदनशील हो चुकी व्यवस्था को बदलने के लिए यह ‘नौटंकी’ ही सबसे प्रभावशाली माध्यम है.उस बासी, वैभवशाली और बंद प्रेक्षागृहों में चलने वाले कपटी रंगमंच का पर्दा धीरे-धीरे गिर रहा है.
वे मीडिया स्टार्स जो सारी ‘इंडिया’ का प्रवक्ता होने का दावा करते हैं, उनके चेहरे इतने फीके और रंगहीन, तमाम मेकअप के बावज़ूद, ऐसे मुर्झाए हुए पहले कभी नहीं दिखे. यह कहने का मन होता है कि आज चाहे रजत शर्मा हों, बरखा दत्त, अर्नब गोस्वामी, राजदीप सरदेसाई या कोई और मीडिया महारथी, वह ‘इंडिया’ के किसी भी आम आदमी के खिलाफ़, किसी भी विधान सभा या लोकसभा की कांस्टिचुएंसी से चुनाव नहीं जीत सकता.
टीवी की ‘व्युअरशिप’ को ‘इंडिया’ के साथ कन्फ़्यूज़ करने की गलतफ़हमी के ये लोग ला-इलाज रोगी हैं.
वह जन-तंत्र, जिसके अब तक सारे शेयर्स कुछ गिने चुने अमीर घरानों के पास थे, अब शायद जनता उसी जनतंत्र में अपना ‘शेयर’ मांग रही है.गणतंत्र दिवस को लेकर ऐसी उत्सुकता पहले कभी नहीं हुई, जो अब ब-मुश्किल पांच दिन बाद है.
(स्रोत-एफबी)