नदीम एस.अख्तर
दुनिया पर कब्जे की असली लड़ाई इस्लाम और ईसाइयत के बीच चल रही है. बाकी के धर्म इनकी लड़ाई में या तो पिस रहे हैं, या फिर पिसेंगे या फिर लटक-मटक कर एडजस्ट कर लेंगे. और ये लड़ाई आज से नहीं है. इतिहास उठा कर देख लीजिए तो इस्लाम के उदय के बाद से ही ईसा के अनुयायियों से उनका टकराव शुरू हो गया.
हालांकि इस्लाम ईसा मसीह और पैगम्बर मोहम्मद को एक ही श्रेणी में रखता है. कुरान शरीफ में दोनों खुदा के पैगम्बर बताए गए हैं और खुदा ने समय-समय पर अपना संदेश मानव जाति को बताने-समझाने के लिए दुनिया में एक लाख, चौबीस हजार (124000) पैगम्बर भेजे. इनमें मुहम्मद साहब सबसे आखिरी पैगम्बर थे और कुरान में यह ऐलान कर दिया गया कि उनके बाद कोई और पैगम्बर नहीं भेजा जाएगा.
साथ ही यहूदी जिस मूसा को मानते हैं, इस्लाम में उन्हें भी पैगम्बर बताया गया है. कुरान में खुदा ने कहा है कि इस्लाम को मानने वालों को मेरे भेजे इन सभी 1 लाख 24 हजार पैगम्बरों पर ईमान लाना होगा, उनको मानना होगा. जो इनमें से एक से भी इनकार करेगा, वह इस्लाम का अनुयायी नहीं हो सकता यानी उसने मेरी बात मानने से इनकार किया. इन सभी पैगम्बरों को खुदा ने एक किताब भेजी, जो उनके मानने वालों के पास आज भी है.
कुरान में खुदा फरमाता है कि दुनिया में लोगों ने मेरे पैगम्बर-दूतों द्वारा कही गई बातों को मेरी भेजी किताब में बदल दिया. कुछ तो मेरे पैगम्बर को ही ईश्वर मानकर पूजने लगे या फिर उसे किसी और रूप में भगवान के बराबर कहने-मानने लगे. सो अब मैं अपने आखिरी पैगम्बर मुहम्मद के मार्फत अपनी बात कुरान में बता रहा हूं और ये जिम्मा भी लेता हूं कि कयामत तक मेरी भेजी ये आखिरी किताब यानी कुरान कोई नहीं बदल सकेगा. इसका एक हर्फ भी नहीं, एक अक्षर-शब्द भी नहीं बदल सकेगा इंसान. इसकी हिफाजत की जिम्मेदारी मैं खुद लेता हूं और ऐलान करता हूं कि मुहम्मद मेरी आखिरी पैगम्बर हैं, जिनका मुकाम मैंने दुनिया में भेजे अपने सभी पैगम्बरों से आला रखा है और जो मुझे अपने सभी पैगम्बरों में सबसे प्रिय हैं.
इस नजर से देखें तो यहूदी और ईसाई और मुसलमान, सभी आपस में भाई हैं. बस उनके मानने में फर्क है. ईसाई कहते हैं कि ईसा, SON OF GOD हैं यानी भगवान के बेटे हैं, जिन्होंने VIRGIN मेरी के गर्भ से जन्म लिया, जो भगवान की कृपा से ही संभव हुआ. इस्लाम भी यही कहता है कि पैगम्बर ईसा ने बिनब्याही मां मेरी की कोख से जन्म लिया लेकिन साथ ही ये ताकीद भी करता है कि वे अल्लाह के बेटे नहीं हैं, वह उसके पैगम्बर (दूत, Prophet) हैं, बस.
दोनों धर्मों में लड़ाई यहीं से शुरु होती है. कुरान में अल्लाह फरमाता है एक सूरा में कि…
कुलहोअल्लाहो अहद. अल्लाहहुस्समद. लम या लिद. वलम यू लद. वलम या कुल्लोहु व कोफवन अहद.
