अश्विनी कुमार श्रीवास्तव-
पत्रकार से फिल्म निर्देशक बने अविनाश दास भी बॉक्स ऑफिस की लड़ाई हारते नजर आ रहे हैं। ‘भी’ इसलिए लिखा क्योंकि इससे पहले हाल ही में एक और मशहूर पत्रकार विनोद कापड़ी की भी फिल्म ‘मिस टनकपुर हाजिर हो’, बॉक्स ऑफिस पर धराशाई हो चुकी है।
हालाँकि कापड़ी के मुकाबले अविनाश दास ने पत्रकारों के लिए फिल्म इंडस्ट्री में बतौर निर्देशक कदम रखते ही सफलता मिलने की ज्यादा उम्मीद जगाई थी क्योंकि अविनाश की फिल्म अनारकली ऑफ़ आरा को कमोबेश हर फिल्म आलोचक ने खुले दिल से सराहा था। इसके बावजूद 4 करोड़ के बजट में बनकर तैयार हुई ‘अनारकली ऑफ़ आरा’ अपने पहले दिन महज 10 लाख का ही कारोबार कर पाई। आमतौर पर अच्छी फिल्में पहले दिन की धीमी शुरुआत के बावजूद माउथ पब्लिसिटी के सहारे कामयाबी की मंजिल तक पहुंच ही जाती हैं। मगर अविनाश की पहली फिल्म की पहले दिन ही इतनी फीकी शुरुआत हुई है कि अब तो इसकी लागत निकल पाना भी मुश्किल ही लग रहा है।
यदि माउथ पब्लिसिटी के जरिये भी सिनेमा हाल में दर्शकों की तादाद नहीं बढ़ी तो यह फ़िल्म बमुश्किल ही एक करोड़ की कमाई तक पहुंच पाएगी। इसी तरह कापड़ी की फिल्म ‘मिस टनकपुर हाजिर हो’ की लागत 8 से 10 करोड़ आयी थी लेकिन फिल्म केवल 1.03 करोड़ ही कमा पायी थी।
हालाँकि दोनों ही पत्रकार अपना बहुत कुछ दांव पर लगाकर अपनी पूरी लगन, समर्पण और मेहनत के साथ फिल्म को जनता के बीच लाये लेकिन दोनों ही मीडिया के अलावा आम जनों का ध्यान खींचने में नाकाम रहे। मीडिया का ध्यान भी वह इसीलिए इतना ज्यादा खींच पाये क्योंकि वे खुद जाने माने पत्रकार रह चुके हैं।
मुम्बई की मायानगरी में न जाने यह कैसी माया है कि अच्छी से अच्छी पटकथा, निर्देशन और एक्टिंग आदि के बावजूद बॉक्स ऑफिस पर कामयाबी मिल पाना एक बेहतरीन फिल्मकार के लिए भी सपना ही बन कर रह जाता है। तमाम प्रतिभावान निर्देशक या कलाकार अपना सब कुछ देकर हर लिहाज से बेहतरीन मूवी का निर्माण करने के बाद भी बॉक्स ऑफिस से प्यार नहीं पा पाते… तो दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी सौभाग्यशाली हैं, जो मसाला या चलताऊ पिक्चर बनाकर भी बॉक्स आफिस के चहेते बने हुए हैं।शायद इसीलिए कहा गया है कि मुम्बई का पानी सबको रास नहीं आता..
(लेखक के सोशल मीडिया प्रोफाइल से साभार)