अरविंद के सिंह
गंभीर चिंता का विषय
भाई अखिलेश शर्मा (एनडीटीवी इंडिया के पत्रकार) ने एक बहुत गंभीर सवाल उठाया है…उऩका कहना है कि…
Disappointed to see some senior journalists acting like party spokesmen on TV Channels. They are rude, arrogant and contemptuous to leaders.
मैं उनकी बात से पूरी तरह सहमत हूं…पत्रकार होने के नाते हम किसी दल किसी व्यक्ति या किसी अधिकारी को पसंद कर सकते हैं…लेकिन जब एक पत्रकार के रूप में अपने कर्तव्य की बात आती है तो हमें तटस्थ भाव से ही काम करना चाहिए..आज विचारों को प्रकट करने के कई साधन मौजूद हैं…लेकिन चैनलों पर बैठ कर किसी को एकतरफा समर्थन देना और किसी को खारिज करने का विचार किसी पत्रकार का नहीं हो सकता…
हम जानते हैं कि कई पत्रकार ऐसा करने का फल भी बाते हैं..कई खास जगहों पर तैनाती और सत्ताओं के भीतर प्रभाव…ट्रांसफर पोस्टिंग और बहुत सी बातें…वो छिपे भी नहीं हैं…एनडीए आती है तो उसके सबसे सगे हो जाते हैं और यूपीए आती है तो ऐसा जाहिर करते हैं जैसे सरकार उनकी ही देन है..
AAP जैसा नवोदित दल जिसमें तमाम लोग संभावनाएं देख रहे थे, कुछ महत्वाकांक्षी पत्रकारों ने उसे बर्बाद कर दिया है…पता नहीं वो किस मिट्टी के बने हैं…लेकिन हमे लगता है कि वो नयी पीढ़ी के लिए रोल माडल बन रहे हैं…
सत्ता या राजनीतक दलों की पिट्ठू पत्रकारों की जमात इस पेशे के लिए वैसे ही खतरा है जैसे पत्रकारिता के विश्वसनीयता और गरिमा के लिए पे़ड न्यूज या बाकी समस्याएं…पेड न्यूज मालिकों की देन हो सकती है लेकिन यह समस्या किसकी देन है…