इसका मोटा-मोटी तर्जुमा ये है कि ऐ लोगों, अल्लाह एक है. वह ना किसी का बाप है और ना ही वह किसी का बेटा है. वह इन सब चीजों से पाक साफ है, इनसे अलग है. ना उसे किसी ने पैदा किया और ना ही वह किसी को पैदा करता (जन्म देता) है.
( He is Allah, the One and Only;Allah is He on whom all depend: He begets not, nor is He begotten : And there is none like unto Him. )
लेकिन ईसाई मानते हैं कि ईसा भगवान की औलाद हैं पर इस्लाम कहता है कि खुदा का कोई बेटा हो ही नहीं सकता. वह तो हमारे-आपके जैसे इंसान थे जो खुदा के दूत भर थे, ठीक मुहम्मद साहब की तरह. और इस्लाम ये मानता है कि ईसा मसीह ने जितने कमाल दिखाए यानी कोढ़ के बीमारों को ठीक किया, मुर्दे में जान डाली, वह सब सही बात है क्योंकि खुदा ने अपने हर एक पैगम्बर को कुछ खासियत दी थी और ईसा को ये सब शुक्तियां खुदा ने ही प्रदान की थीं. ये शक्तियां खुदा का बेटा होने के नाते उनमें नहीं आईं थीं.
बस मतभिन्नता और लड़ाई यहीं से शुरु होती है. सैकड़ों सालों से इस्लाम और ईसाइयत आपस में भिड़ रहे हैं और दुनिया पर अपना-अपना राज कायम करना चाह रहे हैं. वैसे दुनिया के ज्यादातर भागों पर ईसाई धर्म के मानने वालों का कब्जा हो जाता लेकिन इस्लाम के आने के बाद ये रफ्तार बहुत कुंद हो गई. इस्लाम तेजी से फैला. जब उसके पास भी ताकत आ गई तो दोनों धर्मों के अनुयायी आपस मे भिड़ने लगे. यह दुनिया पर वर्चस्व की लड़ाई थी जो आज भी जारी है.
सो भाई लोगों. लड़ाई दरअसल धर्म की है ही नहीं. ये तो दरअसल दो सभ्यताओं, दो सोच की लड़ाई है. सैमुअल हटिंगटन ने अपनी किताब The clashes of Civilization, the remaking of world order में सभ्यताओं के इस संघर्ष को बखूबी रेखांकित किया है. आज दुनिया के ज्यादातर महादेशों में सिर्फ दो धर्म प्रमुखता से काबिज हैं. ईसाई और इस्लाम. बीच-बीच मे ऐसे कई छोटे-छोटे गोले हैं जहां दूसरे धर्म के लोग हैं पर पूरी दुनिया की आबादी और क्षेत्रफल के हिसाब से वे एक छोटे टुकड़े तक ही सीमित हैं.
दुनिया को इस विहंगम नजरिए से देखने के बाद जब हम भारतीय उपमहाद्वीप को देखते हैं तो पाते हैं कि यहां इस्लाम और ईसाइयत, दोनों की आपसी लड़ाई काफी हद तक गौण हो गई है. यहां चूंकि वैदिक सभ्यता वाला (बाद में दिया गया नाम हिंदू धर्म) काफी प्राचीन धर्म है, तो बहुसंख्यक आबादी हिंदू है और इस्लाम तथा ईसाइयत काफी बाद में यहां आए. लेकिन भारत की खूबसूरती देखिए कि यहां आने के बाद इस्लाम और ईसाइयत, दोनों ने खुद को बहुत तेजी से यहां के रंग-ढंग और माहौल में ढाल लिया. यहां की सोच-विचार-परंपरा में हिलमिल गए और एक गंगा-जमुनी तहजीब या संस्कृति को जन्म दिया. अगर ये ना होता तो इस देश पर इतने लम्बे समय तक मुस्लिम शासक राज नहीं कर सकते थे. अंग्रेज जोकि ईसाई थे, वो भी ये समझ चुके थे, सो उन्होंने अपना वास्ता यहां राज करने तक ही रखा. धर्म के मामलों में उन्होंने ज्यादा दखल नहीं दिया और इस कारण लम्बे समय तक हिन्दोस्तान को अपना गुलाम बनाए रखने में सफल रहे.
