मीडिया हिट्स और टीआरपी के लिए काम करता है.समझते हैं कि आप पर बाजार का दवाब है और उसकी कसौटी हिट्स और टीआरपी पर टिकी हुई है.लेकिन फिर भी हरेक पेशे का एक सिद्धांत होता है और पत्रकारिता तो सिद्धांतों पर ही टिकी हुई है.लेकिन अब उसे मटियामेट करने पर मीडिया संस्थान लग गए हैं.ताजा मिसाल जयललिता मामले में सामने आयी है जब जयललिता अपनी ब्रेकिंग न्यूज़ की हड़बड़ी में जयललिता को कई घंटे पहले ही मार चुका है और टीवी चैनलों पर स्यापा जारी है जबकि हकीकत में अबतक उनके मृत होने की आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है.फिर इस हड़बड़ी की वजह समझ नहीं आ रही. खबर ब्रेक करने की जल्दी में ऐसा करना सिर्फ पत्रकारिता ही नहीं मानवीयता का भी सरासर अपमान है. क्या आधिकारिक बयान तक का इंतजार नहीं कर सकते? कभी सोंचा है कि जयललिता को पागलों की तरह चाहने वाले जो अभी भी चमत्कार की आस लगाये बैठे हैं,उनपर ऐसी ख़बरों पर क्या बीतती होगी?
हिंदी समाचार चैनल न्यूज़24 की वेबसाईट पर जयललिता को शाम 5.44 पर ही मृत घोषित कर दिया गया और निर्लज्जता देखिये अबतक उस खबर को नहीं हटाया गया.
मीडिया ने ऐसा पहली बार नहीं किया है. अपनी हड़बड़ी में उसने कितने सेलिब्रिटीज को कई-कई बार मारा है. दिलीप कुमार को कई बार इसने तरह मृत घोषित किया और फिर जिंदा किया. मतलब मौत की खबर में इन्हें ब्रेकिंग न्यूज़ ही दिखती है. ऐसा न हो कि किसी दिन ब्रेकिंग न्यूज़ की मौत हो जाए और मातम मानाने के लिए एक भी दर्शक या पाठक जुटे.