मोदी विरोध और मोदी सपोर्ट की आड़ में कुछ लोग एड़ा बन कर पेड़ा खा रहे हैं। इस आड़ में पत्रकारिता के माफिया खूब फल-फूल रहे हैं और आम पत्रकार तबाह हो रहा है। कई चैनल बंद हो गए तो कई होने वाले हैं। लेकिन दूसरों के खिलाफ आवाज़ उठाने वाली कौम इतनी निरीह है कि खुद के खिलाफ आवाज़ तक नहीं उठा पाती। इन पर दया भी नहीं करनी चाहिये। इन से बेहतर तो मजदूर होते हैं जो अपने साथी के खिलाफ मालिक की सख़्ती पर आवाज़ बुलंद कर देते है।
लेकिन ये सत्ता की छांव में इतनी अकड़ में रहते है तब तक रहते है जब तक खुद की शेखी नहीं निकल जाती। इसलिए पत्रकार कौम से उम्मीद नहीं कि वो पत्रकारिता के रवीश और सुधीर जैसे वामपंथी और दक्षिणपंथी आड़ में अपनी दुकान चलाने वाले के खिलाफ आवाज़ उठा सके। लेकिन सोशल मीडिया को किस से खौफ है?
दो हिस्से में बंटे विचारधारा का फायदा ये घाघ उठा रहे है। आप इसे समझिए। एक पत्रकारिता का केजरीवाल जो आम आदमी की वेशभूषा और स्टाइल की नक़ल में अपने मालिक के एजेंडे को चला रहा है, दूसरा राष्ट्रवाद के एजेंडे में और सोशल मीडिया इन दोनों अपराधियों के लिए फैन क्लब बन कर कूद रहा है।
आँख मूंद कर किसी का फैन न बनिए। अब आपके हाथ में जनता का मीडिया है। उसका हिस्सा बनिए। कोई उगाही का अपराधी या विचारधारा के नाम पर मासूमियत की आड़ में हवाला का धंधा कर रहा है। उनके खिलाफ सबूतों के साथ जाँच चल रही है और हम अँधे होकर उन अपराधी पत्रकारों का जयजयकार कर रहे है। क्यों हम अपराधियो को भगवान बना रहे है। सोचिये। ये खुद सोशल मीडिया से गायब होकर अपने चेलो को यहाँ छोड़ रखा है अपनी सेवा में । बदले में टीवी पर उनका महिमामंडन अब इस खेल का पर्दाफाश जरुरी है।