अब बात करते हैं वर्तमान काल की यानी आज के समय की. तो अभी हालात ये हैं कि पूरी दुनिया में इस्लाम और ईसाइयत के बीच वर्चस्व की जंग अब भी जारी है. मिडिल-ईस्ट में ये लड़ाई ज्यादा मुखर नजर आती है और बाकी जगह छिटपुट तौर पर लेकिन भारत यहां भी सबसे अलग है. यहां हिंदू धर्म के बाद सबसे बड़ी आबादी मुसलमानों की है लेकिन दोनों सैकड़ों साल पुराने सहअस्तित्व के सिद्धांत पर चलने में आज भी यकीन करते हैं. हालांकि 1947 में इस्लाम और मुसलमान के नाम पर भारतवर्ष के दो टुकड़े हो चुके हैं, पाकिस्तान और बांग्लादेश बन चुका है, फिर भी इन दोनों देशों से ज्यादा मुसलमान आबादी आज भी अकेले हिन्दुस्तान में रहती है और ये वो आबादी है जो विभाजन या लड़ाई की पैरोकार नहीं है. बंटवारे के बाद इनके पुरखों ने अपनी मर्जी से हिन्दुस्तान में रहना कबूल किया और इनकी अगली पीढ़ी भी इसी सरजमीं में मरना-खपना चाहती है. यही कारण है कि तथाकथित इस्लाम के नाम पर लड़ाई लड़ने वाले आतंकवादी संगठनों में हिन्दुस्तान के मुसलमानों की तादाद ना के बराबर या नगण्य है.
तो दिक्कत कहां आ रही है. मेरी समझ से परेशानी तब हो रही है, जब आज के हालात में एक खास विचारधारा के लोग हिन्दू बहुसंख्यक आबादी का वोट बैंक कार्ड खेल रहे हैं. ये लोग एक छद्म अतीत गौरव का बोध जगाकर हिन्दुस्तान की आबादी को यहां रह रहे दो बड़े धर्मों, हिन्दू और मुसलमान के नाम पर बांटकर राज करना चाह रहे हैं. ठीक वही पॉलिसी, जो अंग्रेजों ने अपनाई थी. लेकिन ये लोग एक बड़ी भूल कर रहे हैं. सदियों से साथ रह रहीं पीढ़ियां फौरी तौर पर उबल भले जाए लेकिन अलग नहीं हो सकतीं. और खासकर यूथ-युवा, उसे आधुनिक दुनिया के संसाधनों में अपना हिस्सा चाहिए. वह धर्म और अतीत गौरव के पचड़ों में ना उलझकर दुनिया को विज्ञान और आधुनिक नजरिए से देखना चाहता है. यही कारण है कि खुद हिंदू धर्म में भी जातियों की दीवार टूट रही हैं. अतरजातीय विवाह हो रहे हैं. एक नई पीढ़ी, नया समाज बन रहा है. और जो लोग इस परिवर्तन को नहीं देख रहे, नहीं पहचान रहे, वे विल्प्त हो जाएंगे. जल्द ही. ठीक डायनासोर की तरह क्योंकि वक्त बड़ा निर्दयी होता है. जिसने इसकी नब्ज पहचान ली, सिर्फ वही इसके साथ आगे बढ़ सकता है.
(लेखक आईआईएमसी में अध्यापन कार्य में संलग्न हैं)